औषधि, वनस्पतियाँ अथवा द्रव्यों के रस का अर्थ है उनका स्वाद या टेस्ट। आयुर्वेद में द्रव्यों के छः रस माने गए है जिनके नाम हैं, मधुर sweet, अम्ल sour, लवण saline, कटु pungent, कषाय astringent, और तिक्त bitter।
मधुर रस Madhura (Sweet)
मधुर रस, मुख में रखते ही प्रसन्न करता है। यह रस धातुओं में वृद्धि करता है। यह बलदायक है तथा रंग, केश, इन्द्रियों, ओजस आदि को बढ़ाता है। यह शरीर को पुष्ट करता है, दूध बढ़ाता है, जीवनीय व आयुष्य है। मधुर रस, शरीर को शीतलता देता है गुरु (देर से पचने वाला) है।
- रस (taste on tongue): मधुर
- गुण (Pharmacological Action): गुरु
- वीर्य (Potency): शीतल
- विपाक (transformed state after digestion): मधुर
- कर्म: शीतल, स्तन्य, चक्षुश्य
त्रिदोष पर प्रभाव: यह वात-पित्त-विष शामक है। यह सामान्य रूप से कफ कारक है लेकिन पुराना शालिधान्य, जौ, मूंग, गेंहू, मधु, सफ़ेद मिश्री आदि इसके अपवाद हैं। x
औषधीय मात्रा: 3-30 ग्राम
अधिक सेवन का दुष्प्रभाव
- मधुर रस का अधिक सेवन मेदो रोग और कफज रोगों का कारण है।
- ज्यादा मात्रा ने इसका सेवन बुखार, अस्थमा, गोइटर, गुल्म, अग्निमांद्य, प्रमेह, डायबिटीज, मोटापा/स्थूलता, मन्दाग्नि, गलगंड आदि रोगों को पैदा करता है।
- यह शरीर में मल पदार्थों को ज्यादा बनाता है और कृमि करता है।
मधुर रस द्रव्यों के उदाहरण:
- घी, सोना, गुड़, अखरोट, केला
- चोच (दालचीनी, नारियल, तालफल)
- फालसा, शतावरी, काकोली, चिरौंजी, कटहल
- बलात्रय (बला, अतिबला, नागबला)
- दो मेदा (मेदा, महामेदा)
- चार पर्णी (शालपर्णी, पृष्ठपर्णी, माषपर्णी, मुद्गपर्णी)
- जीवंती, जीवक, ऋषभक, महुआ
- मुलेठी, बिम्बी/कुंदुरु, विदारी कंद
- दो क्षीरणी (छोटी, और बड़ी दूधी)
- दूध, चीनी, मधु, मुनक्का आदि।
- लवण रस Lavan (Saline)
- लवण रस, नमकीन होता है। इसे खाने से लार बहती है और जलन होती है। यह पित्त को बढ़ाता है। यह पसीना लाता है रुचिकारक है। यह मल भेदक और मांस का छेदक है।
- कर्म: शोधक, रुच्य, पाचन, लार अधिक बनाना, मुंह-गले में जलन।
- त्रिदोष पर प्रभाव: पित्त-कफ वर्धक, वात शामक
- औषधीय मात्रा: 1-3 gram
अधिक सेवन का दुष्प्रभाव
लवण का अधिक सेवन, गठिया, गंजापन/ खलित, पलित/बालों का सफेद होना, वली/ झुर्रियां, प्यास, कुष्ठ, विष, वीसर्प आदि रोगों को पैदा करता है और बल को क्षीण करता है। रक्त विकारों में लवण का सेवन नहीं करना चाहिए। सेंधा नमक छोड़ कर सभी नमक नेत्रों के लिए अहितकर हैं।
- लवण रस द्रव्यों के उदाहरण:
- सेंधा नमक, सोंचर नमक
- काला नमक, समुद्री नमक
- विडलवण / नौसादर
- रोमक / सांभर नमक
- सीसा धातु
- सभी प्रकार के क्षार
कषाय रस Kashaya (Astringent)
कषाय रस जीभ को कुछ समय के लिए जड़ कर देता है और यह स्वाद का कुछ समय के लिए पता नहीं लगता। यह गले में ऐंठन पैदा करता है, जैसे की हरीतकी। यह पित्त-कफ को शांत करता है। इसके सेवन से रक्त शुद्ध होता है। यह सड़न, और मेदोधातु को सुखाता है। यह आम दोष को रोकता है और मल को बांधता है। यह त्वचा को साफ़ करता है।
त्रिदोष पर प्रभाव: कफ-पित्त शामक, वात वर्धक
औषधीय मात्रा:1-10 gram
अधिक सेवन का दुष्प्रभाव
इसका अधिक सेवन, गैस, हृदय में पीड़ा, प्यास, कृशता, शुक्र धातु का नास, स्रोतों में रूकावट और मल-मूत्र में रूकावट करता है।
यह रोपण, ग्राही, और शरीर में रूक्षता करता है।
कषाय रस द्रव्यों के उदाहरण:
- हरीतकी, बहेड़ा
- शिरीष, खादिर, कदम्ब गूलर
- मोती, मूंगा, अंजन, गेरू
- कच्चा कैथा, कच्चा खजूर, कमलकन्द
कटु रस Katu (Pungent)
