लौंग को एक मसाले की तरह पूरी दुनिया में प्रयोग किया जाता है। इसे खाने में मुख्य रूप से फ्लेवर देने के लिए डालते हैं। लवंग एक पेड़ से प्राप्त सुखाई हुई कलियाँ हैं।
लौंग के अनेकों औषधीय प्रयोग हैं। लवंग, देवकुसुम, चन्दनपुष्प, श्रीसंज्ञ, श्रीपुष्प, वारिपुष्प, ग्रहणीहर, दिव्यगंध, श्रीप्रसूनक आदि इसके संस्कृत नाम है। कन्नड़ में लवंगकलिका, तेलुगु में लवंगलू, तमिल में किरम्बेर, और इंग्लिश में क्लव्स / क्लोव्ज़ कहते हैं। लैटिन में इसे कैरियोफ़िलस एरोमेटिक्स के नाम से जानते हैं।
लौंग का पेड़ सदाहरित होता है व इसमें उत्त्पति के नौं वर्ष बाद पहली बार पुष्प आता है। यह एक सुगन्धित वृक्ष है। भारत में इसकी दक्षिण राज्यों में अधिक होती है। जिसे हम लौंग कहते हैं, वह वृक्ष के फूलों की कलियाँ हैं। लौंग के आगे के भाग में दिखने वाली गोलाई में फोलों की चार पंखुड़ियां, अनेकों पुंकेसर, और एक गर्भतंतु होता है। लौंग की कलियाँ जब लाल रंग की होती हैं तभी उन्हें तोड़ कर सुखा दिया जाता है। यदि यह कलियाँ वृक्षों से न तोड़ी जाएँ तो यह पुष्प में बदल जाती हैं। लवंग के पेड़ से सबसे अधिक इन शुष्क कलियों का ही प्रयोग होता है।
आयुर्वेद में इसे प्राचीन समय से ही रोगों के उपचार में अकेले ही या अन्य घटकों के साथ औषधीय प्रयोजनों हेतु प्रयोग करते हैं। लवंग, शीतल चीनी, सुपारी, जायफल और जावित्री को पञ्चसुगंधि कहा जाता है। लौंग को कटु, तिक्त, नेत्रों के लिए हितकारी, शीतल, दीपन, पाचन, रुचिकर, कफ-पित्त दोष के कारण होने वाले रोगों, रुधिर विकार, वमन, आध्मान, शूल, कास-श्वास, हिचकी तथा क्षय रोगों में प्रयोग किया जाता है। लौंग को लेने की आयुर्वेद में बताई मात्रा केवल आधा आना से लेकर दो आना है। काढ़े को दो तोले से लेकर चार तोले तक लिया जा सकता है। लौंग का तेल बहुत ही कम मात्रा में आंतरिक प्रयोग में लिया जाता है। लौंग के तेल का वर्णन चरक तथा सुश्रुत संहिता में नहीं पाया जाता है। इसके बारे में आत्रेय संहिता में बताया गया है। लौंग के तेल की तीक्ष्णता समय के साथ कम होती चली जाती है।
लौंग का पौधा की सामान्य जानकारी
- वानस्पतिक नाम: कैरियोफ़िलस एरोमेटिक्स Caryophyllus aromaticus
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: सुखाई हुई कली, पत्ते और तना
- पौधे का प्रकार: पेड़
- वितरण: दक्षिण प्रान्तों में
पर्याय
- Syzygium aromaticum (L.) Merr। & Perry
- Eugenia aromatica (L.) Baill.
- Eugenia caryophyllata Thunb.
- Eugenia caryophyllus (Spreng.) Bull.& Harr.
