आयुर्वेद में कफ दोष को जल से उत्पन्न माना गया है। इसे श्लेश्मा भी कहते हैं। यह शरीर में संतुलित अवस्था में होने पर सभी अंगों का पोषण करता है। इसी से वात, पित्त नियमित होता है। शरीर को चिकनाहट-गीलापन देना इसी का काम है। कफ पित्त की गर्मी, और वात की रूक्षता को दूर रखने में भी सहयोगी है। कफ प्रकृति में भारी, धीमा, चिकना, शीतल, मधुर, स्थिर और आद्र होता है।
कफ जिस जगह पर है, उसी के अनुसार उसका नाम भी है। कफ – दोष पांच प्रकार होता है, क्लेदक, अवलम्बक, बोधक, तर्पक और श्लेषक।
क्लेदक कफ, का स्थान अमाशय है जहाँ यह भोजन के पाचन में सहयोग करता है। अवलम्बक कफ, सीने में पाया जाता है और शरीर की ताकत को बनाए रखने में सहयोगी है। बोधक कफ, जीभ में पाया जाता है और स्वाद का बोध कराता है। तर्पक कफ, सिर में मौजूद होता है और इंद्रियों का पोषण करता है। श्लेषक कफ, हड्डी और जोड़ों में स्थित है और उन्हें चिकना बनाता है।
जब क्लेदक कफ, बिगड़ जाता है तो मन्दाग्नि, भारीपन, जुखाम, उलटी आदि रुग होते है। बढ़ा हुआ अवलम्बक, आलस्य लाता है, बोधक की गड़बड़ी स्वाद की गड़बड़ी करती है। तर्पक कफ का असंतुलन मेमोरी की कमी और इन्द्रियों की शिथिलता के लिए जिम्मेदार है। वहीँ श्लेषक, जोड़ों को शिथिल करता है।
शरीर में कफ मीठा, खट्टा, और नमकीन भोजन खाने से ज्यादा बनता है। कटु pungent (अदरक, लहसुन, काली मिर्च, मसाले आदि), तिक्त (करेला, नीम) और कषाय (पालक) भोजन कफ कम करते है। इसी प्रकार आयुर्वेद में माना गया है १६ साल की उम्र तक शरीर में कफ की अधिकता रहती है। सर्दी और बारिश के मौसम में शरीर में कफ बढ़ जाता है। इसी प्रकार सुबह-शाम, दिन में सोने से, आलस्य से, ठंडी जगह पर भी कफ की वृद्धि होती है। भोजन में अधिक मीठा, खट्टा, खाने से, ज्यादा खाने से, भूख लगने से पहले खा लेने आदि से कफ ज्यादा बनता है।
जब शरीर में कफ अधिक हो जाता है तो भिन्न तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो जाती है। कफ दोष होने पर, अधिक म्युकस बनता है। शरीर में भारीपन, स्रोतों में अवरोध, अपच, खुजली, सूजन, ज्यादा नींद आना बढ़े हुए कफ के कुछ अन्य लक्षण हैं।
कफ असंतुलन के लक्षण
- शरीर में अधिक म्यूकस बनना।
- नींद आना, भारीपन, तथा अपच।
- चमड़ी में सफेदी।
- खुजली, मुंह में मीठा स्वाद
- मल, मूत्र, पसीने में चिपचिपाहट।
- सूजन, जुखाम, नाक बहना, खांसी
- अस्थमा, डिप्रेशन, आँख से पानी गिरना
- जोड़ों का ढीलापन, गले में चिचिपाहट
कफ को दूर करने के लिए क्या न करें ?
