बोल, गंधरस, गोरस, हीराबोल, हिराबोल, सुरसा, बर्बर, पौरा आदि एक अफ़्रीकी पेड़ से प्राप्त राल-युक्त गोंद (रेजिन) के नाम हैं। इसे प्राचीन समय से अफ्रीकन देशों में उपचार के लिए प्रयोग किया जाता रहा है। इसका पेड़ सुमालीलैंड, अबीसीनिया, पूर्वी अफ्रीका, अर्ब, फारस, आदि देशों में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। यह भारत की वनस्पति नहीं है और इसे भारत में बाहर से आयात किया जाता है। सुमाली लैंड का बोल और मक्का का बोल सर्वोत्तम माना जाता है। भारत में मक्का का बोल मुर मक्की के नाम से बिकता है।
यह रेजिन गुग्गुल प्रजाति के एक पौधे से प्राप्त होता है। जैसे गुग्गुल पेड़ का गोंद या निर्यास ही, इसी प्रकार यह भी पेड़ के तने पर किसी कारण से हुए घाव, चोट या नुकसान से बाहर निकलता है। शुरू में यह पीले रंग का तरल होता है, लेकिन बाद में यह कुछ लाल से रंग का हो जाता है।
बोल के दाने गोल, बेडौल, और छोटे-बड़े होते हैं। इन्हें आपस में मिलाने से विभिन्न आकार और प्रकार की डलियाँ बनाई जा सकती हैं। बाहर से यह लाल रंग लिए हुए पिली-भूरी सी लगती हैं। बाहरी सतह धूल युक्त लगती है। छूने पर यह कड़े और भंगुर होते हैं। तोड़ने पर यह अनियमित से टूटते हैं। टूटा हुआ टुकड़ा पारभासी सा प्रतीत होता है। यह तेल युक्त होता है और इस पर जगह-जगह सफ़ेद रेखाएं देखी जा सकती हैं। स्वाद में यह कड़वा होता है और पानी में नहीं घुलता लेकिन अल्कोहल में घुल जाता है।
बोल को आयुर्वेद, सिद्ध और यूनानी में एक दवा की तरह से से प्रयोग करते हैं। इसमें एंटीसेप्टिक, दर्द शामक, एंटीफंगल, एंटीट्यूमर, कृमिनाशक, और घाव को ठीक करने के गुण होते हैं। बाहरी रूप से इसे मुख में सूजन, मसूड़ों की सूजन, दांतों के आस-पास सूजन, घाव, बेडसोर्स, आदि में प्रयोग करते हैं।
बाह्य रूप से लगाने के लिए इसको पीस कर पेस्ट बना कर प्रभावित स्थान पर लगाते हैं। यह पेस्ट चोट, पाइल्स, आर्थराइटिस, जोड़ों के दर्द, मांसपेशियों के दर्द आदि पर लगा सकते हैं। जिन लोगों की संवेदनशील त्वचा हो उन्हें इसका प्रयोग नहीं करना चाहिये।
सामान्य जानकारी
- वानस्पतिक नाम: कोमीफोरा मिर्हा Commiphora myrrh अथवा बलसामोदेडेड्रोंन मिर्हा Balsamodendron myrrha Nees
- कुल (Family): बरसेरेसिएई
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: रेसिन
- पौधे का प्रकार: छोटा वृक्ष
- वितरण: मध्य भारत के कुछ रेतीले हिस्से
- पर्यावास: सोमालिया, अरब का मूल निवासी
बोल के स्थानीय नाम / Synonyms
- वैज्ञानिक नाम: Commiphora myrrha
- आयुर्वेदिक: बोला, बोल, Heerabola, Hirabol, Gandhrasa, Surasa, बर्बर
- अंग्रेजी: अफ्रीकी लोहबान, African Myrrh, Arabian Myrr, Bitter Myrrh, Commiphora, Commiphora molmol, Diddin, Didin, Male Myrrh, Malmal, Mohmol, Molmol, Murr, Myrrh, Somali Myrrh, Yemen Myrrh लोहबान, सोमाली लोहबान, यमन लोहबान
- हिंदी, बंगाली, गुजराती: बोल
- कन्नड़: Bola
- मराठी: Balata-bola
- सिद्ध: Vellaibolam
- तमिल: Vellaip-polam
- तेलुगु: Balimtra-polam
- यूनानी: Mur Makki, Murmakki, Bol
- तेहरान: Khak-i-mugl, Mun-e-makki
- फारस: Myrrha mechensis
बोल का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
- किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
- सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
- सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
- डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
- क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
- सबक्लास Subclass: रोसीडए Rosidae
