तुलसी – ऑसीमम सैक्टम Tulsi Benefits, Medicinal Uses and Caution in Hindi

तुलसी का भारतीय संस्कृति में पवित्र स्थान है। यह पूजनीय तथा शुभ है। तुलसी हर हिन्दू घर में विद्यमान होती है। हिन्दू धर्म की परम्परा अनुसार, तुलसी को घर में लगाने से शोभा, समृद्धि एवं स्वास्थ्य की वृद्धि होती है। तुलसी की पूजा अर्चना की जाती है। इसके पत्ते देवों को अर्पित होते हैं। पत्तों का प्रसाद, पंचामृत आदि बनता है। ऐसा माना जाता है की तलसी के पौधे घर में होने से मच्छर, कीटाणु आदि नहीं पनपते और वातावरण शुद्ध रहता है। तुलसी के पौधे को भय, दुख, रोग आदि का नाशक माना गया है। हर हिन्दू के लिए तुलसी पवित्र और पूजनीय है। हमारे ऋषियों ने संभवतः इसके अनेकों स्वास्थ्यप्रद गुणों के कारण ही इसे हर घर में लगाने की परम्परा का आरम्भ किया होगा।

Read In English: Tulasi Uses in Homeopathy and Tulsi Medicinal Uses in Ayurveda

Tulasi
By Manikandan.nature (Own work) [CC BY-SA 4.0 (http://creativecommons.org/licenses/by-sa/4.0)], via Wikimedia Commons
तुलसी एक औषधीय वनस्पति है। आजकल किये जाने वाले वैज्ञानिक शोध भी इसके औषधीय गुणों और प्रयोगों को सही सिद्ध करते है।

डेंगू, चिकनगुनिया, फ्लू, आदि सभी वायरल जनित बुखारों में तुलसी बहुत ही सफलता से इलाज़ करती है। अन्य जड़ी बूटियों के साथ मिलाकर इसे लेने से इसका प्रभाव और बढ़ जाता है, जैसे डेंगू के बुखार में इसे गिलोय के साथ काढ़ा बनाकर दिया जाता है। कफ की अधिकता में इसे शहद के साथ देते है।

सामान्य रोगों जैसे की खांसी, जुखाम, बुखार, पेट में दर्द, सिर में दर्द, कास-श्वास, वमन, अजीर्ण, मन्दाग्नि, चरम रोग, कील-मुहांसे, पेट के कीड़े, लू लगना आदि सभी इसके सेवन से दूर होते हैं।

सामान्य जानकारी

तुलसी के पौधे घरों, उद्यानों, बागीचे आदि में लगाए जाते हैं। यह एक फुट से कुछ ऊँचे होते हैं। इसके पत्ते रगड़ने पर विशेष सुगंध आती है। इसकी मंजरियों के अन्दर छोटे भूरे-काले से गोल बीज होते हैं। तुलसी के पौधे को गमलों में भी सरलता से उगाया जाता है। बीजों को नम मिट्टी में छिड़क देने पर उपयुक्त मौसम में वे अंकुरित हो जाते है। तुलसी के पौधों के लिए काली, उर्वरक, नमी युक्त मिट्टी उपयुक्त है।

तुलसी अर्थात ओसिमम सैन्कटम की दो किस्में हैं, राम तुलसी और श्याम तुलसी।

राम तुलसी Rama Tulsi: इस तुलसी के पत्ते हल्के हरे होते हैं, मंजरियाँ भूरी सी और टहनियां कुछ सफ़ेद रंग ली हुई होती हैं।

श्याम, काली या कृष्ण तुलसी Shyama or Krishna Tulsi: इस तुलसी के पत्तों, दालों और मंजरियों का रंग कुछ गहरा – जामुनी से रंग का होता है।

गुणों में श्यामा तुलसी को रामा तुलसी से अधिक माना जाता है। बुखार, कफाधिक्य, आदि में काली तुलसी का प्रयोग अधिक लाभप्रद है। कृष्णा तुलसी में कफनाशक गुण अधिक होते हैं। यह गंध और तीक्ष्णता में भी रामा तुलसी से आधिक है। दोनों ही प्रकार की तुलसी को समान औषधीय प्रयोगों हेतु प्रयोग किया जा सकता है।

