आकारकरभ, अकरकरा, करकरा आदि एनासाइक्लस पायरेथम के संस्कृत नाम हैं। इसका अरेबिक नाम आकिरकिर्हा, ऊदुलकई और फ़ारसी में तर्खून कोही है। इंग्लिश में इसे पाइरेथ्रम रूट, पेलेटरी रूट, स्पेनिश पेलिटरी Pellitory Root आदि नामों से जानते हैं।
एनासाइक्लस पायरेथम, जो की पूरी दुनिया में पेलिटरी रूट के नाम से मशहूर है अफ्रीका का पौधा है। इसका वर्णन आयुर्वेद के बहुत प्राचीन ग्रंधों में नहीं मिलता। किसी संहिता में इसके बारे में नहीं लिखा गया है। लेकिन बाद के ग्रंथों में, जो दवाएं यूनानी पद्यति से लिए गए उनमें अकरकरा का वर्णन मिलता है। अकरकरा नाम भी अरेबिक नाम आकिरकिर्हा से आया है। आकिरकिर्हा, अरबी के अकर (काटना) और तकरीह (जख्म डालना) से बना है। भारत में यह जड़ी -बूटी मुख्यतः अलजीरिया से आयात की जाती है।
अकरकरा, जिसका बोटानिकल नाम एनासाइक्लस पायरेथम Anacyclus pyrethrum है, वह उत्तरी अफ्रीका, अलजीरिया और अरब में पायी जाने वाली वनस्पति है। भारत में उत्पन्न एक अन्य वनस्पति स्पाईलेंथस पेनीकुलेटा Spilanthes paniculata को देसी अकरकरा कहते है। ये दोनों ही वनस्पतियाँ बिलकुल भिन्न है पर दोनों को ही मुख और दन्त रोगों में प्रयोग किया जाता है। दवा की तरह दोनों, देशी और विदेशी अकरकरा प्रयोग किये जाते हैं लेकिन विदेशी अकरकरा अधिक वीर्यवान, उत्तम है तथा गुणों में देसी अकरकरा से श्रेष्ठ है। विदेशी अकरकरा महंगा मिलता है। देसी अकरकरा के पुष्प गोल छत्री के आकार के और पीले रंग के होते हैं।
दवा की तरह विदेशी अकरकरा की जड़ों का प्रयोग किया जाता है। यह जड़ें लम्बी और धुरी के आकार fusiform की होती हैं। इसके पुष्प सफ़ेद रंग की पंखुड़ियों वाले और बीच से पीले-हरे से होते हैं। देखने में यह डेज़ी फ्लावर जैसे होते हैं। इसके बीज सोआ जैसे होते हैं। असली अकरकरा की जड़ों में कीड़े लगने की संभावना बहुत रहती है। इसलिए भंडारण के समय इसे बिना नमी वाले और ठन्डे स्थान पर रखना चाहिए। इसे सीधे प्रकाश में नहीं रखना चाहिए।
अकरकरा एक औषधीय वनस्पति है। यह मुख्य रूप से मुख रोगों, दांत में दर्द, गले की दिक्कतों, मुंह के लकवे, मिर्गी, कमजोर नाड़ी, लार न बहने, पित्त की कमजोरी, कफ की अधिकता आदि में प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में इसे पित्त वर्धक और कफ नाशक माना गया है। यूनानी में इसे तीसरे दर्जे का रुक्ष और गर्म माना गया है। अकरकरा की जड़ का मुख्य सक्रिय तत्व पेलिटोरिन है अथवा पारेथ्रिन है। यह अकरकरा को तीक्ष्ण और लार बहाने के गुण देता है। यह स्वाद व स्वभाव में कुछ-कुछ काली मिर्च के पिपरिन जैसा है।
यह काम शक्ति को बढ़ाने और वाजीकारक की तरह, आंतरिक और बाहरी, दोनों ही तरह से प्रयोग किया जाता है। बाहरी रूप से इसका लेप (तिला के रूप में) और आंतरिक रूप से इसे चूर्ण की तरह प्रयोग किया जाता है। इसका सेवन उत्तेजना लाता है और इन्द्रिय को अधिक खून की सप्लाई करता है।
