अरंड (arand), एरण्ड, रेंडी, या कैस्टर पूरी दुनिया में पाया जाना वाला पौधा है। इसे प्राचीन समय से भारत, अफ्रीका, चीन तथा अन्य देशों में तेल के लिए और एक दवा के रूप में प्रयोग किया जाता रहा है।
यह एक औषधीय वनस्पति है। औषधि के रूप में अरंड का वर्णन चरक और शुश्रुत संहिता में मिलाता है। इसे आयुर्वेद में वातारि और वातवैरी कहा जाता है और मुख्य रूप से वात रोगों में प्रयोग किया जाता है। आचार्य शुश्रुत ने इसके दो भेद, लाल और सफ़ेद बताएं हैं तथा इनके प्रयोग भी बताएं हैं। अरंड कड़वा, उष्ण, भारी, और उत्तम विरेचक है। यह वातरोग, कफ रोग, खांसी, दमा, बुखार, रक्तविकार, प्रमेह, त्वचा रोगों आदि में उपयोगी है।
अरंड के बीजों की मींगी से तेल प्राप्त होता है जिसे कैस्टर आयल कहा जाता है। बाहरी रूप से त्वचा पर लगाया जाता है और औषधि के रूप में विरेचक के रूप में प्रयोग किया जाता है। इसके सेवन से कब्ज़ दूर होता है। यह कोष्ठशुद्धि भी करता है। अर्श, भगंदर, गुदाभ्रंश में भी इसके तेल को लेने से बिना जोर लगाए मोशन आता है।
सेवन के लिए केवल ऐसे कैस्टर आयल का प्रयोग किया जाता है जो ओरल प्रयोग के लिए सुरक्षित हो और जिसके सेवन से शरीर पर कोई दुष्प्रभाव न हो। कैस्टर आयल स्निग्ध, चिकना, गाढ़ा, चिपचिपा, तथा रंग में पिला सुनहरा सा होता है। यह हल्की गंध युक्त होता है। इसमें ग्लिसिरोल, पामिटिन, और स्टीरिन होता है। इसमें पाया जाने वाला रिसिनोलिक एसिड इसे विरेचक का गुण देता है।
यहाँ यह जानना महत्वपूर्ण है, की कैस्टर के बीजों में एक बहुत विषैला पदार्थ, रिसिनिन पाया जाता है। रिसिनिन बहुत ही जहरीला पदार्थ है जो जान ले सकता है। यह पदार्थ अंकुरित होते बीजों में अधिक मात्रा में होता है। रिसिन बीजों को उबालने और भूनने से नष्ट हो जाता है।
सामान्य जानकारी
एरण्ड / अरंड का पौधा सदाहरित होता है। यह छोटा वृक्ष या बड़ी झाड़ी है जो की प्रायः सड़कों के किनारे, खाली पड़े स्थानों या बंजर प्रदेशों में पाया जाता है। दिल्ली और उसके आसपास के क्षेत्रों में आप इसे आसानी से सड़कों के किनारे, नाले के किनारे उगा देख सकते है। यह अकेले नहीं अपितु झुंडों में मिलता है।
- पौधे की उंचाई: आठ से पंद्रह फुट
- बनावट: पतला, ऊँचा, लम्बा।
- तना: चिकना, हरा-सफ़ेद, डंडे की तरह, पोला।
- पत्ते: हरे-लाल आभा लिए हुए, पत्र दण्ड के साथ।
- पुष्प: नर और मादा, नर पुष्प मादा पुष्प एक ही पुष्प दण्ड पर पाए जाते हैं।
- फल: कांटे युक्त, बाहरी हरा आवरण।
- बीज: फल के अन्दर तीन बीज होते हैं।
- छाल: पतली, हल्की, हरी-धूसर
एरण्ड का पौधा पूरी दुनिया में पाया जाता है। इस पौधे की कुछ उपजातियां हैं जो की देखने में एक दूसरे से कुछ भिन्न है।
एक प्रकार में पौधा ज्यादा ऊँचा होता है, इसके फल भी बड़े, बीज लाल, और अधिक तेल देने वाले होते हैं। परंतु इससे मिलाने वाला तेल अच्छी क्वालिटी का नहीं होता और खाने के रूप में प्रयोग नहीं किया जा सकता। इसे मशीनों, इंधन की तरह प्रयोग किया जाता है।
एक अन्य प्रकार के कैस्टर पौधे छोटे होते हैं। यह एक वर्षीय पौधे होते हैं, और बीज छोटे-सफ़ेद और भूरे धब्बे युक्त होते हैं। इसके बीजों से निकालने वाला तेल अच्छी क्वालिटी का होता है और खाने के प्रयोग के लिए उपयुक्त है।
- वानस्पतिक नाम: रिसिनस कम्युनिस
- कुल (Family): यूफॉरबीऐसिऐइ
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पत्ते, तेल, बीज और जड़ / मूल
- पौधे का प्रकार: झाड़ी
- वितरण: पूरे भारत वर्ष के गर्म प्रदेशों में
- पर्यावास: उष्ण-बंजर प्रदेश
एरण्ड के स्थानीय नाम / Synonyms
- संस्कृत: एरण्ड, उत्तानपत्रक, उत्तानपत्र, करपर्ण, करपर्णा, गन्धर्व, चित्र, अरण्ड, अरंड, आमंड, तरुण, दीर्घदण्डक, नागकर्ण, यक्षहस्त, वर्द्धमान, व्याघ्रपुच्छ, स्निग्ध, हस्तिकर्ण, वातारि, वातवैरी, Gandharvahasta, Vatari, Panchagula, Chitra, Urubu, Rubu
