पाढ़र, पाढ़ल या पाटला के आयुर्वेद में कामदूती, कुम्भिका, कालवृन्तिका, स्थल्या, अमोघ, मधोर्दूती, ताम्रपुष्प, अम्बुवासिनी आदि नाम पर्याय हैं। यह एक औषधीय वनस्पति है तथा दशमूल की बृहत्पंचमूल में से एक है। पाढ़ल की छाल, अरणी, श्योनाक, बेल और गंभारी को ‘बृहत्पंचमूल’ कहते हैं एवं दवा की तरह इनकी जड़ अथवा छाल का प्रयोग करते हैं।
दशमूल का एक घटक होने से, पाढ़ आयुर्वेद की अनेकों दवाओं में डाला जाता है। इसका मुख्य गुण शरीर में वात और कफ को संतुलित करना है। पाढ़ल को चरक संहिता में शोथहर गण में और शुश्रुत संहिता में अरग्वधादि , बृहत् पंचमूल, अधोभागहर वर्ग में रखा गया है।
पाढ़र की जड़ को दशमूल को बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है। यह जड़ें बेलनाकार, करीब छः से नौ सेंटीमीटर लम्बी और 1-1.5 सेमी मोटी होती है। बाहर से यह भूरे-सफ़ेद रंग की, रूखी, दरार युक्त, तथा अन्दर से गहरी भूरे रंग की होती हैं। यह रेशे युक्त होती हैं तथा स्वाद में कड़वी होती हैं।
सामान्य जानकारी
- वानस्पतिक नाम: स्टीरियोस्पेर्मम सुआवेओलेंस Stereospermum suaveolens
- कुल (Family): बाईग्नोनीऐसेआई
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: जड़, जड़ की छाल, पुष्प, पत्ते और क्षार
- पौधे का प्रकार: वृक्ष
- वितरण: भारत में वेस्टर्न घाट-दक्षिण, दक्षिण-मध्य महाराष्ट्र आदि क्षेत्रों में, श्री लंका, म्यांमार
- पर्यावास: नम पर्णपाती वनों में
पाढ़ल के स्थानीय नाम / Synonyms
- संस्कृत: : Amogha, Madhuduti, Krishnvrinta, Tamrapushpa
- असमिया: Parul
- बंगाली: Parul
- अंग्रेज़ी: Trumpet flower tree, Yellow snake tree
- गुजराती: Podal
- हिन्दी: padal, Padhal, Paral, Paroli
- कन्नड़: Padramora, Kalaadri, Paadari
- मलयालम: Karingazha, Paathiri, Puuppaathiri
- मराठी: padal
- उड़िया: बोरो, Patulee
- पंजाबी: padal
- तमिल: Ampu, Ampuvakini, Patalam, Patiri, Punkali
- तेलुगु: Kaligottu, Kokkesa, Podira, Padiri, Ambuvasini, Patala
पाढ़ल का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
- किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
- सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
- सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
- डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
- क्लास Class: मग्नोलिओप्सीडा – द्विबीजपत्री
- आर्डर Order: स्क्रोफुलेरिएल्स Scrophulariales
- परिवार Family: बाईग्नोनीऐसेआई Bignoniaceae
- जीनस Genus: स्टीरियोस्पर्मम Stereospermum
- प्रजाति Species: स्टीरियोस्पर्मम सुआवेओलेंस Stereospermum suaveolens
- स्टेरियोस्पर्मम चेलोनॉइड्स Stereospermum chelonoides को सफ़ेद पाढ़ल (सफ़ेद रंग के फूले के कारण) तथा स्टीरियोस्पर्मम सुआवेओलेंस Stereospermum suaveolens को ताम्रपाढ़ल (लाल-ताम्बे के रंग के फूलों के कारण) माना गया है।
- केरल में स्टेरियोस्पर्मम टेट्रागोनम stereospermum tetragonum synonym स्टेरियोस्पर्मम पेर्सोनेटम stereospermum personatum को पाढ़ल की तरह प्रयोग किया जा है।
पाढ़ल के संघटक Phytochemicals
