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सर्वाइकल स्पांडिलाइसिस एक प्रकार का डीजेनेरेटिव विकार है जिसमें गरदन की हड्डी (सर्वाइकल) में मौजूद कार्टिलेज और गर्दन की हड्डियों (ग्रीवा कशेरुका) में टूट-फूट wear and tear हो जाती है जिससे गर्दन में क्रोनिक पेन रहता है। इसके सबसे सामान्य लक्षण हैं, गर्दन में दर्द होना, स्टिफनेस, और सिर दर्द। इसके अतिरिक्त, हाथों और पैरों में दर्द, हाथ-पैर में सुन्नता, चलने में कठिनाई भी हो सकती है। कुछ लोगों में सरवाइकल स्पांडिलाइसिस के कोई भी लक्षण नहीं होते जबकि कुछ लोगों में इसके होने से दैनिक काम-काज करने में भी दिक्कतें आ सकती हैं।
Cervical spondylosis is a form of arthritis in which the vertebrae of the neck grow extra bone and start to press upon adjacent nerves, causing a stiff and painful neck, and tingling sensations. Cervical spondylosis arises from degenerative changes that occur in the spine with ageing. Genetics, Smoking, Jobs with lots of repetitive neck motion and overhead work, Depression or anxiety, Previous injury or trauma to the neck etc. increases risk of this diseases.
Symptoms of Cervical spondylosis include, pain, stiffness, headache, popping noise or sensation on turning neck, numbness and weakness in the arms, hands, and fingers, muscle spasms in the neck and shoulders. Physical Examination, X-rays, Magnetic resonance imaging (MRI) scans, Computed tomography (CT) scans, Electromyography (EMG), and some other tests are done to diagnose the condition. Treatment involves relieving the symptoms using Physical therapy, Medication, Soft cervical collar, heat, massage, and other local therapies, and Surgery.
Allopathy treats the conditions using pain killers which have many side-effects. Ayurvedic and Homeopathic treatments seems to be better option to treat this chronic condition with minimum or no side-effects.
सर्वाइकल स्पांडिलाइसिस को Cervical osteoarthritis, Arthritis – neck, Neck arthritis, Chronic neck pain, Degenerative disk disease आदि नामों से भी जाना जाता है।
Symptoms of Cervical Spondylosis
स्पोंडिलोसिस के लक्षणों में गर्दन का दर्द और कंधे का दर्द शामिल है। कुछ मामलों में यह दर्द गंभीर हो सकता है। कभी-कभी सिरदर्द भी हो सकता है, जो आमतौर पर गर्दन के ऊपर सिर के पीछे शुरू होता है, और माथे तक जा सकता है। दर्द आम तौर पर क्रोनिक होता है।
- सरदर्द Headache
- गर्दन में कठोरता Stiffness in the neck
- बाहों में झुनझुनी और अस्थिरताTingling & Numbness in arms
- गर्दन और कंधों के पीछे दर्द Pains on back of neck & shoulders
अन्य, अधिक गंभीर, लक्षण आमतौर पर केवल तब होते हैं यदि जब निम्न स्थितियां विकसित हो जाती हैं:
सरवाइकल रेडिकुलोपाथी cervical radiculopathy (जब गर्दन का दर्द बांह में हो जाता है और बाजू में सुन्नता या सुइयां चुभती लगती हैं)
सरवाइकल मायलोपैथी cervical myelopathy (यह तब होता है जब गंभीर सरवाइकल स्पोंडिलोसिस के कारण स्पाइनल कार्ड दब जाती है। परिणामतः दिमाग से पूरे शरीर में सिग्नल के सही से नहीं आ पाते और व्यक्ति को हाथ-पैर में भारीपन, संतुलन में दिक्कत, पेशाब के कण्ट्रोल में समस्या और शौच आदि रोकने में दिक्कत हो जाती है)
