एकिनोप्स एकिनाटस को संस्कृत में कटालु, उताति, ब्रम्हडंडी, हिंदी में ऊँटकटारा, मराठी में उटकटारी, काँटेचुम्बक, बंगला में छागसहाड़ी, वामनहांडी, और अंग्रेजी में ग्लोब-थीस्ल, कैमल्स थीस्ल कहते हैं। यह एक औषधीय वनस्पति है जो की रेतीले प्रदेशों, बंजर खेतों मैदानों में पायी जाती है।
यह सूरजमुखी कुल का, सीधे तने वाला, काँटों से भरा हुआ, १-२ फुट की ऊँचाई वाला पौधा है। इसकी पत्तियां सत्यानाशी के पौधे जैसे ही फैली हुए और कांटेदार होती हैं। यह बहुशाखीय है ऊँटकटारा के ढोढे होते हैं जिनपर कांटे होते हैं। इस पर नीले-बैंगनी रंग के छोटे-छोटे फूल गुच्छों में आते हैं। इसकी मूसला जड़ भूमि में बहुत अन्दर तक धंसी रहती हैं।
आयुर्वेद में ऊँटकटारा को बल देने वाले, मधुमेह नाशक, वीर्य स्तंभक, पुष्टिकारक, दर्द-निवारक, प्रमेहनाशक माना गया है। इसे कामशक्तिवर्धक औषधि के रूप में प्रयोग किया जाता है।
सामान्य जानकारी
- वानस्पतिक नाम: एकिनोप्स एकिनाटस Echinops echinatus
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पत्ते, जड़, छाल, फल
- पौधे का प्रकार: झाड़ी
- वितरण: मध्य भारत, मारवाड़, दक्षिणी प्रान्त
- पर्यावास: यह उष्ण प्रदेशों की वनस्पति है।
ऊँटकटारा के स्थानीय नाम / Synonyms
- संस्कृत: Kantalu, Kantaphala, Utati, Utkantaka, Karabhadana, Sringalshunkashana
- हिंदी: Untakatara, Uthkanta, Utakatira
- अंग्रेजी: Indian globe thistle, Camel’s thistle
- गुजराती: Utkanto, Utkato, Shuliyo
- कन्नड़: Brahmadande
- तेलुगु: Brahmadandi
- अन्य: Oont kantalo, Modokanto, Oontkantalo, Oont-Kanti, Utkali
ऊँटकटारा का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
- किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
- सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
- सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
- डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
- क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
- सबक्लास Subclass: एस्टीरिडेएइ Asteridae
- आर्डर Order: ऐस्टेरेल्स Asteridae
- परिवार Family: Asteraceae – Aster family
- जीनस Genus: एकिनोप्स Echinops
- प्रजाति Species: एकिनोप्स एकिनाटस Echinops echinatus
ऊँटकटारा के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
ऊँटकटारा स्वाद में कटु,तिक्त, गुण में रूखा करने वाला है। स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है।
यह तासीर में गर्म है। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।
- रस (taste on tongue): कटु, तिक्त
- गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
- वीर्य (Potency): उष्ण
- विपाक (transformed state after digestion): कटु
विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।
ऊँटकटारा का प्रयोग निम्न रोगों में लाभदायक है
- मूत्रकृच्छ (dysuria)
- मधुमेह (diabetes)
- तृष्णा (thirst)
- हृद्रोग (cardiac diseases)
- अश्मरी (urolithiasis)
- ज्वर (fever)
ऊँटकटारा के गुण
- यह अग्निवर्धक है और पाचन को बढ़ाता है।
- यह ज्वर को नष्ट करने वाली औषध है।
