अथर्ववेद में नीम्बा शब्द का प्रयोग किया गया है जिसकी उत्पत्ति ‘निम्बाती स्वस्थ्यमघाती’ अर्थात ‘अच्छा स्वाथ्य बने रखना’, उक्ति से हुई है। क्योंकि नीम अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहयोगी है तथा रोग निवारक है इसलिए इसे निम्ब नाम मिला। नीम को सर्वरोग निवारिण (सभी बिमारियों की दवा) भी कहा जाता है क्योकि यह एक नहीं अनेक रोगों की प्रभावशाली दवा है।
नीम का पेड़ भारत भर में पाया जाता है। यह भारत के पड़ोसी देशों जैसे की नेपाल, लंका, पकिस्तान तथा थाईलैंड, इंडोनेशिया, म्यानमार में भी मिलता है। यह वृक्ष भारत देश का मूल निवासी है पर इसकी उपयोगिता देखते हुए इसे अफ्रीका, आस्ट्रेलिया, तथा अन्य बहुत से उष्ण और उपउष्ण कटिबंधीय देशों में लगाया गया है।
नीम का पेड़ | Neem Tree in Hindi
अथर्ववेद में नीम्बा शब्द का प्रयोग किया गया है जिसकी उत्पत्ति ‘निम्बाती स्वस्थ्यमघाती’ अर्थात ‘अच्छा स्वाथ्य बने रखना’, उक्ति से हुई है। क्योंकि नीम अच्छे स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहयोगी है तथा रोग निवारक है इसलिए इसे निम्ब नाम मिला। नीम को सर्वरोग निवारिण (सभी बिमारियों की दवा) भी कहा जाता है क्योकि यह एक नहीं अनेक रोगों की प्रभावशाली दवा है।
नीम को आयुर्वेद में निम्ब, पिचुमर्द, पिचुमंद, तिक्तक, अरिष्ट, पारिभद्र, हिंगू, तथा हिंगुनिर्यास कहा जाता है। इंग्लिश में इसे मार्गोसा और इंडियन लीलैक, बंगाली में निमगाछ निम्ब, गुजराती में लिंबडो, और हिंदी में नीम कहा जाता है। नीम को फ़ारसी में आज़ाद दरख्त कहा जाता है। नीम का लैटिन नाम मेलिया अजाडीरीक्टा या अजाडीरीक्टा इंडिका है।
नीम का हर हिस्सा कड़वा होता है और इनमें असामान्य रूप से कीटनाशक शक्ति पाई जाती है।
इसके पत्ते, छाल, जड़, फल सभी उपयोगी है। नीम की दातुन को तो सभी जानते है। नीम की दातुन करने से मुंह साफ़ रहता है और दांत तथा मसूड़े मजबूत होते हैं। खून साफ़ करने में भी नीम के बराबर कोई घरेलू उपचार नहीं। नीम शरीर में पित्त को शांत कर शरीर को ठंडक देता है।
नीम शीत वीर्य/स्वभाव में ठंडा (बीज, तेल छोड़ कर), कड़वा, पित्त और कफशामक, और प्रमेह नाशक है। यह खांसी, अधिक कफ, अधिक पित्त, कृमि, त्वचा विकारों, अरुचि, व्रण आदि में लाभकारी है। नीम के पत्ते, आँखों के लिए हितकारी, वात-कारक, पाक में चरपरे, हर तरह की अरुचि, कोढ़, कृमि पित्त और विष नाशक हैं।
नीम के फल, कड़वे, पाक में चरपरे, मलभेदक, स्निग्ध, हल्के गर्म, और कोढ़, गुल्म, बवासीर, कृमि तथा प्रमेह को नष्ट करने वाले हैं।
भारत के कुछ प्रदेशों में, डाइबिटीज के इलाज़ के लिए, नीम की कोपलों को कच्चा या सब्जी की तरह पका कर खाया जाता है। नीम के पत्तों से किया गया धुंआ कीटाणुओं, मच्छरों, मक्खियों, काकरोचों को नष्ट करता है।
