दवाई की तरह अशोक की छाल, पत्तों, फूलों और बीजों का प्रयोग होता है। दवा की तरह, अशोक की छाल का ज्यादा प्रयोग किया जाता है। छाल में टैनिन, कैटीकाल, उड़नशील तेल, कीटोस्टेरोल, ग्लाइकोसाइड, सेपोनिन, कैल्शियम और आयरन यौगिक होते हैं। बीजों का चूर्ण पथरी और मूत्रकृच्छ में फायदा देते हैं।
अपशोक, अशोक, चिर, दोहली, दोषहारी, गन्धपुष्प, हेमपुष्पा, कंकाली, कंकेली, कंटाचरणदोहडा, कर्णपुरा, कर्णपूरक, केलिक, क्रिमिकारक, मधुपुष्प, पल्लदरु, पिंडपुष्प, परपल्लव, रक्तपल्लव, रमा, रोगितारू, शहय, सुभग, ताम्रपल्लव, वामनघरिघटक, वामनकायतना, विचित्र, विशोक, वीताशोक आदि अशोक के वृक्ष के संस्कृत पर्याय हैं। अशोक का वृक्ष हिन्दू धर्म में बहुत ही पवित्र माना गया है। कामदेव, जो की प्रेम के देवता हैं, के पांच पुष्पों से सुसज्जित बाणों में इसके पुष्प भी एक हैं। यह वृक्ष पवित्र, आदरणीय और औषधीय है।
यह अशोक (बिना शोक के) है क्योंकि यह रोगों को हर, शरीर से दुःख दूर करता है। इसके नीचे बैठने से शोक नहीं होता। प्राचीन समय में इसकी वाटिकाएं बनायीं जाती थी जो की हमेशा हरी रहती थी और अपने सुगन्धित पुष्पों से सभी का मन प्रसन्न कर देती थीं।
अशोक एक औषधीय पेड़ है। इसका दवा की तरह प्रयोग हजारों साल से होता आया है। यह मुख्य रूप से स्त्री रोगों, रक्त बहने के विकारों और मूत्र रोगों में लाभकारी है। यह रक्त के असामान्य बहाव को अपने संकोचक गुण के कारण रोकता है। अशोक की छाल कसैली, रूखी, और स्वभाव से ठंडी होती है। यह स्त्री रोगों में बहुत उपयोगी है। यह गर्भाशय की कमजोरी, बाँझपन, श्वेत प्रदर, रक्त प्रदर सभी को नष्ट करता है। यह मूत्रल गुणों के कारण पेशाब के रोगों में भी लाभकारी है।
अशोक के पेड़ के पत्ते लम्बे होते है। शुरू में पत्ते ताम्बे के रंग के होते हैं, इसलिए इसे ताम्रपत्र भी कहते है। इसमें सुन्दर और सुगन्धित पुष्प आते हैं जो की पहले पीले होते हैं और फिर नारंगी हो हुए लाल हो जाते हैं। फल, फलियों के रूप में होते हैं। फलियाँ करीब आठ-दस इंच लम्बी होती हैं। फलियों के अन्दर चार से दस बीज होते हैं। दवाई की तरह अशोक की छाल, पत्तों, फूलों और बीजों का प्रयोग होता है।
दवा की तरह, अशोक की छाल का ज्यादा प्रयोग किया जाता है। छाल में टैनिन, कैटीकाल, उड़नशील तेल, कीटोस्टेरोल, ग्लाइकोसाइड, सेपोनिन, कैल्शियम और आयरन यौगिक होते हैं। बीजों का चूर्ण पथरी और मूत्रकृच्छ में फायदा देते हैं।
वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
अशोक, शिम्बी कुल का पेड़ है। इसका उपकुल कंटकीकरंज / सीजलपिनोयडी है।
- किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
- सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
- सुपर डिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
- डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
- क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
- सबक्लास Subclass: रोसीडए Rosidae
- आर्डर Order: फेबल्स Fabales
- परिवार Family: Fabaceae – मटर परिवार
- जीनस Genus: सराका Saraca
- Species: अशोका या इंडिका asoca or indica
स्थानीय नाम / Synonyms
Latin: Saraca asoca (Rose.) De. Willd
Sanskrit: Anganapriya, Apashoka, Ashoka, Chakraguchha, Chira, Dohali, Doshahari, Gandhapushpa, Hemapushpa, Kankali, Kankelli, Kantacharandohada, Kantanghridohada, Karnapura, Karnapuraka, Kelika, Krimikaraka, Madhupushpa, Nata, Palladru, Pindapushpa, Prapallava, Raktapallava, Rama, Rogitaru, Shhaya, Shokaharta, Shokanasha, Smaradhivasa, Strinirikshanadohada, Subhaga, Tamrapallava, Vamanghrighataka, Vamankayatana, Vanjula, Vanjuldruma, Vichitra, Vishoka, Vitashoka
- Assamese: Ashoka
- Bengali: Ashoka
- English: Asoka Tree
- Gujrati: Ashoka, Ashopalava
- Hindi: Ashoka, Sita Ashok, Ashok
- Kannada: Ashokadamara, Ashokamara, Kankalimara, Achenge
- Kashmiri: Ashok
- Malayalam: Asokam, Hemapushpam
- Marathi: Ashok, Jasundi
- Oriya: Ashoka
- Punjabi: Asok
