गिलोय, अमृता या गुडूची आयुर्वेद के सबसे महत्वपूर्ण औषधीय पौधों में से एक है। यह अमृत के समान रसायन है। इसको दवा की तरह इस्तेमाल करने के लिए आप इसके पत्तों का रस, तने का रस और तने का काढ़ा बना कर सेवन कर सकते हैं। गिलोय का प्रयोग बहुत सी रोगों के ईलाज में होता है।
गिलोय, अमृता या गुडूची आयुर्वेद के सबसे महत्वपूर्ण औषधीय पौधों में से एक है। यह अमृत के समान रसायन है। यह एक चढ़ने वाली लता है जो पूरे भारत वर्ष में पायी जाती है। यह लंका, बांग्लादेश और चीन में भी मिलती है। गिलोय की लता वृक्षों पर चढ़ जाती है और वृक्ष के एकदम ऊपर ही हरी-पत्तियों से भरी नजर आती है। सर्दियों में इसके सभी पत्ते गिर जाते हैं और वसंत आने पर नए पत्तों और छोटे-छोटे गोल फल निकलते हैं।
यह लता जीवन शक्ति से भर-पूर होती है और यह इसी बात से सिद्ध होता है की इस लता का छोटा सा टुकड़ा भी जमीन में डाल देने से नया पौधा बन जाता है। आप इसको बहुत ही आसानी से एक गमले में भी उगा सकते हैं। इसको दवा की तरह इस्तेमाल करने के लिए आप इसके पत्तों का रस, तने का रस और तने का काढ़ा बना कर सेवन कर सकते हैं।
स्थानीय नाम
- संस्कृत: अमृतावल्ली, अमृता, मधुपर्णी, जीवंती, सोम, सोमवल्ली, कुण्डली, विशल्या, रसायनी,
- असमिया: सिद्धिलता, अमरलता
- बंगाली: गलुंचा
- गुजराती: गारो
- हिन्दी: गिलोय, गुडूची
- कन्नड़: अमरवल्ली
- कश्मीरी: अमृता, गिलो
- मराठी: गुलवेल
- उड़िया: गुलुची
- पंजाबी: गिलो
Health Benefits of Giloy
- गुडूची का प्रयोग बुखार, मधुमेह, अपच, मूत्र संक्रमण, पीलिया और त्वचा रोगों में होता है।
- यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करती है और शरीर की रक्षा करती है।
- यह हर तरह के बुखार में प्रभावशाली है।
- यह जीवाणु रोधक है।
- यह रसायन है।
- यह भूख को बढाती है।
- यह मूत्रवर्धक, पित्त स्राव बढ़ाने वाली, और त्रिदोषनाशक है।
- वायरल इन्फेक्शन में इसका प्रयोग यकृत की रक्षा करता है।
आयुर्वेदिक गुण और कर्म
- रस (स्वाद): तिक्त, कषाय
- गुण (विशेषताएँ): लघु/हल्का
- वीर्य (शक्ति): उष्ण/गर्म
- विपाक (पाचन के बाद प्रभाव): मधुर
- कर्म
- दीपन (पाचन उत्तेजक), बल्य, रसायन
- संग्राही , विषघ्न, विष नष्ट करने वाला
- ज्वरनाशक, रक्त शोधक
गिलोय का प्रयोग बहुत सी रोगों के ईलाज में होता है। जिसमे शामिल हैं:-
- पीलिया
- ज्वर/बुखार, कृमि
- हृदय रोग
- वात-व्याधि
- जलन, अत्यधिक प्यास
- प्रमेह, मधुमेह, बवासीर, मूत्रकृच्छ
- खांसी, खून की कमी
- कब्ज, उल्टी
औषधीय उपयोग
- यकृत रोग, पीलिया : ताज़ा तने का रस (7-14 मिलीलीटर), शहद के साथ दिन में दो बार।
- त्वचा रोग : ताज़ा तने का रस (7-14 मिलीलीटर), शहद के साथ दिन में दो बार।
- ज्वर : गिलोय के तने का काढ़ा (50 मिलीलीटर) दिन में तीन बार।
- अधिक प्यास : गिलोय के तने का काढ़ा (50 मिलीलीटर) दिन में तीन बार चीनी के साथ या ताज़ा तने का रस (7-14 मिलीलीटर)।
- प्रमेह, मधुमेह : ताज़ा तने का रस (14-28 मिलीलीटर), शहद के साथ दिन में दो बार।
- गुर्दे के रोग, प्रदर : ताज़ा तने का रस (14-28 मिलीलीटर), शहद के साथ दिन में दो बार।
- गठिया : गिलोय के तने का काढ़ा (14-28 मिलीलीटर), शुद्ध गुग्गुलु (2 ग्राम) के साथ।