लोध्र एक औषधीय वनस्पति है। इसे संस्कृत में लोध्र, तिल, तिरीटक शाबर, मालव, गाल्व, हस्ती, हेमपुष्पक आदि नामों से जाना जाता है। हिंदी में इसे लोध, बंगाली में लोधकाष्ठ, मराठी में लोध, गुजरती में लोदर, पठानीलोध, और लैटिन में सिम्प्लेकोस रेसीमोसा कहते हैं।
लोध्र वृक्ष की छाल को औषधीय प्रयाजनों के लिए मुख्य रूप से प्रयोग किया जाता है। छाल को आयुर्वेद में कषाय रस और बल्य माना गया है। यह अकेले ही या अन्य द्रव्यों के साथ दवाई के रूप में प्रयोग की जानेवाली औषध है। इसे आंतरिक और बाह्य दोनों की तरह से प्रयोग करते हैं। बाह्य प्रयोग में यह संकोचक, रक्तस्तंभक, वर्णरोपण, शोथहर है। आंतरिक प्रयोग में यह स्तंभक, रक्तस्तंभक, शोथहर, गर्भाशयस्राव और गर्भाशयशोथनाशक है। यह अतिसारनाशक और कुष्ठघ्न भी है।
अतिसार, आम अथवा रक्तअतिसार, रक्त प्रदर तथा श्वेतप्रदर के उपचार में यह बहुत लाभप्रद है। आयुर्वेद की स्त्री रोगों के लिए जानी-मानी क्लासिकल और पेटेंटेड दवाओं में लोध्र अवश्य डाला जाता है।
लोध्र पार्वतीय प्रदेश की वनस्पति है। इसके वृक्ष बंगाल, आसाम, हिमालय, तथा खसिया पहाड़ियों में पाए जाते हैं। इसके वृक्ष छोटी जाति के होते है और पत्ते बड़े, कंगूरेदार, अंडाकृति के और लम्बे होते हैं। पुष्पों का रंग सफ़ेद-पीला-लाल मिश्रित होता है। वृक्ष पर अंडाकृति का आधा इंच लम्बा फल लगता है जिसके अन्दर गुठली होती है। यह फल पकने पर बैंगनी होता है। गुठली के अन्दर दो बीज होते हैं। इसकी छाल मुलायम और गेरुए रंग की होती है। लोध की छाल में रंजक होता है और यह रंगने के भी काम आती है।
आयुर्वेद में लोध को ग्राही, हल्का, शित्रल, नेत्रों के लिए हितकार, कसैला, कफ तथा पित्तहर बताया गया है। यह रक्तपित्त, रुधिरविकार, ज्वर, ज्वारातिसार, और शोथ को हरने वाली प्रभावी औषध है।
सामान्य जानकारी
- वानस्पतिक नाम: सिम्प्लेकोस रेसीमोसा
- कुल (Family): सिम्प्लोकेसीऐई
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पेड़ की छाल
- पौधे का प्रकार: वृक्ष
लोध्र के स्थानीय नाम / Synonyms
- वैज्ञानिक नाम: लोध्र racemosa
- संस्कृत: Balabadhra, Balipriya, Bhillataru, Bhilli, Galava, Hastilodhraka, Hemapushpak, Kandakilaka, Kandanila, Laktakarma, Lodhra, Lodhraka, Lodhravriksha, Mahalodhra, Marjana, Rodhra, Shahara, Shaharalodhra, Shambara, Shavaraka, शुक्ला, तिलक, Tririta, Tritaka, Vanarajhata
- असमिया: Mugam, Bhomroti, Kaviang
- बंगाली: लोढ़ा, Lodhra, लोध
- दार्जिलिंग: Kaidai, Khoidai, Sungen
- अंग्रेज़ी: लोध्र की छाल, लोध ट्री, कुनैन, चीन नोरा
- गुजराती: Lodhar, Lodar
- हिन्दी: लोढ़ा, लोध
- कन्नड़: Lodhra
- कुमाऊं: लोध
- मलयालम: Pachotti
- मराठी: लोढ़ा, Lodhra, Hura, लोध
- नेपाल: Chamlani
- पंजाबी: Lodhar
- सिद्ध: Velli-lethi।
- सिंहली: Lothsumbula
- तमिल: Vellilathi, Vellilothram
- तेलुगु: Lodhuga
- यूनानी: लोध Pathaani, Lodapathani
- उर्दू: लोध, Lodhpathani
लोध्र का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
- किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
- सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
- सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
- डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
- क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
- सबक्लास Subclass: डिलेनीडाए Dilleniidae
- आर्डर Order: एबेनेल्स Ebenales
- परिवार Family: सिम्प्लोकेसीऐई Symplocaceae
- जीनस Genus: सिम्प्लोकोस Symplocos
- प्रजाति Species: सिम्प्लोकोस रेसमोस रॉक्सब। Symplocos racemosa Roxb।
लोध्र के संघटक Phytochemicals
लोध्र में तीन प्रकार के क्षारीय पदार्थ होते हैं:
- लोटुराइन
- कोलोटूराइन
- लोटोरिडाइन
इसमें कुछ मात्रा में कार्बोनेट ऑफ़ सोडा भी पाया जाता है।
लोध्र के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
लोध स्वाद में कषाय, गुण में रूखा करने वाली और हल्की है। स्वभाव से यह शीतल है और कटु विपाक है।
यह एक काषाय रस औषधि है। कषाय रस जीभ को कुछ समय के लिए जड़ कर देता है और यह स्वाद का कुछ समय के लिए पता नहीं लगता। यह गले में ऐंठन पैदा करता है, जैसे की हरीतकी। यह पित्त-कफ को शांत करता है। इसके सेवन से रक्त शुद्ध होता है। यह सड़न, और मेदोधातु को सुखाता है। यह आम दोष को रोकता है और मल को बांधता है। यह त्वचा को साफ़ करता है। कषाय रस का अधिक सेवन, गैस, हृदय में पीड़ा, प्यास, कृशता, शुक्र धातु का नास, स्रोतों में रूकावट और मल-मूत्र में रूकावट करता है।