सरवाइकल मायलोपैथी के लक्षणों में व्यक्ति को बिना देर किये डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए जिससे समय रहते स्पाइनल कार्ड की क्षति को रोका जा सके नहीं तो ज्यादा नुकसान होने पर व्यक्ति दीर्घकालिक विकलांगता का सामना कर पड़ सकता है।
सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस के कारण
सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस उम्र के बढ़ने के कारण रीढ़ में होने वाले टूट-फूट से हो सकता है।
उम्र बढ़ने के साथ-साथ कशेरुका vertebrae के बीच मौजूद डिस्क, जो की जो की बाहर से मजबूत लेकिन अन्दर से टूथपेस्ट सी मुलायम होती है और एक कुशन का काम करती है, सूखने लगती है और डैमेज के प्रति अतिसंवेदनशील बन जाती है। शरीर गर्दन को बेहतर ढंग से बैलेंस करने के लिए और रीढ़ की हड्डी को सीधा करने के लिए अतिरिक्त हड्डियों का निर्माण कर सकता है। अतिरिक्त हड्डियों के इन गांठों को हड्डी के स्पर्स या ओस्टिफाइट्स bone spurs or osteophytes के रूप में जाना जाता है
ओस्टिफाइट्स के कारण, रीढ़ की हड्डी बहुत कठोर हो सकती है, जिससे कठोरता और गर्दन का दर्द हो सकता है। हड्डियों की संरचना में परिवर्तन भी पास की तंत्रिकाओं और रीढ़ की हड्डी को स्क्वैश कर सकता है।
यह ज्यादा उम्र के लोगों में अधिक आम हो सकता है। उम्र के अलावा, कई अन्य रिस्क फैक्टर हैं जो सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस के विकास की संभावना को बढ़ा सकते हैं। इसमें शामिल है:
- मोटापा, व्यायाम की कमी
- गर्दन या रीढ़ की हड्डी में लगी कोई चोट
- गर्दन या स्पाइनल सर्जरी
- गंभीर गठिया
- स्लिप डिस्क
- बार-बार भारी वजन उठाना
सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस का निदान
सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस होने के संकेत तब हो सकते हैं, जब व्यक्ति को गर्दन में दर्द और कठोरता के विशिष्ट लक्षण हों। उसे बांह के दर्द, हाथों का उपयोग करने में समस्याएं या चलने में कठिनाई भी हो सकती है।
नीचे दिए गए विभिन्न परीक्षणों का इस्तेमाल अन्य दूसरे रोग की संभावना को दूर करने और निदान की पुष्टि करने के लिए किया जा सकता है।
- शारीरिक परीक्षा
- एक्स-रे
- एमआरआई (Magnetic resonance imaging (MRI)चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग)
- सीटी स्कैन ( कम्प्यूटरीकृत टोमोग्राफी स्कैन)
एलोपैथी में सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस का इलाज
सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस एक डीजेनेरेटिव डिसऑर्डर है और इसका कोई इलाज़ नहीं है। इसके उपचार का लक्ष्य दर्द के लक्षणों को दूर करने और नसों की स्थायी क्षति को रोकने के लिए होता है।
फिजिकल थेरेपी के द्वारा दर्द को कम करने और गर्दन की मांसपेशियों को मजबूत बनाने में सहायता होती है।
ओवर-द-काउंटर दर्दनिवारक, कोडीन, Muscle relaxants, ऐमिट्रिप्टिलाइन, गाबापेंटीन, दर्द निवारक इंजेक्शन के द्वारा दर्द को कम किया जाता है।
नॉन-स्टेरायडल एंटी-इन्फ्लेमेटरी दवाएं (NSAIDs) जैसे की डाईक्लोफेनाक, आईबुप्रोफेन, नेपरोक्सन आदि स्पोंडिलोसिस के लक्षणों के लिए सबसे प्रभावी दर्दनाशक मानी जाती है। बहुत अधिक दर्द में कोडीन Codeine भी दी जा सकती है। कोडीन का सेवन कब्ज़ करता है।
