मुलेठी जो दवा की तरह प्रयोग की जाती है वह इसी कोमलकांडीय पौधे की जड़ होती है। ३-४ साल पुराने पौधों की जड़े ही दवा के रूप में प्रयोग की जाती है।
मुलेठी का लैटिन नाम ग्लाईसीराइजा ग्लिब्रा है जिसका शाब्दिक अर्थ ‘मीठी जड़’ है। इसे संस्कृत में मधुक, यष्टिमधु, मधुयष्टि, क्लीतक आदि नामों से जाना जाता है। हिंदी में इसे मुलेठी, मुलहटी, या जेठीमध कहते है। इसका अंग्रेजी में नाम लिकोरिस है। यह स्वभाव में ठंडी, पचने में भारी, स्वादिष्ट, आँखों के लिए अच्छी, बल और वर्ण को बढ़ाने वाली है। यह शुक्र और वीर्य वर्धक है। यह उलटी, खून के विकार, गले के रोग, पित्त-वात-कफ दोष दूर करने वाली और अधिक प्यास, क्षय को नष्ट करने वाली है। Mulethi in English
मुलहठी का पौधा (मुलेठी का पेड़) | Mulethi Three in Hindi
मुलेठी शिम्बी-कुल या लेगुमिनोसे परिवार का पौधा है। इसका क्षुप बहुवर्षीय होता है जो की २ फुट से ६ फुट तक ऊँचा हो सकता है। इसके पत्ते ४-७ के युग्म pair में होते हैं जिनका आकार आयताकार-अंडाकार- भालाकर होता है। पत्तों के आगे के भाग नुकीले होते है। फूल का रंग हल्का गुलाबी/बैंगनी होता है। इसकी शिम्बी या फली २.५ cm से लेकर १ इंच तक लम्बी होती है। आकर में यह लम्बी चपटी होती है और इनमे २-३ किडनी के आकार के बीज होते है।
मुलेठी जो दवा की तरह प्रयोग की जाती है वह इसी कोमलकांडीय पौधे की जड़ होती है। ३-४ साल पुराने पौधों की जड़े ही दवा के रूप में प्रयोग की जाती है। बाजार में इसी पौधे की जड़ टुकड़े के रूप में मिलती है। कभी-कभी जड़ों का छिलका भी उतरा हुआ होता है। छिलका उतरी जड़ पीली सी दिखती है।
मुलेठी की सामान्य जानकारी
- वानस्पतिक नाम (बैज्ञानिक नाम): Glycyrrhiza glabra Linn,
- कुल (Family): Leguminosae
औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: जड़
पौधे का प्रकार: क्षुप/झाड़ी
वितरण: भारत में मुलेठी मुख्यतः बाहर से लायी जाती है। मुलेठी को फारस की खाड़ी, तुर्की, साइबेरिया, स्पेन आदि से लाया जाता है। पंजाब, कश्मीर में इसकी खेती का प्रयास भारत में हो रहा है। यह हिमालय की तराई में उगाई जाती है।
पर्यावास: ऊंचाई वाले स्थान
रंग: बिना छिलका उतारे भूरा-थोडा लाल लिए हुए; छिलका उतारे हुए: पीली। चिकनी, रेशेदार।
स्वाद: मीठा; अच्छी मुलठी में कड़वाहट नहीं होती।
गंध: मीठी सी।
संगटन: ५-१० प्रतिशत ग्लीसिरहाईजिन, सुक्रोज, डेक्सट्रोज़, ३० प्रतिशत स्टार्च, प्रोटीन, वसा, रेजिन, आदि। Glycyrrhizin, glycyrrhizic acid, glycyrrhetinic acid, asparagine, sugars, resin and starch
मुलेठी का अन्य भासवों में नाम और स्थानीय नाम / Synonyms in Hindi
- Sanskrit: Yashtimadhuka, Yashtika, Madhuka, Madhuyashti
- Assamese: Jesthimadhu, Yeshtmadhu
- Bengali: Yashtimadhu
- English: Liquorice root लीकोरिस
- Gujrati: Jethimadha, Jethimard, Jethimadh
- Hindi: Mulethi, Mulathi, Muleti, Jethimadhu, Jethimadh
- Kannada: Jestamadu, Madhuka, Jyeshtamadhu, Atimadhura
- Kashmiri: Multhi
- Malayalam: Irattimadhuram
- Marathi: Jesthamadh
- Oriya: Jatimadhu, Jastimadhu
- Punjabi: Jethimadh, Mulathi
- Tamil: Athimadhuram
- Telugu: Atimadhuramu
- Urdu: Mulethi, Asl-us-sus
मुलेठी का चूर्ण की औषधीय मात्रा | Medicinal Dosage of Liquorice in Hindi
- जड़ का पाउडर: 2-4 ग्राम।
- सत मुलेठी: १/२ से १ ग्राम।
दो वर्ष से पुरानी मुलेठी में औषधीय गुण बहुत कम हो जाते हैं। इसलिए इसे दवा के रूप में नहीं प्रयोग करना चाहिए।
मुलेठी के चूर्ण आयुर्वेदिक गुण और कर्म | Ayurvedic properties and action in Hindi
- रस (taste on tongue): मधुर
- गुण (Pharmacological Action): गुरु/भारी, स्निग्ध
- वीर्य (Potency): शीत
- विपाक (transformed state after digestion): मधुर
कर्म Action
- शरीर को बल देने वाला
- आँखों के लिए अच्छा
- घाव भरने वाला
- वात-पित्त शामक
- वात को नीचे ले जाने वाला