कटु रस जीभ पर रखने से मन में घबराहट करता है, जीभ में चुभता है, जलन करते हुए आँख मुंह, नाक से स्राव कराता है जैसे की सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली, लाल मिर्च आदि।
कटु रस तीखा होता है और इसमें गर्मी के गुण होते हैं। गर्म गुण के कारण यह शरीर में पित्त बढ़ाता है, कफ को पतला करता है। यह पाचन और अवशोषण को सही करता है। इसमें खून साफ़ करने और त्वचा रोगों में लाभ करने के भी गुण हैं। कटु रस गर्म, हल्का, पसीना लाना वाला, कमजोरी लाने वाला, और प्यास बढ़ाने वाला होता है।
यह रस कफ रोगों में बहुत लाभप्रद होता है। गले के रोगों, शीतपित्त, अस्लक / आमविकार, शोथ रोग इसके सेवन से नष्ट होते हैं। यह क्लेद/सड़न, मेद, वसा, चर्बी, मल, मूत्र को सुखाता है। यह अतिसारनाशक है। यह दूध के स्राव, मोटापे को कम करता है। यह दीपन, पाचन और रुच्य है।
त्रिदोष पर प्रभाव: पित्तवर्धक, कफ-वात शामक
औषधीय मात्रा: 1-15 gram
अधिक सेवन का दुष्प्रभाव
इसका अधिक सेवन शुक्र और बल को क्षीण करता है, बेहोशी लाता है, सिराओं में सिकुडन करता है, कमर-पीठ में दर्द करता है। पित्त के असंतुलन होने पर कटु रस पदार्थों को सेवन नहीं करना चाहिए।
कटु रस द्रव्यों के उदाहरण:
- हींग, वायविडंग
- त्रिकटु (सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली)
- पञ्चकोल (पिप्पली, पीपलामूल, चव्य, चित्रक, नागर/सोंठ)
- हरीतकी, गोमूत्र, भिलावा
- तिक्त रस Tikta (Bitter)
- तिक्त रस, वह है जिसे जीभ पर रखने से कष्ट होता है, अच्छा नहीं लगता, कड़वा स्वाद आता है, दूसरे पदार्थ का स्वाद नहीं पता लगता, जैसे की नीम, कुटकी। यह स्वयं तो अरुचिकर है परन्तु ज्वर आदि के कारण उत्पन्न अरुचि को दूर करता है।
- तिक्त रस कृमि, तृष्णा, विष, कुष्ठ, मूर्छा, ज्वर, उत्क्लेश / जी मिचलाना, जलन, समेत पित्तज-कफज रोगों का नाश करता है। यह क्लेद/सड़न, मेद, वसा, चर्बी, मल, मूत्र को सुखाता है। यह पाक में लघु, बुद्धिवर्धक, शीतवीर्य, रूक्ष, दूध को शुद्ध करने वाला और गले के विकारों का शोधक है।
- त्रिदोष पर प्रभाव: कफ-पित्त शामक, वात वर्धक
- औषधीय मात्रा: 1-15 gram
अधिक सेवन का दुष्प्रभाव
इसके अधिक सेवन से धातुक्षय और वातविकार होते हैं। यह सिर में दर्द, थकावट, दर्द, ट्रेमर, बेहोशी, आदि करता है। यह शुक्र और बल को कम करता है।
- तिक्त रस द्रव्यों के उदाहरण:
- तीता परवल, नीम, कुटकी, कुटज
- दो हल्दी (हल्दी और दारू हल्दी)
- खस, नागरमोथा, मूर्वा, अडूसा
- पाठा, अपामार्ग, कांस्यधातु, लौहधातु
- गिलोय, धमासा, बृहत्पञ्चमूल (अरणी, पाढ़ल, बिल्व, सोनपाठा, गंभारी)
- अतीस, वनभांटा, विशाला / इन्द्रायण
अम्ल रस Amla (Sour)
अम्ल रस, खट्टा होने के कारण मुख को मानो अन्दर से धो डालता है। इसे खाने से दन्त हर्ष हो जाता है, आँखे-भौहें सिकुड़ जाती है और खाने में रोमांच होता है, जैसे की नींबू, इमली आदि।
अम्लरस अग्निवर्धक, उष्णवीर्य, स्पर्श में शीतल, तृप्तिकारक/ प्रीणन, क्लेद कारक और पाक में लघु है। यह कफ-पित्त को बढ़ाता है और वात का अनुलोमन करता है।
कर्म: पाचन, रुच्य, पित्तज, स्लेषमन, लेखन causes scraping, क्लेदक promotor of stickiness, यह शुक्र को कम करता है।
औषधीय मात्रा: 1-10 gram
अधिक सेवन का दुष्प्रभाव
इसका अधिक सेवन शरीर में शिथिलता, नेत्र रोग, खुजली, शोफ / सूजन, विस्फोट / फोड़े, प्यास लगना, भ्रम, और बुखार करता है।
त्रिदोष पर प्रभाव: यह वात शामक है। यह पित्तवर्धक और कफवर्धक है, लेकिन अनार और आंवला को छोड़कर।
अम्ल रस द्रव्यों के उदाहरण:
- आंवला, इमली,
- मातुलिंग ( सभी प्रकार के नींबू)
- अम्लवेत, दाड़िम / अनार
- रजत / चाँदी, तक्र / मट्ठा
- दही, आम, आमड़ा, कमरख
- कैथा, करौंदा / करमदर्क