यह भी जान लेना ज़रूरी है की अस्थमा, उच्च रक्तचाप, यकृत की बीमारी, हृदय रोग या पेट के अल्सर में नॉन-स्टेरायडल एंटी-इन्फ्लेमेटरी दवाएं (NSAIDs) का सेवन उपयुक्त नहीं है। इन परिस्थितियों में, पेरासिटामोल आमतौर पर अधिक उपयुक्त होते हैं।
मसल्स रेलेक्सेंट, का प्रयोग गर्दन की मांसपेशियों के अचानक अनियंत्रित खिचाव की स्थिति में होती है। मसल्स रेलेक्सेंट का सेवन चक्कर और नींद लाता है और इसे एक सप्ताह – 10 दिन से अधिक तक लगातार नहीं लेना चाहिए।
ऐमिट्रिप्टिलाइन, का प्रयोग तब किया जाता है जब अन्य दर्द निवारकों के प्रयोग से कोई लाभ नहीं हो रहा होता। यह मूल रूप से अवसाद depression का इलाज करने के लिए है लेकिन डॉक्टरों ने पाया है कि तंत्रिका दर्द का इलाज करने में भी यह उपयोगी है। ऐमिट्रिप्टिलाइन के दुष्प्रभाव में शामिल हैं, बेहोशी होना, मुंह में सूखापन, ठीक से दिखायी न देना, कब्ज़ और पेशाब में दिक्कत।
गाबापेंटीन, का प्रयोग नर्व रूट इरीटेशन के कारण हाथ में दर्द या सुइयां चुभने जैसा लगने आदि में किया जा सकता है।
गर्दन पर ब्रेस या कॉलर भी इलाज़ में प्रयोग होते है। लेकिन नेक ब्रेस या कॉलर का उपयोग लम्बे समय तक नहीं किया जाना चाहिए, क्योंकि यह आपके लक्षणों को और खराब कर सकता है। इसे एक हफ्ते से अधिक समय तक नहीं पहनें।
कुछ मामलों में डॉक्टर सर्जरी का भी सुझाव दे सकते हैं। सर्जरी कराने के बहुत से दुष्प्रभाव हो सकते हैं, जो की साधारण लक्षणों से लेकर बहुत अधिक गंभीर भी हो सकते हैं जैसी की पक्षाघात, घाव का संक्रमण, गंभीर एलर्जी प्रतिक्रिया, नसों को नुकसान आदि।
आयुर्वेद में सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस का इलाज
आयुर्वेद में सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस को मन्यास्तम्भ व ग्रीवास्तम्भ Neck rigidity से सम्बंधित देखा जा सकता है। यह मुख्य रूप से वात-कफ दोष के कारण उत्पन्न व्याधि है। वातवर्धक भोजन, दिन में सोने, लम्बे समय तक विषम तरीके से उठने – बैठेने, ग्रीवा उठा मुड़कर देखने से, कफावृत वायु प्रकुपित हो कर मन्या को जकड़ देती है जिससे गर्दन को घुमाने में बहुत दर्द और दिक्कत होती है और इसे मन्यास्तम्भ कहते हैं। इसका उपचार अन्य वातव्याधियों की तरह किया जाता है।
इसमें वात का प्रभाव गर्दन की नसों में अधिक होता है तो गर्दन में कठोरता/स्टिफनेस और दर्द के लक्षण पैदा होते हैं जो शरीर के दूसरे हिस्से में फ़ैल जाते हैं।
आयुर्वेद में निम्न दवाओं के प्रयोग से सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस में लाभ होता हैं। प्राकृतिक होने से इन दवाओं का कोई भी गंभीर साइड इफ़ेक्ट नहीं है। यह रोग को बढ़ने से भी रोकती हैं और लक्षणों में राहत देती है।
- दशमूल काढ़ा: दशमूल के काढ़े को 30 ml की मात्रा में दिन में दो बार, पानी के साथ सेवन करें।
- महारास्नादी काढ़ा अथवा रसनादि काढ़ा: रसनादि काढ़ा, 30 ml की मात्रा में दिन में दो बार, पानी के साथ सेवन करें।
- महानारायण तेल: इसे बाह्य रूप से लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
- प्रसारणी तेल: इसे बाह्य रूप से लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
- पञ्चगुण तेल: इसे बाह्य रूप से लगाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
- लक्षादि गुग्गुलु: 500 mg की मात्रा में इसे दिन में दो बार गर्म पानी के साथ लें।
