अश्वगंधा का प्रयोग रिकेट्स rickets, बुढ़ापे की दुर्बलता senility, गठिया gout, सभी प्रकार की दुर्बलता weakness, नसों की दुर्बलता nerves weakness, याददाश्त में कमी memory loss, मांसपेशियों की शक्ति की हानि, और शुक्र-विकारों sperm disorders में किया जाता है।
आयुर्वेद में अश्वगंधा महत्वपूर्ण टॉनिक वनस्पतियों में से एक है। औषधीय प्रयोगों के लिए मुख्यतः इसकी जड़ों का प्रयोग होता है। जड़ को चूर्ण powder, घृत ghee, काढ़े decoction या किसी औषधि के निर्माण में घटक के रूप में प्रयोग किया जाता है। अश्वगंधा को भारतीय जिन्सिंग ginseng के रूप में जाना जाता है।
अश्वगंधा की पहचान
अश्वगंधा का पौधा बहुत बड़ा नहीं होता। यह एक छोटी झाड़ी होता है और आम तौर पर पूरे भारत में पाया जाता है। इसकी उंचाई करीब 2-4 फुट होते है। पत्ते और फल दोनों गोलाई लिए हुये होते है। पत्तों, टहनी पर सफेद रोयें होते है। शाखाएं गोलाकार, टेढ़ी-मेढ़ी और चारों ओर फैली हुई होती हैं। फूल पीला-हरापन लिए होता है एवं सर्दियों में निकलता है। फल लाल रंग के होते हैं। जड़, १-२ फुट, शंकु के रूप में लम्बी सी होती है। जड़ें ऊपर से मटमैली और अन्दर से सफ़ेद होती है। जड़ में नींद लाने वाले sedative, अवसाद दूर करने के anti-depressant, टॉनिक tonic, कामोद्दीपक aphrodisiac और पोषक nutritive गुण होते हैं।
इसका सेवन पुरुषों में धातु को पुष्ट करता है और धातु क्षीणता, नपंसुकता impotence, शीघ्रपतन premature ejaculation, स्पर्म की कमी sperm deficiency, नसों की कमजोरी nerves weakness समेत बहुत सी स्वास्थ्य समस्याओं को दूर करता है।
स्त्रियों में इसका सेवन स्तनपान breastfeeding कराते समय दूध की मात्रा में वृद्धि galactagogue करता है और हॉर्मोन के संतुलन में मदद करता है। इसका सेवन भ्रूण fetus को स्थिर करता है और हार्मोन पुन: बनाता है। प्रसव after delivery बाद इसका सेवन शरीर को बल देता है।
कमजोर बच्चों को अश्वगंधा जड़ एक पेस्ट के रूप में मक्खन और दूध के साथ दिया दिया जाता है।
बाह्य रूप से externally अश्वगंधा को त्वचा रोग, अल्सर, छिद्रार्बुद carbuncles,गठिया सूजन आदि में लगाया जाता है।
अश्वगंधा की सामान्य जानकारी
अश्वगंधा की सूखी परिपक्व जड़ें दवा के रूप में आयुर्वेद में प्रयोग की जाती हैं। यह सोलनेसीएई Solanaceae परिवार का पौधा है। यह जंगलों समेत पूरे भारत में पाया जाने वाला एक बारहमासी झाड़ी रुपी पौधा है। प्राकृतिक रूप से यह सूखी जगहों पर पाया जाता है।
इसकी व्यापक रूप से मध्य प्रदेश और राजस्थान के कुछ क्षेत्रों में खेती की जाती है। खेती करने के लिए करीब ५ kg बीज, १ हेक्टेयर के लिए पर्याप्त होते है। पहले पौध बनायी जाती हैं और फिर उन्हें खेत में लगा दिया जाता है। इसमें न अधिक खाद और न ही पानी की आवश्यकता होती है। सर्दियों में इसमें फल और फूल आने के बाद मार्च में फसल काट ली जाती है और इसकी जड़ों को एकत्र कर, काट, सुखा कर औषधीय प्रयोग के लिए रख लिया जाता है।
