जिमीकंद सूरन Suran Medicinal Uses in Hindi

जिमीकन्द, सूरण, कन्द, ओल, ओला, कांदल, अर्शोघ्न Sooran, Zamikand, Jimikand आदि सूरन के नाम हैं। पूरे भारत में इसे एक सब्जी के रूप पकाकर खाया जाता है। सूरन को केवल धो-काट कर नहीं पकाया जाता अपितु इसे काटने के बाद नींबू, इमली, फिटकिरी या सिरके के पानी में उबाल कर ही छिल कर फिर इसकी सब्जी को बनाते हैं। ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि इस कन्द में कैल्शियम ऑक्सालेट तथा एक कड़वा जूस होता है जो खट्टे पानी में उबालने पर ही दूर होता है। यदि ऐसा न किया जाये तो यह खाने पर मुंह और गले में तेज़ जलन करता है।

भारत में सूरन का आचार भी बनता है। आचार का सेवन पित्त को बढ़ाता है और वायु को कम करता है। यह फाइबर युक्त होता है और पुराने कब्ज़ और पाइल्स में लाभ करता है। आयुर्वेद में तो इसे अर्शोघ्न नाम दिया गया है जिसका अर्थ होता है, अर्श अथवा पाइल्स को नष्ट करने वाला।

By Aruna at Malayalam Wikipedia (Own work) [GFDL (http://www.gnu.org/copyleft/fdl.html), CC-BY-SA-3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0/) or CC BY-SA 2.5-2.0-1.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/2.5-2.0-1.0)], via Wikimedia Commons
By Aruna at Malayalam Wikipedia (Own work) [GFDL (http://www.gnu.org/copyleft/fdl.html), CC-BY-SA-3.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/3.0/) or CC BY-SA 2.5-2.0-1.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/2.5-2.0-1.0)], via Wikimedia Commons
बवासीर के अतिरिक्त इसे ब्रोंकाइटिस, दमा, खांसी, अपच, पेट में दर्द, फ़ीलपाँव, त्वचा और रक्त रोग, नालव्रण, गर्दन की ग्रंथियों में सूजन, मूत्र रोगों और जलोदर के उपचार में एक दवा के रूप में प्रयोग किया जाता है।

यह यकृत रोगों में विशेष रूप से उपयोगी है। पुरानी कब्ज और बवासीर के रोगियों के लिए यह एक अच्छी सब्जी है।

सामान्य जानकारी

  • वानस्पतिक नाम: एमोरफोफैलस कैमपैनुलेटस
  • कुल (Family): लिली परिवार
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: कन्द
  • पौधे का प्रकार: छोटा पौधा
  • वितरण: पूरे भारत में इसकी खेती होती है
  • पर्यावास: गर्म, नम क्षेत्र
  • स्थानीय नाम / Synonyms
  • वैज्ञानिक नाम: Amorphophallus campanulatus
  • संस्कृत: Soorana, Kandula, Arshoghna, Kandayak, Gudaamaya-hara, Kandala, Suranah
  • बंगाली: ओले Ole
  • अंग्रेज़ी: Elephant-foot Yam, Elephant Yam, Cheeky yam, Corpse flower, Corpse plant, Telinga Potato, Voodo lily
  • गुजराती: सुरण
  • हिन्दी: सूरन, सूरण
  • कन्नड़: Suvarna gadde
  • मलयालम: Chena, Kattuchena, Kattuchenai
  • सिद्ध: Karnsa
  • तमिल: Karunai Kizhangu
  • तेलुगु: Mancai Kanda Durada Gadda
  • यूनानी: Soorana, Zamin-qand, Zamikand
  • अरबी: Batata el-feel
  • बांग्लादेश: Ol
  • चीन: Bai Ban Mo
  • म्यांमार: Wa

वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मग्नोलिओफाईटा – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: लिलीओप्सीडा Liliopsida
  • सबक्लास Subclass: ऐरेसीडीएई Arecidae
  • आर्डर Order: ऐरेल्स Arales
  • परिवार Family: ऐरेसिऐइ Araceae
  • जीनस Genus: एमोरफोफैलस Amorphophallus
  • प्रजाति Species:एमोरफोफैलस कैमपैनुलेटस Amorphophallus campanulatus