- Tamil: Asogam, Asogu, Asokam, Asogam, Anagam, Malaikkarunai, Sasubam
- Telugu: Ashokapatta, Asokamu
- Sinhalese: Asoka, Diyaratambala, Diyaratmal
आयुर्वेदिक गुण और कर्म
अशोक की छाल को आयुर्वेद में प्रमुखता से स्त्री रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है। यह स्वभाव से शीत होती और प्रजनन तथा मूत्र अंगों पर विशेष रूप से काम करती है। यह गर्भाशय की कमजोरी और योनी की शिथिलता को दूर करती है। यह संकोचक, कडवा, ग्राही, रंग को सुधारने वाला, सूजन दूर करने वाला और रक्त विकारों को नष्ट करने वाला है।
- रस (taste on tongue): मधुर, तिक्त, कषाय
- गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
- वीर्य (Potency): शीत
- विपाक (transformed state after digestion): कटु
कर्म:
ग्राही, गर्भाशय रसायन, हृदय, प्रजास्थापना, स्त्री रोग्जित, वेदना स्थापना, विशाघ्न, वर्ण्य
अशोक रक्त रोधक प्रयोगों में बहुत ही हितकर है।
अशोक के औषधीय प्रयोग
अशोक स्त्री रोगों में बहुत ही फायदा करता है। इसके सेवन से बाँझपन नष्ट होता है और राजोविकर दूर होते है। यह दर्द, सूजन, रक्त प्रदर, श्वेत प्रदर, दर्द, अतिसार, पथरी, पेशाब में दर्द, आदि में लाभप्रद है।
अशोक की छाल को अशोकारिष्ट और अशोक घृत बनाने में प्रयोग किया जाता है। यह दोनों ही दवाएं स्त्री-रोगों में प्रभाकारी हैं।
1. मासिक में बहुत खून जाना Excessive bleeding in periods
अशोक की छाल का काढ़ा बनाकर, दिन भर में कई बार कुछ-कुछ देर पर दिन में कई बार पियें।
अशोक के पेड़ की 8 कोपलें और कलियाँ तोड़ कर, साफ़ करके रोज़ सुबह खाएं।
2. मासिक की अनियमितता Period irregularities
असोक की छाल का काढ़ा बनाकर पियें।
3. रक्त प्रदर, योनि से असामान्य खून जाना, पेशाब के रोग Bleeding disorders, urinary disorders
अशोक की छाल का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार पियें।
4. बाँझपन, गर्भाशय की कमजोरी, होर्मोन का असंतुलन, मासिक की परेशानियाँ, पेट के रोग, पेडू का दर्द Infertility
अशोकारिष्ट Ashokarishta का सेवन करें।
5. सफ़ेद पानी आना, लिकोरिया या श्वेत प्रदर Leucorrhoea
अशोक की छाल का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा में दिन में दो बार, गाय के दूध के साथ लें।
6. अंडकोष की सूजन Swelling of the testicles
अशोक छाल का काढ़ा दिन में दो बार, एक सप्ताह तक पियें।
7. पेट में दर्द, पेशाब रोग Painful urination
अशोक की छाल को पानी में उबालकर काढा बनाकर दिन में दो बार पियें।
8. पथरी Urinary stones
अशोक की फली से बीज निकालकर पीस लें। इसे पांच-दस ग्राम की मात्रा में ठंडे पानी के साथ फंकी लें।
9. सांस रोग, श्वास Respiratory disorders
अशोक के बीजों का चूर्ण थोड़ी सी मात्रा (65mg) में पान के बीड़े में रख कर सेवन करें।
10. हड्डी टूटना Bone fracture
हड्डी के टूटने पर अशोक की छाल का चूर्ण पांच से दस ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार दूध के साथ सेवन करें।
11. खूनी पेचिश Bloody dysentery
अशोक के पुष्पों को 3-4 gram की मात्रा में पीस के पीने से लाभ होता हैं।
12. खूनी बवासीर Bleeding piles
अशोक की छाल 5 gram और इतनी ही मात्रा में इसके पुष्प ले कर रात में पानी में भिगो दें। सुबह इसे छान कर पी लें। इसी प्रकार सुबह भिगो कर शाम को पियें।
13. योनि का ढीलापन Vaginal Sag
अशोक की छाल + बबूल छाल + गूलर छाल + माजूफल + फिटकरी, समान भाग में मिलाकर पीस लें। इसे कपड़े से छान कर इसका कपड़छन पाउडर बना लें। इस चूर्ण की सौ ग्राम की मात्रा एक लीटर पानी में उबालें। जब यह चौथाई रह जाए तो स्टोव से उतार कर ठंडा कर लें। इसे योनि के अन्दर रात को डालें। यह प्रयोग कुछ दिन तक लगातार करें।
औषधीय मात्रा
- काढ़ा: 20-50 ml
- बीज चूर्ण: 1-3 grams
- पुष्प चूर्ण: 3-6 grams
अशोक के सेवन का दवा की मात्रा में प्रयोग शरीर पर कोई हानिप्रद प्रभाव नहीं डालता। यह ग्राही है और इसका सेवन कब्ज़ कर सकता है। कब्ज़ को दूर त्रिफला चूर्ण के सेवन से किया जा सकता है।
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