माजूफल, मायाफल, मज्जफल, माईफल, माजुफल, गाल्स व ओक गाल्स एक पेड़ से प्राप्त होने वाला पदार्थ `है जिसे औषधि की तरह मुख्य रूप से यूनानी दवाओं में प्रयोग किया जाता है। आजकल इसे आयुर्वेदिक दन्त मंजनों में डाला जाता है। आयुर्वेद में इसका प्रयोग मध्यकाल के बाद शुरू हुआ। प्राचीन आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका वर्णन नहीं पाया जाता। इसका उत्पत्ति स्थान यूनान, एशिया माइनर, सीरिया और फारस है। भारत में इसका आयात इन्ही जगहों से होता आया है।
इसमें टैनिक और गैलिक एसिड की अच्छी मात्रा होने से यह संकोचक / एसट्रिनजेंट है और रक्त, बहना, सूजन, योनि के ढीलेपन, पाइल्स, घाव आदि पर में प्रयोग किया जाता है।
माजूफल क्या है?
माजूफल एक कीट के कारण ईरानी बलूत, क्वेरकस इंफेक्टोरिया में निर्मित होने वाला पदार्थ है। यह कोई फल नहीं है। यह पेड़ में तब बनता है, जब गाल वास्प कीट, पेड़ को इन्फेक्ट कर उनमें छेद कर देते हैं और परिणाम स्वरुप पेड़ में यह असामान्य ग्रोथ होती है। कीट इसमें अपने अंडे देते हैं। ओक गाल्स या माजूफल देखने में गोल, और कठोर होते हैं।
इस प्रकार माजूफल, फल न हो कर एक कीट गृह है। माजूफल का आकार उन्नाव के बराबर और रंग में हरा-कुछ नीला लिए हुए, पीला-सफेदी लिये भूरा और छोटे-छोटे उभार युक्त होता है। रंग के अनुसार यह चार तरह का हो सकता है: नीला (माजु नीला), काला (माजु स्याह), हरा (माजू सब्ज़) और सफ़ेद (माजु सफ़ेद)। इनमें से नीला अथवा काला माजु जो कीड़ों के छेद करके बाहर निकल जाने से पहले संग्रहित किया हो औषधीय प्रयोजनों के लिए उत्तम माना जाता है।
सामान्य जानकारी
- वानस्पतिक नाम: क्वेरकस इंफेक्टोरिया Quercus Infectoria
- कुल (Family): Fagaceae
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: ओक गाल्स
- पौधे का प्रकार: ईरानी बलूत
माजूफल के स्थानीय नाम / Synonyms
- Latin name: Quercus infectoria
- Sanskrit: Mayaphala, Majuphul
- Assamese: Aphsa
- Bengali: Majoophal, Majuphal
- English: Oak Galls, Magic Nuts, Mecca Gall, Syrian Gall, Turkey Gall, Gallnut
- Gujrati: Muajoophal, Mayfal, Maiphal
- Hindi: Maajoophal, Majuphal, Mazu
- Kannada: Machikaai, Mapalakam
- Malayalam: Majakaanee, Mashikkay
- Marathi: Maayaphal
- Oriya: Mayakku
- Punjabi: Maju
- Tamil: Machakaai, Masikki, Mussikki, Machakai, Maasikkai, Masikkai
- Telugu: Machikaaya
- Urdu: Mazu, Mazuphal, Baloot, Mazu Sabz
- Arabic: Uffes, Afas, Ballut Afssi
- Burma: Pinza-kanj-si, Pyintagar-ne-thi
- German: Gall-Eiche
- Indonesia: Manjakani
- Malaysia: Manjakani, Biji manjakani
- Persian: Mazu, Mazu-E-Sabz
- Spanish: Encina De La Agalla
- Swedish: Aleppoek
- Thai: Ben Ka Nee
- Turkish: Mzi Mesesi
- Other common names: Gall-Oak, Cyprus Oak, Nut-Galls, Asian Holly-Oak, Aleppo oak
माजूफल के संघटक Phytochemicals
मुख्य रूप से टैनिक और गैलिक एसिड।