- यह उत्तेजक और भूख बढ़ाने वाला है।
- यह कामोद्दीपक, पौष्टिक और बल्य है।
- यह मूत्रवर्धक और स्नायु को बल देता है।
ऊँटकटारा के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Echinops echinatus in Hindi
ऊँटकटारा में कई अल्कालॉयड, ट्राईटरपेन, फ्लावोनोइड, Alkaloids, triterpene, flavonoids, स्टेरॉयड, लिपिड पाए जाते है। इसमें मूत्रल, टॉनिक और कामोद्दीपक गुण है। इसे पशुओं के रोगों में भी प्रयोग किया जाता है।
तपेदिक Tuberculosis
Echinops echinatus बीज + Antidesma acidum जड़ + Solanum surattense जड़, का काढ़ा बनाकर शहद के साथ दिन में दो बार, आधे महीने तक दिया जाता है।
प्रमेह
- ऊँटकटारा की छाल का चूर्ण शहद / मिश्री के साथ देते हैं। अथवा
- ऊँटकटारा की जड़ की छाल तीन ग्राम + गोखरू तीन ग्राम + मिश्री छः ग्राम, के बारीक़ चूर्ण को मिलाकर दिन में दो बार, सुबह-शाम दूध के साथ लेना चाहिए।
अधिक पसीना आना
ऊँटकटारा की जड़ों का चूर्ण दिन में एक से लेकर तीन बार तक दिया जाता है।
पाचन की कमजोरी
ऊँटकटारा की जड़ की छाल + छुहारे की गुठली का चूर्ण, तीन ग्राम की मात्रा में लेते हैं।
खांसी
ऊँटकटारा की जड़ की छाल को पान में रखकर खाते हैं।
मूत्रकृच्छ
तालमखाना + ऊँटकटारा की जड़ की छाल की फंकी लेते हैं।
कफ, अपच, वीर्य की कमजोरी
पौधे को पानी में भिगा कर infusion of plants सेवन किया जाता है।
स्त्रियों में बाँझपन
पत्ते और पुष्पक्रम का अर्क infusion of leaves and inflorescence, सात दिनों तक सुबह,सात दिनों तक देने से गर्भ ठहरने के आसार बढ़ते हैं।
कामशक्ति बढ़ाने के लिये, सेक्सुल पॉवर बढ़ाना
- ऊँटकटारा की जड़ की छाल 12 ग्राम, को कुचल कर पोटली में बाँध देते हैं। फिर इसे आधा लीटर गाय के दूध + एक लीटर पानी में उबालते हैं। जब केवल दूध बचे तो दूध पी लें।
- जड़ की छाल का पेस्ट इन्द्रिय पर सेक्स से एक घंटा पहले लगाते हैं।
राउंड वर्म, पेट के कीड़े
पत्तों का रस, शहद के साथ देते हैं।
गर्भाशय की सूजन
पत्तों की चटनी को ऊँटनी के दूध में पकाकर, कपड़े में लगाकर पेडू पर बांधते हैं।
प्रसव कराने के लिए
ऊँटकटारा की जड़ों से बना काढ़ा जल्दी और आसान प्रसव के लिए नाभि के आस-पास लगाया जाता है।
बुखार
रूट पेस्ट को शरीर पर लगाते हैं।
चमड़ी के रोग, जोड़ों का दर्द, रूमेटिक सूजन, खुजली, एक्जिमा
पत्तों का अथवा जड़ का पेस्ट लगाते हैं।
सांप-बिच्छू के काटने पर
जड़ को पानी में पीसकर प्रभावित जगह पर लगाते हैं।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications
- यह पित्त को बढ़ाता है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
- अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है।
- जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
- शरीर में यदि पहले से पित्त बढ़ा है, रक्त बहने का विकार है bleeding disorder, हाथ-पैर में जलन है, अल्सर है, छाले हैं तो भी इसका सेवन न करें।
- गर्भावस्था में इसका प्रयोग नहीं करना चाहिए। यह एबॉर्शन करता है। बहुत कष्टकारी और लम्बे प्रसव के लिए ही इसका प्रयोग करते हैं और वह भी बहुत सावधानी से।
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