अगस्त, अगस्त्य, अगति, मुनिद्रुम, मुनिवृक्ष, मुनिपुष्प, वंगसेन, आदि अगस्तिये के संस्कृत नाम हैं। इसे हिंदी में हथिया, अगथिया या अगस्त कहते है। इसे बंगाली में बक, गुजराती में अगथियो, तेलुगु में अनीसे, अविसी, तमिल में अगस्ति और सिंहली में कुतुरमुरंग, अंग्रेजी में सेस्बेन और लैटिन में सेस्बानिया ग्रांडीफ्लोरा के नाम से जाना जाता है।
कुछ पाश्चत्य विशेषज्ञों का कथन है, यह भारत वर्ष का नहीं है अपितु बाहर के देशों से लाया गया वृक्ष है। किन्तु यह बात सत्य नहीं लगती। ऐसा इसलिए है की वैदिक ऋषि अगस्त्य इसी पेड़ के नीचे बैठ के तपस्या करते थे और इसी कारण इसे अगस्त्य नाम मिला। सुश्रुत ने भी इसका वर्णन किया है। इसलिये ऐसा मानना की यह वृक्ष कहीं बाहर से लाया गया है, गलत है।
अगस्त पूरे भारत में उगाया जाता है। यह मुख्य रूप से नम और गर्म जगहों में पाया जाना वाला पेड़ है और बंगाल में काफी संख्या में पाया जाता है। प्राकृतिक रूप से यह तराई -भावर वाले वनों में मिल जाएगा। यह बहुत अधिक पानी वाले इलाकों में भी आराम से रहता है। इसकी अतिरिक्त जड़ें इसे पानी में खड़े रहने में मदद करती है। यह बाड़ वाले इलाकों में भी पनप जाता है।
अगस्त एक औषधीय वृक्ष है। औषधीय प्रयोजन हेतु इसके पत्ते, जड़, फल, बीज, छाल सभी कुछ प्रयोग किया जाता है। इसकी छाल में टैनिन और लाल रंग का राल निकलता है। इसके पत्तियों में प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन, विटामिन A, B और C होता है। पुष्पों में भी विटामिन B और C पाया जाता है। बीजों में 70% प्रोटीन और एक तेल पाया जाता है।
अगस्त शीतल, रूक्ष, वातकारक, कड़वा होता है। यह स्वाद में फीका होता है। यह पित्त, कफ और विषम ज्वर नाशक है। इसके सेवन से प्रतिश्याय / खांसी-जुकाम दूर होता है। यह खून को साफ़ करता है और मिर्गी का नाशक है। यह कफ को दूर करने वाली औषध है। इसकी छाल कसैली, चरपरी, तथा बल कारक है। इसके पत्तों और फूलों के नस्य लेने से माथे का कफ के कारण भारीपन, सिर में दर्द, और जुखाम नष्ट होता है। कफ की अधिकता होने पर इसे शहद अथवा मूली के रस के साथ लिया जाता है।
बाहरी रूप से, अगस्त के पत्तों और धतूरे के पत्ते बराबर मात्रा में पीस कर सूजन पर बांधते हैं।
सामान्य जानकारी
अगस्त के पेड़ बहुत अधिक बड़े नहीं होते। इसकी डालियाँ घनी होती है। इसका तना सीधा होता है। पत्तियां इमली की पत्तें जैसी होती है। जब यह वृक्ष छोटे होते हैं तभी से इन पर फूल आने लगते हैं।
पेड़ पर अगस्त के महीने से पुष्प आते हैं। पुष्प चन्द्र की तरह मुड़े हुए होते हैं। आयुर्वेद में लाल, सफ़ेद, पीले और नीले रंग के पुष्प वाले अगस्त के पेड़ वर्णित हैं। ज्यादातर तो इसके सफ़ेद और लाल प्रकार ही देखे जाते हैं। पुष्प निकलने के कुछ समय बाद फल आते हैं। फल शिम्बी / फली रूप में होते हैं और उनमें दस-पंद्रह की संख्या में बीज होते हैं।
- पत्तों, फूलों, मुलायम शाखों और फलियों का साग बनाया जाता है।
- वानस्पतिक नाम: सेस्बेनिया ग्रांडीफ्लोरा
- कुल (Family): मटर कुल
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पूरे वृक्ष
- पौधे का प्रकार: पेड़
- वितरण: पूरे भारतवर्ष में
- पर्यावास: गर्म तथा प्रचुर मात्रा में जल वाले क्षेत्र
स्थानीय नाम
- लैटिन: Sesbania grandiflora
- संस्कृत: आगस्त्य, मुनिद्रुम, अगाती, अगस्त्य, दीर्घफलक, दीर्घशिम्बि, कनाली, खरध्वंसी, मुनिद्रुम, मुनीप्रिय, मुनिपुष्प, मुनितरु, पवित्र, रक्तपुष्प, शीघ्रपुष्प, शुक्लपुष्प, स्थूलपुष्प ,सुरप्रिय, वक, वक्रपुष्प
- हिंदी: अगस्तिया, अगस्त, गति, बसना
- इंग्लिश: Sesbane, Hummingbird Tree, Agathi, Sesban, Swamp pea
- गुजराती: Augthiyo
- मलयालम: Agathicheera, Agathi
- मराठी: Augse gida, Hadga
- कन्नड़: Agastya
