कुम्भिबीज, जयपाल, चक्रदत्त बीज, जमालगोटा आदि क्रोटन टिगलियम पेड़ के नाम हैं। यह एक झाड़ी है है जो की भारतवर्ष में सूखे जंगलों में पायी जाती है। इसके बीज मुख्य रूप से बहुत तीव्र विरेचक के रूप में प्रयोग किये जाने के लिए मशहूर हैं। बीज देखने में अरंड के बीजों जैसे होते हैं।
जमालगोटा विष नहीं है लेकिन कभी कभी यह विष का काम करता है। इसके बीजों को यदि बिना शोधित किये खाया जाये तो यह भयानक उलटी और दस्त होते हैं। आयुर्वेद में इसे शुद्ध करके ही प्रयोग किया जाता है। बीजों में जो १-२ परती जीभी होती है वह उलटी लाती है तथा मीगी का तेल नुकसान करता है। शुद्ध करते समय जिभ्भी को निकाल देते है और दूध में उबालने से दूध के फैट में इसका तेल घुल कर हट जाता है, इसप्रकार दोनों अहितकर पदार्थ निकाल जाते हैं, जिससे यह खाने योग्य हो जाता है।
बीजो या तेल को प्रयोग करने की मात्रा बहुत ही कम है। बीजों का तेल एक बूँद की मात्रा से अधिक नहीं दिया जाता।
जमालगोटा दस्तावर, उग्रविराचक, शोथनाशक, कफ नाशक और विषैला है। इसका गलत प्रयोग जान तक ले सकता है। आयुर्वेद में कभी भी बिना शुद्ध किया हुआ जमालगोटा प्रयोग नहीं किया जाता है। शुद्ध का तात्पर्य है, इससे जहरीले पदार्थो को उपयुक्त तरीके से निकाल देना। जमालगोटा कई तरीको से शुद्ध किया जाता है:
१. जमालगोटे के बीज में जो दो परती जीभी होती है उसे पूरी तरह से निकाल दें। फिर इसे दूध में दोलायंत्र की विधि से पका लें।
२. जमालगोटे का छिलका उतार, बीज से हरी पत्ती निकाल दें। जमालगोटे का आठवाँ भाग सुहागा लेकर उसमें मिलाएं। केश यंत्र द्वारा भावना देकर फिर दूध में भिगोकर मिलावें। इस प्रकार तीन बार करें।
सामान्य जानकारी
- वानस्पतिक नाम: क्रोटन टिग्लियम
- कुल (Family): यूफॉरबिएसिई
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: बीज और बीजों का तेल, पत्ते, जड़ और जड़ की छाल,
- पौधे का प्रकार: झाड़ी
- वितरण: भारत भर में
- पर्यावास: शुष्क जंगल
- शरीर पर मुख्य प्रभाव: तीव्र विरेचक
- मुख्य प्रयोग: पुराना कब्ज़
- बाह्य प्रयोग: चमड़ी के रोगों में, पाइल्स के मस्से पर
स्थानीय नाम / Synonyms
- Sanskrit: Danti, Jayapala, Nepala, Mukula, Tintidiphala।
- Hindi: Jamalgota
- English: Purging Croton
- Assamese: Kanibish
- Bengali: Jaipala
- English: Croton
- Gujrati: Nepalo, Jamalagota
- Hindi: Jamalgota
- Malayalam: Nervalam, Neervalam
- Marathi: Jepal, Japal
- Kannada: Nepal, Japal beej, Japala, Nervala
- Tamil: Kattukkattai, Naganam, Nagandi, Nervalam, Nigumbam, Nirvalam, Sambari, Sayabalam, Sevalangottai, Siduram, Sittudu, Tendi, Neervalam, Valam
- Telugu: Nepalamu
- Urdu: Jamalgota
वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
- किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
- सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
- सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
- डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
- क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
- सबक्लास Subclass: Rosidae
- आर्डर Order: यूफॉरबिएऐल्स Euphorbiales
- परिवार Family: यूफॉरबिएसिएइ Euphorbiaceae
- जीनस Genus: क्रोटन Croton L.
