बारलेरिया प्रीओनिटिस, एक कंटीली औषधीय वनस्पति है जिसे बाड़ की तरह बगीचों में उगाया जाता है। इसे गमलों में भी उगा सकते हैं। इसके पुष्प बड़े पीले होते हैं और देखने में आकर्षक होते हैं। पिया बांसा के पौधे को वार्षिक और इसकी जड़ों को बहुवर्षायु समझा जा सकता है।
भारत में हम बारलेरिया प्रीओनिटिस को अनेकों नाम से जानते हैं। इसे पीतसैरेयक, कुरंटक, कटसैरेया, पियाबांसा, काँटाजाती, दासकरंटा, काँटासेरियो व वज्रदंती आदि नामों से पूरे देश में जाना जाता हैं। इसे बहुत जगह पर पीला वज्रदंती भी कहा गया है, क्योंकि इसके प्रयोग से दांत और मसूड़े सम्बन्धी विभिन्न रोगों में लाभ होता है। इसे अकेले ही या अन्य द्रव्यों के साथ दाँतों के हिलने, कीड़ा लगने, मसूड़ों से खून आने, मसूड़ों के फूल जाने में प्रयोग करते हैं।
इसे पिया बासा, कहते हैं व वासा Adusa, Bansa, Vasika की तरह कफजन्य रोगों में प्रयोग करते हैं। यह तासीर में गर्म होने के कारण वात-कफ दोष को संतुलित करता है। इसके सेवन से पित्तदोष की वृद्धि और वात-कफ दोष कम होता है।
औषधि की तरह इसके ताजे पत्तों, फूल, सूखे पंचांग (जड़, तना, पत्ते, फूल और फल) का प्रयोग किया जाता है। ताजे पत्तों का रस और पंचांग का काढ़ा बनाकर पीने से विभिन्न रोगों में लाभ होता है।
सामान्य जानकारी
- वानस्पतिक नाम: बारलेरिया प्रीओनिटिस
- कुल (Family): एकेंथेसिएइ
- औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पूरा पौधा, मुख्य रूप से पत्ते और जड़
- पौधे का प्रकार: कंटीली झाड़ी
- पर्यावास और वितरण: भारत भर में गर्म प्रदेशों में
पियाबासा के स्थानीय नाम / Synonyms
- Scientific name: Barleria prionitis var। dicantha
- संस्कृत: कुरंटक, पीतकुरव, वज्रदंती, Kurantaka, Koranda, Kerandaka, Sahachara, Sahacharah, Saireyaka, Ananta, Bana, Pitapushpaka, Pitasaireyaka, Pura, Udyanapaki, Vira
- Assamese: Shinti
- Bengali: Kantajati
- Gujrati: Kanta-Saerio, Kantasalio, Kanta Shelio
- हिन्दी: पियाबासा, कटसरैया, कोरांटी, Sahachara
- Kannada: Sahachara, Mullu gorate, Mullu gorante, Haladi gorate
- Kutch: Vajra daul
- Malayalam: Kirimkurunji, Karim Kurunni, Chemmulli, Shemmulli, Manjakanakambaram
- Marathi: Koranta, Koranti, Piwala Koranta, Koreta
- Oriya: Dasakeranda
- Punjabi: Sahachar
- Siddha: Chemmulli
- Tamil: Sammulli, Shemmuli, Varamuli
- Telugu: Mulu Gorinta Chettu, Muligoranta
- Unani: Katsaraiya, Piyabaasa
- Urdu: Pila Bansa, Piya Bansa
- English: Barleria, porcupine-flower, Common yellow nail dye, Thorn nails dye, Yellow Hedge Barleria (Barleria acanthoides is known as Vajradanti, Spiny White barleria; Barleria cristata L. is known as Jhinti, Kurabaka, Sahachara, Sahacharah, Crested purple nail dye, Philippine violet)
- German: Stachelschweinblume
- Myanmar: Leik – Su – Shwe
- Philippines: Kukong
- Spain: Espinosa Amarilla
- Sweden: Orange Kantax
पियाबासा का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification
- किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
- सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
- सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
- डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta – Flowering plants फूल वाले पौधे
- क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
- सबक्लास Subclass: एस्टेरिडए Asteridae
- आर्डर Order: लैमिऐल्स Lamiales
- परिवार Family: एकेंथेसिएइ Acanthaceae
- जीनस Genus: बारलेरिया Barleria
- प्रजाति Species: बारलेरिया प्रीओनिटिस Barleria prionitis L। (Porcupine flower, Barleria)
बारलेरिया पौधे की इस प्रजाति का नाम बारलेरिया प्रीओनिटिस है व इसके फूल पीले रंग के होते हैं। बारलेरिया के लाल– सफ़ेद Barleria cristata नीले रंग Barleria striosa के फूलों वाली प्रजाति भी मिलती है। इन सभी प्रजातियों को झिंटी, कटसरैया आदि नामों से जानते हैं।
पियाबासा के संघटक Phytochemicals
बीटा सीटोस्टेरोल, पोटैशियम
पियाबासा के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
पियाबासा स्वाद में कड़वा, मीठा, खट्टा, गुण में हल्का, चिकना करने वाला, स्वभाव से गर्म है और कटु विपाक माना गया है। यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत।
उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।
- रस (taste on tongue): मधुर, अम्ल, तिक्त,
- गुण (Pharmacological Action): लघु, स्निग्ध
- वीर्य (Potency): उष्ण
- विपाक (transformed state after digestion): कटु
विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।
कर्म Action
- कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
- मूत्रल : द्रव्य जो मूत्र ज्यादा लाये। diuretics
- मूत्रकृच्छघ्न: द्रव्य जो मूत्रकृच्छ strangury को दूर करे।
- शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे। antihydropic
- श्लेष्महर: द्रव्य जो चिपचिपे पदार्थ, कफ को दूर करे।
- विषहर : द्रव्य जो विष के प्रभाव को दूर करे।
- वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।
आयुर्वेदिक दवाएं
- अष्टवर्ग क्वाथ (नर्वस रोग)
- सहचरादि तेल (न्यूरोलॉजिकल रोगों के लिए)
- नीलीकाद्यया तेल (बालों के सफ़ेद होने को रोकने के लिए)
- रस्नादी क्वाथ चूर्ण (नर्वस सम्बन्धी रोग)
पियाबासा के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Piyabasa in Hindi
पियाबांसा आसानी से उपलब्ध हो जाने वाली औषधि है। इसे कफजन्य विकारों, मुख रोगों, त्वचा रोगों में घरेलू उपचार की तरह प्रयोग किया जा सकता है। पियाबांसा को पुराने चमड़ी के रोगों जैसे की खुजली, एक्जिमा, आदि में बाह्य रूप से लगा सकते हैं। फोड़े-फुंसी में इसकी जड़ का पेस्ट लगाया जाता है। साइटिका, हाथ-पैर की जकड़न में इसकी पुल्टिस को बाँध कर लगाने से लाभ होता है। आयुर्वेद में इसके पुष्पों का आन्तरिक प्रयोग एडिमा, माइग्रेन, आंतरिक फोड़ों में दिया जाता है।
1- अतिसार diaarhoea
इसके रस को दो-तीन चम्मच की मात्रा में एक ग्राम सोंठ के साथ मिलाकर दिन में दो बार सेवन करें।
2- कफ, खांसी, कफजन्य रोग cough, cough related problems
- कटसरैया के आठ-दस पत्ते लेकर, कूट कर काढ़ा बनाकर दिन में दो बार पियें। अथवा
- इसके पत्तों का दो-तीन चम्मच स्वरस शहद मिलाकर पियें। अथवा
- इसके पंचांग को 3-5 ग्राम की मात्रा में लेकर डेढ़ गिलास पानी में उबाल कर काढ़ा बनाएं। इसे छान कर पी लें।
3- बच्चों को कफ, कफ के कारण बुखार cough in children, fever
इसके पत्तों के रस को शहद के साथ चटायें।
4- दाद – खुजली ringworm, itching, eczema
इसके पत्तों का लेप करें।
5- गठिया, आर्थराइटिस, जोड़ों की सूजन, लीवर की सूजन, आँतों की सूजन, शरीर में दर्द आदि
इसके पंचांग + सोंठ का काढ़ा बनाकर सेवन करें।
6- दांत सम्बन्धी रोग, दांत में दर्द, मसूड़ों से खून आना, दांतों का ढीला होना, मसूड़ों का फूल जाना
- इसके पत्तों को पानी में उबाल कर काढ़ा बना कुल्ला करें। अथवा
- इसके पत्ते + हल्दी + अकरकरा + नमक + सरसों का तेल, मिलाकर एक बारीक मुलायम पेस्ट बना लें और इससे मसूड़ों की मालिश करें।
7- मूत्र सम्बन्धी दिक्कत, पेशाब कम आना
इसके पत्तों में पोटैशियम की अच्छी मात्रा पायी जाती है व इन्हें साफ़-कूट कर स्वरस निकाल कर पानी मेवं मिलाकर पीने से लाभ होता है।
8- स्वप्नदोष, spermatorrhoea, धातुरोग, लिकोरिया, प्रमेह, प्रदर Dhatu rog, Prameha Roga of men, Pradar of females
इसके पत्तों से 4-5 चम्मच रस निकालकर मिश्री के साथ दिन में दो बार सेवन करें।
9- गर्भ ठहरने में दिक्कत, पुरुष इनफर्टिलिटी, वीर्य की कम मात्रा, महिला इनफर्टिलिटी Infertility problem in male or female
इसके पंचांग को दस ग्राम की मात्रा में लेकर डेढ़ गिलास पानी में डाल कर उबालें और जब एक कप पानी बच जाए तो इसे छान कर पियें। ऐसा तीन महीने तक लगातार करें।
10- सूजन, दर्द, घाव, घाव धोने के लिए, चमड़ी के रोग, फोड़ा-फुंसी, बालों के लिए External use
पौधे के पेस्ट को प्रभावित स्थान पर लगाएं।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications
- इसके पत्तों में काफी मात्रा में पोटैशियम पाया जाता है।
- यह पित्त को बढ़ाता है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
- अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है।
- जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
- शरीर में यदि पहले से पित्त बढ़ा है, रक्त बहने का विकार है bleeding disorder, हाथ-पैर में जलन है, अल्सर है, छाले हैं तो भी इसका सेवन न करें।
- आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।