गंभारी Gambhari Gmelina arborea in Hindi

गंभारी को संस्कृत में काश्मरी, काश्मर्य, गंभारी, श्रीपर्णी, भद्रपर्णी, मधुपर्णिका, हीरा, पीतरोहिणी, कृष्णवृन्ता, मधुरसा हिंदी में गम्न्हार, खम्हारी, गम्हार, गम्हारी, उड़िया में कुमार, बंगाली में गाभार, मराठी में सवन तामिल में कुम्पिल, और लैटिन में मेलिना आर्बोरेया कहते हैं। यह पूरे भारतवर्ष में नम पर्णपाती जंगलों, दक्षिण भारत, उत्त्तर-पश्चिम हिमालय प्रदेश, उत्तर प्रदेश आदि में पाया जाता है। यह एक औषधीय वृक्ष है जिसके सभी हिस्से किसी न किसी औषधीय प्रयोजन के लिए प्रयोग किये जाते हैं।

गंभारी भारत का मूल निवासी है तथा इसका विविरण प्राचीन आयुर्वेद के ग्रंथों में भी मिलता है। यह दशमूल की बृहत्पंचमूल में से एक है। अरणी, श्योनाक, पाढ़ की छाल, बेल और गंभारी को ‘बृहत्पंचमूल’ कहते हैं एवं दवा की तरह इनकी जड़ अथवा छाल का प्रयोग करते हैं । दशमूल का एक घटक होने से, गंभारी आयुर्वेद की अनेकों दवाओं में डाला जाता है। इसका मुख्य गुण शरीर में वात-पित्त और कफ का संतुलन करना है। यह अधिक प्यास को दूर करने वाला, रक्तपित्तशामक, बल्य, रसायन और विषघ्न है। चरक संहिता में इसके फल को विरेचन, शरीर में जलन, पित्त रोगों में प्रयोग करने का वर्णन है। शुश्रुत संहिता में गंभारी को सारिवादि गण में सम्मिलित किया गया है।

gambhari medicinal uses
By Jayesh Patil from Mumbai, India (Sivan Uploaded by uleli) [CC BY 2.0 (http://creativecommons.org/licenses/by/2.0)], via Wikimedia Commons
गंभारी का वृक्ष चालीस से साठ फुट का हो सकता है। इसकी टहनियां थोड़ी सफ़ेद सी और रोयें युक्त होती हैं। इसकी पत्तियां चार से नौ इंच लम्बी और तीन से आठ इंच तक चौड़ी हो सकती हैं। रूप में यह लट्वाका, हृदयाकार होती हैं। एक संधि पर पायी जाने वाली पत्तियां कुछ बड़ी और छोटी होती हैं। गंभारी के पुष्प पीले रंग के होते हैं। इसका फल अंडाकार और हरा होता है। पक जाने पर यह पीला-हर दीखता है। स्वाद में यह मीठा-कसैला होता है। इसके बीज लम्बे और अर्धचंद्राकार होते हैं। इसमें वसंत ऋतु पुष्प और गर्मी में फल आते हैं। गंभारी की जड़ें बाहर से हल्के रंग की और अन्दर से पीला रंग लिए होता है। स्वाद में कड़वी और लुआबी होती है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: मेलिना आर्बोरेया Gmelina arborea
  • कुल (Family): वर्बीनेसिएई Verbenaceae
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: जड़, छाल, पुष्प, पत्ते, और फल
  • पौधे का प्रकार: वृक्ष
  • वितरण: पूरे भारतवर्ष में, श्री लंका, म्यांमार, फिलिपिन्स में।
  • पर्यावास: नम अथवा शुष्क पर्णपाती वन तथा सड़कों के किनारे, बगीचों में

गंभारी के स्थानीय नाम / Synonyms

  1. संस्कृत: Kashmari, Kashmari, Kashmarya, Kasmari, Bhadraparni, Gambhari, Katphalah
  2. असमिया: Gamari, Gomari
  3. बंगाली: Gambhar, Gamar, Gumar, gumbar
  4. अंग्रेज़ी: Candhar Tree, Candahar tree, Coomb tree, Cashmeri teak, Coomb Teak, Gamari, White Teak
  5. गुजराती: Shivan
  6. हिन्दी: Gamari, गाम्बरी, Gambhar, Gamhar, Gumbhar, कंबर, Kambhar, Khambhari, Khammara कुमार, Kumbhar, Sewan, Shewan, Shiwan
  7. कन्नड़: Shivanigida, Shivani, Kashmiri, Shivanimara, Shivane, Kumbala mara, Shewney, kuli
  8. कश्मीरी: Kashmari
  9. मलयालम: Kumizhu, Kumpil, Kumalu, Kumbil, Kumizhu
  10. मराठी: Shivan, Shewan
  11. उड़िया: Gambhari
  12. पंजाबी: Gumhar, कुम्हार
  13. तमिल: Kumishan, Kumizhan, Gumadi, cummi
  14. तेलुगु: Peggummudu, Peggummadi, Gumudu, Pedda-gumudu, tagumuda
  15. नेपाल: गाम्बरी
  16. लेपचा: Numbor
  17. गारो: Bolkobak