तुलसी क्योंकि रसों में उत्तम है, इसलिए आयुर्वेद में इसका नाम सुरसा भी है। सर्व सुलभ होने से यह सुलभा है और गावों में पाए जाने से यह ग्राम्या है।

  • वानस्पतिक नाम: ओसिमम सैन्कटम
  • कुल (Family): लैमीएसिएई
  • औषधीय उद्देश्य के लिए इस्तेमाल भाग: पत्ते, बीज, पूरा पौधा
  • पौधे का प्रकार: छोटा पौधा
  • वितरण: पूरे भारतवर्ष में

तुलसी के स्थानीय नाम / Synonyms

  1. संस्कृत: Tulasi, Surasa, Bhuutaghni, Suravalli, Sulabha, Manjarika, Bahumanjari, Devadumdubhi, Apetarakshasi, Shulaghni
  2. हिन्दी: तुलसी
  3. अंग्रेजी: Tulsi,Tulasi, Holy Basil
  4. असमिया: Tulasi
  5. बंगाली: Tulasi
  6. गुजराती: Tulasi, Tulsi
  7. कन्नड़: Tulasi, Shree Tulasi, Vishnu Tulasi
  8. मलयालम: Tulasi, Tulasa
  9. मराठी: Tulas
  10. पंजाबी: Tulasi
  11. तमिल: Tulasi, Thulasi, Thiru Theezai, Thulasi
  12. तेलुगु: Tulasi
  13. उर्दू: Raihan, Tulsi

तुलसी का वैज्ञानिक वर्गीकरण Scientific Classification

  • किंगडम Kingdom: प्लांटी Plantae – Plants
  • सबकिंगडम Subkingdom: ट्रेकियोबाईओन्टा Tracheobionta संवहनी पौधे
  • सुपरडिवीज़न Superdivision: स्परमेटोफाईटा Spermatophyta बीज वाले पौधे
  • डिवीज़न Division: मैग्नोलिओफाईटा Magnoliophyta – Flowering plants फूल वाले पौधे
  • क्लास Class: मैग्नोलिओप्सीडा Magnoliopsida – द्विबीजपत्री
  • सबक्लास Subclass: एस्टेरिडए Asteridae
  • आर्डर Order: लैमिऐल्स Lamiales
  • परिवार Family: लैमीएसिएई Lamiaceae
  • जीनस Genus: ओसिमम Ocimum
  • प्रजाति Species: ओसिमम सैन्कटम Ocimum sanctum

तुलसी के संघटक Phytochemicals

  1. तेल यूजीनोल Carvacrol, Caryophyllene, Nerol and Camphene etc
  2. स्टेरोल
  3. फ्लावोनोइड
  4. फैटी एसिड्स

तुलसी के आयुर्वेदिक गुण और कर्म

तुलसी स्वाद में कटु, कड़वी गुण में हल्की, रूखा करने वाली, और स्वभाव से यह गर्म है। यह एक कटु विपाक औषधि है।

कटु रस जीभ पर रखने से मन में घबराहट करता है, जीभ में चुभता है। तिक्त रस, वह है जिसे जीभ पर रखने से कष्ट होता है, अच्छा नहीं लगता, कड़वा स्वाद आता है, दूसरे पदार्थ का स्वाद नहीं पता लगता।

कटु रस तीखा होता है और इसमें गर्मी के गुण होते हैं। गर्म गुण के कारण यह शरीर में पित्त बढ़ाता है, कफ को पतला करता है। यह पाचन और अवशोषण को सही करता है। इसमें खून साफ़ करने और त्वचा रोगों में लाभ करने के भी गुण हैं। कटु रस औषधियां गर्म, हल्की और पसीना लाने वाली होती हैं।

तिक्त रस, स्वयं तो अरुचिकर है परन्तु ज्वर आदि के कारण उत्पन्न अरुचि को दूर करता है। यह कृमि, तृष्णा, विष, कुष्ठ, मूर्छा, ज्वर, उत्क्लेश / जी मिचलाना, जलन, समेत पित्तज-कफज रोगों का नाश करता है।

तुलसी को आयुर्वेद में उष्ण माना गया है परन्तु यह क्योंकि पसीना लाती है इसलिए शरीर की अतिरिक्त गर्मी और ज्वर में लाभप्रद है। यह उष्ण गुण के कारण अस्थमा और कफ रोगों में भी अच्छे परिणाम देती है।

