सालममिश्री को संस्कृत में बीजागंध, सुरदेय, द्रुतफल, मुंजातक पंजाबी में सलीबमिश्रि, इंग्लिश में सालब, सालप, फ़ारसी में सालबमिश्री, बंगाली सालम मिछरी, गुजराती में सालम और इंग्लिश में सैलेप कहते हैं।
यह पौधों के भेद के अनुसार देसी (देश में उगने वाला) और विदेशी माना गया है। देशी सैलेप का वानस्पतिक नाम यूलोफिया कैमपेसट्रिस तथा यूलोफिया उंडा है। विदेशी या फ़ारसी सैलेप का लैटिन नाम आर्किस लेटीफ़ोलिया तथा आर्किस लेक्सीफ्लोरा है। इसे भारत में फारस आदि देशों से आयात किया जाता है।
सैलेप मुंजातक-कुल यानिकी आर्कीडेसिऐइ परिवार का पौधा है और समशितोष्ण हिमालय प्रदेश में कश्मीर से भूटान तक तथा पश्चिमी तिब्बत, अफ्गानिस्तान, फारस आदि देशों में पाया जाता है। हिमालय में पाए जाने वाले सैलेप के पौधे 6-12 इंच की ऊँची झाडी होते हैं जिनमें पत्तियां तने के शीर्ष के पास होती हैं। यह पत्तियां लम्बी और रेखाकार होती हैं। इसके पुष्प की डंडियाँ मूल से निकलती हैं और इन पर नीले-बैंगनी रंग के पुष्प आते हैं।
पौधे की जड़ें कन्द होती है और देखने में पंजे या हथेली की तरह होती हैं। यह मीठी, पौष्टिक और स्वादिष्ट होती हैं। दवाई या टॉनिक के रूप में पौधे के कन्द जिन्हें सालममिश्री या सालमपंजा कहते हैं, का ही प्रयोग किया जाता है।
बाजारों में मुख्य रूप से दो प्रकार के सालममिश्री उपलब्ध है, सालम पंजा और लहसुनी सालम/ सालम लहसुनिया। सालम पंजा के कन्द गोल-चपटे और हथेली के आकार के होती हैं जबकि लहसुनि सालम के कन्द शतावरी जैसे लंबे-गोल, और देखने में लहसुन के छिले हुए जवों की तरह होते हैं। इसके अतिरिक्त सालम बादशाही (चपटे टुकड़े), सालम लाहौरी और सालम मद्रासी (निलगिरी से) भी कुछ मात्रा में बिकते हैं। बाज़ार में पंजासालम का मूल्य सबसे अधिक होता है और गुणों में भी यह सर्वश्रेष्ठ है।
सालम मिश्री को अकेले ही या अन्य घटकों के साथ दवा रूप में प्रयोग करते हैं। सालम मिश्री के चूर्ण को दूध में उबाल कर दवा की तरह से दिया जाता है।
इसे अन्य घटकों के साथ पौष्टिक पाक में डालते हैं। यूनानी दवाओं में इसे माजूनों में प्रयोग करते हैं। इसका हरीरा भी बनाकर पिलाया जाता है।
सामान्य जानकारी
वानस्पतिक नाम: Orchis mascula Linn, Orchis latifolia, Orchis laxiflora, Allium macleani (ऑर्किड और संबद्ध प्रजातियाँ)
कुल (Family):आर्कीडेसिऐइ
औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: जड़ें
स्थानीय नाम
- आयुर्वेदिक: Munjataka, Salam-misri
- यूनानी: Salab-misri, Khusyat-us-Salab
- सिद्ध: Silamishri
- अंग्रेज़ी: Salep, Salep Orchid
- हिंदी: Salabmishri
- अफगानिस्तान, फ़ारसी: Salap, Salab
संग्रह और भण्डारण
इन्हें दवा की तरह प्रयोग करने के लिए छाया में सुखा लिया जाता है। इनका भंडारण एयर टाइट कंटेनर में ठन्डे-सूखे-नमी रहित स्थानों पर किया जाता है।
उत्तम प्रकार की सालम
यह मलाई की तरह कुछ क्रीम कलर लिए हुए होती है। यह देखने में गूदेदार-पारभाषी और टूटने पर चमकीली सी लगती हैं। सालम में कोई विशेष प्रकार की गंध होती और यह लुआबी होता है।
सालम कन्द का संघटन
सालम मिश्री के कंडों में मुसिलेज की काफी अच्छी मात्रा होती है। इसमें प्रोटीन, पोटैशियम, फोस्फेट, क्लोराइड भी पाए जाते है।
वीर्यकालिक अवधि
दो वर्ष
सालममिश्री के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
सालममिश्री स्वाद में मधुर, गुण में भारी और चिकनाई देने वाली है। स्वभाव से यह शीतल है और मधुर विपाक है।
यह मधुर रस औषधि है। मधुर रस, मुख में रखते ही प्रसन्न करता है। यह रस धातुओं में वृद्धि करता है। यह बलदायक है तथा रंग, केश, इन्द्रियों, ओजस आदि को बढ़ाता है। यह शरीर को पुष्ट करता है, दूध बढ़ाता है, जीवनीय व आयुष्य है। मधुर रस, गुरु (देर से पचने वाला) है। यह वात-पित्त-विष शामक है। लेकिन मधुर रस का अधिक सेवन मेदो रोग और कफज रोगों का कारण है। यह मोटापा/स्थूलता, मन्दाग्नि, प्रमेह, गलगंड आदि रोगों को पैदा करता है।
- रस (taste on tongue): मधुर
- गुण (Pharmacological Action): गुरु, स्निग्ध
- वीर्य (Potency): शीत
- विपाक (transformed state after digestion): मधुर
कर्म:
- पित्तहर: द्रव्य जो पित्तदोष निवारक हो।
- वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।
- वृष्य: द्रव्य जो बलकारक, वाजीकारक, वीर्य वर्धक हो.