पोषण प्रति 100 ग्राम सूरन में

  1. ऊर्जा 70 किलोजूल
  2. पानी 80 ग्राम
  3. प्रोटीन 1.2 ग्राम
  4. फैट 0.1 ग्राम
  5. फाइबर 0.8 ग्राम
  6. कार्बोहाइड्रेट 18.4 ग्राम
  7. ओक्सालिक एसिड 1.3 ग्राम
  8. खनिज 0.8 ग्राम
  9. कैल्शियम 50.0 मिलीग्राम
  10. फास्फोरस 34.0 मिलीग्राम
  11. आयरन 0.6 मिलीग्राम
  12. थायमिन 0.06 मिलीग्राम
  13. राइबोफ्लेविन 0.07 मिलीग्राम
  14. नियासिन 0.7 मिलीग्राम
  15. कैरोटीन 260 मिलीग्राम
  16. विटामिन ए 434 I.U.

सूरन के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

सूरन स्वाद में कटु, तिक्त गुण में रूखा करने वाला और हल्का है।

कटु रस तीखा होता है और इसमें गर्मी के गुण होते हैं। गर्म गुण के कारण यह शरीर में पित्त बढ़ाता है, कफ को पतला करता है। यह पाचन और अवशोषण को सही करता है, क्लेद/सड़न, मेद, वसा, चर्बी, मल, मूत्र को सुखाता है और अधिकता में सेवन करने से शुक्र धातु को नष्ट करता है।

तिक्त रस, वह है जिसे जीभ पर रखने से कष्ट होता है, अच्छा नहीं लगता, कड़वा स्वाद आता है, दूसरे पदार्थ का स्वाद नहीं पता लगता तथा इसके अधिक सेवन से धातुक्षय और वातविकार होते हैं।

स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

  • रस (taste on tongue): कटु, तिक्त
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु

कर्म:

  • कृमिघ्न: कृमि नष्ट करने वाला
  • अर्शोघ्न: [पाइल्स नष्ट करने वाला
  • रुच्य: भोजन में रूचि बढ़ाने वाला
  • वेदनाहर: दर्द दूर करने वाला
  • पित्तकर: पित्त बढ़ाने वाला
  • कफहर: कफ नष्ट करने वाला
  • दीपन: पाचन को अच्छा करने वाला
  • रक्तपित्तकर: ब्लीडिंग डिसऑर्डर करने वाला
  • दाद्रुकर: दाद करने वाला

सूरन प्लीहा और गुल्म को नष्ट करता है। यह बवासीर में पथ्य है। आयुर्वेद में सभी शाकों में इसे श्रेष्ट माना गया है।

रोग जिसमें सूरण का सेवन लाभप्रद है:

  1. बवासीर/अर्श/पाइल्स
  2. पेट के रोग
  3. अस्थमा, ब्रोंकाइटिस
  4. लीवर के रोग
  5. स्प्लीन का बढ़ जाना

सूरन की औषधीय मात्रा

सूरन को सब्जी की तरह खाया जा सकता है। औषधि की तरह प्रयोग करने के लिए इसके पाउडर का प्रयोग अधिक करते हैं।

पाउडर बनाने से पहले इसे शोधित करना ज़रूरी है। इसके लिए सूरन को इमली, नींबू युक्त पानी में उबाला जाता है। उबले हुए सूरन को पानी से निकाल कर छिल लिया जाता है और छोटे-छोटे टुकड़ों में काट कर धूप में सुखा लेते हैं। पूरी तरह से सूख जाने पर इसका चूर्ण बना लेते हैं।

इस चूर्ण को 5-10 ग्राम की मात्रा में औषधि की तरह प्रयोग कर सकते हैं।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. यह पित्त को बढ़ाता है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
  2. अधिक मात्रा में सेवन पेट में जलन, एसिडिटी, आदि समस्या कर सकता है।
  3. जिन्हें पेट में सूजन हो gastritis, वे इसका सेवन न करें।
  4. शरीर में यदि पहले से पित्त बढ़ा है, रक्त बहने का विकार है bleeding disorder, हाथ-पैर में जलन है, अल्सर है, छाले हैं तो भी इसका सेवन न करें।
  5. आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।
  6. इसे दाद, कोढ़, रक्त पित्त में नहीं खाना चाहिए।

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