लौंग के स्थानीय नाम / Synonyms
- संस्कृत: Devapushpa
- हिन्दी: लौंग
- अंग्रेजी: Cloves
- असमिया: Lavang, Lan, Long
- बंगाली: Lavang
- गुजराती: Lavang, Laving
- कन्नड़: Lavanga
- मलयालम: Karampu, Karayampoovu, Grampu
- मराठी: Lavang
- उड़िया: Labanga
- पंजाबी: Laung, Long
- तमिल: Kirambu, Lavangam
- तेलुगु: Lavangalu
- उर्दू: Qarnful, Laung
लौंग का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
- किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
- सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
- सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
- डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta – Flowering plants फूल वाले पौधे
- क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
- सबक्लास Subclass: रोसीडए Rosidae
- आर्डर Order: Myrtales
- परिवार Family: Myrtaceae – Myrtle family
- जीनस Genus: Syzygium P. Br. ex Gaertn. – syzygium
- प्रजाति Species: Syzygium aromaticum (L.) Merr. & L.M. Perry – clove
लौंग के संघटक Phytochemicals
लवंग में Clove bud में उड़नशील तेल करीब 15–18% होता है जिसमे यूजीनॉल eugenol (80– 90%), यूजीनाइल एसीटेट eugenyl acetate (2–27%), बी कैरयोफिलेन b-caryophyllene (5–12%)। तथा अन्य घटक होते हैं (\ethylsalicylate, methyleugenol, benzaldehyde, methylamyl ketone and a-ylangene)।
- पत्तों में 2% तेल होता है जिसमें यूजीनॉल eugenol 82–88% होता है।
- तने में 4–6% तेल होता है जिसमें यूजीनॉल eugenol 90–95% होता है।
लौंग का तेल
लौंग का तेल, लौंग के पेड़ की कलियों, पत्तों और तने से डिस्टिलेशन करने पर प्राप्त होता है। ताज़ा तेल पीला लेकिन कुछ समय बाद कुछ लाल से रंग का होता है।
इसमें कपूर के समान गुण होते है। त्वचा पर इससे मालिश करने पर त्वचा का रंग लाल हो जाता है। इसमें कीड़े मारने की शक्ति पायी जाती है। इसे दांतों के दर्द में अक्सर प्रयोग किया जाता है। लौंग के तेल को लगाने पर शून्यता आती है, प्रभावित हिस्सा सुन्न हो जाता है जिससे दर्द में राहत मिलती है।
लौंग के तेल के आंतरिक प्रयोग
- लौंग का तेल, शूल को बाहर निकालता है।
- यह पाचन शक्ति को बढ़ाता है।
- यह आँतों का प्रेरक है।
- पेट के दर्द में बतासे पर इसकी 3 बूँद डाल कर लेने से लाभ होता है।
लौंग का तेल आंतरिक प्रयोग के लिए बहुत ही कम मात्रा में प्रयोग किया जाता है,आधी से लेकर तीन बूँद तक।
लौंग के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
लवंग तिक्त, कटु, स्निग्ध, कटु विपाक, शीतल, दीपन, पाचन, रुचिकर और कफपित्तहर है। रस में कटु व तिक्त होने के कारण, यह कफ और वात को कम करता है। वीर्य में शीतल होने से यह पित्त को कम करता है। शीत गुण के कारण ही यह सूजन में लाभकारी है।
- रस (taste on tongue): कटु, तिक्त Pungent, bitter
- गुण (Pharmacological Action): लघु, स्निग्ध
- वीर्य (Potency): शीत Cold
- विपाक (transformed state after digestion): कटु Pungent
कर्म Principle Action
- पित्तहर: द्रव्य जो पित्तदोष निवारक हो। antibilious
- वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।
- श्वास-कासहर: द्रव्य जो श्वशन में सहयोग करे और कफदोष दूर करे।
- पाचन: द्रव्य जो आम को पचाता हो लेकिन जठराग्नि को न बढ़ाये।
- दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
- हृदय: द्रव्य जो हृदय के लिए लाभप्रद है।
- कंठ्य: द्रव्य जो गले के लिए लाभप्रद है।
- शिरोविरेचन: द्रव्य जो सिर के स्रोतों में रुकावट खोले वाला हो।
- छर्दीनिग्रहण: द्रव्य जो जी मिचलाना को रोके।
- हिक्कानिग्रहण: द्रव्य जो हिचकी को रोके।