  • रस (taste on tongue): कटु, तिक्त (कड़वी)
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु  विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।
  • दोष: वात और कफ कम करना, पित्त वर्धक
  • स्रोत: श्वशन, पाचन, तंत्रिका, परिसंचरण, और मूत्र अंग

कर्म Principle Action

  1. दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
  2. स्वेदल: द्रव्य जो स्वेद / पसीना लाये।
  3. श्वास-कासहर: द्रव्य जो श्वशन में सहयोग करे और कफदोष दूर करे।
  4. हृदय: द्रव्य जो हृदय के लिए लाभप्रद है।
  5. कुष्ठघ्न: द्रव्य जो त्वचा रोगों में लाभप्रद हो।
  6. मूत्रकृच्छघ्न: द्रव्य जो पेशाब की जलन में लाभप्रद हो।
  7. कफनिःसारक: द्रव्य जो श्वासनलिका, फेफड़ों, गले से लगे कफ को बलपूर्वक बाहर निकाल दे।
  8. कफहर: द्रव्य जो कफ को कम करे।
  9. वातहर: द्रव्य जो वातदोष निवारक हो।
  10. पित्तकर: द्रव्य जो पित्त को बढ़ाये।

औषधीय गुण Biomedical Action

  1. जीवाणुरोधी Antibacterial
  2. आक्षेपनाशक Antispasmodic
  3. सुगंधित Aromatic
  4. वायुनाशी Carminative
  5. स्वेदजनक Diaphoretic
  6. कफ निस्सारक Expectorant
  7. ज्वरनाशक Febrifuge
  8. स्नायविक विकार को दूर करने वाली Nervine

रोग जिनमे तुलसी प्रयोग लाभप्रद है

  1. किसी भी कारण से होने वाला ज्वर / बुखार fever
  2. श्वास, कास asthma, cough-coryza
  3. हिक्का hiccups
  4. छर्दी nausea-vomiting
  5. कृमिरोग worm isfestations
  6. पार्श्वशूल pain in ribs
  7. त्वचा रोग skin diseases
  8. पथरी stones
  9. इनफर्टिलिटी infertility
  10. वात-कफ रोग diseases due to vitiation of Vata and Kapha

तुलसी का शरीर पर प्रभाव

तुलसी का सेवन सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए लाभप्रद है। इसका विशेष प्रभाव पाचन, फेफड़ों, तंत्रिकाओं nerves और रस धातु पर होता है।

1- फुफ्फुस lungs

तुलसी के सेवन से फेफड़ों में जमा कफ और ऊपरी श्वशन अंगों से बलगम दूर होता है। स्वेदक होने के कारण यह पसीना लाती है, बुखार- फ्लू में मदद करती है।

प्रवाहस्रोतों पर काम करने के गुण के कारण, तुलसी को अस्थमा में ब्रोंकाइटिस, राईनाइटिस तथा अन्य श्वशन तन्त्र के एलर्जी के कारण होने वाले रोगों में प्रयोग किया जाता है। यह फेफड़ों की क्षमता में वृद्धि कर सकती है। तुलसी शरीर से विषाक्त पदार्थों को साफ करती है और छाती के संक्रमण के होने वाले बुखार में भी लाभप्रद है।

2- पाचन प्रणाली, पाचन तंत्र, या आहार तंत्र digestive system

  • तुलसी के सेवन से पाचन वायु का आँतों में सही से प्रवाह होता है। यह अपान वायु को नीचे की तरह ले जाने वाली औषध है।
  • अपान वायु अन्डकोषों, मूत्राशय, नाभि, उरू, गुदा में में रहती है तथा इसका काम मल, मूत्र, शुक्र, गर्भ और आर्तव को बाहर निकालना है। जब यह कुपित होती है तब मूत्राशय और गुदा से संबंधित रोग, जैसे की अफारा, शूल, मूत्रकृच्छ आदि, होते हैं।
  • तुलसी का औषधीय मात्रा में सेवन भूख और पाचन में सहयोगी है। यह क्योंकि उष्ण वीर्य है इसलिए अग्नि को बढ़ाते हुए मेद अर्थात मोटापे को कम करती है।
  • यह रक्त में शर्करा के स्तर, और कोलेस्ट्रोल को भी कम करती है।

