बृहती Brihati (Solanum indicum) in Hindi

बृहती एक औषधीय वनस्पति है। वार्ताकी, क्षुद्राभंटाकी, महती, कुली, हिंगुली, राष्ट्रिका, सिंही, महोष्ट्री, दुष्प्रधर्षणी, बड़ी कटेरी, वनभंटा आदि इसके संस्कृत पर्याय हैं। हिंदी में इसे बड़ी कटेरी, बड़ी भटकटैया, बड़ी कंटेली, बंगाली में भांटा, तिक्त बेगन, मराठी में मोठी डोलरी, गुजराती में डभीभोटीत्रिणी, तामिल में चेरुचुंट और लैटिन में सोलेनम इंडिकम कहते हैं।

आयुर्वेद में वृहती को बहुत अधिक प्रयोग किया जाता है। यह दशमूल Dashmula में प्रयोग की जाने वाली दस जड़ों में से एक है। यह लघु पञ्च मूल LaghuPancha Mula में आती है जिसमें अन्य चार जड़ें हैं, शालपर्णी, पृश्नीपर्णी, छोटी कटेरी और गोखरू। दशमूल शरीर में सूजन और वात-व्याधि के उपचार में प्रयोग की जाने वाली एक बहुत ही उत्तम दवा है। इसमें ज्वर/बुखार और सूजन को कम करने के गुण हैं। दशमूल खांसी, गैस, भूख न लगना, थकावट, ख़राब पाचन, बार-बार होने वाला सिरदर्द, पार्किन्सन, पीठ दर्द, साइटिका, सूखी खांसी, आदि में भी बहुत ही उपयोगी है।

Arayilpdas at ml.wikipedia [CC BY-SA 3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0) or GFDL (http://www.gnu.org/copyleft/fdl.html)], via Wikimedia Commons
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बड़ी कटेरी, आलू और बैंगन के कुल का पौधा है। यह न केवल भारत में बल्कि श्री लंका, मलेशिया, चीन तथा फिलिपाइन्स में भी मिलती है। यह एल उष्ण जलवायु का पौधा है और बीजों से उगता है। बड़ी कटेरी के पुष्प नीले-बैंगनी होते हैं। इसके फल, बेरी होते हैं व कच्चे में हरे और सफ़ेद धारियों से युक्त होते हैं। पौधे में बहुत से कांटे होते है।

वृहती पौधे के फल और जड़ में वैक्स फैटी एसिड्स तथा अल्कालॉयड सोलामाइन और सोलानीडीन पाए जाते हैं। आयुर्वेद में अकेले इसका उपयोग प्रसव बाद कमजोरी, उलटी, अस्थमा, कफ आदि में किया जाता है। यह शोथ हर है और शरीर की सूजन को दूर करती है। मूत्रल होने से इसका प्रयोग मूत्र रोगों में होता है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: सोलेनम इंडिकम
  • कुल (Family): सोलेनेसिएई
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: मुख्य रूप से जड़ें और फल
  • पौधे का प्रकार: झाड़ी
  • वितरण: पूरे भारत में
  • पर्यावास: गर्म, सूखे और रेतीली मिट्टी में

स्थानीय नाम Vernacular names / Synonyms

  1. वैज्ञानिक नाम: सोलेनम इंडिकम
  2. संस्कृत: Akranta, Asprasi, Bahupatri, Bhantaki, Brahati, Brihatika, Dovadi, Dusparsa, Hinguli, Kshudrabhanta, Kshudrabhantaki, Kshudravartaki, कुली, Mahati, Mahatikranta,
  3. Mahotika, Sinhi, Sinhika, Tprani, Vanavrintaki, Vartaki, Vyaghri
  4. असमिया: Tilabhakuri
  5. बंगाली: Byakud, Byakura, Brihati Begun, Baikur, Byakur, Gurkamai, Phutki, Phutki Begoon, Tit Begun
  6. अंग्रेज़ी: भारतीय नाइट शेड, Poison Berry, सोलेनम
  7. गुजराती: Umimuyaringani, Ubhibharingani, Ubhibhuyaringa, Ubhi-ringan
  8. गारो: Titbahal
  9. हिन्दी:Vanabharata, Badikateri, Jangli bhata, Bari-khatai, Birhatta, Barhanta
  10. कन्नड़: Kirugullia, Heggulla, Gulla
  11. मलयालम: चेरू Vazhuthina, Putirichunda, Cheruchunta
  12. मराठी: Dorli, Chichuriti, Dorale, Dorh, Mothi-ringani
  13. उड़िया: Dengabheji
  14. पंजाबी: Kandiarivaddi
  15. तमिल: Chiru vazhuthalai, Papparamulli, Mullamkatti, Mulli, Pappara-mulli
  16. त्रिपुरा: Khanka
  17. व्यापार नाम: Bari kateri
  18. तेलुगु: Tella Mulaka, Tellamulaka
  19. उर्दू: Kateli
  20. यूनानी: Kateli

वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: एस्टीरिडेएइ Asteridae
  • आर्डर Order: ऐस्टेरेल्स Asteridae
  • परिवार Family: सोलेनेसिएई Solanaceae
  • जीनस Genus: सोलेनम Solanum
  • प्रजाति Species: सोलेनम इंडिकम Solanum indicum

बृहती के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

बृहती स्वाद में कटु और तिक्त है।

कटु रस जीभ पर रखने से मन में घबराहट करता है, जीभ में चुभता है, जलन करते हुए आँख मुंह, नाक से स्राव कराता है जैसे की सोंठ, काली मिर्च, पिप्पली, लाल मिर्च आदि। तिक्त रस, वह है जिसे जीभ पर रखने से कष्ट होता है, अच्छा नहीं लगता, कड़वा स्वाद आता है, दूसरे पदार्थ का स्वाद नहीं पता लगता, जैसे की नीम, कुटकी। यह स्वयं तो अरुचिकर है परन्तु ज्वर आदि के कारण उत्पन्न अरुचि को दूर करता है। यह कृमि, तृष्णा, विष, कुष्ठ, मूर्छा, ज्वर, उत्क्लेश / जी मिचलाना, जलन, समेत पित्तज-कफज रोगों का नाश करता है। इस रस के अधिक सेवन से धातुक्षय और वातविकार होते हैं।

  • रस (taste on tongue): कटु, तिक्त
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु
  • कर्म: दीपन, हृदय, अनुलोमना, वातशामक, कफशामक, शोथहर

यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत।

उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाकशरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

बृहती के औषधीय प्रयोग

  1. बृहती मुख्य रूप से सांस सम्बन्धी रोगों, कफ, वात, अरुचि, सूजन और अग्निमांद्य रोगों की दवा है। यह हृदय के लिए हितकारी, गर्म, पाचक, कडवी और दर्द में आराम देने वाली है। इसके सेवन से खून साफ़ होता है और पेशाब की मात्रा बढती है।
  2. बृहती के बीजों का सेवन बाजीकारक और गर्भाशय को संकोचन कराने वाला है। यह कंठ के लिए अच्छी औषधि है और हिक्का को दूर करती है।
  3. यह कफघ्न, ज्वरघ्न, कुष्ठघ्न, और कफ-वात शामक है।
  4. इसकी जड़ का काढ़ा बना कर मुश्किल प्रसव, प्रसव बाद टॉनिक के रूप में, पेशाब रोगों जैसे की पेशाब में दर्द, रुक-रुक के पेशाब आना, कफ तथा सांस रोगों में अच्छे परिणाम देता है।
  5. काढ़ा बनाने के लिए इसकी जड़ का सूखा मोटा-मोटा पाउडर पंसारी के यहाँ से खरीद लें। इस पाउडर को 5-6 ग्राम की मात्रा में लेकर एक गिलास पानी में उबाल लें जब तक पानी आधा कप हो जाए तो इसे छान कर पियें।
  6. दवा की तरह निश्चित मात्रा में लेने से इसका कोई हानिप्रद असर नहीं होता।

औषधीय मात्रा

  • 5-6 gram जड़ का काढ़ा बनाकर औषधि के रूप में लिया जाता है।
  • जड़ के चूर्ण अथवा फल के चूर्ण को 1-2 gram की मात्रा में खा सकते हैं।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।
  2. यह मूत्रल है और इसका सेवन पेशाब अधिक लाता है।
  3. यह शरीर में कफ को कम करता है और रूक्षता लाता है।
  4. इसे ३-४ महीने तक प्रयोग कर सकते है।
  5. यह तासीर में उष्ण / गर्म है।

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