जायफल या जातीफल एक प्रसिद्ध मसाला है। यह मिरिस्टिका फ्रेगरेंस वृक्ष के फल में पाए जाने वाले बीज की सुखाई हुई गिरी है। जायफल और जावित्री दोनों एक ही बीज से प्राप्त होते हैं। जायफल की बाहरी खोल outer covering या एरिल को जावित्री Mace कहते है और इसे भी मसाले की तरह प्रयोग किया जाता है। भारत में जायफल के वृक्ष तमिलनाडु में और कुछ संख्या में केरल, आंध्र प्रदेश, निलगिरी की पहाड़ियों में पाए जाते है।
जायफल Nutmeg भारतीय रसोई में प्रमुखता से प्रयोग किया जाने वाला गर्म मसाला Garam Masala है। इसके अतिरिक्त इसे घरेलू उपचार में भी अधिकता से प्रयोग किया जाता है। यह कटु pungent, तिक्त bitter, तीक्ष्ण sharp और उष्ण hot potency है इसलिए इसमें कफनिःसारक, कफघ्न गुण हैं और यह कफ रोगों में लाभप्रद है। यह फेफड़ों से अवलम्बक कफ को दूर करता है।
पित्तवर्धक, रुचिकारक, दीपन, अनुलोमन होने से इसे पाचन की कमजोरी में भी प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में इसे वायु और कफ रोगों में अकेले ही यह अन्य द्रव्यों के साथ प्रयोग करते हैं।
जायफल को बाजिकारक aphrodisiac दवाओं और तेल को तिलाओं में डाला जाता है। यह पुरुषों की इनफर्टिलिटी, नपुंसकता, शीघ्रपतन premature ejaculationकी दवाओं में भी डाला जाता है। यह इरेक्शन को बढ़ाता है लेकिन स्खलन को रोकता है। यह शुक्र धातु को बढ़ाता है। यह बार-बार मूत्र आने की शिकायत को दूर करता है तथा वात-कफ को कम करता है।
सामान्य जानकारी
जयफल के वृक्ष ऊँचे होते हैं। इसका तना चिकना और शाखाएं नीचे झुकी हुईं होती हैं। इसके पत्ते दो इंच से लेकर चार इंच तक लम्बे होते हैं। यह देखने में कुछ-कुछ जामुन के पत्तों जैसे दीखते हैं पर सुगन्धित होते हैं। पुष्प पीले और छोटे होते हैं। वृक्ष पर जो फल आते हैं वे देखने में अमरूद जैसे होते हैं।
पके फल लाल रंग लिए हुए पीले होते हैं। जब फल फटते हैं तो बीज बाहर आता है जिस पर लाल रंग का जालीदार बीज-बाह्यवृद्धि या एरिल चढ़ा होता है। यह मेस या जावित्री है। जावित्री को अलग करने पर बीज मिलता है।
बीज के आवरण को तोड़ कर अन्दर की गुठली निकाल ली जाती है। इसे सुखा लिया जाता है और यही जायफल है। इसप्रकार जायफल बीज की मज्जा या गिरी है और जावित्री बीज पर लगा हुआ एरिल है। जायफल जितना बड़ा होता है उतना ही उत्तम होता है ।
जायफल के आसवन steam distillation द्वारा एक तेल प्राप्त होता है। यह तेल हल्का पीला रंग लिए हुए या रंगहीन होता है। इसका स्वाद और गंध जायफल जैसा ही होता है। यह जायफल का तेल Nutmeg oil है।
- वानस्पतिक नाम: मिरिस्टिका फ्रेगरेंस
- कुल (Family): मायरिसटेकेसेआई
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: बीज की बाहरी खोल, बीज की मज्जा, तेल
- पौधे का प्रकार: वृक्ष
- वितरण: मलय, सुमात्रा, श्री लंका। भारत में दक्षिण के समुद्रतटीय क्षेत्रों और अंडमान निकोबार द्वीप समूह में।
जायफल के स्थानीय नाम / Synonyms
- संस्कृत: Ghatastha, Jaiphala, Jati, Jatikosha, Jatiphala, Jatishasga, Kosha, Koshaka, Madashaunda, Majjasara, Malatiphala, Phala, Puta, Rajabhogya, Shakula, Sumanaphala
- असमिया: Jaiphal, Kanivish
- बंगाली: Jaiphala, Jaitri
- अंग्रेज़ी: नटमेग
- गुजराती: Jaiphala, Jayfar
- हिन्दी: Jaiphal
- कन्नड़: Jadikai, Jaykai, Jaidikai
- कश्मीरी: Jafal
- मलयालम: Jatika
- मराठी: Jaiphal
