शहद(Honey) को आयुर्वेद में मधु, माक्षिक, सारघ, मक्षिकावांत, वर्टीवांत इत्यादि नामों से जाना जाता है। आयुर्वेद में भिन्न जाति की मधुमक्खियों और परिस्थियों में पाए जाने के अनुसार, इसके आठ भेद है: पौत्तिक, भ्रामर, क्षौद्र , आर्ध्य, औद्द्लक, छात्र, और माक्षिक। ताज़े मधु को नव या नूतन मधु और पुराने मधु को पुराण मधु कहते हैं।
नया शहद, कफ को बहुत अधिक कम नहीं करता, और विरेचक (सर) होता है। केवल कुछ समय तक संचित शहद, तीनो दोषों (वात-पित्त-कफ को उत्पन्न करता है)। पुराना मधु मोटापे और मेद (फैट) को कम करने वाला, संग्राही, तीनो दोषों का नाशक, और लेखनीय है।
आयुर्वेद मे शहद को, रस में मधुर, कषाय, और स्वभाव से शीत कहा गया है। यह योगवाही है। यह शरीर को ठंडक देने वाला, हल्का, मीठा, रुक्ष, ग्राही, अग्निदीपन करने वाला, आवाज़ अच्छी करने वाला, घाव भरने वाला, बुद्धिकारक, रुचिकारक, योगवाही है। यह वातकारक है। मधुर और लघु होने से यह कफनाशक है, इसके सेवन से फैट तृषा, वमन, श्वास, हिचकी, अतिसार, मलबंध, बवासीर, खांसी, पित्त, प्रमेह, जलन आदि को नष्ट करता है।
शहद मृदु विरेचक एंटीसेप्टिक और सेडेटिव है। शहद का सेवन हीमोग्लोबिन लेवल को बढ़ाता है।
आयुर्वेद के अनुसार शहद को खाने के कुछ नियम हैं:
- मधु को कभी गरम करके नहीं लिया जाना चाहिए।
- अष्टांग हृदय के अनुसार, गर्म शहद जहर सामान है।
- शहद और घी को साथ में नहीं लिया जाना चाहिए। अगर बहुत आवश्यक है, तो एक भाग घी और चार भाग शहद मिला कर लेना चाहिए।
- शहद का बहुत अधिक सेवन भी नहीं किया जाना चाहिए।
- मिश्री, गुड़, तेल, पके कटहल के साथ भी शहद खाना हितकर नहीं है।
- कई महीनों तक लगातार शहद का सेवन नहीं करना चाहिए।
- शहद का सेवन करने के लिए सर्दी और वसंत का मौसम सबसे उपयुक्त है।
कितना शहद खाना चाहिए?
- शुरूवात में इसे कम मात्रा में लेना चाहिए ।
- एक दिन में एक बार, बच्चे को 4-5 बूँदें दी जानी चाहिए। एक किशोर व्यक्ति को आधा चम्मच, और बुजुर्ग व्यक्तियों को एक चम्मच शहद लेना चाहिए।
- धीरे-धीरे इस मात्रा को चार गुना 4 तक बढ़ा सकते हैं।
- शहद को चपाती, फल, फलों के रस और बादाम के साथ ले सकते हैं।
- दो महीने के लिए शहद लेने के बाद, कुछ समय के लिए इसका सेवन बंद कर देना चाहिए। फिर एक महीने के बाद इसे लेना वापस शुरू कर सकते हैं।