- हिन्दी: एरण्ड Arand, Arandi, Arcnd, Erand, Erandi, Erend
- अंग्रेजी: Castor, Castor oil plant
- असमिया: Eda, Era
- बंगाली: भेरंडा Bherenda
- बिहार: एंड
- गुजराती: एरंडो Erandio, Erando
- कन्नड़: Haralu, Oudala gida
- Kashmiri: Aran, Banangir
- मलयालम: Avanakku
- मराठी: एरंडी, यरन्डीचा Erand
- उड़िया: Jada, Gaba
- पंजाबी: Arind
- तमिल: Amanakku
- तेलुगु: Amudapu veru
- उर्दू: Bedanjir, Arand
एरण्ड का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
- किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
- सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
- सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
- डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta – Flowering plants फूल वाले पौधे
- क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
- सबक्लास Subclass: रोसीडए Rosidae
- आर्डर Order: यूफॉरबिएल्स Euphorbiales
- परिवार Family: यूफोरबिएसीएई Euphorbiaceae – Spurge family
- जीनस Genus: रिसिनस Ricinus L. – ricinus P
- प्रजाति Species: रिसिनस कम्युनिस Ricinus communis L.
एरण्ड के संघटक Phytochemicals
- Fatty oil (42 to 55%):
- Proteic substances (20 to 25%)
- Lectins (0.1 to 0.7%): including ricin D (RCA-60, severely toxic), RCA-120 (less toxic)
- Pyrridine alkaloids: ricinine (up to 0.3%)
- Triglycerides: chief fatty acids ricinoleic acid (12-hydroxyoleic acid, 85 to 90%)
- Tocopherols (vitamin E)
एरण्ड मूल के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
स्वाद में अरंड मूल मधुर, गुण में गुरु और स्निग्ध और वीर्य में उष्ण है। यह विपाक में मधुर है और वात रोगों की मुख्य औषधि है।
- रस (taste on tongue): मधुर, कटु, कषाय,
- गुण (Pharmacological Action): गुरु, स्निग्ध
- वीर्य (Potency): उष्ण
- विपाक (transformed state after digestion): मधुर
यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।
विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है।
प्रायः मधुर तथा लवण रस के पदार्थों का विपाक मधुर होता है। मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है। यह कफ या चिकनाई का पोषक है। शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ाता है। इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं।
कर्म Principle Action
- अनुलोमन: द्रव्य जो मल व् दोषों को पाक करके, मल के बंधाव को ढीला कर दोष मल बाहर निकाल दे।
- कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
- वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।
- वृष्य: द्रव्य जो बलकारक, वाजीकारक, वीर्य वर्धक हो।
- विरेचन: द्रव्य जो पक्व अथवा अपक्व मल को पतला बनाकर अधोमार्ग से बाहर निकाल दे।
- वाताघ्न: द्रव्य जो वात को कम करे।
एरण्ड के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Castor in Hindi
अरंड को आयुर्वेद में मुख्य रूप से वात रोगों जैसे की जोड़ों में दर्द, गाउट, रूमेटिज्म, साइटिका, पीठ में दर्द, आदि में प्रयोग किया जाता है। इसकी जड़ वात-कफ शामक है तथा पित्तवर्धक है। परन्तु इसका तेल पित्त शामक है।
रेंडी का तेल सूजन दूर करने वाला, पीड़ाहर, भेदन, विरेचक, स्नेहन, कफघ्न है। यह बुखार और त्वचा रोगों में लाभप्रद है घरेलू उपचार के रूप में प्रयोग किया जाता है। तेल के आंतरिक प्रयोग से कोष्ठ साफ़ हो जाता है। विरेचक की तरह प्रयोग करने तथा वात व्याधियों में तेल की लगभग 6 से 12 ml की मात्रा लेनी चाहिए।