- उड़िया: Jaiphal
- पंजाबी: Jaiphal
- सिद्ध: Masikkai, Chathikkay
- तमिल: Sathikkai, Jathikkai, Jatikkai, Jadhikai, Jadhikkai
- तेलुगु: Jajikaya
- उर्दू: Jauzbuwa, Jaiphal (seed), Bisbaasaa (Mace)
जायफल का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
- किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
- सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
- सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
- डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta– Flowering plants फूल वाले पौधे
- क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
- सबक्लास Subclass: मैग्नोलिडेएइ Magnoliidae
- आर्डर Order: मैग्नोलिएल्स Magnoliales
- परिवार Family: मायरिसटेकेसेआई Myristicaceae
- जीनस Genus: मायरिस्टिका ग्रोनोव Myristica Gronov
- प्रजाति Species:मायरिस्टिका फ्रैगरैंस Myristica fragrans– नटमग
पर्याय:
मायरिस्टिका ओफिसिनेलिस Myristica officinalis
जायफल के संघटक Phytochemicals
जायफल में 5-15% सुंगंधित उड़नशील तेल और 24% स्थिर तेल पाया जाता है। सुंगंधित उड़नशील तेल में मुख्य रूप से युजिनोल होता है। स्थिर तेल में मायरिस्टिक एसिड 61% मुख्य होता है। Dimeric phenylpropanoids I-VI, myricetin, essential oil and fixed oil।
जायफल के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
जायफल और जावित्री दोनों ही स्वाद में कटु, तिक्त, गुण में लघु और तेज है। स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है। यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।
- रस (taste on tongue): कटु, तिक्त
- गुण (Pharmacological Action): लघु, तीक्ष्ण
- वीर्य (Potency): उष्ण
- विपाक (transformed state after digestion): कटु
विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।
कर्म:
- वातशामक: द्रव्य जो वातदोष को कम कर दे।
- कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
- उष्ण: यह प्यास, जलन, मूर्छा करता है और घाव पकाता है।
- ग्राही: द्रव्य जो दीपन और पाचन हो तथा शरीर के जल को सुखा दे।
- दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
- वृष्य: द्रव्य जो बलकारक, वाजीकारक, वीर्य वर्धक हो।
- अनुलोमन: द्रव्य जो मल व् दोषों को पाक करके, मल के बंधाव को ढीला कर दोष मल बाहर निकाल दे।
- बाजीकरण: द्रव्य जो रति शक्ति में वृद्धि करे।
- वेदनास्थापन: दर्द निवारक।
- मुखदुर्गन्धनाशक: मुख की दुर्गन्ध दूर करने वाला।
- यकृतउत्तेजक: लीवर को उत्तेजित करने वाला।
- हृदयोत्तेजक: हृदय को उत्तेजना देने वाला।
- आर्त्तवजनन: मासिक लाने वाला।
आयुर्वेद की प्रमुख औषधियाँ
जातिफलादी चूर्ण
आयुर्वेद में जातिफल को इन रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है:
- अतिसार
- जीर्ण अतिसार
- ग्रहणी
- छर्दी
- मुख रोग
- पिनासा, कास, श्वास
जायफल के तेल को निम्न रोगों में प्रयोग करते हैं:
- अफारा
- शूल
- आमवात
- व्रण के रोग
- पुराना अतिसार
जायफल के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Nutmeg in Hindi
जायफल कफ रोगों और पाचन रोगों में बहुत लाभप्रद है। जयफल वायुनाशक carminative, उत्तेजक, पौष्टिक, पाचक और भूख बढ़ाने वाला है। यह दीपन, पाचन और ग्राही है। जायफल का सेवन भूख बढ़ाता है, अफारा, ग्रहणी और शूल को दूर करता है। पाचन में वृद्धि करता है और अतिसार, रक्तअतिसार आदि को नष्ट करता है। जायफल अधिक कफ को नष्ट करता है।