कड़वे पदार्थ, स्टेरोल्स ग्लाइकोसाइड, ग्लाइकोअल्कालॉयड
पाढ़ल के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
पाटला मुख्य रूप से कफ और वात को नष्ट करने वाली औषध है। यह स्वाद में तिक्त, कषाय है। यह ग्राही है और इसके सेवन से शरीर का जल सूखता है जिससे कब्ज़ हो जाती है। यह दीपनीय है और जठराग्नि को तेज करता है।
- रस (taste on tongue):तिक्त, कषाय
- गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
- वीर्य (Potency): अनुउष्ण (बहुत अधिक गर्म नहीं)
- विपाक (transformed state after digestion): कटु
कर्म
त्रिदोषहर: वात-पित्त-कफ का संतुलन करना
रुच्य: भोजन में रूचि बढ़ाने वाला
आयुर्वेदिक दवाएं
- दशमूल की विभिन्न दवाएं जैसे दशमूल क्वाथ, दशमूलारिष्ट
- अमृतारिष्ट
- भारंगी गुड़
- इन्दुकांत घी
पाढ़ल को आयुर्वेद में मुख्य रूप से निम्न रोगों में प्रयोग किया जाता है:
- श्वास/अस्थमा, शोथ/सूजन
- अर्श/बवासीर, छर्दी/उलटी
- हिक्का/हिचकी, तृष्णा / अधिक प्यास, अम्लपित्त
- रक्त विकार, मूत्र विकार
- विस्फोट
- मोटापा
पाढ़ल के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Patala / Stereospermum suaveolens in Hindi
- पाढ़ल के पत्ते, जड़, पुष्प, फल और बीज सभी का दवाई की तरह प्रयोग किया जाता रहा है।
- पत्तों को कान के दर्द, रूमेटिक दर्द, मलेरिया बुखार, पुराने अजीर्ण, और बुखार में देते हैं।
- पुष्पों को शरीर में जलन, पित्त-वात के रोगों, हृदय के रोगों, हिचकी, और शारीरिक कमजोरी को दूर करने के लिए दिया जाता है।
- फूलों को कुचलकर, शहद मिलाकर लेने से हिचकी रुकती है। इसके फूलों से बने गुलकंद को खाने से स्वास्थ्य अच्छा होता है।
- पत्तों और पुष्पों से बना काढ़ा ज्वर, शरीर में विष, कब्ज़, आदि में दिया जाता है।
- फलों का सेवन पित्त और वात रोगों में लाभप्रद है। बीजों को बाहरी रूप से सिर के दर्द /माइग्रेन में प्रयोग किया जाता है।
- जड़ों में ज्वरनाशक, दर्द निवारक, कब्ज़ करने के, मूत्रल, कफ निस्सारक expetorant, कार्डियो टॉनिक, कामोद्दीपक,सूजन दूर करने के, एंटीबैक्टीरियल, उल्टी रोकने तथा अस्थमा-कफ निवारक गुण पाए जाते हैं। जड़ों को अस्थमा, सूजन, बवासीर, उल्टी, इक्का, एसिडिटी, मूत्र विकार, त्वचा पर फोड़े आदि में दिया जाता है।
- पाढ़ल के तने की छाल को त्रिदोषज रोगों/ सन्निपात, हिक्का, उल्टी, भोजन करने में रूचि न होना, अस्थमा, गैस, जलने के घाव, पेशाब के रुक जाने और सूजन में प्रयोग करते हैं।
- पाढ़ल के पंचाग से बने क्षार को सात बार छान कर पेशाब रोगों, मूत्राघात, और प्रमेह में दिया जाता है।
- सरसों के तेल में पाढ़ल के काढ़े और पेस्ट को पका जो तेल बनता है उसे छालों और जलने के घाव पर लगाते हैं।
- मोटापे में पाढ़ल के काढ़े में चित्रक, सौंफ, और हींग मिलाकर देते हैं।
पाढ़ल की औषधीय मात्रा
- पाढ़ल की जड़ के चूर्ण/पाउडर को 5-10gram की मात्रा में लिया जा सकता है।
- पाटला की जड़ की छाल से बने काढ़े को 50-100ml की मात्रा में सेवन करना चाहिए।
- इसके पंचांग से बने क्षार को लेने की मात्रा 1-5 gram तक की है।
- पेड़ की छाल को 3-6gram की मात्रा में में ले सकते हैं।