ऐसा माना जाता है की गिलोय की उत्पत्ति अमृत की बूंदों से हुई। अमृत बूंदों की तरह ही इसमें भी अमृत जैसे ही गुण हैं। यह आयुर्वेद में एक रसायन जड़ी-बूटी मानी गई है।
ऐसा माना जाता है की गिलोय की उत्पत्ति अमृत की बूंदों से हुई। अमृत बूंदों की तरह ही इसमें भी अमृत जैसे ही गुण हैं। यह आयुर्वेद में एक रसायन जड़ी-बूटी मानी गई है। यह ज्वरनाशक, मरोड कम करने वाली, जिगर की रक्षा, सूजन कम करने वाली, एंटीऑक्सिडेंट, कैंसर विरोधी और मधुमेह-विरोधी है।
यह किसी भी कारण से बुखार के इलाज में, गठिया, पीलिया, मधुमेह और कई अन्य बीमारियों के उपचार में कारगर है। इसे गुडूची, गुडूचिका, अमृता, अमृतावल्ली, , मधुपर्नी, गुर्च, कुंडलिनी, गारो की आदि के नाम से जानी जाती है। यह बहुत ही आसानी से उपलब्ध है और वैज्ञानिक रूप से विविध रोगों के इलाज में कारगार है।
गुण: चरपरी, कडवी, रसायन, ग्राही, कसैली, गर्म, हलकी, बलदायक, अग्नि वर्धक, वात, पित्त और कफ तीनो को ही कम करने वाली त्रिदोषनाशक, प्रमेह, खांसी, पीलिया, त्वचा रोग, उखर, पेट में कीड़े, उलटी, अस्थमा, बवासीर, हृदय रोग और वात के रोगों में प्रभावशाली है.
गिलोय का काढ़ा बनाने की बिधि(Giloy Decoction)
गिलोय के तने का काढ़ा डेंगू, स्वाइन फ्लू, अन्य किसी कारण से बुखार आदि में बहुत ही प्रभावशाली है। डेंगू dengu बुखार मे लिवर liver बहुत बुरी तरह प्रभावित होता है और गिलोय काढ़ा पीने से लीवर की रक्षा होती है।
- गिलोय का काढ़ा बनाने के लिए इसका १ फुट, ऊँगली जितना मोटा तना लिया जाता है। इस तने को छोटे-छोटे टुकड़ो में काट लिया जाता है।
- इन टुकड़ों को मिक्सी में पानी के साथ पीस कर, एक बर्तन में जिसमे एक लीटर पानी हो, डाल लिया जाता है।
- इस पानी में तुलसी के कुछ पत्ते ८-१० और थोड़ी काली मिर्च डाल कर तब तक पकाया जाता है जब तक पानी की मात्रा १ गिलास हो जाए।
- इसे छान कर इसकी तीन खुराक बना के दिन में तीन बार लिया जाता है।
- यह काढ़ा किसी भी तरह के बुखार में प्रभावी है।