माजूफल के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
माजुफल स्वाद में कषाय, गुण में रूखा करने वाला और हल्का है। स्वभाव से यह ठंडा है और कटु विपाक है।
कषाय रस जीभ को कुछ समय के लिए जड़ कर देता है और यह स्वाद का कुछ समय के लिए पता नहीं लगता। यह गले में ऐंठन पैदा करता है, जैसे की हरीतकी। यह पित्त-कफ को शांत करता है। इसके सेवन से रक्त शुद्ध होता है। यह सड़न, और मेदोधातु को सुखाता है। यह आम दोष को रोकता है और मल को बांधता है। यह त्वचा को साफ़ करता है। कषाय रस का अधिक सेवन, गैस, हृदय में पीड़ा, प्यास, कृशता, शुक्र धातु का नास, स्रोतों में रूकावट और मल-मूत्र में रूकावट करता है।
- रस (taste on tongue): कषाय
- गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
- वीर्य (Potency): शीत
- विपाक (transformed state after digestion): कटु
वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। शीत वीर्य औषधि पित्त को साफ़ / निर्मल करने वाली होती हैं।
विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।
प्रधान कर्म
- कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
- पित्तहर: द्रव्य जो पित्तदोष पित्तदोषनिवारक हो। antibilious
- शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे। antihydropic
- ग्राही: द्रव्य जो दीपन और पाचन हो तथा शरीर के जल को सुखा दे।
- दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
- शिथिलतानाशक: शिथिलता को संकुचित करने वाला।
- केश्य: बालों को काला करने वाला।
- रक्त स्तंभक: जो चोट के कारण या आसामान्य कारण से होने वाले रक्त स्राव को रोक दे।
- व्रण रोपण: घाव ठीक करने के गुण।
माजूफल के फायदे
- यह उत्तम रक्त स्तंभक, श्लेष्मघ्न, घाव भरने वाला और विषघ्न है।
- यह आंतरिक और बाह्य दोनों ही रूप में प्रयोग किया जा सकता है।
- यह उन रोगों में बहुत लाभप्रद है जिनमें प्रभावित स्थान को संकुचित करने की आवशकता होता है, जैसे रक्त बहना, चोट, योनि का ढीलापन, गुदभ्रंश आदि।
- यह ग्राही है और अतिसार, प्रवाहिका आदि में लाभप्रद है।
- इसे गिस कर यदि घाव पर लगा दें तो घाव जल्दी भरता है।
- इसे जल में घिस पर टोंसिल पर लगा दें तो यह उसकी सूजन को दूर करता है।
- यह सूखी खांसी, कफ में लाभप्रद है।
माजूफल के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Majuphal in Hindi
माजूफल खून बहना रोकने वाला, बालों को काला करने वाला व संग्राही है। यह पसीने के दुर्गन्ध दूर करता है। पुराने अतिसार, श्वेत प्रदर में इसके आंतरिक प्रयोग से लाभ होता है। कान बहना में इसे कुलफा के रस में मिला कर कान में डाला जाता है। इसे अकेले ही चूर्ण बनाकर, दांतों को मजबूत करने, मसूड़ों से खून बहना रोकने, मुंह से पानी गिरना, बदबू आना आदि में प्रयोग करते हैं। इसे दन्त मंजनों में दांत और मसूड़ों को मजबूत करने और रोग को दूर करने के लिए प्रयोग करते हैं।