3- तंत्रिका तन्त्र पर तुलसी का प्रभाव

  • यह तंत्रिका तन्त्र में उत्तेजना लाती है जिस कारण से भ्रम आदि दूर होते हैं। यह सिर के दर्द, अधिक वायु के कारण सिर के दर्द आदि में लाभप्रद है।
  • यह रक्त प्रवाह को बढ़ाती है और शरीर से जकड़न दूर करती है।

4- पुरुषों के रोगों में तुलसी के बीजों का प्रयोग

तुलसी के बीज Tulasi Seeds धातुपौष्टिक गुणों से युक्त है। यह स्निग्ध होते हैं। बीज वातशामक, दीपन, पाचन, हृदय के लिए हितकर, विषहर हैं। यह वीर्यवर्धक, पुष्टिकारक, और धातुवर्धक हैं।

5- धातुपौष्टिक प्रयोग

  • धातु वृद्धि के लिए, तुलसी के बीजों को आधा से लेकर दो ग्राम की मात्रा में लिया जाता है।
  • इसके बीजों को सादा या केवल कत्था – चूना लगे पान के साथ नित्य प्रातः और शाम खाली पेट लेते हैं।
  • जो लोग इसे पान के साथ नहीं लेना चाहते, वे इसे पुराने गुड़ के साथ ले सकते हैं।
  • यह प्रयोग वीर्य को पुष्ट करता है और खून को साफ़ करता है।
  • इसे आवश्कताअनुसार, एक सप्ताह से लेकर एक महीने तक ले सकते है।
  • अधिकतम चालीस दिन तक यह प्रयोग किया जा सकता है।

6- स्वप्न दोष में

तुलसी के बीजों को पीस कर शहद के साथ सेवन करना चाहिए।

7- वीर्य की कमजोरी में

तुलसी के बीज 50 gram, सफ़ेद मुसली 40 gram, और मिश्री 60 gram का चूर्ण बनाकर रख लेना चाहिए और इसे दैनिक, एक बार 10 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ लेना चाहिए।

8- धातुक्षीणता में

तुलसी के बीजों को २ ग्राम की मात्रा में एक कप पानी में रात भर भिगो देना चाहिए। सुबह इसे अच्छी तरह मसल कर पीना चाहिए।

तुलसी के स्वास्थ्य लाभ Health Benefits of Tulsi

  1. तुलसी हर प्रकार के ज्वर में उपयोगी है। इसके ताज़े रस को एक-दो चम्मच की मात्रा में दिन में दिन में दो बार लेने से किसी भी कारण से होने वाले बुखार में लाभ होता है।
  2. तुलसी हृदय के लिए टॉनिक है।
  3. यह पित्त वर्धक है भूख व पाचन को बढ़ाने वाली है।
  4. इसके सेवन से कफ और वात की अधिकता से होने वाले रोग दूर होते हैं।
  5. यह विष, कृमि, उल्टी, अस्थमा, और त्वचा रोगों में अत्यंत लाभप्रद है।
  6. तुलसी के पत्तो के सेवन से सर्दी, खांसी, जुखाम, बुखार, इम्युनिटी की कमी, तथा अनेकों तरह के रोग दूर होते हैं।
  7. यह मन को शांत रखती है और अवसाद तथा तनाव को दूर करती है।
  8. तुलसी के पत्तों का सेवन उर्जा देता है, हार्मोन का संतुलन करता है, संक्रमण से बचाता है, और तनाव को दूर करता है।
  9. यह शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है।
  10. तुलसी के पांच पत्तों का दैनिक सेवन व्यक्ति को स्वस्थ्य रखता है।

तुलसी के औषधीय उपयोग Medicinal Uses of Tulsi in Hindi

तुलसी के अनेकों औषधीय प्रयोग हैं। यह सभी प्रकार के ज्वर, चर्म रोग, मूत्रकृच्छ, पांडू रोग, कास-श्वास, वात रोग, कफ रोग, मासिक के दौरान अधिक रक्त स्राव, बंध्यत्व, आदि में घरेलू उपचार की तरह प्रयोग की जा सकती है।

1- मन्दाग्नि, पाचन की कमजोरी

तुलसी के पत्तों का रस 1 चम्मच, को अदरक के रस और नीम्बू के रस के साथ मिलाकर चाट कर लेना चाहिए।

2- अपच, बदहजमी :तुलसी के पत्तों का रस, काली मिर्च चूर्ण के साथ मिलाकर लेना चाहिए।

