ऐसा माना जाता है की गिलोय की उत्पत्ति अमृत की बूंदों से हुई। अमृत बूंदों की तरह ही इसमें भी अमृत जैसे ही गुण हैं। यह आयुर्वेद में एक रसायन जड़ी-बूटी मानी गई है।
एलो वेरा को संस्कृत में घृतकुमारी, कुमारी, अंग्रेजी में बारबाडोस एलो, एलो वेरा, यूनानी में घीक्वार, और भारत में बोलचाल की भाषा में मुसब्बर वेरा भी कहा जाता है। इसका प्रयोग आंतरिक और बाह्य दोनों तरह से किया जाता है।
गिलोय, अमृता या गुडूची आयुर्वेद के सबसे महत्वपूर्ण औषधीय पौधों में से एक है। यह अमृत के समान रसायन है। इसको दवा की तरह इस्तेमाल करने के लिए आप इसके पत्तों का रस, तने का रस और तने का काढ़ा बना कर सेवन कर सकते हैं। गिलोय का प्रयोग बहुत सी रोगों के ईलाज में होता है।
आयुर्वेद में दालचीनी दवा के रूप में बहुत पुराने समय से इस्तेमाल किया जाता रहा है. दालचीनी में एक रासयन cinnamaldehyde होता है जो की एंटी-बैकटिरीयल और एंटी-फंगल होता है।
दशमूल शरीर में सूजन और वात-व्याधि के उपचार की एक उत्कृष्ट दवा है. यह बुखार और सूजन को कम करती है। इसके अतिरिक्त दशमूल खांसी, गैस, भूख न लगना, थकावट, ख़राब पाचन, बार-बार होने वाला सिरदर्द, पार्किन्सन, पीठ दर्द, साइटिका, सूखी खांसी, आदि में बहुत ही उपयोगी है।
करेला (Bitter gourd)एक औषधीय पौधा है. इसके फल और पत्तियों में विशेष गुण होते है जिस वजह से यह बहुत से रोगों में प्रभावी ढंग से काम करता है. आयुर्वेद में इसे मधुमेह, पाइल्स, , कब्ज, अनियमित मासिक धर्म, आंत्र