रक्त प्रदर का आयुर्वेदिक उपचार

रक्त प्रदर में गर्भाशय से उत्पन्न रक्तस्राव योनि vagina द्वारा होता है। असल में रक्त प्रदर वह रोग है जिसमें गर्भाशय से असामान्य रूप से खून का स्राव होता है।

आयुर्वेद में रक्त प्रदर Rakta Pradara (Abnormal uterine bleeding) उस रोग को कहा जाता है जिसमें गर्भाशय uterus से असामान्य रक्तस्राव bleeding होता है तथा शरीर में कमजोरी weakness, एनीमिया anemia और पीठ दर्द pain in lower back आदि की शिकायतें होती हैं। रक्त प्रदर में गर्भाशय से उत्पन्न रक्तस्राव योनि vagina द्वारा होता है।

रक्त प्रदर को मेडिकल टर्म में मेट्रोरेजिया Metrorrhagia के नाम से जाना जाता है। ग्रीक भाषा का शब्द मेट्रोरेजिया, दो शब्दों से मिल कर बना है, मेट्रा=गर्भाशय और रेजिया= अधिक मात्रा में स्राव; मेट्रोरेजिया का अर्थ है गर्भ से अधिक स्राव। रक्त प्रदर में मेट्रोरेजिया के अतिरिक्त शामिल है, मासिक का बहुत दिनों तक जारी रहना prolonged flow of blood और मासिक में बहुत अधिक रक्त बहना excessive blood flow जिसे मेडिकल टर्म में मेनोरेजिया menorrhagia कहा जाता है। असल में रक्त प्रदर वह रोग है जिसमें गर्भाशय से असामान्य रूप से खून का स्राव होता है।

सामान्य मासिक धर्म चक्र हर 22 से 35 दिन पर होते हैं तथा इनमे रक्तस्राव 3 से 7 दिनों तक रहता है। ज्यादातर स्राव शुरू के तीन दिन ही रहता है और फिर कम हो कर बंद हो जाता है। सामान्य माहवारी में करीब 35 मिलीलीटर फ्लो होता है। लेकिन मेनोरेजिया/अत्यार्तव में प्रत्येक मासिक धर्म चक्र में करीब 80 मिलीलीटर या उससे भी अधिक रक्त की हानि होती है। मेट्रोरेजिया में गर्भाशय से कभी भी खून बहता है। मेनोरेजिया और मेट्रोरेजिया, दोनों ही स्तिथियों में शरीर से ज्यादा खून की हानि से अनीमिया हो जाता है इसलिए इनका उपचार कराना आवश्यक है।

Raktapradara is defined as abnormal uterine bleeding or dysfunctional uterine bleeding. It includes Menorrhagia and Metrorrhagia. Basically it is abnormal flow of blood from uterus. It is caused due to Rakt and Vata Dosha. For treatment of Rakta pradar mainly lodhra, patranga, vanga bhasma, sphaika, kutaj, nagkeshar etc. are used.

रक्त प्रदर के लक्षण हैं | Symptoms of Rakta Pradar in Hindi

  • मासिक में कमर दर्द, स्राव में थक्के जाना blood clots
  • मासिक में बहुत अधिक खून जाना, मासिक की अनियमितता
  • बेचैनी, चिडचिडापन, बेचैनी, हाथ-पैर से गर्मी निकलना
  • शरीर में खून की कमी, थकान
  • खून की कमी के कारण पीलापन, कमजोरी, बालों का झड़ना आदि

रक्त प्रदर के कारणों में शामिल हैं

  • होर्मोंस का असंतुलन hormones imbalance
  • गर्भाशय, सर्विक्स आदि में पोलिप/असामान्य ग्रोथ cervical polyp
  • गर्भाशय पर चोट लगना, गर्भपात कराना
  • प्रसव के दौरान गर्भाशय पर या योनी पर चोट लगना
  • प्रसव में गर्भाशय की सही सफ़ाई न होना
  • स्ट्रेस, चिंता, तनाव
  • उच्च रक्तचाप
  • फाइब्रोइड्स, एंडोमीट्रिओसिस, गर्भाशय का अन्य रोग आदि
  • रक्त प्रदर की समस्या के कारण स्त्रियों में बहुत सी स्वास्थ्य समस्याएं हो जाती है। जैसे की
  • सिर में दर्द, पिंडलियों में दर्द
  • शारीरिक कमजोरी
  • खून की कमी, अनीमिया
  • बेहोशी आना, नींद न आना, बडबडाना

रक्त प्रदर का आयुर्वेदिक दवायें

रक्त प्रदर (abnormal bleeding, heavy bleeding, prolonged bleeding) के उपचार के लिए निम्नलिखित आयुर्वेदिक दवाओं का प्रयोग किया जाता है।

  • पुष्यानुग चूर्ण Pushyanuga Churna
  • अशोकारिष्ट Ashokarishta
  • लोध्रासव Lodhrasava
  • प्रदरान्तक रस Pradrantak Ras
  • प्रदरान्तक क्वाथ Pradrantak Kwath
  • चंद्रप्रभा वटी Chandraprabha Vati
  • प्रदरान्तक लौह Pradrantak Lauha
  • प्रदरादी लौह Pradradi Lauha

रक्त प्रदर में उपयोगी नुस्खे

रक्त प्रदर में रोज़ 7 अनार की पत्तियों Pomegranate leaves + Misri/Raw candy को पेस्ट, मिश्री मिलाकर खाना चाहिए। ऐसा १ महीने नियमित करने से लाभ होता है।

  • शीशम के पत्ते, मिश्री के साथ मिलाकर, १ सप्ताह सेवन करने से लाभ होता है।
  • बरगद का दूध कुछ बूंदों की मात्रा में बताशे पर डाल कर लेने से लाभ होता है।
  • गिलोय के पत्तों का रस १०-१५ मिलीलीटर की मात्रा में पियें।
  • अशोक पेड़ की छाल का काढा बना कर, शहद मिला कर पियें।
  • रक्त प्रदर में मीठे, कसैले और ठंडी तासीर के खाद्य पदाथों का सेवन विशेष हितकारी है।
  • भोजन में साग, लौकी, चौलाई, मूली, साठी का चावल, साबूदाना आदि का सेवन करना चाहिए।
  • आंवला, अंगूर, अनार, गन्ने का रस, मुनक्का, मौसमी, केला आदि का सेवन करना चाहिए।
  • आंवले का सेवन किसी भी रूप में लाभकारी है।
  • हरी सब्जियों, दूध, पाचक, हलके भोजन और गाय/बकरी के दूध का सेवन लाभप्रद है।
  • रक्त प्रदर में चटपटे भोजन, मिर्च, मसाले का सेवन, घी तेल में बना खाना, ज्यादा खट्टा खाने से परहेज करना चाहिए।
  • तासीर में गर्म चीजों का सेवन, अधिक गर्म चीजों का सेवन, चाय, कॉफ़ी, सरसों के तेल का अधिक उपयोग, अचार, पचने में भारी भोजन, आदि से भी परहेज करना चाहिए।
  • बहुत अधिक शारीरिक श्रम नहीं करना चाहिए। आराम करना चाहिए और अच्छी डाईट द्वारा खून की कमी को रोकना चाहिए।

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