अर्क, अलर्क, गणरूप, मंदार, वसुक, श्वेत पुष्प, सदापुष्प, बालार्क, प्रतापस आदि सफ़ेद आक के पर्याय हैं। इसे हिंदी में सफ़ेद आक, मदार, अकवन, बांग्ला में श्वेत आकंद, गुजराती में घोलो आकड़ो और लैटिन में केलोट्रोपिस प्रोसेरा कहते हैं।
आक भारत में प्राचीन समय से पाया जाता है। इसका वर्णन हिंदु ग्रंथों में पाया जाता है। इसे सूर्य के समान तेजस्वी, तीक्ष्ण और उष्ण माना गया है। इसे एक दिव्य औषधि कहा गया है जो की भलि प्रकार से प्रयोग करने पर अनेकों रोगों में लाभप्रद है। इसे वानस्पतिक पारद mercury भी कहा गया है। इसकी दो प्रजातियाँ हैं, श्वेतार्क और रक्तार्क। औषधि के रूप में दोनों ही प्रजातियों को लगभग समान माना जाता है।
श्वेतार्क तथा रक्तार्क
श्वेत अर्क Calotropis procera का प्रयोग हिंदु धर्म में धार्मिक प्रयोजनों के लिए किया जाता है। इसे अलर्क, राजार्क और शिवप्रिय भी कहते हैं। अर्क के पुष्पों को भगवान शिव की पूजा में प्रयोग किये जाते हैं। श्वेतार्क का पुष्प कुछ बड़ा होता है। इसमें दूध की मात्रा अधिक होती है।
आक की रक्तार्क प्रजाति Calotropis gigantea, हर जगह उपलब्ध हो जाती है। इसे संस्कृत में अकर्पर्ण, विकिरण, रक्तपुष्प, शुक्लफल, स्फीट, तथा सूर्य के जितने पर्याय हैं, वे सभी इसके नाम हैं। इसके पुष्प बैंगनी, छोटे और कटोरीनुमा गोल से होते हैं। यह अन्दर से लाल-बैंगनी चित्ती वाले होते है। रक्तार्क में लेटेक्स की मात्रा कम होती है।
अर्क एक विषैला / जहरीला पौधा है, जिसके प्रत्येक हिस्से में विषैले द्रव्य पाए जाते हैं। उत्तम वैद्य कम मात्रा में, सही प्रकार से अनुपानों के साथ इसे आंतरिक रूप से औषध रूप में प्रयोग कर सकते हैं। परन्तु साधारण व्यक्ति, इसका आंतरिक प्रयोग न ही करें तो उचित है। गलत रूप से, सही मात्रा में प्रयोग न किये जाने पर इसका सेवन विष के सामान है जो की जान ले सकता है।
सामान्य जानकारी
आक का पौधा प्रायः रेतीली, उसर, जमीन में पाया जाता है। यह अन्य जड़ी-बूटी के पौधों की तरह ही बेकार, उपेक्षित जगहों पर उगा दिख जाता है। आक एक बहुवर्षीय क्षुप है जिसकी उंचाई चार से कर आठ फुट की हो सकती है। इसके पत्ते रोयेंदार और बड़े होते हैं। देखने में पत्ते बरगद के पत्तों समान मोटे होते हैं तथा हरे सफेदी लिये होते हैं। पत्ते पकने पर पीले रंग के हो जाते हैं। इसका फूल सफेद छोटा छत्तादार होता है। फूल पर रंगीन चित्तियाँ होती हैं। फल 2-3 इंच लम्बे व 1-2 इंच चौड़े होते हैं। यह लम्बे-अंडाकार और आगे से तोते की चोंच की तरह मुड़े होते हैं और इस कारण इसे शुकफल भी कहते हैं। इसके फल में रूई होती है जिसे तकिये, गद्दे आदि भरने में भी प्रयोग किया जाता है। आक की रूई से बनी तकिया लगाने से जुकाम से बचाव होता है, ऐसी मान्यता है।
- वानस्पतिक नाम: कैलोट्रोपिस प्रोसेरा Asclepias procera Aiton, Calotropis procera, Calotropis gigantea
- कुल (Family): Asclepiadaceae
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पूरा पौधा
- पौधे का प्रकार: क्षुप / झाड़ी
- वितरण: पूरे देश में
- पर्यावास: खाली-बेकार-उसर मैदान
आक के स्थानीय नाम / Synonyms