तेल जो आंतरिक प्रयोग के लिए सुरक्षित हो उसी को प्रयोग करना चाहिए।
अर्श, भगंदर, गुद्भ्रंश piles, fistula, anal prolapse
- एरंडपाक Eranda Paka का सेवन करें।
- कोमल प्रकृति के लोगों में इसका सेवन अरुचि उत्पन्न करता है।
विरेचन laxative
- कैस्टर आयल को विरेचन के लिए प्रयोग करते हैं।
- अरंड तेल दस मिलीलीटर की मात्रा में दूध के साथ रात में लें। अथवा
- अरंड मूल का काढा विरेचक के रूप में प्रयोग किया जाता है। अथवा
- Gandharva Haritaki Churna का सेवन करें।
वातरक्त gout
एरंड का तेल दस मिलीलीटर की मात्रा में दूध के साथ लेना चाहिए।
सूजन, आमवात, गठिया, जोड़ों का दर्द joint pain, swelling
पत्तों को गर्म करके प्रभावित स्थान पर बांधना चाहिए।
वात रोग, वात शूल, कमर दर्द, गृध्रसी, पार्श्वशूल, हृदयशूल, आमवात, संधिशोध
- अरंड की जड़ दस ग्राम और सोंठ के चूर्ण पांच ग्राम को लेकर काढ़ा बनाकर सेवन करें।
- प्रभावित स्थान की अरंड तेल से मालिश करें। अथवा
- अरंड तेल दस मिलीलीटर की मात्रा में दशमूल क के काढ़े अथवा सोंठ के काढ़े, के साथ दिन में दो बार लें। अथवा
- Gandharvahasthadi Eranda Thailam का प्रयोग करें।
पीठ में दर्द
कैस्टर आयल एक चम्मच, को पानी के साथ दिन में दो बार लें।
मोच आना, एड़ी मुड़ जाना
कैस्टर आयल से मालिश करें।
दूध के स्राव में वृद्धि करने के लिए
- तेल से ब्रैस्ट मसाज से दूध स्राव में वृद्धि होती है।
- इसी प्रभाव के लिए पत्तों की पुल्टिस को भी ब्रैस्ट पर बांधा जाता है।
ब्रेस्ट निप्पल के आस-पास त्वचा फट जाना
अरंड तेल लगायें।
ब्रेस्ट में सूजन
अरंड के बीजों की गिरी को सिरके में पीस कर लगाएं।
पेट के कीड़े
अरंड के पत्तों का रस गुदा पर दिन में दो तीन बार लगाया जाता है।
मासिक धर्म न आना
अरंड के पत्तों को गर्म कर नाभि के पास लगाना चाहिए।
नाड़ी व्रण
इसके कोमल पत्तों को पीसकर लगाते हैं।
बेड सोर
अरंड तेल को लगाएं।
बिगड़े घाव
पत्तों को पीस कर प्रभावित स्थान पर लागएं।
मस्स्से, तिल Corns, Callouses and Warts
- कैस्टर आयल को रोजाना प्रभावित स्थान पर सुबह और रात को सोते समय लगायें। अथवा
- कैस्टर आयल को सल्फर के साथ मिलाकर बार-बार लगायें।
अन्य उपयोग
- तेल को इंधन की तरह, लैंप आदि की तरह प्रयोग किया जाता है।
- तेल को चमड़े के समान पर लगाया जाता है।
- तेल को मशीनों में में भी डाला जाता है।
- साबुनों को बनाने में तेल का प्रयोग होता है।
- तेल निकालने के बाद जो खली बचती है उसे खाद की तरह प्रयोग करते हैं।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications
- इसे आँतों के रोगों, intestinal obstruction, acute inflammatory intestinal diseases, appendicitis, abdominal pain of unknown origin, में प्रयोग न करें।
- इसे गर्भावस्था during pregnancy and while nursing और स्तनपान कराते समय न लें।
- कैस्टर आयल का ज्यादा सेवन गैस्ट्रिक इरीटेशन, उलटी, कोलिक, और लूज़ मोशन कर सकता है।
- कैस्टर आयल किडनी, ब्लैडर, बाइल डक्ट, या आँतों में इन्फेक्शन में न लें। इसे पीलिया और मूत्रकृच्छ में भी न लें।
- लम्बे समय तक प्रयोग इलेक्ट्रोलाइट, पोटैशियम आयन आदि की शरीर में कमी करता है।
- कैस्टर बीन्स बहुत जहरीले होते हैं। इनका सेवन कभी नही करना चाहिए।
कैस्टर बीन के जहर का असर प्रोटीन सिंथेसिस रुक जाना, खून की उलटी, पतले दस्त, किडनी में सूजन, पानी की कमी, इलेक्ट्रोलाइट की कमी, सिर्कुलेटरी सिस्टम का फेल हो जाना, severe gastroenteritis with bloody vomiting and bloody diarrhoea, kidney inflammation, loss of fluid and electrolytes and ultimately circulatory collapse आदि।
बहोत उपयुक्त माललुमात है
धन्यवाद