1- अतिसार, दस्त diarrhea
- जायफल का चूर्ण आधा से एक ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार तक्र के साथ लें।
- जायफल और सोंठ को पानी में घिस कर २-३ बार लेने से अतिसार दूर होता है।
2- अधिक प्यास excessive thirst
जायफल का टुकड़ा मुंह में रख कर चूसने से अधिक प्यास लगने की समस्या दूर होती है।
3- अफारा flatulence
जायफल घिसकर, सरसों के तेल में मिलाकर नाभि के पास मालिश करने से गैस में आराम होता है।
4- कम रक्तचाप / लो ब्लड प्रेशर low blood pressure
जायफल का चूर्ण 250-500 mg की मात्रा में शहद के साथ सुबह चाट कर लेना चाहिए।
5- कफ रोग, सर्दी, खांसी, गला ख़राब excessive phlegm
जायफल का चूर्ण 250-500 mg की मात्रा में शहद के साथ चाट कर लेना चाहिए।
6- दांत में दर्द tooth ache
जायफल का चूर्ण दांतों पर मलने से आराम होता है।
7- सिर का दर्द headache
- जायफल का चूर्ण दूध में उबालकर सेवन करें।
- जायफल को घिस कर माथे पर लगाया जाता है।
8- बच्चों को सर्दी लग जाने पर, खांसी, कफ, जुखाम, निमोनिया, सर्दी का बुखार
जायफल को पत्थर में घिस कर, शहद के साथ मिलाकर, दिन में तीन बार बच्चों को चटाना चाहिए।
9- मुहांसे acne
जायफल को घिस कर चेहरे पर लागाया जाता है।
10- पेट दर्द abdominal pain
जायफल को घी के साथ लें।
11- नींद न आना insomnia
इनसोम्निया में जायफल के पाउडर को रात को सोने से पहले गर्म दूध के साथ लें।
12- छर्दी, उल्टी, हिचकी nausea, vomiting
जायफल को घिसकर चावल के धोवन के साथ मिलाकर लेने से उल्टी रुकती है।
13- उत्तेजना की कमी, धातु की कमजोरी
जायफल का चूर्ण 250-500 mg की मात्रा में दूध / मलाई / मक्खन में मिलाकर चाट कर लेना चाहिए।
14- जायफल की औषधीय मात्रा Therapeutic dose of Nutmeg
- जायफल और जावित्री को लेने की औषधीय मात्रा चार रत्ती (1 रत्ती=125 mg) से लेकर एक ग्राम तक की है।
- तेल को एक बूँद से लेकर तीन बूँद तक प्रयोग किया जाता है।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications
- जायफल को बताई गई मात्रा से ज्यादा मात्रा में सेवन न करें।
- अधिक मात्रा में इसका सेवन नुकसान करता है।
- यह मस्तिष्क पर मादक असर intoxicating, causing hallucinations, headaches, dizziness, heart palpitations करता है।
- यह मूढ़ता और प्रलाप पैदा करता है।
- अधिक सेवन से सिर चकराता है।
- यह हृदय को उत्तेजित करता है।
- लम्बे समय तक प्रयोग वीर्य में उष्णता लाता है और इसे पतला करता है।
- यह पित्त बढ़ाता है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
- अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है।
- जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
- शरीर में यदि पहले से पित्त बढ़ा है, रक्त बहने का विकार है bleeding disorder, हाथ-पैर में जलन है, अल्सर है, छाले हैं तो भी इसका सेवन न करें।
- Drug interactions अवसाद की दवा, हाई ब्लड प्रेशर की दवा या कोई सेडेटिव ले रहे हैं, तो इसका सेवन सावधानी से करें।
- यह मलरोधक है।
- आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें। Unsafe in pregnancy
- तेल को बुखार, उच्च रक्तचाप, शरीर में जलन आदि में प्रयोग न करें।
- तेल का अतिमात्रा में सेवन मदकारक intoxicating है।