सिंघाड़े को संस्कृत में श्रृंगाटक, श्रृंगाहक, जलफल, त्रिकोणफल, जलकंटक, हिंदी में सिंघाड़ा, बंगाली में पानीफल, मराठी में शिंगाड़ा, गुजराती में शिंघोड़ा, पंजाबी में गौनरी, तेलुगु में परिकी गड्डू और इंग्लिश में वाटर केल्ट्रॉप, इंडियन वाटर चेस्टनट खाते हैं। इसका लैटिन में नाम ट्रापा नेटंस, ट्रापा बाई स्पाईनोज़ है।
यह एक जलीय पौधा है। इसके दो प्राकर के पत्ते होते हैं, एक जो पानी के अन्दर डूबे रहते हैं और दूसरे जो सतह पर तैरते रहते हैं। ऊपर वाले तैरते पत्ते गोल, हरे रंग तथा लाल शिरा युक्त होते हैं। पत्रवृंत तीन इंच लम्बे लाल रंग के होते हैं। इसके तने बैंगनी रंग के और रोयें युक्त होते हैं। इसमें पत्तियों के कोने से सफ़ेद रंग के पुष्प आते हैं। बाद में इसमें तिकोन आकार के फल लगते हैं जो की बाद में डाली के मुड़ जाने से पानी में लटकते रहते हैं। फल के छिलके मोटे और हरे होते हैं। पकने पर यह छिलके काले – हरे रंग के हो जाते है। छिलका हटाने पर सफ़ेद रंग की मज्जा होती हैं। जिसे हम सिंघाड़ा कहते हैं।
सिंघाड़ा पूरे भारतभर में नदी, तलाब, पोखर आदि के मीठे पानी में उगाया जाता है। इसके फलों को हम विभिन्न तरीके से खाते हैं। इसे हम ताज़े फल की तरह खाते हैं। इन्हें उबाल कर भी खाया जाता है। इससे बनी सब्जी बहुत स्वादिष्ट और पौष्टिक होती है। सिंघाड़े के फल को सुखा कर-पीस कर सिंघाड़े का आटा बनाते हैं, जिससे हम हलवा, बर्फी व रोटी बना सकते हैं। सिंघाड़ा व्रतों में खाया जाने वाला एक प्रमुख आहार है। क्योंकि यह एक फल है इसलिए व्रत के दौरान, जिनमे अनाज का सेवन वर्जित होता है, हम इसका हलवा या रोटी बना कर खा सकते है।
सिंघाड़े के फल पौष्टिक भोजन होने के साथ-साथ एक औषधि भी है। इसका आयुर्वेद के पुराने ग्रंथों में भी वर्णन मिलता है। इसे पुष्टिकारक, बलवर्धक, वाजीकारक फल माना गया है जिसका सेवन शरीर को ताकत देता है और धातुओं की वृद्धि करता है। इसका सेवन शरीर में कमजोरी को दूर करता है। स्त्रियों के लिए तो बहुत ही उत्तम कहा गया है। इसके सेवन से स्त्रियों में आयरन, विटामिन्स, मिनरल्स की कमी दूर होती है, साथ ही गर्भाशय मजबूत होता है। इससे असामान्य स्राव रूकता है तथा स्वस्थ्य संतान होने भी मदद होती है। पुरुषों में भी इसका सेवन वीर्य और शुक्र की वृद्धि करता है।
स्थानीय नाम
- वैज्ञानिक नाम: Trapa natans
- संस्कृत: Shringata, Jalaphala, Paaniphal, Trikonaphala
- बंगाली: Paniphal, Singade, Jalfal
- अंग्रेज़ी: Water Chestnut
- गुजराती: Shingoda, Singoda
- हिन्दी: Singhara, Singhada
- कन्नड़: Singade, Gara, Simgara, Simgoda
- मलयालम: Karimpolam, Vankotta, Jalaphalam, Karimpola
- मराठी: Shingoda
- उड़िया: Paniphala, Singada
- पंजाबी: Singhade, Gaunaree
- तमिल: Singhara
- तेलुगु: Kubyakam, Singada
- उर्दू: Singhara
सिंघाड़ा के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
स्वाद में सिंघाड़ा मधुर-कषाय, पचने में भारी है और स्वभाव से शीत है। यह मधुर रस हैं जिसका सेवन शरीर में धातुओं की वृद्धि करता है तथा वज़न बढ़ाता है। यह शरीर को पुष्ट करता है, दूध बढ़ाता है, जीवनीय व आयुष्य है। मधुर रस, गुरु (देर से पचने वाला) है। यह वात-पित्त-विष शामक है।
लेकिन मधुर रस का अधिक सेवन मेदो रोग और कफज रोगों का कारण है। यह मोटापा/स्थूलता, मन्दाग्नि, प्रमेह, गलगंड आदि रोगों को पैदा करता है।
यह शीत वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। शीत वीर्य औषधि के सेवन से मन प्रसन्न होता है। यह जीवनीय होती हैं। यह स्तम्भनकारक और रक्त तथा पित्त को साफ़ / निर्मल करने वाली होती हैं।
- रस (taste on tongue): मधुर, कषाय
- गुण (Pharmacological Action): गुरु
- वीर्य (Potency): शीत
- विपाक (transformed state after digestion): मधुर
विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है।
मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है। यह कफ या चिकनाई का पोषक है। शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ाता है। इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं।
कर्म Principle Action
- शीतल: स्तंभक, ठंडा, सुखप्रद है, और प्यास, मूर्छा, पसीना आदि को दूर करता है।
- पित्तहर: द्रव्य जो पित्तदोष पित्तदोषनिवारक हो। antibilious
- वृष्य: द्रव्य जो बलकारक, वाजीकारक, वीर्य वर्धक हो।
- श्रमहर: द्रव्य जो थकावट दूर करे।
- शुक्रकर: द्रव्य जो शुक्र का पोषण करे।
- ग्राही: द्रव्य जो दीपन और पाचन हो तथा शरीर के जल को सुखा दे।
- स्तन्यजन्य: द्रव्य जो दूध का स्राव बढ़ाये।
- गर्भस्थापना: जो गर्भ की स्थापना में मदद करे।
- रक्त स्तंभक: जो चोट के कारण या आसामान्य कारण से होने वाले रक्त स्राव को रोक दे।
सिंघाड़ा खाने के फायदे
सिंघाड़े को कच्चा, उबाल कर अथवा इसके आटे को हम इसके स्वास्थ्य लाभ पाने के लिए प्रयोग कर सकते हैं। इसे आयुर्वेद में पचने में भारी माना गया है इसलिए पाचन शक्ति के अनुसार ही इसका सेवन करना चाहिए। बहुत अधिक मात्रा में सेवन पाचन को धीमा करता है, गैस बनाता है और कब्ज़ करता है। इसलिए जैसी पाचन शक्ति हो उसी के अनुसार आप इसकी दस से लेकर पचास ग्राम तक की मात्रा का सेवन कर सकते हैं।
- यह शीतल है और शरीर में अधिक गर्मी को शांत करता है और इस कारण शरीर में गर्मी के कारण होने वाले रोगों जैसे की नाक से खून गिरना, योनि से रक्त स्राव आदि को रोकता है।
- यह शरीर में पित्त की अधिकता को दूर करता है और एसिडिटी तथा अन्य पित्त रोगों में लाभ करता है।
- इसके सेवन से मेद धातु बढ़ती है और वज़न की वृद्धि होती है। इसलिए जो लोग बहुत पतले हों वे इसका हलवा बना कर सेवन करें।
- यह वीर्यवर्धक, शुक्रवर्धक और बलकारक है। इसके आटे की दूध के साथ फंकी लेने अथवा हलवा बनाकर खाने से वीर्य बढ़ता है।
- यह महिलाओं के लिए वरदान है। इसके सेवन से स्त्रियों में गर्भाशय को ताकत मिलती है और बच्चे होने के आसार भी बढ़ते है। यह गर्भावस्था में गर्भाशय से होने वाले आसामान्य रक्तस्राव को रोकने में मदद करता है और गर्भस्थ शिशु को पोषण देता है। जिन स्त्रियों में गर्भाशय की कमजोरी के कारण एबॉर्शन के आसार हों उन्हें इसका नियमत सेवन करना चाहिए। रक्त प्रदर की समस्या होने पर इसके आटे से बनी रोटी का सेवन करें।
- यह कब्ज़ करता है और इस कारण लूज़ मोशन होने पर इसके सेवन से लाभ होता है।
- यह पचने में भारी है जिस कारण देर तक पेट भरा रहता है।
- अतिसार, पित्त विकार हों तो इसका सेवन करके देखें।
- यह पौष्टिक और ज्वर नाशक है। इसमें प्रोटीन, फैट, विटामिन बी, सी, कार्बोहायड्रेट, लोहा, कैल्शियम, मग्निसियम, मैंगनीज, फॉस्फोरस, समेत बहुत से एनी फाइटोकेमिकल पाए जाते हैं। सिंघाड़े आटे का हलवा देसी घी में बनाकर खाने से शरीर की कमजोरी दूर होती है। इसमें भैस के दूध की तुलना में करीब बाइस प्रतिशत अधिक मिनरल पाए जाते हैं। सौ ग्राम सिंघाड़े का सेवन करीबी 115 कैलोरी देता है।
- गला बैठ जाने, टोंसिल, एनीमिया, अस्थमा, अनियमित पीरियड, रक्त के विकारों, कमजोरी, शरीर में जलन, खून गिरना, पतलापन, कामेच्छा की कमी, प्रमेह आदि में सिंघाड़े के आटे का सेवन बहुत लाभप्रद है।
सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications
- यह शरीर में वात और कफ को बढ़ाता है। इसलिए वात और कफ प्रवृति के ओग इसका सेवन सावधानी से करें।
- इसके सेवन से गैस की समस्या हो सकती है।
- इसके नियमित सेवन से वज़न में वृद्धि होती है।
- यह पचने में भारी है। इसलिए पाचन की क्षमता के अनुसार ही इसका सेवन करें।
- कब्ज़ में इसका सेवन न करें।
- सिंघाड़ा खा कर तुरंत पानी न पियें।