- संस्कृत: Ravi, Bhanu, Tapana
- हिन्दी: आक Aak, Madar, Akavana
- अंग्रेजी: Mudar Bark, Mudar Yercum, Madar Tree, Giant Milkweed, SODOM’S MILKWEED
- असमिया: Akand, Akan
- बंगाली: Akanda, Akone
- गुजराती: Aakado
- कन्नड़: Ekka, Ekkadagida, Ekkegida
- मलयालम: Erikku
- मराठी: Rui
- उड़िया: Arakha
- पंजाबी: Ak
- तमिल: Vellerukku, Erukku
- तेलुगु: Jilledu
- उर्दू: Madar, Aak
आक का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
- किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
- सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
- सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
- डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta – Flowering plants फूल वाले पौधे
- क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
- सबक्लास Subclass: एस्टीरिडेएइ Asteridae
- आर्डर Order: जेंटियानेल्स Gentianales
- परिवार Family: एस्क्लेपिडेसिएइ Asclepiadaceae – Milkweed family
- जीनस Genus: कैलोट्रोपिस Calotropis R.Br calotropis
- प्रजाति Species: कैलोट्रोपिस प्रोसेरा Calotropis procera (Aiton) W.T.Aiton – roostertree
अर्क के संघटक Phytochemicals
Cardioactive steroids (cardenolids): including calotropin, calactin, uscharidin
अर्क के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
दोनों प्रकार के आक, Raktark and Shvetark को गुण में समान माना गया है। दोनों ही दस्तावर, वात, कोढ़, खाज-खुजली, व्रण, बवासीर, मलकृमि को नष्ट करने वाले हैं।
अर्क स्वाद में कटु, तिक्त, गुण में लघु और तेज है। स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है। यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।
- रस (taste on tongue): कटु, तिक्त
- गुण (Pharmacological Action): लघु, तीक्ष्ण
- वीर्य (Potency): उष्ण
- विपाक (transformed state after digestion): कटु
विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।
कर्म Principle Action
- कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
- पित्तकर: द्रव्य जो पित्त को बढ़ाये।
- शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे। antihydropic
- श्लेष्महर: द्रव्य जो चिपचिपे पदार्थ, कफ को दूर करे।
- उष्ण: यह प्यास, जलन, मूर्छा करता है और घाव पकाता है।
- विरेचन: द्रव्य जो पक्व अथवा अपक्व मल को पतला बनाकर अधोमार्ग से बाहर निकाल दे।
- भेदन: द्रव्य जो बंधे या बिना बंधे मल का भेदन कर मलद्वार से निकाल दे।
- वामक: द्रव्य जो कच्चे ही पित्त-कफ, अन्न आदि को बलपूर्वक मुख द्वार से बाहर निकाल दे।
- श्वास-कासहर: द्रव्य जो श्वशन में सहयोग करे और कफदोष दूर करे।
- कुष्ठघ्न: द्रव्य जो त्वचा रोगों में लाभप्रद हो।
- व्रण रोपण: घाव ठीक करने के गुण।
आक युक्त आयुर्वेदिक दवाएं
- महाविषगर्भा तेल
- धन्वंत्रा घृत
- अर्क लवण
अर्क/मदार के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Calotropis in Hindi