सामान्य जानकारी
- वानस्पतिक नाम: एनासाइक्लस पायरेथम Anacyclus pyrethrum
- कुल (Family): मुण्डी कुल
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: मुख्य रूप से जड़ें
- पौधे का प्रकार: छोटा पौधा
- वितरण: उत्तरी अफ्रीका के देशों में प्राकृतिक रूप से मिलता है। भारत में इसकी खेती हिमालय के कुछ हिस्सों में की जा रही है।
- पर्यावास: यह अच्छी तरह से पानी निकल जाने वाली, उर्वरक युक्त, लोमी मिट्टी में अच्छे से पैदा होता है।
स्थानीय नाम / Synonyms
- साइंटिफिक नाम : Anacyclus pyrethrum
- संस्कृत : Akallaka, Akallaka, Akarakarabha
- असामीज : Kulekhara
- बंगाली : Akarakara
- इंग्लिश : Pellitory, Pellitory of Spain, Pyrethre, Pyrethrum, Roman Pellitory, Spanish Camomile,
- गुजराती : Akkalkaro, Akkalgaro
- हिंदी : Akalkara
- कन्नड़ : Akkallakara, Akallakara, Akalakarabha, Akkallaka Hommugulu
- मलयालम : Akikaruka, Akravu
- मराठी : Akkalakara, Akkalakada
- उड़िया : Akarakara
- पंजाबी : Akarakarabh, Akarakara
- तमिल : Akkaraka, Akkarakaram
- तेलुगु : Akkalakarra
- उर्दू : Aqaraqarha
- अरेबिक : Aaqarqarha, Aquarqarha, Audulqarha, Udalqarha
- पर्शियन : Kakra, kalu, kalua, kazdam, akalawa, Beekhe Tarkhoon
वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
- किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
- सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
- सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
- डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
- क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
- सबक्लास Subclass: Asteridae
- आर्डर Order: Asterales
- परिवार Family: Asteraceae
- जीनस Genus: Anacyclus
- प्रजाति Species: Anacyclus pyrethrum
आयुर्वेदिक गुण और कर्म
अकरकरा एक कटु रस औषधि है। कटु रस जीभ पर रखने से मन में घबराहट करता है, जीभ में चुभता है, जलन करते हुए आँख मुंह, नाक से स्राव कराता है। कटु रस तीखा होता है और इसमें गर्मी के गुण होते हैं। गर्म गुण के कारण यह शरीर में पित्त बढ़ाता है, कफ को पतला करता है। यह पाचन और अवशोषण को सही करता है। इसमें खून साफ़ करने और त्वचा रोगों में लाभ करने के भी गुण हैं। कटु रस गर्म, हल्का, पसीना लाना वाला, कमजोरी लाने वाला, और प्यास बढ़ाने वाला होता है। यह रस कफ रोगों में बहुत लाभप्रद होता है। गले के रोगों, शीतपित्त, अस्लक / आमविकार, शोथ रोग इसके सेवन से नष्ट होते हैं। यह क्लेद/सड़न, मेद, वसा, चर्बी, मल, मूत्र को सुखाता है। यह अतिसारनाशक है। इसका अधिकता में सेवन शुक्र और बल को क्षीण करता है, बेहोशी लाता है, सिराओं में सिकुडन करता है, कमर-पीठ में दर्द करता है। पित्त के असंतुलन होने पर कटु रस पदार्थों को सेवन नहीं करना चाहिए।