नीम के पेड़ की सामान्य जानकारी | General Information in Hindi
नीम के पेड़ १५-२० मीटर या उससे भी ऊँचे हो सकते है। इसका तना सीधा और मोटा होता होता है। इसके तने पर काली-भूरी छाल होती है जो की कठोर और दरार वाली होती है।
इसके पत्ते लम्बे नोकदार, किनारे पर आरे के दांत वाले होते हैं। नीम कम नमी वाले क्षेत्रों में बहुत अच्छे से लग जाता है। नीम के पेड़ में बसंत ऋतु के बाद, बारीक सफ़ेद रंग के फूल आते है जिनकी सुगंध कुछ-कुछ चमेली जैसी होती है। फूलों के बाद, फल बनते हैं। फल पतले और लम्बे, कुछ अंगूर जैसे होते है।
फलों को हम निबोली/निमौली/निमकौली/नीमकौली Niboli के नाम से जानते हैं। पकने पर यह फल नर्म और कुछ पीले हो जाते हैं। इनके अन्दर बीज या मींग निकलते हैं जिनमे तेल Neem oil or Margosa oil होता है। नीम का तेल चमड़ी, की बिमारियों के लिए अत्यंत ही गुणकारी औषध है।
नीम के पेड़ की पत्ती, छाल, फल, फूल, बीज, तेल, सभी दवा की तरह प्रयोग होते हैं।
नीम की छाल में मार्गोसिन, निम्बीडीन, निम्बिन, निम्बिनिन, निम्बोस्टेरोल, कड़वे अल्कालॉयड और वाष्पशील तेल पाया जाता है। बीजों में बहुत थोड़ी मात्रा में सल्फर/गंधक भी पाया जाता है।
- वानस्पतिक नाम: मेलिया अजाडीरीक्टा या अजाडीरीक्टा इंडिका Azadirachta indica A. Juss. Syn. Melia azadirachta Linn.
- कुल (Family): नीम-कुल मेलिएसी Meliaceae
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पत्ती, छाल, फल, फूल, बीज, तेल, सभी दवा की तरह प्रयोग होते हैं।
- पौधे का प्रकार: बड़ा वृक्ष।
- वितरण: नीम के वृक्ष पूरे भारत में जंगली और लगाए रूप में प्रचुरता से पाए जाते हैं। यह मुख्यतः सूखी जलवायु का पेड़ है और दक्कन के शुष्क जंगल के प्रदेशों में इसके वन पाए जाते हैं।
- पर्यावास: शुष्क, गर्म जलवायु।
नीम का स्थानीय नाम / Synonyms in Hindi
- Sanskrit: Picumaradah, Arishtah, Picumandah, Prabhadrah
- Bengali: Nim, Nimgaachh
- English: Margosa Tree, Neem Tree, Indian Lilac
- Gujrati: Leemado
- Kannada: Turakbevu, Huchchabevu, Chikkabevu
- Malayalam: Veppu, Aryaveppu, Aaruveppu
- Marathi: Kadunimba, Nimb
- Oriya: Neemo, Nimba
- Punjabi: Nimb, Nim
- Tamil: Vempu, Veppu
- Telugu: Vemu, Vepa
- Urdu: Neem
नीम की औषधीय मात्रा | Dosage of Neem in Hindi
- नीम की छाल का चूर्ण bark powder: 1-4 ग्राम। छाल से बने काढ़े को केवल बाहरी रूप से प्रयोग करें।
- पत्तों का चूर्ण leaf powder: 1-4 ग्राम
- बीज seeds: 1 ग्राम
- पत्तों का जूस leaf juice: 10-12 ml
- नीम के पत्तों का काढा decoction of leaf: 50-100 ml
- नीम का तेल Neem oil/Margosa oil: 2-5 बूँद
- जड़ की छाल root bark: 3-6 ग्राम