- वेपदार्थ जो कफ को बढ़ाते हैं, जैसे की दही, नमक, खमीर, पनीर, चॉकलेट, शर्करा न खाएं।
- खाना तभी खाएं जब भूख लगे और भूख से ज्यादा न खाएं।
- ठंडे पदार्थों को न खाएँ।
- खाने के साथ दूध न पियें।
- बहुत ज्यादा आटा, चावल, या अन्य अनाज न खाएं।
- आलू, कद्दू, मूली, भिंडी, ओलिव, टमाटर, खीरे, शकरकंद, केला, कद्दू आदि कम खाएं।
- पचने में भारी, तैलीय, मीठा, और ठंडा भोजन न करें।
- नमक बहुत कम खाएं।
- मांस-मछली न खाएं।
- फ्रिज का ठंडा पानी न पियें।
- आलस्य न करें।
- दही, दूध, उरद, नारयल, लौकी, आदि कफ बढ़ाते है, इसलिए इनका अधिकता में सेवन न करे।
कफ को दूर करने के लिए क्या करें?
- शाकाहारी भोजन खाएं।
- हल्दी वाला दूध पिए।
- ऐसा भोजन खाएं जो सुपाच्य हो, रूक्ष हो और स्वाभाव में गर्म हो।
- दूध को उबलते समय इलायची या अदरक डालें।
- अदरक को भोजन में किसी न किसी रूप में शामिल करे। अदरक स्वभाव से गर्म है और शरीर में कफ कम करता है।
- त्रिकटु Trikatu (काली मिर्च + पिप्पली + सोंठ) कफ को कम करता है। इसका सेवन करें।
- चीनी की जगह शहद का प्रयोग करें।
- आंवले Indian gooseberry का सेवन कफ को दूर करता है।
- धूप सेंके, गर्म पानी पिए।
- सुबह भूख न हो नाश्ता न करें।
- अच्छी मालिश करने से भी कफ दूर होता है। पैरों के तलवो में लहसुन, अजवाइन पके तेल से मालिश करें।
- गर्म तासीर के भोजन करें।
- कफ को दूर करनी वाली औषधीय वनस्पतियाँ
- आयुर्वेद में बहुत सी जड़ी-बूटियाँ कफ-दोषघ्न कही गई है। इन दवाओं का काढ़े की तरह या इनसे युक्त दवाओं का सेवन शरीर से कफ को दूर करता है। ऐसी ही कुछ औषधियां नीचे दी गई हैं:
- हल्दी, गिलोय, गोखरू
- पिप्पली, काली मिर्च / मरिचा, सोंठ / सूखा अदरक
- अगर, कूठ, कर्पूर, रास्ना
- निशोथ, करंज, पलाश
- अडूसा, अरनी, मुलेठी Liquorice
- प्याज, लहसुन, वच
- शिलाजीत Shilajit, ताम्र भस्म, मल्ल भस्म
- बहेड़ा, सौंफ, शहद
- कटु-तिक्त, कषाय युक्त पदार्थ
- कफ हो जाने पर Ayurvedic Medicines for Kapha / Cough / Excess phlegm
- अदरक का रस + तुलसी के पत्तों का रस, १० ml की मात्रा में दिन में दो बार, शहद के साथ लें।
- वासा के पत्तों का रस १० ml की मात्रा में दिन में दो बार, शहद के साथ लें।
- तुलसी के पत्तों का रस ५ ml की मात्रा में लें।
- कंटकारी क्वाथ, पिप्पली के चूर्ण के साथ २० ml की मात्रा में दिन में दो बार लें।
- तालिसादि चूर्ण, ३ ग्राम की मात्रा में शहद के साथ दिन में लें।
- अगस्त्य हरीतकी रसायन १२ ग्राम की मात्रा में शहद के साथ लें।
- चित्रक हरीतकी रसायन १२ ग्राम की मात्रा में शहद के साथ लें।
- द्राक्षारिष्ट १२-२४ ml की मात्रा में बराबर पानी मिलकर लें।
अच्छे स्वास्थ्य के लिए ज़रूरी यह शरीर में वात-पित्त और कफ का संतुलन बनाए रखा जाए। एक भी दोष में के बिगड़ने पर बाकी के दो दोष भी असंतुलित हो जाते हैं। इसलिए जीवन शैली में परिवर्तन ला कर हमें अपने आप को स्वास्थ्य बनाये रखने की हर प्रकार से कोशिश करनी चाहिए।