सिरके में मिला कर इसे चेहरे की झाईं, दाद, गंजेपन पर लगाते हैं। आँखों में इसका अंजन, आँख से पानी गिरना, खुजली आदि में लगाया जाता है। नकसीर हो तो इसका नस्य लेने से खून गिरना रुक जाता है। गुदभ्रश, गुदशोथ, गुद व्रण में इसका चूर्ण आंतरिक रूप से व काढ़ा बनाकर बाहरी रूप से प्रयोग होता है।
योनि का ढीलापन Vaginal Sag
अशोक की छाल + बबूल छाल + गूलर छाल + माजूफल + फिटकरी, समान भाग में मिलाकर पीस लें। इसे कपड़े से छान कर इसका कपड़छन पाउडर बना लें। इस चूर्ण की सौ ग्राम की मात्रा एक लीटर पानी में उबालें। जब यह चौथाई रह जाए तो स्टोव से उतार कर ठंडा कर लें। इसे योनि के अन्दर रात को डालें। यह प्रयोग कुछ दिन तक लगातार करें।
भगंदर, बवासीर, गुदाभ्रंश (कांच निकलना) anal prolapse
- एक हिस्सा माजूफल के चूर्ण को चार हिस्सा वेसेलिन के साथ मिलाकर बाहरी रूप से लगाया जाता है।
- अथवा
- माजूफल का काढ़ा बनाएं। इससे प्रभावित स्थान धोएं या एक कपड़े में काढ़ा सुखा कर प्रभावित स्थान पर कुछ देर रखें। अथवा
- माजूफल + फिटकरी + त्रिफला, का काढ़ा बना कर प्रभावित स्थान पर लगाएं।
गुदा से खून गिरना, रक्तार्श
- एक ग्राम माजूफल चूर्ण + सोंठ चौथाई ग्राम + नागकेशर चौथाई ग्राम, को मिला कर घी के साथ लें।
- यह प्रयोग स्थिति अनुसार पांच दिन से पंद्रह दिन तक किया जा सकता है।
अतिसार, संग्रहणी
- एक ग्राम माजूफल चूर्ण को शहद के साथ मिला कर लें। अथवा
- एक ग्राम माजूफल चूर्ण को दिन में दो-तीन बार, एक ग्राम दालचीनी चूर्ण के साथ लिया जाता है।
- यह प्रयोग स्थिति अनुसार पांच दिन से पंद्रह दिन तक किया जा सकता है।
पुराना सूजाक
माजूफल का चूर्ण, एक ग्राम की मात्रा में दिन में २ बार लेते हैं।
ग्रहणी IBS
एक ग्राम माजूफल चूर्ण + सोंठ आधा ग्राम + मोथा आधा ग्राम, को मिला कर लें।
दांत की समस्याएं, मसूड़ों में सूजन, मसूड़ों से खून आना, पायरिया
- माजुफल को पानी में उबाल आकर काढ़ा बना लें और इससे कुल्ले करें। अथवा
- माजूफल के बहुत बारीक चूर्ण से मसूड़ों की मालिश करें। अथवा
- माजूफल + फिटकरी + हल्दी, का बारीक चूर्ण बनाकर दन्त पाउडर की तरह प्रयोग करें।
नकसीर
माजूफल के चूर्ण को सूंघें।
घाव, घाव से खून निकलना
माजूफल चूर्ण का बाहरी रूप से छिडकाव प्रभावित स्थान पर करें।
माजूफल की औषधीय मात्रा
ओक गाल्स को लेने की आंतरिक मात्रा आधा ग्राम से लेकर दो ग्राम तक की है जो की शारीरिक बनावट, रोग, पाचन, वज़न से लेकर बहुत से अन्य कारकों पर निर्भर है।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications
- इसमें टैनिक एसिड और गैलिक एसिड की अच्छी मात्रा है। इसे अधिक मात्रा में लेने से पेट में जलन, उलटी, लीवर को नुकसान हो सकता है।
- इसे गर्भावस्था में न लें।
- इसे लीवर या किडनी के रोग से ग्रसित होने पर न लें।
- इसे लम्बे समय तक या अधिक मात्रा में आंतरिक प्रयोग में न लायें।
- यह लोहे के अवशोषण को प्रभावित करता है।
- यह वात दोष को बढ़ा सकता है।
- यह ग्राही है और शरीर के जल को सुखाता है।
- इसके सेवन से कब्ज़ हो सकता है।
- इससे होने वाले दोष का निवारण करने के लिए गोंद कतीरा, गोंद बबूल प्रयोग होता है।