- नीम के फूल flowers: 2-4 ग्राम (सूखे); 10-20 ml जूस
नीम के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
नीम के पत्ते अधिक पित्त और कफ को दूर करते है। यह शरीर की अधिक गर्मी को दूर करते है। नीम के पत्ते और छाल बलकारक, कषाय, ज्वरनिवारक, विषमज्वर (मलेरिया) और शीतज्वर में अत्यंत हितकर हैं।
नीम के पत्ते खाने से पेट के कीड़े नष्ट होते है। यह भूख न लगना और अपच को भी दूर करते है। यह मासिक धर्म को नियमित करता है। पत्तों को सुखा कर कपड़ों, और चावल आदि में कीटों के संक्रमण रोकने के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
नीम के पत्ते और छाल
नीम के पत्ते और छाल सबसे ज्यादा घरेलू उपचार में प्रयोग होते है। नीम के पत्तों और छाल में निम्न गुण पाए जाते है।
- रस (taste on tongue): तिक्त
- गुण (Pharmacological Action): रूक्ष
- वीर्य (Potency): शीत
- विपाक (transformed state after digestion): कटु
- कर्म: ग्राही, वातकर, पित्तनाशक।
नीम के पत्ते के औषधीय उपयोग
- प्रमेह में, नीम की तीन ग्राम पत्तियों को एक कप पानी में उबाल कर काढा बनाकर पीने से लाभ होता है।
- दस्त, पेचिश में, नीम की पत्तियों को पीस उनका रस निकाल लें। इस रस को एक छोटे चम्मच की मात्रा में मिश्री के साथ लें।
- पेट के कीड़ों में, नीम की पत्तियों का पाउडर + १ ग्राम अजवाईन + गुड़ के साथ लेने से कृमिनष्ट होते हैं।
- पीलिया jaundice में, नीम पत्तियों रस २ चम्मच + शहद २ चम्मच मिलकर सुबह लेना चाहिए।
भूख न लगने पर anorexia, नीम की कुछ पत्तों का रोज़ सेवन करें। - पूरे शरीर में खुजली itching, होने पर नीम की पत्ते उबाल कर उस पानी से नहायें।
- फोड़े, फुंसी, घाव, मुहांसे पर नीम के पत्ते पीस कर १५-२० मिनट तक नियमित लगायें।
नीम के फल के उपयोग
नीम का फल, निबोली Neemkauli, पाइल्स, कोढ़, कृमि, पित्त-कफ के असंतुलन को दूर करता है। यह विरेचक laxative और कृमिनाशक anti-parasitic है। नीम के कच्चे फल फोड़े, विसर्प, नाड़ी व्रण, आदि में लेप के रूप में लगाए जाते हैं। कुत्तों के चरम रोग में भी नीम का प्रयोग गुणकारी है। नीम मूत्रल diuretic है और पेशाब की मात्रा को बढ़ाता है।
- रस (taste on tongue): तिक्त
- गुण (Pharmacological Action): लघु, तीक्ष्ण, स्निग्ध
- वीर्य (Potency): उष्ण
- विपाक (transformed state after digestion): कटु
नीम के फल के कर्म: कफ-हर, रसायन, वात-हर, विष नाशक, भेदक, पाचन।
नीम के फल के चिकित्सीय प्रयोग: सिर के रोग, सूजन, अर्श, अरुचि, उल्टी, जलन, गुल्म, ज्वर, कृमि कुष्ठ, प्रमेह, रक्त-पित्त, विष-विकार, कब्ज़, व्रण बालों का सफ़ेद होना, गंजपण, गण्डमाला।
कर्म: ज्वर, कृमिरोग, कुष्ठ, आँखों के रोग, प्रमेह, व्रण, आमदोष, विषरोग।