3- पेट में दर्द : तुलसी के पत्तों का रस, अदरक के रस के साथ मिलाकरपीना चाहिए।

4- उल्टी / छर्दी : तुलसी के पत्तों का रस, शहद के साथ मिला कर चाटना चाहिए।

5- पेट के कीड़े : तुलसी के पत्तों को सुबह खाली पेट चबा कर लेना चाहिए।

6- बवासीर : तुलसी के बीजों का चूर्ण खाने से लाभ होता है।

7- ज्वर : तुलसी के पत्तों का रस, काली मिर्च मिलाकर पियें।

8- मलेरिया के बुखार में तुलसी का रस, 12 ml की मात्रा में दिन में तीन बार लें।

9-कफ के बुखार में, तुलसी का रस, काली मिर्च का चूर्ण एक ग्राम को चार ग्राम शहद के साथ लें।

10- मंद ज्वर में तुलसी के पत्तों का रस एक तोला को पुदीने के रस एक तोला, के साथ लेना चाहिए। 11-

11-पुराना बुखार और विषम ज्वर में, तुलसी के पत्तों का रस दिन में तीन बार लेना चाहिए।

12- फ्लू में, तुलसी के पत्तों का रस का अजवाइन और सोंठ के साथ लेना चाहिए।

13- वात विकार

तुलसी के पत्तों का रस, काली मिर्च को घी के साथ लेना चाहिए।

14- मुख में छाले

तुलसी के पत्तों को चबाएं।

15- सिर का दर्द

तुलसी के पत्तों का रस, नीम्बू के रस के साथ मिला कर लेना चाहिये।

16- हृदय को ताकत देना

तुलसी के पत्ते 5-6, काली मिर्च 3-4 दाने को 3-4 बादाम के साथ पीस कर खाना चाहिए।

17- हिचकी

तुलसी के पत्तों का रस शहद मिला कर सेवन करें।

18- सर्दी खांसी, जुखाम, सर्दी के कारण बुखार

  • तुलसी के पत्तों और काली मिर्च के कुछ दानों का काढ़ा बनाकर, शहद मिलाकर पीना चाहिए।
  • तुलसी के पत्तों का रस, शहद क्र साथ लें।
  • तुलसी के पत्तों का रस, अदरक का रस, काली मिर्च को शहद के साथ मिलाकर चाटें।

19- मुहांसे

मुहासों पर तुलसी के पत्तों को पीस कर लगाना चाहिए।

20- त्वचा रोगों में

तुलसी पत्तों से सिद्ध तेल कप प्रभावित स्थान पर लगाना चाहिए। तेल बनाने के लिए, तुलसी के पत्तों का कल्क / पेस्ट, सरसों के तेल में पकाना चाहिए। जब सारा पानी उड़ जाए और तेल बचे तो इसे छान लेना चाहिए और त्वचा रोगों पर लगाना चाहिए।

तुलसी की औषधीय मात्रा

  1. तुलसी के पत्तों को लेने की औषधीय मात्रा 7ml से 15 ml है।
  2. तुलसी के सूखे पत्तों के चूर्ण को 1 gram से लेकर 9 gram तक की मात्रा में ले सकते हैं।
  3. पत्तों से बने काढ़े को 50 -100 ml की मात्रा में ले सकते हैं।
  4. बीजों के चूर्ण को लेने की मात्रा एक से दो माशा या 1-2 gram है।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. तुलसी का प्रयोग श्वशन रोगों में लाभप्रद है। परन्तु यह ध्यान रखें यह उष्ण वीर्य और पित्त वर्धक है। इसलिए यदि कफ दोष के साथ पित्त दोष भी है तो कृपया तुलसी का सेवन किसी पित्त कम करने वाली औषधि के साथ करें।
  2. पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।
  3. कुछ लोगों में औषधीय मात्रा में तुलसी का सेवन पित्त को कुपित कर सकता है।
  4. तुलसी का अन्य जड़ी-बूटी के साथ किसी भी प्रकार का ड्रग इंटरेक्शन नहीं देखा गया है।
  5. आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। इसका सेवन गर्भावस्था में न करें।
  6. तुलसी का प्रयोग बहुत लम्बे समय तक अधिक मात्रा में न करें।
  7. इसे बहुत छोटे बच्चों को न दें।

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