- श्रमहर: द्रव्य जो थकावट दूर करे.
- शुक्रकर: द्रव्य जो शुक्र का पोषण करे.
- ग्राही: द्रव्य जो दीपन और पाचन हो तथा शरीर के जल को सुखा दे।
- मस्तिष्क और नाड़ीबल्य
- रसायन: द्रव्य जो शरीर की बीमारियों से रक्षा करे और वृद्धवस्था को दूर रखे।
वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। शीत वीर्य औषधि के सेवन से मन प्रसन्न होता है। यह जीवनीय होती हैं। यह स्तम्भनकारक और रक्त तथा पित्त को साफ़ / निर्मल करने वाली होती हैं।
विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है। यह कफ या चिकनाई का पोषक है। शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ाता है। इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं।
सालममिश्री के लाभ Health Benefits of Salep in Hindi
- सालममिश्री को मुख्य रूप से धातुवर्धक और पुष्टिकारक औषधि की तरह प्रयोग किया जाता है।
- यह टी बी / क्षय रोगों में लाभप्रद है।
- इसके सेवन से बहुमूत्र, खूनीपेचिश, धातुओं की कमी में लाभ होता है।
- इसके सेवन से वज़न बढ़ता है।
- यह बलकारक, शुक्रजनक, रक्तशोधक, कामोद्दीपक, वीर्यवर्धक, और अत्यंत पौष्टिक है।
- यह मस्तिष्क और मज्जा तंतुओं के लिए उत्तेजक है।
- पाचन नलिका में जलन होने पर इसे लेते हैं।
- इसे तंत्रिका दुर्बलता, मानसिक और शारीरिक थकावट, पक्षाघात और लकवाग्रस्त होने पर, दस्त और एसिडिटी के कारण पाचन तंत्र की कमजोरी, क्षय रोगों में प्रयोग करने से अच्छे परिणाम मिलते हैं।
- यह शरीर के पित्त और वात दोष को दूर करता है।
सालममिश्री के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Salep in Hindi
सालममिश्री को मुख्य रूप से शक्तिवर्धक, बलवर्धक, वीर्यवर्धक, शुक्रवर्धक, और कामोद्दीपक दवा के रूप में लिया जाता है। इसके चूर्ण को दूध में उबाल कर पीने से इसके स्वास्थ्य लाभ लिए जा सकते हैं। इसे अन्य द्रव्यों के साथ मिला कर लेने से इसकी उपयोगिता और बढ़ जाती है।
यौन कमजोरी / दुर्बलता, कम कामेच्छा, वीर्य की मात्रा-संख्या-गुणवत्ता बढ़ाने के लिए, वीर्य के अनैच्छिक स्राव को रोकने के लिए
सालममिश्री के चूर्ण को इससे दुगनी मात्रा के बादाम के चूर्ण के साथ मिलाकर रख लें। रोजाना 10 ग्राम की मात्रा में, दिन में दो बार, सेवन करें।
मांसपेशियों में हमेशा रहने वाला पुराना दर्द
बराबर मात्रा में सालममिश्री और पिप्पली के चूर्ण को मिला लें। रोजाना आधा से एक टीस्पून की मात्रा में, दिन में दो बार बकरी के दूध के साथ सेवन करें।
प्रमेह, बहुमूत्रता
बराबर मात्रा में सालममिश्री, सफ़ेद मुस्ली और काली मुस्ली के चूर्ण को मिला लें। रोजाना आधा से एक टीस्पून की मात्रा में, दिन में दो बार सेवन करें।
सफ़ेद पानी की समस्या
बराबर मात्रा में सालममिश्री, सफ़ेद मुस्ली, काली मुस्ली, शतावरी और अश्वगंधा के चूर्ण को मिला लें। रोजाना आधा से एक टीस्पून की मात्रा में, दिन में एक बार सेवन करें।
सालममिश्री के चूर्ण की औषधीय मात्रा
सालममिश्री के चूर्ण को 6 gram से लेकर 12 gram की मात्रा में ले सकते हैं। दवा की तरह प्रयोग करने के लिए करीब एक या दो टीस्पून पाउडर को एक कप दूध में उबाल कर लेना चाहिए।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications
- इसका अधिक प्रयोग आँतों के लिए हानिप्रद माना गया है।
- हानिनिवारण के लिए सोंठ का प्रयोग किया जा सकता है।
- इसके अभाव में सफ़ेद मुस्ली का प्रयोग करते हैं।
- पाचन के अनुसार ही इसका सेवन करें।
- इसके सेवन से वज़न में वृद्धि होती है।
- यह कब्ज़ कर सकता है।