- तृष्णानिग्रहण: द्रव्य जो अधिक प्यास लगना रोके।
- शूलप्रशमन: द्रव्य जो आँतों में ऐंठन रोके।
- वेदनास्थापन: दर्द निवारक।
- अग्निमांद्यनाशक: द्रव्य जो पाचन को ठीक करे।
लौंग के फायदे और औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Cloves in Hindi
चक्रदत्त ने लवंग का उपयोग पिपासा और उत्क्लेश (हमेशा उलटी जैसा लगना) में बतलाया है। कॉलरा जिसे विषूचिका कहते हैं, में हमेशा प्यास लगने की स्थिति में इसका प्रयोग अच्छे परिणाम देता है। लवंग को पानी में उबालकर, इस पानी को पीने से अधिक प्यास लगना और उबकाई आना दूर होता हैं।
लवंग शीतल है और पित्त की अधिकता को कम करती है। यह विषघ्न, दर्द शामक, रक्त्दोषहर, व पाचक है। लौंग का पेस्ट व इसका तेल बाह्य रूप से भी प्रयोग किये जाते हैं।
बाह्य प्रयोग स्पर्शज्ञानहारी और सुन्नता पैदा करता है। इसके लेप से लालिमा आती है। यह स्फोटक / फोड़े पैदा करने वाला व दर्द निवारक है।
वृष्य योगों में और औषधियों में इसका अधिक प्रयोग किया जाता है। स्तंभक तिलाओं में इसका प्रयोग जननेंद्रिया को शून्य करता है जिससे स्तम्भन देर तक रहता है।
लवंगादी चूर्ण, लावंगादि वटी, लावंगादि कषाय, लावंगादि तेल, प्रलेप Lavangadi churna, Lavangadi vati, Devakusumadi rasa, Sudarsana churna, Pippalasava and Khadirarista आदि इसकी कुछ आयुर्वेदिक औषधियां हैं।
सिर के बालों का पैच में उड़ना
इच्छाभेदी रस की चार-पांच गोलियों को पीस लें। इसमें लौंग के तेल की कुछ बूँदें मिलाकर प्रभावित जगहों पर दिन में दो बार, सुबह और शाम लगायें। यदि रैश होने लगें तो इस पेस्ट को न लागएं और चमेली का तेल लगाएं। ठीक हो जाने पर फिर से लगाएं।
मोतियाबिन्द
लौंग को पत्थर पर घिस कर रात में सोते समय अंजन की तरह लगाया जाता है। इसको लगाने से जलन होती है इसलिए तुरंत ही शहद लगाने का सुझाव है।
मुहांसे
लौंग को घिस कर मुहांसे पर लगाएं।
साइटिका
पिसी हुई दो लौंग या केवल एक लौंग को लहसुन की कलियों के साथ दिन में दो बार, सुबह-शाम खाएं।
अधिक प्यास लगना
२-३ लौंग को एक कप पानी में उबालें। गुनगुना रहने पर पियें।
बदहजमी, अपच, भोजन का न पचना
लौंग 8 + हरीतकी 2 + पिप्पली 4 + सेंधा नमक २ चुटकी, को मिलाकर पीस लें। इसे सुबह और शाम, खाना खाने के बाद खाएं।
जुखाम, नजला
लौंग, सोंठ/अदरक, तुलसी का काढ़ा बनाएं और शहद मिलाकर पियें।
वाजीकरण
अकरकरा की जड़ को लौंग के साथ चबाया जाता है।
दांत में दर्द
लौंग का तेल प्रभावित दांत पर लगायें।
लार कम बनना
2-3 लौंग चबाएं।
मुंह से बदबू आना
लौंग को खाना खाने के बाद मुख में रखकर चूसें।
जुखाम – रायनाइटिस
लौंग को मुख में रखकर चूसें।
जीभ का पित्त की अधिकता से फट जाना
- लौंग को मुख में रखकर चूसें।
- लौंग की औषधीय मात्रा
- लौंग को पाउडर करके लेने की मात्रा 100-300 mg है।
- इसकी एक से दो कली को चबा सकते हैं।
- लौंग के तेल को लेने की मात्रा आधा से लेकर छः बूँद तक है।
लौंग के नुकसान
- बाज़ार में मिलने वाली बहुत सी लौंग में तेल निकाला हुआ होता है।
- अच्छी / उत्तम पुष्ट लौंग को पानी में डालने पर वह तैरती है, जबकि तेल रहित लौंगनीचे बैठ जाती है।
- खाने की तरह लेने का गर्भावस्था या स्तनपान के दौरान सेवन कोई नुकसान नहीं करता।
- इसे अधिक मात्रा में न लें।
- तेल से cheilitis, dermatosis, stomatitis हो सकता है।
- इसे बच्चों को न दें।
- लौंग थक्कारोधी anticoagulant दवाओं के साथ इंटरैक्ट कर सकती है।
- यह खून को पतला कर सकती है।
- कुछ लोंगों को लौंग से एलर्जी हो सकती है।
- इसमें पाया जाने वाला यूजिनोल म्यूकस मेम्ब्रेन में जलन पैदा कर सकता है।
- बाह्य प्रयोग से छाले पड़ सकते हैं।
- लौंग मूत्रजनन है.
- यूनानी मत अनुसार यह तीसरे दर्जे में गर्म और खुश्क है।