- आर्डर Order: सेपिनडेल्स Sapindales
- परिवार Family: बरसेरेसिएई Burseraceae
- जीनस Genus: कोमीफोरा Commiphora
- प्रजाति Species: मिर्हा myrrh
बोल के संघटक Phytochemicals
बोल में 57%-61% गोंद, 25-40% रालिया या रेजिन, तथा 7-17% उड़नशील तेल पाया जाता है।
बोल के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
बोल स्वाद में कटु, कड़वा और काषाय है। गुण में यह लघु और रूक्ष है। स्वभाव में यह गर्म और कटु विपाक है। यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।
- रस (taste on tongue): कटु, तिक्त, कषाय
- गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
- वीर्य (Potency): उष्ण
- विपाक (transformed state after digestion): कटु
विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।
कर्म:
- पाचन: द्रव्य जो आम को पचाता हो लेकिन जठराग्नि को न बढ़ाये।
- दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
- अनुलोमन: द्रव्य जो मल व् दोषों को पाक करके, मल के बंधाव को ढीला कर दोष मल बाहर निकाल दे।
- कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
- मेध्य: मेधा के लिए हितकारी
- गर्भाशय शोधक: गर्भाशय को साफ़ करता है।
- रक्त स्तंभक: जो चोट के कारण या आसामान्य कारण से होने वाले रक्त स्राव को रोक दे।
- शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे।
- स्वेदजनन: पसीना लाने वाला।
- मासिकधर्म के स्राव को बढ़ाने वाला emmenagogue
- कफ निकालने वाला expectorant
- त्वकरोगनाशक: चमड़ी के रोग दूर करने वाला।
बोल के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Commiphora myrrha in Hindi
बोल को बाहरी और आंतरिक दोनों ही तरह से प्रयोग किया जाता है। इसे मुख्य रूप से रक्त की अशुद्धियों, कफ, खांसी, जकड़न, मासिक धर्म की परेशानियों, बुखार, मिर्गी, बुखार, कुष्ठ, आदि में प्रयोग किया जाता है। इसके सेवन से पेल्विस में खून का संचार बढ़ता है और इसलिए इसे गगर्भावस्था में प्रयोग नहीं किया जाता है। यह गर्भाशय का शोधक भी है और गर्भाशय की अशुद्धियाँ दूर करता है।
बोल को मुख रोगों में भी इसके संकोचक, एंटीसेप्टिक, और सूजन को दूर करने के गुण के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे पानी में डाल कर गरारे करने से मसूड़ों की सूजन, मुख में छाले, गले में सूजन, आदि में लाभ होता है।
बोल को सुहागे में मिलाकर रोजाना 2 से 3 बार मसूड़ों पर धीरे-धीरे मलने से दांतों व मसूड़ों के सभी रोगों में लाभ होता है।
यह एंटीफंगल है और इसलिए इसके टिंक्चर को केलेंडूला के साथ मिलाकर बाहरी रूप से लागाते हैं।
बोल की औषधीय मात्रा
- बोल को आंतरिक प्रयोग के लिए बहुत कम मात्रा में लिया जाता है।
- बोल को लेने की औषधीय मात्रा आधा से लेकर 1.25 ग्राम तक की है।
- इसे चूर्ण की तरह या गर्म पानी में डाल कर लिया जा सकता है।
- यह पानी में अघुलनशील है लेकिन अल्कोहल में घुल जाती है, इसलिए इसका मदर टिंकचर भी प्रयोग की जा सकता है। मदर टिंक्चर को लेने की मात्रा 2.5–5.0 mL है।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications
- यह तासीर में गर्म है।
- यह शरीर में रूक्षता करता है।
- यह पित्त को बढ़ाता है।
- यह उष्ण प्रकृति के लोगों के लिए अहितकर माना गया है।
- इसके दुष्प्रभाव का निवारण करने के लिए शहद, तथा मीठे और तर पदार्थों का सेवा करना चाहिए।
- अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है।
- जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
- अधिक मात्रा में सेवन दिल को प्रभावित करता है।
- आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।