यवक्षार को आयुर्वेद में बहुत से नामों, जैसे की पाक्यक्षार, याबशूल, यवाग्रज आदि नामों से जाना जाता है। हिंदी में इसे जवाक्षार, यवक्षार, जौखार तथा इंग्लिश में कार्बोनेट ऑफ़ पोटाश, पोटैशियम कार्बोनेट कहते हैं। यह आयुर्वेद में वर्णित क्षार है (कभी-कभी शोरा भी कहते हैं) जिसे यव अर्थात जौ को जलाकर Alkali preparation of Barley बनाया जाता है। क्षार, कास्टिक caustic (able to burn or corrode organic tissue by chemical action) होते हैं।
यवक्षार बनाने की विधि Preparation of Yavakshara
आयुर्वेद में क्षारों को अत्यंत पुराने समय से औषधि की तरह प्रयोग किया जाता रहा है। इनका वर्णन चरक संहिता में भी मिलता है।
यवक्षार बनाने के लिए यव अर्थात जौ जिसे बार्ली Hordeum vulgare भी कहते हैं, के पौधे का प्रयोग किया जाता है।
जब जौ के पौधे के दाने पुष्ट हो जाते हैं तथा बाल और पौधे हरे रहते हैं तो उस समय उसे उखाड़ लेते हैं। इसे अच्छी तरह से सुखाया जाता है। सुखाने के बाद इसे जलाकर पानी में भिगो देते है। इससे क्षार का भाग पानी में घुल जाता है और बाकी अलग रहता है।
इसे छानते हैं और जो मिलता है उसे दो बार बिना पानी डाले, फिर छानते है। इसे आग पर या धूप में सुखा देते हैं। यही यवक्षार है।
स्थानीय नाम
- संस्कृत: Yavakshara, Darulawana
- अंग्रेजी: Impure or factitious carbonate of Potash, Impure potash carbonate: Potash carbonate impure, Salt of Tartar,
- हिंदी: Javakhar, Khar
- गुजराती: Kharo
आयुर्वेदिक गुण और कर्म
यवक्षार स्वाद में कटु और नमकीन है, गुण में रूखा करने वाला, लघु और तेज है। स्वभाव से गर्म है और कटु विपाक है।
- रस (taste on tongue): कटु, लवण
- गुण (Pharmacological Action): तीक्ष्ण, लघु, रुक्ष
- वीर्य (Potency): उष्ण
- विपाक (transformed state after digestion): कटु
आयुर्वेद में यवक्षार को मुख्य रूप से कफ रोगों, जलोदर ascites, पथरी, पेशाब में जलन, प्लीहा-यकृत रोगों, हृदय के लिए टॉनिक और रक्त पित्त में प्रयोग किया जाता है।
यवक्षार के गुण Biomedical Action
- एंटासिड antacid
- भूख बढ़ानेवाला, आमाशय सम्बन्धी stomachic
- विरेचक laxative
- मूत्रवर्धक diuretic
- शोथहर resolvent
- परिवर्तनकारी alterative
रोग जिनमें यवक्षार उपयोगी है Diseases in which Yavakshara is Beneficial
- मूत्र रोग Urinary diseases
- पेट सम्बन्धी रोग, गैस, कब्ज़, पेचिश, संग्रहणी, गुल्म Abdominal diseases
- अस्थमा, कफ, सांस -गले सम्बन्धी रोग Respiratory ailments
- पांडु रोग, बवासीर Anemia, piles
- पथरी stones
- ग्लैंड्स की वृद्धि enlargement of glands
- प्रोस्ट्रेट की वृद्धि Benign Prostatic Hyperplasia (BPH)
- टेस्टिकल / ब्रेस्ट की वृद्धि tactical / breast enlargement
- प्लीहा / यकृत की वृद्धि spleen / liver enlargement
- यूरिक एसिड के रोग, वात रोग Uric acid
- हृदय रोग heart disease
- जलोदर ascites
यवक्षार के औषधीय प्रयोग Medicinal Uses of Yavakshar
यवक्षार तासीर में गर्म है तथा कफ, गैस, स्रोतों की रुकावट, मूत्र रोगों, पेट क दर्द, पाचन की कमजोरी आदि में दिया जाता है। ज्यादातर तो इसे अन्य घटकों के साथ ही प्रयोग करते हैं।