आयुर्वेद में इसे लघु, तीक्ष्ण और कटु विपाक माना गया है। यह स्वाद में कटु-तिक्त और वीर्य में उष्ण है। यह वात और कफ को कम किन्तु पित्त को बढ़ाता है। यह दर्द, सूजन, को कम करने वाला और त्वचा रोगों को नष्ट करने वाला है। यह व्रण शोधन और जंतुघ्न भी है। इसकी जड़ों को रक्तशोधक और शोथहर की तरह प्रयोग किया जा सकता है। यह विषम ज्वर नाशक भी है।
आक के पुष्प: कब्ज़, गुल्म, पेट के कीड़ों में प्रयोग होते हैं।
आक के पत्ते: सूजन-दर्द, श्लीपद, आमवात, घावों क धोने में प्रयोग करते हैं। पत्तों के रस से को तेल में उबाल कर जो औषधीय तेल बनता है उसे कान में डालते हैं, जिससे कान के दर्द और कम सुनाई देना में लाभ होता है। आक के पत्ते वामक, रेचक, भ्रमकारक, और श्वासहर है। पत्तों को कास-श्वास, कर्णशूल, शोथ, एक्जिमा और त्वचा रोगों में प्रयोग करते हैं।
आक का दूध: दूध या लेटेक्स, को ग्रंथि, सूजन, लिम्फ नोड की सूजन में प्रयोग करते हैं। दूध को दाद-रिंगवर्म, कुष्ठ आदि पर भी लगाते हैं। यह कड़वा-गर्म-चिकना व कोढ़, गुल्म और उदर रोग नाशक है।
1- दाद, एक्जिमा, फोड़ा-फुंसी
आक का दूध लगाने पर यह त्वचा रोग दूर होते हैं।
2- कान में दर्द
आक के पीले पत्तों को घी लगाकर- गर्म कर, उसका रस कान में डालें।
3- आधासीसी / माइग्रेन
आक के पीले पत्तों के रस को नाक में डालने से लाभ होता है।
4- अंडकोष की सूजन
आक के पत्ते 2-4, को तिल तेल के साथ पत्थर पर पीस कर अंडकोष पर लगाएं।
5- पैरों में छाले
आक का दूध लगाएं।
6- गठिया
आक के पत्तों को घी लगाकर, तवे पर गर्म करके प्रभावित जगह सेंकें।
7- खाज
आक के लेटेक्स को सरसों या नारियाल के तेल में मिला कर लगायें।
8- झाइयाँ
आक के लेटेक्स 5-7 बूँद + हल्दी + गुलाब जल में मिलाकर लगाएं।
9- फुंसियाँ
आक का दूध लगाएं।
10- त्वचा रोग, अर्श के मस्से
– आक का दूध 100 ग्राम + हल्दी 200 ग्राम + मैनशील 15 ग्राम + सरसों का तेल 400 ग्राम लें। मैनसिल और हल्दी को पीस कर आक का दूध मिला लें। अब इसे तेल और २ किलो पानी में मिला कर, पका लें। इस तेल को अर्श के मस्सों, खाज-खुजली आदि पर लगाने से लाभ होता है।
– आक के पत्ते 1 किलो + हल्दी 50 ग्राम + सरसों का तेल 1/२ किलो लें और मिलाकर पकाएं। तेल सिद्ध हो जाने पर रख लें और प्रभावित हिस्सों पर लगाएं।
– आक के दूध 10 ग्राम + सरसों के तेल 50 ग्राम में पका कर रख लें और प्रभावित स्थान पर लगायें।
11- घाव
पत्तों को सुखा लें और पाउडर बना लें। इसे घाव पर छिडकें।
12- रेबीज़
आक के पौधे का पेस्ट और चीनी (3:1) को मिलाकर कुत्ते के काटे जगह पर लगाएं।
13- भगंदर
आक का दूध 10 ml + दारुहल्दी 2 ग्राम, को साथ में मिलाएं और व्रण पर लगाएं।
आक के दूध को रूई में भिगोकर लगाएं।
14- मूत्र का रुक जाना
आक के दूध में बबूल की छाल का रस मिलाकर, नाभि के पास लगायें।
15- जहरीले कीटों-जंतुओं के काट लेने पर, सांप-बिच्छू-बर्रे, मधुमक्खी के काट लेने पर
प्रभावित जगह पर आक के लेटेक्स का बाहरी रूप से लेप करें।
आक का पौधा विष है Calotropis is Poison