यह उष्ण स्वभाव की औषध है। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।
- रस (taste on tongue):कटु
- गुण (Pharmacological Action): लघु, तीक्ष्ण
- वीर्य (Potency): उष्ण
- विपाक (transformed state after digestion): कटु
विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।
कर्म:
- वातशामक
- कफनाशक
- पौष्टिक
- लारस्रावजनक
- नाड़ीबल्य
- कामोद्दीपक
- वीर्यवर्धक
अकरकरा के लाभ Health Benefits of Akarkara
- यह मुख रोगों, हकलाना, तुतलाना, दांत-दर्द, लकवा, कफ आदि की अच्छी दवाई है।
- इसके सेवन से शरीर में पित्त की कमी के कारण होने वाले पाच, मन्दाग्नि में लाभ होता है।
- यदि शरीर में कफ अधिक बढ़ गया हो तो अकरकरा का सेवन कफ को सुखाता है और शरीर में गर्मी लाता है। यह सर्दी, खांसी, कफ आदि में लाभप्रद है।
- यह बुद्धिवर्धक है।
- यह नसों को ताकत देने वाली औषध है।
- इसका सेवन कामेच्छा को बढ़ाता है, नामर्दी दूर करता है, सेक्सुअल ऑर्गन को ताकत देता है और शीघ्रपतन को दूर करता है।
अकरकरा के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Akarkara – Anacyclus pyrethrum
अकरकरा में मूत्रल, वाजीकारक, बुद्धिवर्धक, कफनाशक, उत्तेजक और पित्तवर्धक गुण पाए जाते हैं। क्योंकि इसका सेवन शरीर में गर्मी लाता है इसलिए यह पाचन की कमजोरी और कफ की अधिकता में लाभप्रद है। अकरकरा का सेवन कफ को सुखाता है और शरीर में रूक्षता लाता है।
अकरकरा की जड़ को बहुत ही कम मात्रा में लेना चाहिए। अधिक मात्रा लाभ के स्थान पर हानि करती है। कतीरा, मुनक्का आदि को इसका दर्प नाशक माना गया है। बाह्य रूप से लगाने पर भी यह बुखार, इन्द्रिय की कमजोरी, लकवा आदि में अच्छे परिणाम देता है।
नामर्दी, शीघ्रपतन
अकरकरा की जड़ + अश्वगंधा + केवांच बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें। इस चूर्ण का सेवन दिन में दो बार आधा से लेकर एक टीस्पून तक सेवन करें।
यौन इन्द्रिय दुर्बलता
जड़ का रस अथवा तेल की यौन इन्द्रिय पर मालिश करके पान के पत्ते के साथ इन्द्रिय पर दो घंटा बाँधने से यौन इन्द्रिय मज़बूत और पुष्ट होती है।
पुरुषों में कामेच्छा को बढ़ाने के लिए
अकरकरा का सेवन शरीर में गर्मी और उत्तेजना लाता है।
अकरकरा चूर्ण + अश्वगंधा + सफ़ेद मुस्ली, बराबर मात्रा में मिलाकर पीस लें। इस चूर्ण का सेवन दिन में दो बार आधा से लेकर एक टीस्पून तक सेवन करें।
मिर्गी Epilepsy
- अकरकरा की जड़ का चूर्ण आधा ग्राम को शहद के साथ लें। चूर्ण को नस्य के लिए भी प्रयोग किया जाता है। अथवा
- सिरके में अकरकरा कप पीस कर शहद के साथ 5-10 ml की मात्रा में लें। अथवा
- अकरकरा की जड़ का काढ़ा, ब्राह्मी के साथ मिलाकर लें।
अर्धांगवात Hemiplegia
अकरकरा की जड़ का चूर्ण + राई का चूर्ण को शहद में मिलाकर जीभ पर लगाते हैं।
स्नायु रोग, लकवा, पक्षाघात Muscle disease, paralysis