जड़ की छाल root bark और नीम के सूखे फूल
- रस (taste on tongue): तिक्त
- गुण (Pharmacological Action): लघु
- वीर्य (Potency): शीत
- विपाक (transformed state after digestion): कटु
जड़ की छाल के कर्म: खुजली दूर करने वाला, हृदय को अप्रिय, कफ-हर, पिट-हर, रुचिकारक, दीपन, विष-नाशक, व्रणशोधन
फूल के कर्म: आँखों के लिए अच्छा, कृमि नष्ट करने वाला, कफहर, पित्तहर, वातकर, विष नाशक, कुष्ठनासह्क और ग्राही।
जड़ की छाल और फूल के चिकित्सीय प्रयोग: सूजन, अरुचि, श्वास, छर्दी, जलन, दुष्ट व्रण, ग्रहणी, ज्वर, कास, कृमि रोग, कफ-रोग, प्रमेह, रक्तपित्त, अधिक प्यास लगना, लीवर के रोग, उल्टी।
नीम का तेल Neem oil or Margosa oil in Hindi
नीम का तेल, नीम के बीज से निकलता है। बीज में करीब ३१ % तेल होता है। पकी निमकौली के बीज या गिरी को कोल्हू में पेरकर तेल निकाल लिया जाता है। इसे छान कर रख लिया जाता है। यह तल हल्का या गाढ़ा पीला द्रव्य होता है। इसमें बहुत ही तेज गंध होती है। इसका स्वाद तीता और कड़वा होता है।
तेल निकाल लेने के बाद बचे हुए भाग को खली कहते है। खली में सामान्यतः ५.२ % नाइट्रोजन, १.१ % फॉस्फोरस, और १.५ % पोटैशियम होता है। यह कीटनाशी और दीमक नाशी भी होती है। और इसी कारण से इसे खाद fertilizer के रूप में प्रयोग किया जाता है।
नीम का तेल आयुर्वेद में चमड़ी के रोगों के लिए महाऔषध कहा गया है। इसे त्वचा पर बाहरी रूप से लगते हैं।
नीम के तेल के कुछ मुख्य गुण
- व्रणरोपण healing
- कुष्ठाघ्न helpful in skin diseases
- वेदनास्थापन analgesic एनाल्जेसिक पीड़ाहर
- कृमिनाशक anthelmintic, vermicide
- प्रकृति से गर्म hot in potency
- गंधक युक्त contains Sulphur
- Anti-lice
नीम के तेल के उपयोग
- नीम का तेल, चर्मरोग, गण्डमाला, घाव, तथा गलित कुष्ठ में मालिश के लिए प्रयोग होता है।
- यह सिर पर भी लगाया जाता है। बालों में लगाने से जुएँ मर जाती anti-lice है।
- बवासीर में नीम का तेल मस्सों पर लगाया जाता है।
- पक्षाघात में भी इसकी अंगों पर मालिश करने से लाभ होता है।
- क्योंकि नीम के तेल में कुछ मात्रा में गंधक भी है इसलिए यह चमड़ी रोगों में हितकर है।
- नीम के तेल को अच्छी तरह से बंद करके ठंडी जगह पर रखना चाहिए।
नीम के मुख्य औषधीय गुण
आल्टरेटिव Alterative (पूरे शरीर के अंगों का फंक्शन नार्मल करना, जैसे की खून साफ़ करना, भूख बढ़ाना, पाचन और विरेचन कराना आदि)
- गर्भनिरोधक Contraceptive
- कृमिनाशक anthelmintic ऐन्थेल्मिन्टिक, Parasiticide
- मासिकधर्म के स्राव को बढ़ाने वाला emmenagogue
- रोगाणुरोधी antimicrobial
- जीवाणुरोधी antibacterial
- मूत्रल diuretic
- कफ निकालने वाला expectorant
- एंटी-वायरल Anti-viral वायरस के खिलाफ प्रभावी