- तमिल: Agati, Acham, Agatti, Akatti-keerai, Kariram, Muni, Peragatti, Sewagatti
- तेलुगु: Agise, Agase
- म्यांमार: Pauk-pan-phyu, Pauk-pan-ni
- सिन्हलीज: Katuru-murunga
वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
- किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
- सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
- सुपर डिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
- डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
- क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
- सब क्लास Subclass: रोसीडए Rosidae
- आर्डर Order: फेबेल्स Fabales
- परिवार Family: फेबेसिऐइ Fabaceae ⁄ Leguminosae
- जीनस Genus: सेस्बेनिया Sesbania
- प्रजाति Species: सेस्बेनिया ग्रांडीफ्लोरा Sesbania grandiflora
अगस्त के औषधीय प्रयोग Medicinal Uses of Agastya in Hindi
अगस्त के पुष्प पित्तनाशक, कफनाशक और ज्वरनाशक होते हैं। इनका सेवन शरीर में वात को बढ़ाता है। यह तासीर में ठंडा है और शरीर में रूक्षता पैदा करता है। इसके सेवन से कफ, खांसी जुखाम आदि नष्ट होते हैं। पुष्पों का सेवन बुखार, रतौंधी, और प्रतिश्याय में लाभकारी है।
अगस्त के पत्ते कड़वे, कसैले, तासीर में कुछ गर्म, पचने में भारी होते हैं। पत्ते मुख्य रूप से कफ रोगों, खुजली, विष और जुखाम आदि में आंतरिक रूप से प्रयोग किये जाते हैं।
अगस्त की फली, विरेचक, रुचिकारक, मस्तिष्क के लिए अच्छी, सूजन नष्ट करने वाली और गुल्म नाशक है। वृक्ष की छाल संकोचक, पाचक और टॉनिक है। छाल को मुक्य रूप से काढ़ा बनाकर प्रयोग किया जाता है।
रात को न दिखाई देना, रतौंधी, आँखों के रोग night blindness, eye disorders
- अगस्त के पत्तों और फूलों से बने साग का सेवन हितकारी है। अथवा
- पुष्पों का रस, 2-3 बूँद की मात्रा में नाक में टपकायें। अथवा
- पत्तों को पीस लें। अब पत्तों से चार गुना गाय का घी लेकर उसमें पकाएं। जब घी सिद्ध हो जाए तो छान कर रख लें। इस घी को 1-2 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम खाएं।
मिर्गी epilepsy
इसके फूलों + काली मिर्च + गो मूत्र, को लेने से लाभ मिलता है।
सफ़ेद पानी की समस्या leucorrhoea
इसके पत्तों का रस योनि के आस-पास लगाने से श्वेत प्रदर की समस्या दूर होती है।
मोच, चोट sprain, wound
इसके पत्तों की पुल्टिस बना कर लगायें।
माइग्रेन / आधासीसी migraine
सिर के जिस तरफ दर्द हो रहा हो, उसके दूसरे तरफ वाले नाक के छिद्र में इसके पत्तों / फूलों के रस की कुछ बूंदे टपकानी चाहिए।
सूजन swelling
अगस्त के पत्ते + धतूरे के पत्ते, बराबर मात्रा में पिस्स्कर सूजन वाली जगह पर बंधाना चाहिए।
माथे में कफ के कारण भारीपण, जुखाम-खांसी, नजला congestion
- नाक में इसके पत्तों के रस की 2-4 बूंदे टपकाने से लाभ मिलता है। अथवा
- इसकी जड़ के रस को 10-20 gram की मात्रा में शहद के साथ चाट कर दिन में 3-4 बार लें।
कब्ज़ constipation
- पत्तों की सब्जी बना कर खाएं। अथवा
- पत्तों का काढ़ा बनाकर पियें। करीब 20 ग्राम पत्ते लेकर डेढ़ गिलास पानी में उबालें। जब एक कप पानी बचे उसे छान लें और पियें।
बुद्धिवर्धक improving memory
बीजों के चूर्ण को दूध के साथ दिन में दो बार लें।
बुखार fever
पत्तों के रस 2-3 चम्मच की मात्रा में शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें।
औषधीय मात्रा Dosage of Agastya
- छाल का काढ़ा: 25-100 ml तक लिया जा सकता है।
- पत्तों का रस: 2-3 चम्मच, पत्तों का पेस्ट: 5-10 ग्राम और बीजों का चूर्ण 1-3gram तक लिया जाता है।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications
- यह पित्त को कम करता है।
- यह वातवर्धक है इसलिए वात प्रवृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।