- अकरकरा की जड़ का चूर्ण दो ग्राम + सोंठ एक ग्राम + मुलेठी दो ग्राम, को लेकर काढ़ा बनाकर, एक महीने तक पीने से आराम मिलता है। अथवा अकरकरा की जड़ का चूर्ण आधा ग्राम की मात्रा में शहद के साथ चाट कर लें।
- अकरकरा की जड़ को महुए के तेल के साथ मिलाकर मालिश करें।
साईटिका
अकरकरा की जड़ का चूर्ण + अखरोट के तेल में मिलाकर मालिश करें।
दांत में दर्द
अकरकरा की जड़ को पीस कर प्रभावित दांत की जड़ के नीचे रखना चाहिए।
हकलाना, तुतलाना
अकरकरा की जड़ का चूर्ण एक रत्ती, काली मिर्च चूर्ण एक रत्ती को शहद एक चम्मच, में मिलाकर जीभ पर पांच मालिश करें। यह प्रयोग २-३ महीने तक करें। (1 Ratti=125mg)
आवाज़ मधुर करने के लिए
चौथाई से लेकर आधे ग्राम की मात्रामें अकरकरा की जड़ के चूर्ण की फंकी लें।
गले का बैठ जाना
- अकरकरा की जड़ के टुकड़े को चूसना चाहिए। अथवा
- इसकी जड़ के काढ़े से कुल्ले करने चाहिए।
हिचकी
अकरकरा की जड़ का चूर्ण + शहद लें।
अधिक लार के लिए
अकरकरा की जड़ चूसने से अधिक लार बनती है।
खांसी, कफ
जड़ का काढा बनाकर पीने से लाभ होता है।
गैस, अपच, मन्दाग्नि
अकरकरा की जड़ का चूर्ण 1 ग्राम + सोंठ एक ग्राम, को खाने से पाचन की कमजोरी दूर होती है।
सिर का दर्द
अकरकरा की जड़ कप पीस कर माथे पर लेप करने से सिर के दर्द में आराम होता है।
सिन्दूर का विष दूर करने के लिए
अकरकरा की जड़ को गिस कर पानी के साथ दिया जाता है।
बुद्धि को बढाने के लिए
अकरकरा की जड़ का चूर्ण + ब्राह्मी, बराबर मात्रा में पीस कर रख लें। इसे आधा टीस्पून की मात्रा में लें।
बुखार
जड़ को तेल में पका कर तेल को मालिश के लिए प्रयोग करते हैं।
अकरकरा की औषधीय मात्रा Dosage of Akarkara
अकरकरा को लेने की औषधीय मात्रा आधा से एक ग्राम है। काढ़ा बनाने के लिए करीब दो से तीन ग्राम जड़ का चूर्ण लेकर एक कप पानी में उबालें जब तक पानी चौथाई न रह जाए।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications
- कुछ लोगों में पौधे को छूने के बाद डेर्मेटाइटिस हो सकता है।
- इसे बहुत अधिक मात्रा (एक – दो ग्राम से ज्यादा) में और बहुत लम्बे समय (एक – दो महिना से ज्यादा) तक प्रयोग न करें।
- अधिक मात्रा में इसका सेवन आतों को नुकसान पहुंचता है जिससे आँतों से खून निकल सकता है, टिटनेस-तरह की ऐंठन होती है और बेहोशी भी हो सकती है।
- अधिकता में किये गए सेवन से खूनी दस्त हो सकती है।
- यह फेफड़ों के लिए अहितकर माना गया है।
- यह पित्त को बढ़ाता है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
- जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
- शरीर में यदि पहले से पित्त बढ़ा है, रक्त बहने का विकार है bleeding disorder, हाथ-पैर में जलन है, अल्सर है, छाले हैं तो भी इसका सेवन न करें।
- आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।
- अकरकरा के साइड-इफेक्ट्स को दूर करने के लिए गोंद कतीरा, गोंद बबूल, मुनक्का अथवा मुलेठी का प्रयोग करना चाहिए।