- एंटीहाइपरग्लैसिमिक Anti-hyperglycemic रक्त में ग्लूकोज को कम करता है।
- टॉनिक Tonic
नीम के चिकित्सीय उपयोग Medicinal Uses of Neem In Hindi
नीम एक औषधीय पेड़ है जो की दांतों के रोग, आँखों के रोग, कानों के रोग, चमड़ी रोग, बुखार, कफ, मोटापे, आदि में प्रयोग होता है। चमड़ी के रोगों में तो यह विशेष रूप से उपयोगी है। इसका आंतरिक तथा बाह्य प्रयोग विभिन्न त्वचा रोगों में प्रभावी है। नीम कृमि तथा विषनाशक है। यह नीम कड़वा है और डाईबेटीज़ भी लाभकारी है।
- नीम के पत्ते का काढ़ा बुखार में देने से शरीर से विष दूर होता है और शरीर की इम्युनिटी बढती है। पत्तों का काढ़ा कृमिनाशक, विषनिवारक, वातकारक, तथा सभी प्रकार के अरुचि और कुष्ठ को दूर करने वाला है।
- नीम की निबौली, पाइल्स, कृमि और प्रमेह को दूर करती हैं ।
- नीम का तेल खाज, खुजली, कुष्ठ, में लाभप्रद है। नीम के सूखे पत्तों को कपड़ों, किताबों और अनाज में रखने से कीड़े नहीं लगते। नीम की छाल, रस और पत्तियों का उपयोग कई प्रकार की दवाइयों में किया जाता है।
- वृद्धि, ग्रन्थि और वर्ण में नीम के पत्तों का लेप करतें हैं । नीम की छाल जुखाम, रक्तशर्करा, आमवात, ज्वरहर, कैंन्सरनाशक व कीटाणुनाशक है ।
फोड़े, फुंसी, घाव
- पुराने पत्तों को पीस कर प्रभावित स्थान पर लगायें।
- प्रसूति के बाद की देखभाल में नीम Post-delivery care
- नीम के पत्तों का रस, एक महीने तक पीने से शरीर से दूषित पदार्थ बाहर निकल जाते हैं तथा गर्भाशय को अपने पुराने आकार में आने में भी मदद मिलती है।
शीत पित्त, पित्ती निकलना urticaria, घमौरी
नीम के सूखे हुए पत्तों का पाउडर ३ ग्राम की मात्रा में पानी के साथ दिन में २ बार लेना चाहिए।
एग्जिमा
नीम और मंजीठ का काढ़ा एग्जिमा में बहुत लाभकारी है।
खुजली skin diseases
नीम की छाल, पत्ते, जड़, फूल, फल को बराबर मात्रा में ले कर सरसों के तेल में पकाएं जब तक की धुओं न उठने लगे। इस तेल को छान कर रख लें और प्रभावित जगह पर लगायें।
न भरने वाला घाव
नीम की पत्ती को बराबर मात्रा में सरसों के तेल में मिला कर पका लें और प्रभावित जगह पर लगायें।
बालतोड़
नीम के पत्ते पुल्टिस बनाकर बांधे। ऐसा कई दिनों तक करें।
मुहांसे
नीम के पत्ते का रस पियें और बाह्य रूप से पत्ते का लेप करें।
अरुचि
नीम के सूखे पत्ते का चूर्ण २-३ चुटकी, २-२ घंटे पर चार बार लें।
खून साफ़ करने के लिए
नीम के कुछ पत्ते चबाकर खाएं।
लीवर के रोग, पीलिया
नीम के पत्तों का रस शहद के साथ लें।
इम्युनिटी बढाने के लिए Building Immunity
रोज सुबह खाली पेट ८-१० पत्ते चबाने से इम्युनिटी बढती है और रक्त में शर्करा का स्तर भी ठीक रहता है। यह कोलेस्ट्रोल का स्तर भी कम करता है।
पैरों का एग्जिमा, इन्फेक्शन
नीम का पेस्ट परों में लगाने से परों में फंगल और बैक्टीरियल इन्फेक्शन दूर होते है।
