नौली व्यायाम को न्यौली और लौलि नाम से जाना जाता है। इसे करते समय नाभि के पास नली जैसा आकार उभरता है। यह व्यायाम पेट के लिए बहुत लाभप्रद है। इस व्यायाम के सही अभ्यास से पेल्विक और पेट के अंगों, स्नायु, मांसपेशियों, रक्तवाहिनी नसों को अतिरिक्त शक्ति मिलती है। यह व्यायाम केवल उन लोगों को करना चाहिए जो उड्डीयानबंध मुद्रा सफलतापूर्वक कर सकें। उड्डीयानबंध मुद्रा में मुँह से बल पूर्वक हवा निकालकर नाभी को अंदर खीचतें है।
नौली करने की विधि | How to do Nauli?
- यह व्यायाम करने के लिए, पैरों को एक से डेढ़ फुट फैलाकर खड़े हो जाएँ।
- शरीर के कमर से ऊपर हिस्से को आगे झुकाकर रखें।
- हथेलियाँ जाँघों पर रखें।
- पूरा श्वास बाहर निकालकर खाली पेट की माँसपेशियों को ढीला रखते हुए अंदर की ओर खींचे।
- इसके बाद स्नायुओं को ढीला रखें।
- जंघाओं पर इस प्रकार दबाव डालें की पेल्विक प्रदेश और पेट की सभी मांसपेशियाँ चलने लगें।
- अब इन सभी मांसपेशियों को बाहर की और निकालें।
- नियमित अभ्यास के बाद ही संचालन अपनी इच्छानुसार हो पायेगा।
- इसे पेट के मध्य भाग में स्थित करें और श्वास रोक कर रखें।
- इसके बाद श्वास ग्रहण करें। फिर आराम करें। यह मध्यमा नौली है जिसमें नौली मध्य है। इसे तेजी से दाहिने से बाएँ और बाएँ से दाहिनी ओर ले जाएँ।
- जब मध्य नौली का सफल अभ्यास हो जाए तो वाम नौली और दक्षिण नौली का अभ्यास करें।
- जब उड्डीयान बंध पूरी तरह लग जाए तो माँसपेशियों को पेट के बीच में छोड़े। पेट की ये माँसपेशियाँ एक लम्बी नली की तरह दिखाई पड़ेगी। इन्हें बाएँ ले जाएँ। इसे वाम नौली कहते हैं। इस स्थिति में नौली को मध्य में स्थित कर दबाव दाहिनी ओर कम किया जाता है लेकिन बायीं ओर दबाव यथावत ही रहता है। शरीर के ऊपरी भाग को थोड़ा बायीं ओर मोड़ा जाता है और उदरप्रदेश की मांसपेशियों को बायीं ओर चलाया जाता है।
- इसके पश्चात नौली को दाहिनी ओर ले जाएँ। यह दक्षिण नौली है। जब वाम नौली का अभ्यास आसान हो जाता है तो दक्षिण नौली का अभ्यास किया जाता है। दाहिनी तरफ का तनाव यथावत रख कर बायीं तरफ तनाव कम किया जाता है। शरीर को थोड़ा दाहिनी तरफ मोड़ कर, दाहिनी तरफ की मांसपेशी को उठाने का कोशिश करें। अभ्यास से मध्यमा नौली को दक्षिण नौली की तरह चलाया जाता है।
- जब तीनों नौलियाँ अच्छी प्रकार चलने लगे तो श्वास के दौरान इनका संचालन करें।
- संचालब बाएं से शुरू कर दाहिनी ओर ले जाएँ। इसके बाद दाहिने से प्रारम्भ कर बायीं ओर ले जाएँ।
- शुरू में यह व्यायाम केवल तीन बार ही करना चाहिए।
उपयोग Benefits of doing Nauli
- नौली को योगीगण काफी महत्व है। वस्ति और धौती के सफल अभ्यास के लिए नौली का अभ्यास बहुत आवश्यक है।
- यह वात, पित्त और कफ को संतुलित करने में अद्वितीय है।
- इसके अभ्यास से उदरप्रदेश की स्नायु, मांसपेशियों, और रक्तवाहिनी नसों का भरपूर व्यायाम हो जाता है।
- नौली करने से उदरप्रदेश के हिस्से के रोग दूर होते हैं।
- यह लीवर और प्लीहा को ताकत देने वाला व्यायाम है।
- नौली के अभ्यास से गर्भाशय, और मासिक सम्बन्धी रोगों तथा स्त्री रोगों की चिकित्सा होती है।
- यह आंत्रवृद्धि, आंत्रपुच्छ वृद्धि, उदर घाव, अजीर्णरोग, कब्ज़, और पेट में दर्द आदि रोग में बहुत लाभप्रद है।
सावधानियां Warnings
- नौली जानकार व्यक्ति के निर्देशन में ही सीखें।
- इसे कम उम्र के बच्चे और वृद्ध न करें।
- युवतियां इसे कर सकती हैं।
- मासिक से दो-तीन दिन पूर्व और दो-तीन बाद इसे न करें।
- गर्भावस्था और प्रसव के तीन महीने बाद तक इसे कदापि न करें।
- पेट के घाव, उच्च रक्तचाप, हृदय के रोग में इसे न करें।
- नौली किसी एक्सपर्ट से सीख कर ही करें।