काकजंघा (लीया हिर्ता) एक औषधीय पौधा है जो की जंगलों, ऊँचे टीलों, आद्र प्रदेशों और जल के निकट वाले स्थानों पर पायी जाता है। जल के निकट पाए जाने से इसे नदीकांता भी कहते हैं। इसकी शाखाएं, ग्रंथि युक्त, ऐंठी हुई वा कर्कश सी जान पड़ता है जो की कौए की जांघ जैसी प्रतात होता है इसलिए इसे काकजंघा कहते हैं। इसके दीर्घ पत्रप्रांत चिरित होते है अतः यह पारावतपदी कहलाता है। इसके पत्तों में रोवां होने से इसे लोमशा नाम दिया गया है। इस पौधे में फूल बारिश तथा सर्दियों में खिलते हैं। इसके पके फल काले रंग के होते हैं जबकि पुष्प हरे-सफ़ेद रंग के खिलते हैं।
आयुर्वेद में काकजंघा को औषधीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग किया जाता है। ऐसे कई पौधे हैं जिन्हें काकजंघा कहाजाता है। एक और पौधा जिसे काकजंघा के नाम से जाना जाता है वो है पेरीस्ट्रोफ़ बाईकेलीकुलेटा Peristrophe bicalyculata (Retz.), जो की एक बहुवर्षीय पौधा है। यह एक हर्ब है जो की 80 cm तक लम्बा हो सकता है। इसके फूलों का रंग गुलाबी होता है। पेरीस्ट्रोफ़ बाईकेलीकुलेटा के बीजों के अन्दर म्यूसिलेज होता है जिसे सुखा कर एक धाके की तरह बढाया जा सकता है।
काकजंघा को स्वभाव से कही गर्म तो कही ठंडा माना गया है। शायद यह अंतर पौधों के भेद के कारण है। स्वाद में यह कड़वा, कसैला होता है। यह कफ-पित्त ज्वर, रक्त विकार, खुजली, विष और कृमिनाशक है। इसके सेवन से त्वचा के रोगों में लाभ होता है। इसे सफ़ेद पानी की समस्या में भी प्रयोग किया जाता है।
सामान्य जानकारी
- वानस्पतिक नाम: लीया हिरता या लीया ऐक्वेटा
- कुल (Family): अंगूर कुल
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पूरा पौधा, जड़
- पौधे का प्रकार: बड़ी झाडी
- वितरण: भारत में सुन्दरबन, बन्दरबन, चित्तगोंग आदि क्षेत्रों में, श्री लंका, मलेशिया, इंडोनेशिया
- पर्यावास: आद्र नम क्षेत्र
वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
- किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
- सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
- सुपर डिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
- डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
- क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
- सब क्लास Subclass: रोसीडए Rosidae
- आर्डर Order: रेमनेल्स Rhamnales
- परिवार Family: विटेसिएइ Vitaceae
- जीनस Genus: लीया Leea
- प्रजाति Species: लीया हिरता Leea aequata / Leea hirta
स्थानीय नाम / Synonyms
- Scientific name: Leea aequata
- Sanskrit: Kakajangha (Another plant Peristrophe bicalyculata Nees।, Acanthaceae, is also considered Kakajangha), Nadikanta, Sulomasha, Paravatapadi काकजंघा, नदीकांता, सुलोमशा, पापावतपदी
- Hindi: Kakjangha, Masi, Chakshoni काकजंघा, मसी, चकशोनी
- Bengali: Kakjangha, kaauvaaduti, काउवाढूटी
- Marathi: Kaangchijhaadh, Kangchijhad कांगचीझाड़
- Gujarati: Aghedi अघेड़ी
- Kannada: Jirichilech जिरीचिलेच
- Tamil: Naalaa duchchinike
- Folk: Surapadi
- Tripura: Changklenma
- Khumi: Akley Thai
काकजंघा के औषधीय प्रयोग
काकजंघा क्षुप जाति की वनस्पति है। यह मुख्य रूप से बुखार, विषविकार और त्वचा रोगों की दवा है। काकजंघा की जड़ गर्म और चरपरी होता है। यह कृमिहर और व्रणपूरक है। यह ज्वरनाशक और विषनाशक है।
यूनानी में इसे पहले दर्जे का गर्म और दूसरे दर्जे का खुश्क माना गया है। लेकिन कुछ पुस्तकों में इसे शीतल भी कहा गया है। यह कफ, फोड़ा-फुंसी, को नष्ट करता है और गहरे घावों को भरता है। यह कुष्ठ में आंतरिक और बाह्य दोनों तरह से इस्तेमाल की जाता है।
- श्वेत प्रदर में इसकी जड़ के पेस्ट को चावल के पानी के साथ लिया जाता है।
- गठिया में इसे बाहरी रूप से प्रयोग किया जाता है। इसके पंचांग को साफ, धो कर अच्छे से कूट कर धीमी आंच पर पकाया जाता है। जब यह पाक कर एक तिहायी रह जाए तो इसे उतार कर रख लेन चाहिए। जब यह सूख जाए तो इसकी टिकिया बना लें और गठिया में इन टिकियाँ को पानी में गलाकर लगाना चाहिए।
- वातविकार में काकजंघा के 10 ग्राम रस को घी में मिलाकर लिया जाता है।
- कान के कीड़ों में इसके पत्ते के रस की कुछ बूंदे कान में टपकाई जाती हैं।
- दाद, खाज खुजली में इसके रस को लगाने से लाभ होता है।
- रक्त विकार में इसका काढ़ा पीने से लाभ होता है।
- जहरीले कीढ़े के काटे पर, विष पर इसके पेस्ट को लोहे की चाक़ू पर लेकर प्रभावित जगह पर लगा देना चाहिए।
औषधीय मात्रा:
पौधे की जड़ का पेस्ट १-२ ग्राम और काढ़ा 50-100ml।
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