सेवन के लिए खेती वाली और बाह्य प्रयोग के लिए जंगली पौधे वाली असगंध का प्रयोग किया जाता है।
- वानस्पतिक नाम: Withania ashwagandha, W. somnifera विथानिया सोमनीफेरा
- कुल (Family): Solanaceae सोलनेसीएई
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: मुख्यतः जड़ें; पत्ते।
- पौधे का प्रकार: झाड़ी
- वितरण: पूरे भारत में मुख्यतः सूखे स्थानों पर।
अश्वगंधा के स्थानीय नाम / Synonyms
Sanskrit: Hayagandha, Vajigandha, अश्वगंधा, बाजिगंधा, हयगंधा, सैन्धवगंधा, वरदा, बलदा, कुष्ठगंधा, बराहकरणी।
- Assamese: Ashvagandha
- Bengali: Ashvagandha
- Gujrati: Asgandha
- Hindi: Asgandh असगंध, अश्वगंधा
- Kannada: Angarberu, Hiremaddina-gida
- Kashmiri: Asagandh
- Malayalam: Amukkuram
- Marathi: Asagandha, Askagandha
- Oriya: Aswagandha
- Punjabi: Asgandh
- Tamil: Amukkaramkizangu
- Telugu: Pennerugadda
- Urdu: Asgand
- English: Winter Cherry विंटर चेरी
- Unani: Asgandh
- Siddha: Amukkuramkizhangu
अश्वगंधा के संघटक
जड़ में कई एल्कलॉइड होते हैं जैसे की, विथानिन, विथानानाइन, सोमनाइन, सोम्निफ़ेरिन आदि। भारतीय अश्वगंधा के पत्तों में विथफेरिन A समेत 12 विथनॉलिडेस होते हैं।
विथानिन में शामक और नींद दिलाने वाला गुण है sedative and hypnotic।
विथफेरिन एक अर्बुदरोधी antitumor, एंटीऑर्थरिटिक anti-arthritic और जीवाणुरोधी antibacterial है।
जड़ में उपस्थित फ्री अमीनो एसिड में शामिल है: एस्पार्टिक अम्ल, ग्लाइसिन, टाइरोसीन शामिल एलनाइन, प्रोलाइन, ट्रीप्टोफन ,ग्लूटामिक एसिड और सीस्टीन aspartic acid, glycine, tyrosine, alanine, proline, tryptophan, glutamic acid and cystine।
अश्वगंधा के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
अश्वगंधा स्वाद में कसैला-कड़वा और मीठा होता है। तासीर में यह गर्म hot in potency है। इसका सेवन वात और कफ को कम करता है लेकिन बहुत अधिक मात्रा में सेवन शरीर में पित्त और आम को बढ़ा सकता है। यह मुख्य रूप से मांसपेशियों muscles, वसा, अस्थि, मज्जा/नसों, प्रजनन अंगों reproductive organ, लेकिन पूरे शरीर पर काम करता है।
आचार्य सुश्रुत ने इसे किसी भी प्रकार की कमजोरी में प्रयोग किया। आचार्य चरक ने इसे बलवर्धक माना। असगंध के चूर्ण का १५ दिन तक दूध, घी से लेने पर शरीर पुष्ट हो जाता है। अश्वगंधा का १ साल तक लगातार सेवन शरीर के सारे विकारों को दूर करता है। सर्दियों में इसका प्रयोग विशेष लाभकारी है।
- यह मेधावर्धक, धातुवर्धक, स्मृतिवर्धक, और कामोद्दीपक है। यह बुढ़ापे को दूर करने वाली औषधि है।
- रस (taste on tongue): काषाय, तिक्त
- गुण (Pharmacological Action): लघु
- वीर्य (Potency): उष्ण
- विपाक (transformed state after digestion): मधुर
- कर्म: रसायन, वात-कफ कम करने वाली (कम मात्रा में लेने पर), बल्य, वाजीकारक, वीर्य वर्धक।
Important formulations – अश्वगन्धारिष्ट Ashvagandharishta, अश्वगंधादि लेह Ashvagandhadi Leha, बलाश्वगन्धा लाक्षादि तैल Balashvagandha Lakshadi Taila।
