कनेर का उपयोग कैसे और किस बीमारी में होता है

कनेर का किसी भी प्रकार से सेवन हानिकारक है। कनेर के पत्तों, जड़, टहनी, दूध आदि में जो अल्कालॉयड पाए जाते हैं वह सीधे दिल को प्रभावित करते है। यह दिल की गति को बहुत ही धीमा का देते है।

कनेर देश के लगभग हर हिस्से में पायी जाता है। इसे बगीचे में, सड़क के किनारे, जंगल आदि जगहों पर आसानी से देखा जा सकता है। इसका पेड़ एक झाड़ी होता है। कनेर की तीन किस्में होती है जिनमे लाल, पीले और सफ़ेद फूल लगते हैं। इस झाड़ी को बहुत ही कम देखभाल की आवश्यकता होती है।

सफ़ेद कनेर को संस्कृत में करवीर, अश्वमारक, श्वेतपुष्प, शतकुम्भ, आदि नाम से जाना जाता है। रक्त या लाल रंग के कनेर को रक्तपुष्प, चंडाट, और लगुड के नाम से संस्कृत में जाना जाता है। इस पेड़ का इंग्लिश में नाम ओलियनडर तथा लैटिन में नेरियम ओलियनडर है।

By H. Zell - Own work, CC BY-SA 3.0
By H. Zell – Own work, CC BY-SA 3.0
lal kaner
By Neo Scholar (Own work) [CC BY 3.0]
  • Sanskrit: Karavira, Ashvamarak, Hayamara
  • Hindi: Karavira, Kaner
  • Bengali: Karabi, Karbbe, Karbee
  • Malayalam: Arali, Kanaveeram
  • Tamil: Sivappu, Arali, Sevvarali, Alari, Aatrulari
  • Kannada: Kanagilu, Kharjahar, Kanigale, Kanagile
  • Assamese: Diflee, Sammulhimar
  • Gujarati: Kaner
  • Marathi: Kanher
  • Punjabi: Kanir
  • Telugu: Kastooripatte, Errugumeru, Ganneru
  • Urdu: Kaner
  • पदार्थ संगठन Constituents

हर तरह के कनेर में दिल की गति को कम करने वाले और इसे ब्लाक करने वाले विष होते हैं। रोसेजिनिन एक गंध वाला तेल भी पाया जाता है। नेरिन व् टेनिकाम्ल और मोम भी पाया जाता है।

पत्तियों में ओलिंडरिन व् नेरियन पाया जाता है।

कनेर को संस्कृत में अश्वमारक कहा जाता है। यह नाम इसे इसके विषाक्त गुण के कारण दिया गया है। कनेर के पत्ते समेत इसके सभी हिस्से जैसे की जड़, तना, फूल आदि सभी अत्यंत जहरीले होते है। यह एक प्रबल जहर poison है। इसका लेटेक्स latex या दूध विष के समान है। यह जानकारी सभी को, खासतौर पर बच्चों को ज़रूर होनी चाहिए की कनेर के किसी भी हिस्से को मुंह में नहीं डालना चाहिए और इसे छूने के बाद हाथों को अच्छी प्रकार धोना बहुत ही ज़रूरी है।

कनेर का किसी भी प्रकार से सेवन हानिकारक है। कनेर के पत्तों, जड़, टहनी, दूध आदि में जो अल्कालॉयड पाए जाते हैं वह सीधे दिल को प्रभावित करते है। यह दिल की गति को बहुत ही धीमा का देते है।

कनेर में पाये जाने वाले केमिकल अगर किसी भी तरह शरीर में चले जायें तो इससे भ्रम, चक्कर आना, उनींदापन, कमजोरी, देखने में गड़बड़ी, हृदय असामान्यताओं, मुंह के आसपास जलन, मतली, उल्टी, ऐंठन, खूनी दस्त, जलन होती है। यह नाड़ी को मंद और दिल को ब्लॉक कर सकता है।

कनेर आँतों को सिकोड़ने वाला, गर्भ नष्ट करने वाला और वीर्य-रोधक है।

कनेर का आयुर्वेद में उपयोग Ayurvedic Uses of Kaner/ Nerium indicum in Hindi

आयुर्वेद में बहुत से विष वाले पौधों को एक दवा के रूप में भी प्रयोग किया जाता है। कनेर भी उसी वर्ग का पौधा है। यधपि यह जहरीला है फिर भी इसे शुद्ध कर बहुत ही कम मात्रा में त्वचा और दिल के रोगों के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है।

  • आयुर्वेद में कनेर को कडवा, कसैला, चरपरा, उष्णवीर्य, खाने में विष माना गया है। यह आँखों में दर्द, कोढ़, घाव, कृमि तथा खुजली के उपचार में प्रयोग किया जाता है।
  • चरक और सुश्रुत के करवीर को विष कहा है और केवल इसका प्रयोग कुष्ठ और अश्मरी में किया है।
  • सुश्रुत ने शिरोविरेचक वर्ग में इसका उल्लेख किया है। आयुर्वेदिक निघंटुकार केवल इसका बाहरी प्रयोग करने की ही सलाह देते हैं।
  • इसका प्रयोग त्वचा के रोगों, प्रमेह, कोढ़, घाव, और जोड़ों के दर्द में होता है।

क्योकि यह विष है इसका आतंरिक प्रयोग आम लोगों को नहीं करना चाहिए। उदाहरण के लिए, एक महिला को किसी में सलाह दी की जल्दी संतान पाने के लिए उसे कनेर का आंतरिक प्रयोग करना चाहिए। परिणाम यह हुआ की उसे अस्पताल में इमरजेंसी में भर्ती कराकर तीन दिनों तक शरीर में से ज़हर निकालने का उपचार कराना पड़ा। भारत ही नहीं पूरी दुनिया में ऐसी घटनाएँ हो चुकी है जिनमे कनेर के आंतरिक सेवन से पशुओं, और इंसानों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है।

Warning/Caution

  • कनेर के सभी भागों में जहर है।
  • पत्ती का आकस्मिक और चिकित्सकीय प्रयोग घातक है।
  • फूलों का आंतरिक प्रयोग घातक है।
  • ओलियंडर विषाक्तता के अधिकांश लक्षण हृदय और जठरांत्र हैं पर सेवन के चार घंटे के बाद दिखाई देते हैं। ओलियंडर विषाक्तता छोटी मात्रा में भी जानलेवा हो सकती है।
  • पत्ते, फूल और लेटेक्स को छूने के बाद हाथ धो लें।
  • कनेर के जहरीले गुणों के बारे में बच्चों को शिक्षित करें।

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