- हल्का विरेचक
- मूत्रल, पेशाब बढ़ाने वाला
- मूत्रमार्ग स्नेहन
- कफ-निस्सारक
- जीवनीय
- रसायन
- शुक्रवर्धक
- चर्मरोग नाशक
- बालों के लिए अच्छा
- शोथहर, सूजन दूर करने वाला
- बुखार दूर करने वाला
Important Ayurvedic formulations in Hindi
Eladi Vati, Yashtimadhu Oil, Madhuyashtyadi Thailam
मुलेठी के फायदे | Health benefits of Mulethi in Hindi
- मुलेठी मुख, गले, पेट रोग, अल्सर, कफ, के रोगों में बहुत उपयोगी है।
- यह कफ को सरलता से निकलने में मदद करती है।
- यह दमा में उपयोगी है।
- मुलेठी चबाने से मुंह में लार का स्राव बढ़ता है। यह आवाज़ को मधुर बनाती है।
- यह श्वसन तंत्र संबंधी विकारों, कफ रोगों, गले की खराश, गला बैठ जाना आदि में लाभप्रद है।
- यह गले में जलन और सूजन को कम करती है।
- यह पेट में एसिड का स्तर कम करती है।
- यह जलन और अपच से राहत देती है तथा अल्सर से रक्षा करती है।
- पेट के घाव, अल्सर, पेट की जलन, अम्लपित्त में मुलेठी बहुत लाभप्रद है। मुलेठी में मौजूद ग्लाइकोसाइड्स पेट के घाव को भर देती है।
- अम्लपित्त में इसका सेवन तुरंत ही एसिड को कम करता है।
- यह कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करती है।
- मुलेठी कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करती है।
- यह शरीर की इम्युनिटी बढाती है।
- मुलेठी में फाईटोएस्ट्रोजन phytoestrogens होते हैं जिनका हल्का estrogenic प्रभाव है।
- यह वीर्य को शुद्ध करती है। यह खून को पतला करती है।
मुलेठी के औषधीय इस्तेमाल | Medicinal Uses of Mulethi/ licorice in Hindi
कफ: अधिक कफ होने पर, ३ ग्राम मुलेठी चूर्ण को शहद के साथ लें।
मुलेठी १० ग्राम + काली मिर्च १० ग्राम + लौंग ५ ग्राम + हरीतकी ५ ग्राम + मिश्री २० ग्राम, को मिलकर पीस लें और शहद के साथ १ चम्मच की मात्रा में शहद के साथ चाट कर लेने से पुरानी खांसी, जुखाम, गले की खराश, सूजन आदि दूर होते हैं।
खांसी: मुलेठी चूर्ण २ ग्राम + आंवला चूर्ण २ ग्राम को मिला लें। इस चूर्ण को शहद के साथ चाट कर लेने से खासी दूर होती है।
खांसी के साथ खून आने पर, मुलठी का चूर्ण १ टीस्पून की मात्रा में शहद या पानी के साथ लेना चाहिए।
गले के रोग: गले की सूजन, जुखाम, सांस नली में सूजन, मुंह में छाले, गला बैठना आदि में इसका टुकड़ा मुंह में रख कर चूसना चाहिए।
जुखाम: जुखाम के लिए, मुलेठी ३ ग्राम + दालचीनी १ ग्राम + छोटी इलाइची २-३, कूट कर १ कप पानी में उबालें। जब पानी आधा रह जाए, छान कर, मिश्री मिला कर दो बार, सुबह-शाम २ चम्मच की मात्रा में लेना चाहिए।
हिक्का: हिचकी आने पर मुलेठी का एक टुकडा चूसें। नस्य लेने से भी लाभ होता है।
पेट रोग: पेट और आँतों में ऐठन होने पर मुलेठी का चूर्ण शहद के साथ दिन में २-३ बार लेना चाहिए।
अल्सर में मुलेठी को ४ ग्राम को मात्रा में दूध के साथ लिया जाता है। या इसका क्वाथ दिन २-३ बार शहद में मिलकर लेना चाहिए।
पेशाब रोग: पेशाब की जलन में, २-४ ग्राम मुलेठी के चूर्ण को दूध के साथ लेना चाहिए।
रक्त प्रदर: रक्त प्रदर में, मुलेठी ३ ग्राम + मिश्री, को चावल के पानी के साथ लेना चाहिए।
धातु की कमी: धातु क्षय, में ३ ग्राम मुलेठी चूर्ण को ३ ग्राम घी और २ ग्राम शहद के साथ मिला कर लें।
वीर्य बढाने, स्तम्भन शक्ति को मज़बूत करने के लिए, मुलेठी चूर्ण २-४ ग्राम की मात्रा में शहद और दूध के साथ, कुछ दिन तक सेवन करें।
मुलेठी का बाहरी प्रयोग:
- बाह्य रूप से मुलेठी का प्रयोग, सूजन, एक्जिमा और त्वचा रोगों में लाभदायक है।
- फोड़ों पर मुलेठी का लेप करना चाहिए।
- घाव पर मुलेठी और घी का लेप लगाने से आराम मिलता है।
- विसर्प में मुलेठी का काढ़ा प्रभावित स्थान पर स्प्रे करके लगाना चाहिए।
मुलेठी की चूर्ण को निर्धारित मात्रा में निर्धारित समय तक ही लेना चाहिए। अधिक मात्रा में या लम्बे समय तक इसका सेवन हानिप्रद है। कई रोगों में इसका प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।