- प्रजाति Species: क्रोटन टिग्लियम Croton tiglium L. – पर्जिंग क्रोटन
जमालगोटे के संघटक
जमालगोटे के बीजों में तेल पाया जाता है जिसके प्रमुख घटक हैं:
क्रोटन ग्लोब्युलिन, क्रोटन अल्बुमीन, आर्जिनिन, लायसिन,अल्कलॉइड विसिनिन, लाइपेज, इन्वर्टेज, एमाइलेज, रफीनेज़,, प्रोटेयोलिटिक एंजाइम, क्रोटन रेसिन, टिगलिक एसिड, क्रोटन ओलिक एसिड, स्टीएरिक, पालमिटिक, मिरिस्टिक, लॉरिक ,कैपरोनिक, वलेरियानिक, ब्यूटिरिक, इसोब्यूटायरिक, एसिटिक and फोरमिक एसिड्स, टैनिन इत्यादि ।
आयुर्वेदिक गुण और कर्म
जमालगोटा, स्वाद में कटु,, गुण में रूखा करने वाला, भारी और तेज है। स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है।
यह कटु रस औषधि है। कटु रस तीखा होता है और इसमें गर्मी के गुण होते हैं। गर्म गुण के कारण यह शरीर में पित्त बढ़ाता है, कफ को पतला करता है। यह पाचन और अवशोषण को सही करता है। इसमें खून साफ़ करने और त्वचा रोगों में लाभ करने के भी गुण हैं। कटु रस गर्म, हल्का, पसीना लाना वाला, कमजोरी लाने वाला, और प्यास बढ़ाने वाला होता है। यह रस कफ रोगों में बहुत लाभप्रद होता है। पित्त के असंतुलन होने पर कटु रस पदार्थों को सेवन नहीं करना चाहिए।
- रस (taste on tongue) कटु
- गुण (Pharmacological Action): गुरु, तीक्ष्ण, रुक्ष
- वीर्य (Potency): उष्ण
- विपाक (transformed state after digestion): कटु
- कर्म: तेज विरेचक
जमालगोटे के उपयोग
- जमालगोटा की झाड़ की जड़, पत्ते, छाल, और बीजों में तीव्र विरेचक drastic purgative गुण होते हैं।
- इसकी जड़ को नासूर/विस्फोटॅ और कैंसर घावों पर लगाया जाता है।
- बीज विषैले होते हैं और शक्तिशाली व कठोर विरेचन कराते है।
- बीजो से निकाला तेल, लेप के रूप में गठिया, सूजन, क्रोनिक ब्रोंकाइटिस और अन्य फेफड़े के रोगों में बाहरी रूप में ही प्रयोग किया जाता है।
- बीजों और पत्तों को मछलियों के जहर की तरह भी प्रयोग किया जाता है।
- तेल का प्रयोग मोशन को जल्दी और तेजी से लाने के लिए प्रयोग किया जाता है। The croton oil expressed from the seeds of Croton tiglium is most violent of all cathartics।
- पुराने कब्ज़ के लिए, विरेचन के लिए जमालगोटे के बीजों का पाउडर प्रयोग किया जाता है। आंतरिक प्रयोग के लिए केवल शुद्ध (शोधित) बीजों का ही प्रयोग किया जाना चाहिए। इसके आंतरिक प्रयोग की मात्रा बहुत कम है।
- आयुर्वेद में अकेले ही इसका प्रयोग विरेचन के लिए नहीं किया जाता।
औषधीय मात्रा:
- शोधित बीजों को 6-12 mg की मात्रा में लिया जा सकता है।
- तेल को एक बूँद की मात्रा में लिय्या जा सकता है.
जमालगोटे से हानि
- इसे ज्यादा मात्रा में खाने से बहुत दस्त लगते हैं।
- यह मल को तोड़ता है।
- उल्टियाँ आनी शुरू हो जाती है।
- पेट में ऐंठन होती है।
- आँतों में जलन, घाव बन जाते हैं।
- खूनी दस्त भी हो सकते हैं।
जमालगोटे के विषैले प्रभाव को शांत करने के उपाय
- गर्म पानी पियें।
- मिश्री, धनिया, दही खाने से आराम होता है।
- बिना घी निकाला छाछ पियें।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications
- इसके तेल और बिना शुद्ध किये बीजों का प्रयोग कदापि न करें।
- इसे गर्भावस्था में कभी प्रयोग न करें।
- इसका तेल उत्यंत उत्तेजक है। चमड़ी पर लग जाने पर यह फोड़े करता है।