बालों में जुएँ, बालों में रूसी, बाल गिरना, सिर में खुजली, सर में चमड़ी का इन्फेक्शन
करीब एक मुट्ठी नीम के पत्तों को चार कप पानी में उबालें और ठंडा होने पर बालों को धो लें।
मलेरिया बुखार, बुखार, डेंगू बुखार
मलेरिया बुखार में तुलसी के पत्ते (१०-२०), नीम और गिलोय (5 gm), सोंठ (10 gm) और काली मिर्च 10 नग, को पीस कर, २०० ml पानी में उबाल कर काढा बनाकर रख लें और इसे दिन में तीन बार पिए।
पुराना बुखार
नीम की पत्तों का काढा पियें।
कान में दर्द
नीम के पत्तों का रस कान में डाला जाता है।
कुछ प्रकार के सिर दर्द
पत्तों का रस नाक में डालने से लाभ होता है।
गले में दर्द, गले का इन्फेक्शन
नीम के पत्ते पानी में उबाल लें और गरारे करें।
खुजली, चमड़ी पर इन्फेक्शन, फटी एड़ियां
नीम और हल्दी को बराबर मात्रा में मिलाकर एक पेस्ट बनायें और बाह्य रूप से प्रभावित स्थान पर लगायें।
गर्दन में सूजन, स्केबीज, क्रोनिक अल्सर, फोड़े
नीम और हल्दी को बराबर मात्रा में मिलाकर एक पेस्ट बनायें और बाह्य रूप से प्रभावित स्थान पर लगायें।
गंजापन
नीम का तेल सर पर तीन महीने तक लगाएं।
चमड़ी की पुरानी बीमारियाँ, खुजली, स्केबीज़, दाद/रिंगवर्म
नीम का तेल, बाह्य रूप से प्रभावित स्थान पर लगायें।
इन्फेक्शन के कारण कम सुनाई देना
नीम का तेल ईयर ड्राप की तरह कान में डाला जाता है।
मसूड़ों के रोग, खून आना, मुंह से बदबू आना, मुंह के रोग, छाले, ढीले दांत
नीम की दातुन करने से बहुत लाभ होता है।
नीम की दातुन करने से दांतों में कीड़ा नहीं लगता।
फोड़े, मुहांसे, गण्डमाला, घाव
पत्तों को पीस पेस्ट बनाकर नियमित रूप से १५-२० मिनट प्रभावित जगह पर लगाएं।
खूनी बवासीर
खूनी अर्श में नीम की छाल १- ४ ग्राम + गुड़ (दुगनी मात्रा में) लेने से लाभ होता है। नीम की छाल में टैनिन पाए जाते है जो एस्ट्रिंजेंट होते है और खून का बहना रोकते हैं।
नीम के फल अगर उपलब्ध हो तो, कच्चे फल ३-४ खाएं।
खुले घाव
नीम की छाल का काढ़ा बनाकर प्रभावित स्थान को धोएं।
टॉनिक, अच्छा स्वास्थ्य, स्ट्रेस, अनिद्रा, पेट में कीड़े
नियमित रूप से नीम के १० पत्ते चबा कर खाएं।
नीम के नुकसान Side-effects/Caution/Warning
- नीम का बहुत ज्यादा में प्रयोग न करें।
- शोध दिखाते हैं नीम स्त्री-पुरुष सभी में गर्भनिरोधक प्रभाव दिखाता है।
- जिन्हें बहुत अधिक कमजोरी हो वे भी इसका प्रयोग न करें।
- नीम रूक्ष (dry) है। इसलिए रूक्ष प्रकृति वालों के लिए यह अहितकर है।
- अधिक मात्रा में बीज या तेल का सेवन उल्टी, दस्त कर सकता है। ऐसे में शहद, काली मिर्च और घी का सेवन कराना चाहिए।
- नीम के तेल का बच्चों में प्रयोग टॉक्सिक प्रभाव दिखाता है.
बाह्य रूप से इसका प्रयोग पूरी तरह से सुरक्षित है।