कंघनी, कंघी, कंकतिका, ककही, कंकहिया, ऋष्याप्रोक्ता आदि अतिबला के नाम हैं। इंग्लिश में इसे इंडियन मेलो और लैटिन में अबूटीलन इंडिकम कहते हैं। यह एक औषधीय वनस्पति है, जिसके गुण बला की ही तरह हैं। गर्भवती स्त्रियों में इसे गर्भस्राव रोकने के लिए दिया जाता है। यह ज्वरनिवारक, कृमिनाशक, विषनाशक, मूत्रल diuretic, पौष्टिक और रसायन है। यह पेशाब सम्बन्धी रोगों में विशेष लाभकारी है। इसके सेवन से बार-बार पेशाब आना ठीक होता है. इसके बीजों का सेवन शरीर को शीतलता देता है और कामेच्छा बढ़ाता है। यह वीर्यवर्धक, शुक्रल, बलकारक, वात-पित्त नाशक और कामोद्दीपक है।
अतिबला (कंघी) एक छोटा क्षुप है जो की उष्ण और समशीतोष्ण प्रदेशों में पाया जाता है। इसके पौधे पर सुन्दर पीले फूल आते है जो की देखने में इसी के कुल के एक और पौधे, भिन्डी जैसे कुछ-कुछ दिखते हैं। कंघी का पौधा 5-6 फुट तक हो सकता है। इसकी पत्तियां ३ इंच तक लम्बी और पान के पत्ते के आकार की चौड़ी, अधिक नुकीली, और रोयेंदार होती है। इसके पीले फूलों की पांच पंखुड़ियाँ और एकल पुष्पदंड होता है। जब फूल झड़ जाते हैं तो चक्र / मुकुट के आकार के फल लगते हैं। कच्चे फल पीले-हरे होते हैं जबकि पकने पर यह काले-भूरे चिकने हो जाते है। फलों में 15-20 खड़ी-खड़ी फांके होती जो पक जाने पर प्रत्येक कमरखी या फांक से काले-काले दाने निकलते हैं जो छोटे और चपटे होते हैं। यह बीज, बीजबंद कहलाते हैं। इन बीजों से लुआब निकलता है। अतिबला या कंघी के पौधे में फूल और फल सर्दी में आते हैं। चक्र आकृति के फल पूरे साल देखे जा सकते हैं।
सामान्य जानकारी
- वानस्पतिक नाम: अबूटीलन इंडिकम
- कुल (Family): मॉलवेसिएई
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: जड़, पत्ते, बीज, और पंचांग
- पौधे का प्रकार: क्षुप
- वितरण: पूरे भारत भर में
- पर्यावास: उष्ण और समशीतोष्ण प्रदेश
- संग्रह: सर्दी में फल आने के बाद इसके औषधीय हीसों को छाया में सुखाकर और एयर टाइट डिब्बों में रखा जाता है।
- वीर्यकालअवधि: एक वर्ष
स्थानीय नाम / Synonyms
- Scientific name: Abutilon indicum, Sweet ssp. Indicum
- Sanskrit: Atibala, Balika, Balya, Bhuribala, Ghanta, Rishiprokta, Shita, Shitapushpa, Vikantaka, Vatyapushpika, Vrishyagandha, Vrishyagandhika
- Siddha: Thuthi
- Unani: Kanghi, Kangahi, Kakahiya, Kakahi, Beejband surkh, siyah
- Hindi: Kanghi
- Assamese: Jayavandha, Jayapateri
- Bengali: Badela
- Kannada: Shrimudrigida, Mudragida, Turube
- Kashmiri: Kath
- Malayalam: Uram, Katuvan, Urubam, Urabam, Vankuruntott, Oorpam, Tutti
- Marathi: Chakrabhendi, Petari, Mudra
- Maharashtra: Peeli booti, karandi
- Oriya: Pedipidika
- Punjabi: Kangi, Kangibooti
- Rajasthan: Tara-Kanchi, Kanghi, Debi, Jhili, Itwari
- Tamil: Nallatutti, Paniyarattutti, Perundutti, Tutti, Vaddattutti
- Folk: Kanghi, Kakahi, Kakahiyaa
- Arabic: Musht-ul-ghoul
- Sinhalese: Anoda
- English: Country Mallow, Flowering Maples, Chinese Bell-flowers, Indian mallow
वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
- किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
- सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
- सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
- डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
- क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
- आर्डर Order: माल्वेल्स Malvales
- परिवार Family: मॉलवेसिएई – कपास कुल
- जीनस Genus: एबूटिलन Abutilon
- प्रजाति Species: एबूटिलन इंडिकम Abutilon indicum
कंघी के संघटक Phytochemicals
अतिबला (कंघी) में काफी मात्रा में लुआब / म्यूसिलेज पाया जाता है। इसमें कम मात्रा में टैनिन, और एस्पेरेगिन भी होता है। इसमें कुछ लवण भी पाए जाते हैं।
अतिबला के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
कंघी या अतिबला के पौधे के विभिन्न हिस्सों को शीतल, मधुर, बल, कान्तिकर, स्निग्ध, ग्राही, माना गया है। यह वातपित्त, रक्तपित्त, रूधिर विकार नाशक है। यह क्षयनाशक है।
इसकी जड़ का शर्करा के साथ सेवन मूत्रातिसार (पेशाब का बार-बार आना, पोलीयूरिया) को नष्ट करता है। यह आयुर्वेद का एक अनुभूत योग है।
- रस (taste on tongue): मधुर
- गुण (Pharmacological Action): स्निग्ध
- वीर्य (Potency): शीत
- विपाक (transformed state after digestion): मधुर
कर्म:
- रसायन
- वातअनुलोमानक
प्रतिनिधि: आंवले का मुरब्बा और आलू बुखारे का शर्बत।
हानिनिवारण: शहद और काली मिर्च
अतिबला मधुर विपाक है।
विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है।
मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है। यह कफ या चिकनाई का पोषक है। शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ाता है। इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं। यह एनाबोलिक होते हैं।
औषधीय मात्रा
- पत्ते: 5-7 grams
- मूल चूर्ण / जड़ का पाउडर: 1-3 grams
- जड़ का काढ़ा: 30-50 ml
सावधनियाँ
- यह कफ को बढ़ाती है।
- यह पित्त को कम करती है।
- बहुत दुर्बल व्यक्तियों द्वारा इसका सेवन अहितकर है।