आयुर्वेद में औषधीय उपयोग के लिए बहुत से मूत्रों के बारे में दिया गया है जैसे गौ का, बकरी का, भेड़ी का, भैंस का, घोड़े का, ऊंट का और गधे का. सभी मूत्रों को पित्तकारक, तीक्ष्ण, उष्ण, लवण युक्त और कटु माना गया है और सभी में गौ मूत्र को पवित्र और सर्वश्रेष्ठ माना गया है. मूत्र पेट के कीड़ों को नष्ट करने वाला, कफ और वात के कारण होने वाले रोगों को नष्ट करता है. क्योंकि मूत्र में पित्त मिला होता है, इसलिए जो रोग पित्त की कमी की वजह से होते हैं उन रोगों में भी मूत्र का इस्तेमाल होता है.
आयुर्वेद में गौमूत्र को औषधि माना गया है. इसके गुण इस प्रकार हैं:
Some of the medicinal properties of cow’s urine as mentioned Ayurevdic texts are: कटु/चरपरा, कड़वा, तीक्ष्ण, गर्म (hot), खारी, कसैला, हल्का, अग्निप्रदीपक, मेधा को हितकारी, और पित्तकारक है.
गौमूत्र के औषधीय उपयोग
Cow’s urine is used for therapeutic purpose from ancient time. It is especially useful for skin diseases.
गोमूत्र को विभिन्न रोगों, के उपचार के लिए इस्तेमाल किया जाता है. यह कफ, वात, शूल, गुल्मा, उदर, गैस, खुजली, नेत्र रोग, मुख रोग, किलास, आम, वात सम्बन्धी, बस्तिरोग, कोढ़, खांसी, श्वास, सूजन, कामला, और पाण्डु रोग नाशक है.
गौमूत्र के पान से बहुत सी चमड़ी की बिमारियों में लाभ होता है. यह खुजली, किलास, मुखरोग, आँखों के रोग, अतिसार, गुल्म, वात सम्बन्धी रोग, मूत्र रोग, खांसी, कोढ़, पेट के रोग, कृमि, और खून की कमी को दूर करता है.
आयुर्वेद में जहाँ कहीं भी केवल मूत्र लिखा हो उसे गौ मूत्र ही समझना चाहिए.
गौ मूत्र का प्रयोग आंतरिक और बाहरी रूप दोनों में होता है. त्वचा रोगों या चमड़ी के रोगों, जैसे की श्वेत कुष्ठ, कुष्ठ, सफ़ेद दाग, में इसे दोनों रूप से इस्तेमाल करते हैं.
गौ मूत्र कीटाणु नाशक है जो की शुद्धि और स्वछता बढ़ाता है. इसे छिड़कने से वातावरण पवित्र होता है. अभी मार्किट में एक नया फ्लोर क्लीनर आया है Gaunyle (marketed by an organization called Holy Cow Foundation), जो की एक फर्श साफ़ करने का तरल है और गौ मूत्र से बना है.