- रस (taste on tongue): कषाय astringent
- गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष light and drying
- वीर्य (Potency): शीत Cooling
- विपाक (transformed state after digestion): कटु Pungent
यह शीत वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। शीत वीर्य औषधि जीवनीय होती हैं। यह स्तम्भनकारक और रक्त तथा पित्त को साफ़ / निर्मल करने वाली होती हैं।
विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं।
कर्म Principle Action
- पित्तहर: द्रव्य जो पित्तदोष पित्तदोषनिवारक हो।
- कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
- शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे।
- शीतल: स्तंभक, ठंडा, सुखप्रद है, और प्यास, मूर्छा, पसीना आदि को दूर करता है।
- ग्राही: द्रव्य जो दीपन और पाचन हो तथा शरीर के जल को सुखा दे।
- रक्तस्तंभक: जो चोट के कारण या आसामान्य कारण से होने वाले रक्त स्राव को रोक दे।
- चक्षुष्य: नेत्रों के लिए लाभप्रद।
- वर्ण्य: रंग निखारने के गुण।
- व्रणरोपण: घाव ठीक करने के गुण।
- गर्भाशयस्रावनाशक:गर्भाशय के स्राव को रोकने वाला।
रोग जिनमें लोध का प्रयोग लाभप्रद है
- गर्भपात, गर्भाशयस्राव
- मासिकधर्म की विकृति, लम्बा मासिक धर्म, खून अधिक जाना
- रक्तपित्त
- रक्तप्रदर तथा श्वेतप्रदर / सफ़ेद पानी की समस्या
- अतिसार, रक्तातिसार
- कुष्ठ, त्वचा रोग आदि।
महत्वपूर्ण आयुर्वेदिक दवाएं
- लोध्रासव
- पुष्यानुग चूर्ण
- बृहत् गंगाधर चूर्ण
ईवकेयर, स्टिपलोन एम-२ टोन, हेमपुष्पा समेत बहुत से स्त्रियों के स्वास्थ्य के लिए बनी दवाएं
लोध्र के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Lodhra in Hindi
- लोध की छाल कसैली, कडवी और स्वभाव से शीतल होती है। यह आसानी से पच जाती है और कामोद्दीपक होती है।
- यह ऋतुस्राव / मासिक धर्म को नियमित करती है तथा रक्तपित्त और योनि से हो रहे आसामान्य रक्तस्राव को रोकती है।
- लोध्र मुख्य रूप से महिलाओं के लिए बनी आयुर्वेदिक दवाओं में डाली जाती है।
- यह पित्त की अधिकता के कारण होने वाले हाथ-पैर की जलन, नाक से खून गिरना तथा अन्य पित्तरोगों में लाभ करती है।
- यह गर्भाशय की सूजन को अपने शोथहर गुण से दूर करती है।
- यदि गर्भाशय की सूजन हो, स्राव हो रहा हो, रक्त प्रदर या श्वेत प्रदर की समस्या हो तो लोध्रासव का सेवन करें।
- यह आसामान्य रक्त के बहने को रोकने वाली वनस्पति है। यदि किसी को मासिक बहुत दिनों से अधिक मात्रा में हो रहा हो तो उसे २ ग्राम की मात्रा में लोध्र की छाल के चूर्ण का सेवन चीनी के साथ दिन में 3-4 बार करने से बहुत लाभ होता है।
- यह ज्वरनाशक है और शरीर में पित्त की अधिकता को कम करती है।
- इसके अतिरिक्त इसे अतिसार, गर्भाशय से होने वाले स्राव, नेत्र रोग, प्रदर रोग, रक्त पित्त, सफ़ेद पानी की समस्या, सूजन, और मुहांसों के ईलाज के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
- यह आँतों का संकुचन कराती है और अतिसार में लाभप्रद है।
- आँखों के रोगों, आँखों का दुखना, पानी बहना, सूजन। लाली सभी में इसे प्रयोग किया जाता है। आँखों की सूजन और लाली होने पर इसका लेप पलकों पर किया जाता है।
- रक्तपित्त जोकि नाक, गुदा, योनि आदि से आसामान्य रक्तस्राव को कहते हैं, उसमें यह अपने पित्तहर और शीतल गुण के कारण फायदा करती है।
लोध्र की औषधीय मात्रा
- औषधीय रूप में लोध की छाल का प्रयोग किया जाता है।
- इसे 3-5 ग्राम की मात्रा में लेते हैं।
- इसके बने काढ़े को 50-100 ml की मात्रा में पिया जाता है।
- बीजों के चूर्ण को लेने की मात्रा 1-3 gram है।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications
- यह हॉर्मोन पर काम करने वाली औषध है।
- इसे निर्धारित मात्रा में लें।
- आयुर्वेद में यह स्त्री रोगों की प्रमुख औषधि है। इसके सेवन से पुरुष होरमोन कम होता है। इसलिए पुरुष इसे न ही लें तो बेहतर है।
- यह टेस्टोंस्टेरोन का स्तर कम करती है।
- इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
- इसे खाली पेट न लें।
- काढ़े को तुरंत बनाकर प्रयोग करें।