सनाय को मन्दाग्नि, कब्ज़, लीवर और पेट के रोगों में, अपच, विषम ज्वर, कामला और पांडु रोग में औषधी के रूप में प्रयोग किया जाता है।
सनाय को मन्दाग्नि, कब्ज़, लीवर और पेट के रोगों में, अपच, विषम ज्वर, कामला और पांडु रोग में औषधी के रूप में प्रयोग किया जाता है।
सनाय को अरब देशों से भारत में लाया गया था। यह मूलतः सूडान और अरब का पौधा है जो बंजर धरती में उगता है । यह लेगुमिनेसी कुल का पौधा है। सनाय को हिन्दी में सनाय, अंग्रेजी में इंडियन सेन्ना, राजस्थानी में सोनामुखी कहते हैं। फारसी में इसे सिनामक्का कहा जाता है। दवा की तरह इसकी पत्तियों और फली का इस्तेमाल होता है। यह स्वाद में कड़वा और कसैला होता है। इसका इस्तेमाल एक रेचक और दस्तावर के रुप में होता है।
Thick bluish color leaves of plant are stripped off by hand and dried in shade for 7-10 days till they turn yellowish-green colour. The dried leaves are powdered and used for medicinal purpose. Senna is mainly used for treating constipation due to its strong purgative action. The recommended dose of senna powder is half to two grams. That also varies from person to person. Its excess dose and long term abuse cause many health issues. Below is given infoemation about senna in Hindi language.
Senna or Swarn-patri is an Arabian plant. Its botanical name is Cassia angustifolia or Cassia senna. Senna plant is small shrub in India it is cultivated largelyin Southern India, especially in districts of Tinnevelly, Madurai and Tiruchirapally and has also been introduced in Mysore.
विभिन्न नाम
- लेटिन नाम: कैसिया सेन्ना, केसिया अंगस्टीफोलिया
- इंग्लिश: टिना वेली सिना
- संस्कृत: स्वर्णपत्री
- बंगाली: सोनामुखी, सोनापाता
- प्रचलित नाम: सनाय, सोनामुखी
सनाय का पौधा
इसका पौधा झाड़ीनुमा होता है जिसकी ऊँचाई 2.0 से 4.0 फुट तक होती है। इसकी पत्तियां मेहँदी या सिरस जैसी होती हैं। सर्दियों में इसमें पीले रंग के फूल खिलते हैं। इसकी फली का रंग हल्का होता है और पकने पर गहरे भूरे रंग की हो जाती है | बीज भी भूरे रंग के होते हैं। यह एक बहुवर्षीय पौधा होता है तथा एक बार लगा देने के उपरांत तीन-चार वर्ष तक फल देता रहता है। यह अधिकतर बंजर भूमि में उगाये जाता है और इसे ज्यादा पानी की जरुरत नहीं होती है |
आयुर्वेदिक गुण और प्रभाव
- रस: कटु, तिक्त, कषाय
- गुण: लघु, रूक्ष, तीक्ष्ण
- वीर्य: उष्ण
- विपाक: कटु
- कर्म: रेचन
- महत्वपूर्ण दवाएँ: पंचसकार चूर्ण, सारिवाद्यासव
- औषधीय प्रयोग: पेट रोग, विबंध
औषधीय उपयोग
सनाय के पत्ते और फली को दवा तैयार करने के लिए आयुर्वेद में इस्तेमाल किया जाता है। सनाय पेट की बीमारियों और कब्ज में उपयोगी है। यह वात और कफ दोषों के इलाज में उपयोगी है। यह एक दस्तावर और रेचक है। इसकी पत्तियों और फलियों में सेनोसाईड पाए जाते हैं। इसे चमड़ी के रोगों में, प्लीहा बढ़ने, पीलिया, अमीबी पेचिश, गैस, अपच, उल्टी, हिचकी, अस्थमा, मलेरिया, बुखार और गठिया के इलाज में प्रयोग किया जाता है।
सनाय पत्ते, पाउडर के रूप में 1/2-2 ग्राम की मात्रा में लिया जा सकता है। सनाय फली में भी रेचक गुण होते हैं, लेकिन वे पत्तियों की तुलना में वे कम होते है ।
सनाय पत्ते ज्यादा मात्रा में लेने से पेट में ऐठन हो जाती है। इस दोष को दूर करने के लिए इसके साथ सोंठ या लवंग मिला लेना चाहिए।
दुष्प्रभाव
सनाय को आंत्र रुकावट, पेट में अज्ञात कारणों के दर्द, पथरी, कोलाइटिस, Crohn’s disease, IBS, बवासीर, नेफ्रोपैथी, प्रेगनेंसी और १२ वर्ष से छोटे बच्चों में न प्रयोग करे ।
- 8-10 दिनों से ज्यादा इसे उपयोग न करें।
- अधिक मात्रा में प्रयोग से दस्त हो सकते हैं ।
- दस्त होने पर इसे इस्तेमाल न करें।
बहुत से लोग इसे वज़न कम करने के लिए लम्बे समय तक इस्तेमाल करते है, जो की सही नहीं है ।
सनाय का उपयोग पेट साफ़ करने के लिए जाता है अगर सनाय युक्त पंचसकार चूर्ण ले रहे हैं तो ठीक है और केवल सनाय का उपयोग करते हैं तो नुकसान हो सकता है ऐसी हालत में उपयोग बंद कर दिया करो अगर कोई समस्या है तो छोटी हरड़ का उपयोग लाभदायक होता है जो लम्बी अवधि के लिए भी लाभदायक होता है
सनाय अधिक होने से 7 सालो से लैट्रीन पतली है कृपया कोई उपाय बताए।
कब्ज के लिए सनाय और त्रिफला युक्त चूर्ण का प्रयोग कितने समय तक कर सकते हैं ?