आक का पौधा विषैला होता है। इसका यदि सही मात्रा में न सेवन किया जाए तो शरीर में इसके जहर के लक्षण उत्पन्न होते हैं। पेट में जलन, मरोड़ और उल्टियां होती है। मुंह-गले में दर्द-जलन होने लग जाती है। शरीर में ऐंठन, खून मिश्रित अतिसार शुरू हो सकता है। हृदय का काम करना धीमा पड़ सकता है और जान भी जा सकती है।
इसलिए, कभी भी आक का औषध के रूप में सेवन बिना डॉक्टर की सलाह के स्वयम से न करें। यह आंतरिक रूप से सही प्रकार-सही अनुपान के साथ न सेवन करने पर शरीर अपर दुष्प्रभाव toxic effects डाल सकता है।
आयुर्वेद के अनुसार, आक के विषैले प्रभाव को हटाने के लिए घी, दूध और अन्य इसी प्रकार के चिकने पदार्थों का प्रयोग करना चाहिए। इसके बाद तुरंत ही डॉक्टर को दिखाना चाहिए।
आंतरिक प्रयोग के लिए सेवन मात्रा
आंतरिक प्रयोग के लिए इसकी 200 mg से लेकर 600 mg की मात्रा है।
2 ग्राम – 4 ग्राम का प्रयोग उलटी लाता है।
सुझाव/सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications
- आक का पौधा विषैला है।
- The drug is highly toxic. Higher dosages cause vomiting, diarrhea, bradycardia and convulsions.
- Very high dosages may cause death following bradycardia, convulsion, diarrhea, and vomiting.
- Can cause convulsion, diarrhea, vomiting, slowed but stronger heartbeat, labored respiration, increased blood pressure, and possible death.
- Following gastric lavage, treatment for poisonings should proceed symptomatically.
- इसे आंतरिक रूप से प्रयोग करने के लिए बहुत अधिक सावधानी की ज़रूरत है।
- इसमें एंटीफर्टिलिटी गुण है और इसके सेवन से प्रजनन क्षमता घटती है।
- यह गर्भावस्था में कतई प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। यह abortifacient है और गर्भ नष्ट करता है।
- यह गर्भाशय में संकुचन uterine stimulating करता है।
- यह भ्रूण के लिए embryotoxic effects जहर है।
- यद्यपि आक का हर हिस्सा औषधीय है, potentially injurious to the body especially after prolonged or chronic use किन्तु यह लम्बे समय के प्रयोग के लिए नहीं है। यह बार-बार प्रयोग के उपयुक्त नहीं है।
- पुरुषों द्वारा लम्बे समय तक प्रयोग करने पर यह टेस्ट्स को नुकसान पहुंचा सकता है। यह टेस्टोस्टेरोन की मात्रा को कम करता है। यह किडनी के काम करने को भी प्रभावित करता है।
- यह वीर्य की मात्रा और गुणवत्ता को भी प्रभावित कर सकता है।
- आक का दूध आँखों में पड़ने पर जलन-दर्द-सूजन हो जाती है। थोड़ी सी मात्रा आँख में जाने से आँख से पानी आने लगता है, और कुछ देर के लिए दिखाई देना बंद हो जाता है। ज्यादा मात्रा मे लेटेक्स आँख में पड़ जाने से अंधापन भी हो सकता है। ऐसा कहा जाता है, द्वतीय विश्व युद्ध के दौरान बहुत से मिस्र के पुरुषों ने अपनी एक आँख में इसका लेटेक्स डाल कर उसे खराब कर दिया जिससे उन्हें सेना में युद्ध करने के लिए शामिल न किया जा सके।
- अफ्रीका के सूडान में बहुत सी स्त्रियों ने गर्भ गिराने के लिए लेटेक्स को योनि में डाला जिससे उनकी जान चली गई।
- कम मात्रा में भी यह गर्भाशय में तेज़ संकुचन करता है।
Also worth reading -. https://www.jatland.com/home/Aak