Therapeutic uses – शोथ, क्षय, दौर्बल्य, वातरोग, यौन रोग।
औषधीय मात्रा: जड़ का चूर्ण root powder:3-6 grams।
अश्वगंधा के सेवन से फायदे
अश्वगंधा का सेवन शरीर में शक्ति और ऊर्जा का संचार करता है। इसका प्रयोग मज्जा और वीर्य को मजबूत बनाता है।
- यह एक प्रतिरक्षा बढ़ाने immune-boosting और मस्तिष्क-टॉनिक brain tonic है।
- यह उत्तम रसायन, कामोद्दीपक aphrodisiac और फर्टिलिटी बढ़ाने वाली हर्ब है।
- यह अवसाद दूर करने वाली शामक, और टॉनिक antidepressant, sedative, and tonic है।
- यह वजन बढ़ाती है और प्रतिरक्षा में increases weight and improves immunity सुधार करती है।
- यह तंत्रिका कमजोरी nervous weakness, बेहोशी fainting, चक्कर giddiness और अनिद्रा insomnia में मदद करता है।
- पुरुषों में इसे निर्बलता, वीर्यक्षीणता, नपुंसकता, स्नानुदुर्बलता, इन्द्रिय शिथालता, और एक सेक्स टॉनिक के रूप में ३-६ ग्राम की मात्रा में खाया जाता है।
- महिलाओं में इसका सेवन शरीर को ताकत देने के लिए, सुन्दरता बढ़ाने के लिए और प्रसव के बाद दूधवृद्धि के लिए प्रयोग किया जाता है।
- यह बच्चों में सूखा रोग के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है।
- कम्पवात या पार्किन्सन में अश्वगंधा जड़ के पाउडर को ३-६ ग्राम की मात्रा में लिया जाता है।
अश्वगंधा के औषधीय प्रयोग Medicinal Use of Ashwagandha
अश्वगंधा का प्रयोग सामान्य दुर्बलता general debility, तंत्रिकाओं में थकावट nerve exhaustion,दर्द pain, बुजुर्गों की समस्याओं senility, यौन दुर्बलता sexual weakness, दुर्बलता debility, स्मृति हानि memory loss, मांसपेशियों की कमजोरी muscles weakness, ऊर्जा की कमी low energy, अनिद्रा insomnia, पक्षाघात paralysis, कमजोर आंखों, गठिया gout, त्वचा वेदनाओं, खांसी, सांस लेने में मुश्किल, एनीमिया anemia, थकान lethargy, बांझपन infertility, ग्रंथियों में सूजन, प्रतिरक्षा प्रणाली की समस्याओं, धातु दुर्बलता आदि में प्रयोग किया जाता है।
बल, वीर्य वर्धक, शारीरिक दुर्बलता
अश्वगंधा की जड़ का चूर्ण, ५ ग्राम की मात्रा में गाय के दूध के साथ सुबह-शाम सेवन करें।
वात विकार (आमवात, गठिया, गैस, रेयुमेटीज्म आदि)
अश्वगंधा (२ भाग) + सोंठ (१ भाग) + मिश्री (३ भाग) मिलाकर रख लें और सुबह-शाम खाने के बाद गर्म पानी के साथ लें।
नींद न आना
असगंध का क्षीर-पाक बना कर सेवन करें। क्षीर-पाक विधि में औषधि को दूध में पकाकर प्रयोग किया जाता है।
असगंध का ५-१० ग्राम पाउडर, पानी (२५० ग्राम) और दूघ (२५० ग्राम) में धीमी आंच पर पकाएं। जब पानी उड़ जाए तो छान कर पियें।
बच्चों का सूखा रोग
करीब २५० mg अश्वगंधा चूर्ण, घिसी हुई बादाम गिरी को दूध में मिलाकर दें।
कमजोरी, दुर्बलता
३-६ ग्राम अश्वगंधा चूर्ण + मिश्री, दूध में मिलाकर पियें।
१०० ग्राम अश्वगंधा चूर्ण को २० ग्राम घी में मिलकर रख लें और ३ ग्राम की मात्रा में लें।
सफ़ेद पानी
२ ग्राम अश्वगंधा चूर्ण + १/२ ग्राम वंशलोचन के साथ मिलाकर सेवन करें।