बरना (Crataeva nurvala) Varuna Tree in Hindi

बरुना या वरुण आयुर्वेद में मुख्य रूप से पथरी के उपचार के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका संस्कृत में नाम वरुण, अश्मरीघ्न, आजापा, कुमारक, तिक्तशाक, सेतु, तथा इंग्लिश में थ्री-लीव्ड केपर, होली गार्लिक पियर है। लैटिन में यह क्राटेवा नुर्वाला कहलाता है तथा वरुण कुल- काप्पारिडेसे में आता है।

बरना का पेड़ पूरे भारत में, पर विशेष रूप से मलाबार, कन्नड़, बंगाल, हिमालय की तराई में प्राकृतिक रूप से अधिक मिलता है। वरुण का पेड़ औषधीय प्रयोजन के लिए उत्तरी भारत में लगाया भी जाता है। वरुण का पेड़ २५ से ३० फुट की उंचाई तक का होता है और ज्यादातर जंगलों में पानी के स्रोतों के आस-पास (आद्र) उगता पाया जाता है।

इसकी शाखाएं फैली हुई होती हैं तथा टहनी के छोर पर पत्तों के गुच्छे होते हैं। इसके पत्ते बेल के पत्तों की तरह तीन-तीन साथ लगते हैं। पत्तों को मसलने पर तेज गंध आती है। इसकी छाल सलेटी रंग की और आधा – एक इंच मोटी होती है। फूल सफ़ेद और फल सुपारी के आकार के होते हैं। वरुण के पत्ते खाने योग्य होते हैं और सब्जी की तरह खाए भी जाते है। सब्जी का स्वाद यद्यपि अच्छा तो नहीं होता है पर यह वज़न को कम करता है।

चरक, सुश्रुत संहिता तथा विभिन्न आयुर्वेदिक ग्रंथों में इसका प्रधान गुण अश्मरी नाशक ही बताया गया है। बरुन की छाल और पत्तों का मुख्य प्रभाव मूत्र अंगों पर होता है। यह मूत्रल है तथा अन्य मूत्रल वनस्पतियों के साथ मिलाकर, इसका काढ़ा बनाकर पीने से शरीर से पथरी टूट कर निकल जाती है। पथरी, बस्ती के दर्द, मूत्रकृच्छ, सुजाक में इसकी छाल को गोखरू, मुलेठी, कुल्थी की दाल, पुनर्नवा, आदि के साथ होता है।

स्थानीय नाम

  1. Latin name: Crataeva nurvala
  2. Sanskrit: Varun, Varana, Tiktshaak, Setu, Ashmarighna, Kumarak
  3. Hindi: Baruna, Barna
  4. Bengali: Varne, Borun
  5. English: Three­leaved caper, caper tree, Holy garlic pear
  6. Gujarati: Vayvarno, Varano
  7. Kannada: Bitusi, Holenekki, Holethumbe, Maavilanga, Mata maavu, Naaram bele, Vitasi, Neervaala mara, Sethu bandhana, Vaayu varuna, Nervaala, Bipatri, Mattamavu, Neervalamara
  8. Kashmiri: Kath
  9. Malyalam: Nirmatalam, Neermatalam, Nirval
  10. Marathi: Haravarna, Karvan, Kumla, Nirvala, Ramala, Varun, Vaayuvarna
  11. Punjabi: Barna, Barnahi
  12. Oriya: Baryno
  13. Tamil: Mavilingam, Narvala, Varanam, Maavilangam, Maralingam
  14. Telugu: Ulimidi, Bilvaram, Chinnavulimidi, Maagalingam, Maaredu, Peddamaagalingam, Peddavulimidi, Thellavulimidi
  15. Unani: Baranaa
  16. Siddha: Maavilingam

आयुर्वेदिक गुण धर्म

बरुना की छाल का स्वाद तिक्त, कषाय तथा गुण हल्का और रूक्ष है। यह स्वभाव में गर्म और कटु विपाक औषधि है। कर्म में यह मलरोधक, भेदी, वात और कफ नाशक है। यह आमवात और पथरी को दूर करने वाली औषध है।

बरुना का प्रयोग आयुर्वेद में विशेष रूप से वात-कफ के कारण होने वाले मूत्र के रोगों और किडनी तथा पेशाब नली में होने वाली पथरी को दूर करने के लिए होता है।

रस (taste on tongue):तिक्त, कषाय

गुण (Pharmacological Action): लघु, रुक्ष

वीर्य (Potency): उष्ण

विपाक (transformed state after digestion): कटु

कर्म:

भेदी, दीपन, कफ-वात हर, कृमिघ्न, अश्मरीघ्न, अनुलोमन

उपयोगी अंग: छाल, पत्ते, जड़

वीर्यकालावधि: १ वर्ष

संगठन: सैपोनिन, टैनिन, स्टेरोल्स फ़्लवोनोइद्स इत्यादि

मुख्य दवाएं:

  1. Varanadi Ghrita वर्णादि घृत
  2. Varunadi Kwath Churna वर्णादि क्वाथ चूर्ण
  3. Varunadi kwath / Varanadi Kashaya वरुणादि कषाय
  4. Prabhanjana Vimardhana thailam प्रभंजन विमर्धन तैलंम

बरना के औषधीय प्रयोग

वरुण की छाल बहुत ही अच्छी जीवाणुनाशक औषधि है। यह कम मात्रा में ली जाने पर कटु पौष्टिक है। यूनानी में इसे तीसरे दर्जे का खुश्क और गर्म माना गया है। गण्डमाला में बरुन की छाल का काढ़ा शहद के साथ मिलाकर दिया जाता है और बाहरी रूप से प्रभावित जगह पर लगाया भी जाता है। पैरों की सूजन में इसके पत्ते गर्म करकर प्रभावित जगह पर बांधे जाते है। गठिया में इसके पत्तों और छाल को पीस कर पोटली बना कर सेंक करने से लाभ होता है। मूत्र सम्बन्धी रोगों में छाल का काढ़ा लाभप्रद है।

औषधीय मात्रा में पेड़ की छाल का चूर्ण ३-६ ग्राम की मात्रा में लिया जाता है। पत्तों का स्वरस १२-२४ ग्राम तक लिया जाता है। क्वाथ बनाने के लिए छाल का चूर्ण २०-३० ग्राम तक की मात्रा में पानी में उबाल कर बनाया जाता है।

Read in English http://www.bimbima.com/health/post/2014/01/23/herb-information-varun-tree.aspx

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