कालीजीरी किसी भी तरह के जीरे से अलग है। इंग्लिश में इसे ब्लैक क्यूमिन कहते हैं पर यह कलोंजी Nigella sativa से बिल्कुल भिन्न है। कलोंजी को भी इंग्लिश में ब्लैक क्यूमिन ही कहते है। इसी प्रकार बाकची, या सोमराजी एक और पौधे के बीज को, सोरेला कोरीलिफ़ोलिया (Psoralea corylifolia) को कहते है। आयुर्वेद के बहुत से विशेषज्ञ सोरेला कोरीलिफ़ोलिया को ही बावची या सोमराजी मानते हैं पर बंगाल में कालीजीरी को सोमराजी नाम से जानते और प्रयोग करते हैं।
कालीजीरी को आयुर्वेद में सोमराजि, सोमराज, वनजीरक, तिक्तजीरक, अरण्यजीरक, कृष्णफल आदि नाम से जानते हैं। हिंदी भाषा में इसे कालीजीरी, बाकची और बंगाल में सोमराजी कहते हैं।
कालीजीरी किसी भी तरह के जीरे से अलग है। इंग्लिश में इसे ब्लैक क्यूमिन कहते हैं पर यह कलोंजी Nigella sativa से बिल्कुल भिन्न है। कलोंजी को भी इंग्लिश में ब्लैक क्यूमिन ही कहते है। इसी प्रकार बाकची, या सोमराजी एक और पौधे के बीज को, सोरेला कोरीलिफ़ोलिया (Psoralea corylifolia) को कहते है। आयुर्वेद के बहुत से विशेषज्ञ सोरेला कोरीलिफ़ोलिया को ही बावची या सोमराजी मानते हैं पर बंगाल में कालीजीरी को सोमराजी नाम से जानते और प्रयोग करते हैं।
कालीजीरी स्वाद में कड़वा और तेज गंद्ध वाला होता है, इसलिए इसे किसी भी तरह के भोजन बनाने में प्रयोग नहीं किया जाता। इसको केवल एक दवा की तरह ही प्रयोग किया जाता है। लैटिन में इसका नाम, सेंट्राथरम ऐनथेलमिंटिकम या वरनोनिया ऐनथेलमिंटिकम है। इसके वैज्ञानिक नाम में \’ऐनथेलमिंटिकम\’ इसके प्रमुख आयुर्वेदिक प्रयोग को बताता है। ऐनथेलमिंटिकम का मतलब है, शरीर से परजीवियों को नष्ट करने वाला। आयुर्वेद में इसे कृमिनाशक की तरह प्रयोग किया जाता है। इसका सेवन और बाह्य प्रयोग चर्म रोगों के इलाज, जैसे की श्वित्र leukoderma / सफ़ेद दाग, खुजली, एक्जिमा, आदि। इसे सांप या बिच्छु के काटे पर भी लगाते हैं।
कालीजीरी का क्षुप, पूरे देश में परती जमीन पर पाया जाता है। इसके पत्ते शल्याकृति किनारेदार होते हैं। बारिश के मौसम के बाद इसमें मंजरी निकलती है। जिसमे काले बीज आते है।
कालीजीरी के स्थानीय नाम Common Names
- Latin name: सेंट्राथरम ऐनथेलमिंटिकम Centratherum anthelminticum (Willd.) Kuntze
- Ayurvedic: वन जीरक, तिक्तजीरक, ब्रहत्पाली, अरण्यजीरक Vanyajiraka, Aranya-Jiraka, Aranyajirakah, Kaalijiri, Karjiri, Brihatpali, Vanajiraka, Somaraji (Psoralea corylifolia is also refered as Somaraji)
- Siddha: Kaattu seerakam
- Unani: Kali zeeri, Kamoon barri
- Folk: Ban jira
- Bengali: हकुच, कालीजीरी, सोमराज Somaraaj, Babchi (Psoralea corylifolia is also equated with Babchi / Bavchi)
- Gujrati: काले जीरे, कडवाजीरे, कड़वो जीरी Kaaleejeeree, Kadavijeeree, Kadvo-jiri
- Punjabi: बुकोकी, काकशम, मलौबक्शी Bukoki, Kakshama, Kala-zira, Kali-ziri, Malwa-bakchi, Malwabakshi
- Hindi: काली जीरी, काराजीरी, सोहाराई, बाकची, बक्शी, Kaalijeeree, Karajiri, Soharaai, Bakchi, Bakshi, Buckshi
- Kannada: Kaadujeerage, Kaarijirige, Kadu-jirage
- Malayalam: Krimishatru, Kattujirakam