- योगराज गुग्गुलु अथवा महायोगराज गुग्गुलु: इसकी दो गोली दिन में दो बार गर्म पानी के साथ लें।
इसमें से कोई भी एक गुग्गुल वाली दवा + मालिश के कोई एक तेल + दशमूल या रस्नादी काढ़ा प्रयोग किया जा सकता है।
दवाओं के अतिरिक्त, वायु और कफ दोष को कम करने वाला आहार करना चाहिए। पाचन को ठीक रखना चाहिए और शरीर से आम दोष को कम करना चाहिए।
आयुर्वेद के अनुसार सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस में क्या खाएं और क्या न खाएं
आयुर्वेद के अनुसार निम्न भोज्य पदार्थ पथ्य हैं:
- चावल, गेहूं Rice, wheat
- कुल्थी Kulattha
- लहसुन, अनार, आम, परवल, सहजन, फालसा, अंगूर Garlic, pomegranate, mango, paraval, sahjan, phalasa, grapes
- घी, तेल, गोखरू, Clarified butter, oil, gokshura
- दूध, नारियल पानी, कांजी, गो मूत्र milk, coconut water, sour vinegar (kanji), cow’s urine
निम्न भोज्य पदार्थ अपथ्य हैं:
- कुछ प्रकार के चावल Special variety of rice (kodrava, samvaka)
- मटर, चना, Peas,Chana, green gram (mudga)
- गोभी, भिन्डी, खजूर Cauliflower, lady finger
- खट्टे भोजन आदि।
होमियोपैथी में सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस के लिए प्रयुक्त दवाएं
होमियोपैथी में भी सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस की दवाएं उपलब्ध है जो की अलग-अलग लोगों में मौजूद लक्षणों के आधार पर अलग हो सकती हैं। दवाओं की पोटेंसी, कॉम्बिनेशन, और दिए जाने का तरीका cyclic rotation कुशल होमियोपैथिक डॉक्टर द्वारा बताया जा सकता है।
- Kalmia latifolia
- Calcarea phos 6x
- Gelsemium 30, 200
- Cimicifuga
- Rhus Tox 30 c
- Causticum 30
- Ruta 30, 200
होम्योपैथिक दवाएं जो सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस के लिए विशेष रूप से निर्मित हैं:
- Schwabe Topi MP Gel
- Dr.Reckeweg R11 Rheuma drops for Muscle pain, Back pain, Spondylosis, Sciatica
- R S Bhargava Spondin Drops
- Bakson’s Spondy Aid Drops
व्यायाम और जीवन शैली में बदलाव
सर्वाइकल स्पोंडिलोसिस की समस्या होने पर, व्यक्ति को सोने, उठने-बैठने, चलने-फिरने आदि में सही पोश्चर/मुद्राएँ अपनानी चाहिए। उसे कोई न कोई हल्का व्यायाम करना चाहिए और वजन को नियंत्रित रखना चाहिए। दर्द हो रहा हो तो गर्म सेंक कर लेनी चाहिए।
- आसान अभ्यास जैसे तैराकी या पैदल चलना
- गर्दन पर तनाव को कम करने के लिए रात में एक फर्म तकिया का उपयोग करना
- पोश्चर को सुधारना – सही तरीके से उठना-बैठना
सरसों के तेल या तिल के तेल में लहसुन की कलियाँ और अजवाइन डाल के पका लेना चाहिए और आवश्यकता अनुसार मालिश के लिए प्रयोग करना चाहिए। सोते समय पतला तकिया गर्दन के नीचे लगा लेना चाहिए। वातवर्धक, रूखा, ठण्डा, भोजन नहीं किया जाना चाहिए। बहुत व्रत-उपवास नहीं रखना चाहिए।
भोजन सुपाच्य और हल्का होना चाहिए। चीनी का सेवन कम किया जाना चाहिए। इसी प्रकार मैदा, प्रसंस्कृत भोजन, केक, बिस्किट, मांस, सोडा, कोल्ड ड्रिंक आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। विटामिन बी, सी, डी और ई का सेवन भी आवश्यकता अनुसार सेवन किया जाना चाहिए। पानी सही मात्रा में पीना चाहिए। स्ट्रेस को कम करने के लिए प्राणायाम करना चाहिए। सूर्य नमस्कार, भुजंगासन और मकरासन करने से भी लाभ होता है। शराब का सेवन न करें।
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