गंभारी का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: एस्टेरिडए Asteridae
  • आर्डर Order: लैमिऐल्स Lamiales
  • परिवार Family: वर्बीनेसिएई Verbenaceae
  • जीनस Genus: मेलिना Gmelina
  • प्रजाति Species: मेलिना आर्बोरेया Gmelina arborea Roxb।

गंभारी के संघटक Phytochemicals

जड़ में पीले रंग का तेल, अल्कलोइड, बेन्जोइक एसिड, ब्यूटरिक एसिड, टारटेरीक एसिड, राल, और कषाय द्रव्य पाए जाते हैं।

गंभारी के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

गंभारी आयुर्वेद में प्रयोग की जाने वाली एक बहुत ही महत्वपूर्ण वनस्पति है। आयुर्वेद में दवाओं को बनाने हेतु मुख्य रूप से इसके तने की छाल तथा जड़ का प्रयोग किया जाता है। यह उष्ण वीर्य अर्थात तासीर में गर्म है। इसके सेवन से भ्रम, शोष, तृषा, शूल, आम दोष, बवासीर, विष, जलन, ज्वर आदि नष्ट होते हैं। रस में यह तिक्त और कषाय है।

तिक्त रस, वह है जिसे जीभ पर रखने से कष्ट होता है, अच्छा नहीं लगता, कड़वा स्वाद आता है, दूसरे पदार्थ का स्वाद नहीं पता लगता, (नीम, कुटकी)। यह स्वयं तो अरुचिकर है परन्तु ज्वर आदि के कारण उत्पन्न अरुचि को दूर करता है। यह कृमि, तृष्णा, विष, कुष्ठ, मूर्छा, ज्वर, उत्क्लेश / जी मिचलाना, जलन, समेत पित्तज-कफज रोगों का नाश करता है। यह क्लेद/सड़न, मेद, वसा, चर्बी, मल, मूत्र को सुखाता है। तिक्त रस का अधिक सेवन से धातुक्षय और वातविकार होते हैं।

कषाय रस जीभ को कुछ समय के लिए जड़ कर देता है और यह स्वाद का कुछ समय के लिए पता नहीं लगता। यह गले में ऐंठन पैदा करता है, जैसे की हरीतकी। यह पित्त-कफ को शांत करता है। इसके सेवन से रक्त शुद्ध होता है। यह सड़न, और मेदोधातु को सुखाता है। यह आम दोष को रोकता है। यह त्वचा को साफ़ करता है। कषाय रस का अधिक सेवन, गैस, हृदय में पीड़ा, प्यास, कृशता, शुक्र धातु का नास, स्रोतों में रूकावट और मल-मूत्र में रूकावट करता है।

यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है।

  • रस (taste on tongue): तिक्त, कषाय (जड़) मधुर, कटु, तिक्त (तने की छाल)
  • गुण (Pharmacological Action):गुरु
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु

कर्म:

  • दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
  • पाचन: द्रव्य जो आम को पचाता हो लेकिन जठराग्नि को न बढ़ाये।
  • भेदन: द्रव्य जो बंधे या बिना बंधे मल का भेदन कर मलद्वार से निकाल दे।
  • मेद्य: बुद्धि के लिए हितकारी।
  • त्रिदोषजित: वात-पित्त और कफ को संतुलित करने वाला।
  • शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे। antihydropic
  • विषहर : द्रव्य जो विष के प्रभाव को दूर करे।
  • ज्वरहर: द्रव्य ज्वर को दूर करे।

गंभारी के फल का भी लोगों द्वारा भोजन या दवा की दवा की तरह सेवन किया जाता है। फल को वीर्यवर्धक, बलदायक, भारी, केशों के लिए हितकारी, रसायन, पाक में मधुर, शीतल, स्निग्ध, कसैला, खट्टा, आँतों को साफ़ करने वाला और वात-पित्त, अधिक प्यास, रक्तविकार। क्षय, मूत्र, कब्ज़/विबंध, जलन, वात, रक्तपित्त, क्षतक्षय, को शांत करने वाला माना गया है।

गंभारी की औषधीय मात्रा

  • फलों का रस-12-24ml
  • जड़ का काढ़ा: 25-50ml
  • पुष्प चूर्ण: 3-12gram

गंभारी के औषधीय प्रयोग

  1. गंभारी स्निग्ध, पाचक, विरेचक, बल्य श्रमहर होता है। इसकी जड़ की छाल बुखार,अजीर्ण, गंभीर शोथ में काढ़े के रूप में ली जानी चाहिए।
  2. माताओं में दूध की मात्रा को बढ़ाने के लिए इसे मुलेठी और दूध के साथ लेने चाहिए।
  3. पत्तों का रस सूजाक में लेने से लाभ होता है।
  4. इसके फलों का सेवन बुखार, अधिक प्यास, नाक से खून गिरना, रक्त पित्त, और शरीर में जलन में लाभप्रद है।
  5. यह विरेचक व शोथहर है।

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