- Marathi: कलुजौरी, रणचजीरी Kadujire
- Telugu: Adavijilakaroa, Garetikamma
- Tamil: Kaattuchirakam, Chittilai, Kaattu Chirakam
- English: Stone wart, Purple Flea-bane, Achenes, Bitter cumin, Black cumin
- Arabic, Persian: Atarilal, Itrilal, Karoune-bari
कालीजीरी के आयुर्वेदिक गुण Ayurvedic Properties of Kalijiri
कालीजीरी, स्वाद में कडवी, कसैली, चरपरी और तेजबदबू युक्त होती है। यह तासीर में गर्म और कटु विपाक है।
- रस (taste on tongue): काषाय, कटु, तिक्त
- गुण (Pharmacological Action): लघु, तीक्ष्ण
- वीर्य (Potency):उष्ण
- विपाक (transformed state after digestion):कटु
यह व्यवहार में वातनाशक, कृमिनाशक, कटुपौष्टिक, और बुखार को दूर करने वाली है। यह चमड़ी के रोगों की नाशक है। यह उलटी करानेवाली, दीपन, मूत्रल, दूधबढ़ाने वाली, और जंतुघ्न है।
कालीजीरी के फायदे Benefits of Kalijiri in Hindi
- यह कृमिनाशक और विरेचक है।
- यह गर्म तासीर के कारण श्वास, कफ रोगों को दूर करती है।
- मूत्रल होने के कारण यह मूत्राशय, की दिक्कतों और ब्लड प्रेशर को कम करती है।
- यह हिचकी को दूर करती है।
- यह एंटीसेप्टिक है चमड़ी की बिमारियों जैसे की खुजली, सूजन, घाव, सफ़ेद रोग, आदि सभी में बाह्य रूप से लगाई जाती है।
- जंतुघ्न होने के कारण शरीर के सभी प्रकार के परजीवियों को दूर करती है।
कालीजीरी के औषधीय प्रयोग Medicinal Uses
काली जीरी को चमड़ी के रोगों में नीम के काढ़े के साथ मालिश या खादिर के काढ़े के आंतरिक प्रयोग के साथ करना चाहिए।
- भयंकर चमड़ी रोगों में, काली जीरी + काले तिल बराबर की मात्रा में लेकर, पीस कर ४ ग्राम की मात्रा में सुबह, एक्सरसाइज की बाद पसीना आना पर लेना चाहिए। ऐसा साल भर करना चाहिए।
- श्वेत कुष्ठ जिसे सफ़ेद दाग भी कहते है, उसमे चार भाग काले जीरी और एक भाग हरताल को गोमूत्र में पीसकर प्रभावित स्थान पर लगाना चाहिए। इसी को काले तिलों के साथ खाने को भी कहा गया है। (भैषज्य रत्नावली)
- पाइल्स या बवासीर में, ५ ग्राम काला जीरा लेकर उसमे से आधा भून कर और आधा कच्चा पीसकर, पाउडर बनाकर तीन हस्से कर के दिन में तीन बार खाने से दोनों तरह की बवासीर खूनी और बादी में लाभ होता है।
- पेट के कीड़ों में इसके तीन ग्राम पाउडर को अरंडी के तेल के साथ लेना चाहिए।
- खुजली में, सोमराजी + कासमर्द + पंवाड़ के बीज + हल्दी + दारुहल्दी + सेंधा नमक को बराबर मात्रा में मिलकर, कांजी में पीसकर लेप लगाने से कंडू, कच्छु (खुजली) आदि दूर होते हैं।
- कुष्ठ में, कालीजीरी + वायविडंग + सेंधानमक + सरसों + करंज + हल्दी को गोमूत्र में पीस कर लगना चाहिए।
कालीजीरी के औषधीय मात्रा Dosage
- इसको १-३ ग्राम की मात्रा में लें। इससे अधिक मात्रा प्रयोग न करें।
- कृमिनाशक की तरह प्रयोग करते समय किसी विरेचक का प्रयोग करना चाहिए।
कालीजीरी के प्रयोग में सावधानियां / चेतावनी
- यह बहुत उष्ण-उग्र दवा है।
- गर्भावस्था में इसे प्रयोग न करें।
- यह वमनकारक है।
- अधिक मात्रा में इसका सेवन आँतों को नुकसान पहुंचाता है।
- यदि इसके प्रयोग के बाद साइड इफ़ेक्ट हों तो गाय का दूध / ताजे आंवले का रस / आंवले का मुरब्बा खाना चाहिए।