यह पेशाब के रोगों, यूरिक एसिड, लिम्फ नोडों के बढ़ जाने, गग्लैंड्स के बढ़ जाने, ब्रेस्ट-टेस्टिकल की वृद्धि, प्लीहा-यकृत की वृद्दि, कोलिक, गैस, एसिड, आदि मे उपयोगी है। यह उन लोगों को भी दिया जाता है जो बहुत अधिक भोजन करते हैं।
यवक्षार की औषधीय मात्रा 125 ग्राम से लेकर आधा ग्राम तक की है। यह बहुत ही कटु, गर्म है और इसलिए इसका बहुत अधिक प्रयोग न करें।
ब्रोंकाइटिस bronchitis
- यवक्षार आधा ग्राम + वासा के पत्तों का रस दस बूँद + लवंग का चूर्ण चौथाई ग्राम, को मिलाकर, पान के पत्तों के साथ दिया जाता है।
- बवासीर, पेचिश, पेट में दर्द abdominal diseases
- यवक्षार + सेंधा नमक + शुण्ठी (प्रत्येक 5 parts) + हरीतकी (10 parts), को मिलाकर आधा ग्राम की मात्रा में छाछ के साथ लें।
अश्मरी stones
- अश्मरी में वरुणादि क्वाथ (वरुण की छाल, कुल्थी, पाषण भेद, सोंठ, और गोखरू) में यवक्षार आधाग्राम मिलाकर दिया जाता है। अथवा
- अश्मरी के लिए ही, यवक्षार आधा ग्राम को गोखरू चूर्ण 4 gram के साथ मिलाकर दिन में एक बार दिया जाता है अथवा गोक्षुर के काढ़े में यवक्षार मिलाकर देते हैं। अथवा
- अश्मरी से होने वाले मूत्र कृच्छू में यवक्षार को मिश्री के साथ मिलाकर देते हैं।
कास cough
पञ्चकोल चूर्ण 3-4 gram में यवक्षार 1/2-1 gram मिलाकर दिन में दो बार गर्म पानी के साथ लेते हैं।
खांसी
यवक्षार, अतीस, पिप्पली और करकट श्रृंगी को समान मात्रा में मिलाकर 250mg-500mg मात्रा में देते हैं।
गले में सूजन
यवक्षार, दारुहल्दी, रसोंत, पिप्पली, मालकांगनी को बराबर मात्रा में शहद के साथ मिलाकर गोली बनाकर मुंह में रखने से लाभ होता है।
गैस, डकार
यवक्षार आधा ग्राम को पेपरमिनट / कपूर के साथ मिलाकर लिया जाता है।
Benign Prostatic Hyperplasia
यवक्षार 1/2 ग्राम, दिन में दो बार खाने के पहले गर्म पानी के साथ लें।
मोटापा obesity
यवक्षार आधा ग्राम + करेले का रस + नींबू का रस, मिलाकर पियें।
पायरिया
यवक्षार + त्रिफला+ त्रिकटु+त्रिलवण + मीठा सोडा (प्रत्येक 10 gram) + अजवाइन (50 gram) का बारीक चूर्ण बनाकर रख लिया जाता है। इसे तीन ग्राम की मात्रा में सुबह और शाम लेने से मुख रोगों में लाभ होता है।
यकृत की वृद्धि
यवक्षार 1ग्राम + पिप्पली 2 ग्राम+ हरीतकी 3 ग्राम, मिलाकर दिन में दो बार लें।
उच्च रक्तचाप
यवक्षार + खुरासानी अजवाइन + गिलोय का सत (प्रत्येक 250 मिलीग्राम), को मिलाकर दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
अस्थमा
यवक्षार + पुष्कर्मूल चूर्ण + काली मिर्च को बराबर मात्रा में मिलाकर, 2-4 ग्राम की मात्रा में गर्म पानी के साथ, सुबह और शाम लें।
बाहरी रूप से, यवक्षार को पुराने त्वचा रोगों में बाहरी रूप से लगाया जाता है। तिल के तेल के साथ मिलाकर इसे बढ़ी हुई ग्लांड्स पर भी लगाया जाता है।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications
- यह पित्त को बढ़ाता है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
- अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है।
- जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
- आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।
- छोटे बच्चों को यह न दें।
- जिन पुरुषों में वीर्य की समस्या हो, वे इसका प्रयोग न करें।
- जो लोग कमजोर हैं, पतले-दुबले है, वे भी इसका प्रयोग न करें।