शुक्राणु अत्यंत ही सूक्ष्म, जीवित पुरुष जनन कोशिकाएं हैं। शुक्रकीट माइक्रोस्कोप के द्वारा हिलते डुलते देखे जा सकते हैं। यह केवल एल्कलाइन / क्षारीय दशा में ही जीवित रह सकते हैं। अम्लता / एसिडिक मीडियम, इन्हें नष्ट कर देती है। प्रोस्ट्रेट ग्रन्थि से वीर्य में मिलने वाला पदार्थ, एल्कलाइन, चिकना और पतला होता है जिससे शुक्रकीट आसानी से चल सकें। जब तक शुक्राणु, पुरुष जनन पथ में रहते हैं इनमें गति नहीं होती। लेकिन स्खलन ejaculation के बाद यह आगे की ओर तेज़ी से बढ़ते हैं। अपनी गति के कारण ही यह शुक्राणु योनि से गर्भाशय की ग्रीवा और फिर नलिका में पहुँच जाते हैं। शुक्राणु महिला के जननमार्ग में केवल कुछ घंटे से लेकर १-२ दिन तक ही जीवित रह पाते हैं।
जाने शुक्राणु को
शुक्राणु एक काशाभिक कोशिका Flagellated Cell है जिसमें शिर, ग्रीवा, मध्य भाग और पूँछ होती है।
सिर Head: शुक्राणु का सिर वाला हिस्सा, एक सिरे पर अंडाकार और दूसरे सिरे चपटा होता है। अंडाकार सिरे की आगे की तरफ, ऐक्रोसोम हिस्सा होता है जो की एक प्रकार का एंजाइम छोड़ता है जिससे निषेचन हो सके। पिता की जेनेटिक जानकारी भी इसी हिस्से में होती है।
मध्य भाग Mid Piece: यह स्पर्म का पॉवर हाउस है। इसमें माइटोकोनड्रीया होता है जो स्पर्म को तैरने के लिए ताकत देता है।
पूँछ Tail: इसमें माइक्रोट्यूब्स होती है जो की स्पर्म को आगे की ओर धक्का देती हैं।
शुक्राणु वर्धक उपाए
आयुर्वेद में कुछ भोजनों और औषधीय वनस्पतियाँ बताई गई हैं जिनका सेवन सम्पूर्ण स्वास्थ्य को और विशेष रूप से संतानोंत्पत्ति की क्षमता को बढ़ाता है। यह सभी भोज्य पदार्थ शुक्रल अर्थात स्पर्म बढ़ाने वाले, वाजीकारक / कामेच्छा बढ़ाने वाले और रसायन (एंटीएजिंग, टॉनिक) हैं। इन भोजनों का सेवन शरीर को बल, उर्जा, शक्ति, और ओज देता है। यह द्रव्य धातु वर्धक, वीर्यवर्धक, शक्तिवर्धक तथा बलवर्धक है।
1- मूसली चूर्ण + गोखरू कांटा चूर्ण + तालमखाना + शतावर जड़ का चूर्ण + कौंच बीज का चूर्ण, को समान मात्रा में मिला लें। इसमें चूर्ण की बराबर मात्रा में मिश्री चूर्ण मिला लें। इस औषधीय चूर्ण को एक बोतल में स्टोर कर के रख लें। रोजाना इस चूर्ण को 5 ग्राम की मात्रा ने दिन में दो बार, सुबह और शाम गुनगुने दूध के साथ लें। ऐसा 3-4 महीने तक लगातार करें। इसके सेवं से वीर्य गाढ़ा होता है व शुक्राणुओं की संख्या बढ़ जाती है।
2- पोस्ता दाना / खसखस + कौंच बीज की गिरी का चूर्ण, बराबर मात्रा में मिला लें। इसे 5 ग्राम की मात्रा में दिन में दो बार मिश्री मिले गाय के दूध के साथ कुछ माह तक लगातार सेवन करें।
3- अश्वगंधा जड़ का चूर्ण + शतावरी जड़ का चूर्ण + विधारा की जड़, को समान मात्रा में मिला लें। इस औषधीय चूर्ण को एक बोतल में स्टोर कर के रख लें। रोजाना इस चूर्ण को 5 ग्राम की मात्रा ने दिन में दो बार, सुबह और शाम गुनगुने गाय के दूध के साथ लें।
4- बबूल फलियाँ सुखा लें। इसको पीस कर चूर्ण बना लें। इसमें समान मात्रा में मिश्री मिला लें। इसे रोजाना पांच ग्राम की मात्रा में, दिन में दो बार सुबह – शाम, गुनगुने मिश्री युक्त दूध के साथ सेवन करें।
5- इमली के बीज की गिरी को भी शुक्राणु की कमी, शीघ्रपतन, वीर्य का पतलापन आदि में प्रयोग किया जाता है। इमली के बीज को पानी में भिगो लें जिससे इसका छिलका उतर सके। छिलकों को अलग कर लें। गिरी को छाया में सुखा लें। इसे कूट कर चूर्ण बना लें। इसमें समान मात्रा में मिश्री मिला लें। इसे रोजाना चौथाई चम्मच की मात्रा में, दिन में दो बार सुबह – शाम, गुनगुने मिश्री युक्त दूध के साथ सेवन करें। ऐसा २ महीने तक लगातार करें।
इमली के बीजों को टुकड़े कर पानी में भिगो लें। नर्म होने पर छिलके उतार लें। खरल में इसकी घुटाई करे और मिश्री मिला लें। जब घुटाई करते हुए यह गाढ़ा हो जाए तो इसकी तीन ग्राम की गोलियां बनाकर सुखा लें। रोज एक गोली शाम को दूध के साथ सेवन करें।
इमली के बीज भून लें। इनका छिलका उतार लें और गिरी को पीस कर चूर्ण बना लें। इसमें बराबर मात्रा में मिश्री मिला लें। इसे रोजाना 5 ग्राम की मात्रा में सेवन करें।
6- सफ़ेद प्याज का रस 25 ml को शहद के साथ सेवन करें। इसमें घी और अदरक का रस भी मिला सकते हैं।
7- अश्वगंधा की जड़ का चूर्ण को मिश्री, घी और शहद के साथ खाएं।
8- आमलकी रसायन शहद के चाट कर लें।
कुछ अन्य उपयोगी सुझाव
- दूध, घी, मक्खन, केला, खजूर आदि वीर्यवर्धक आहारों का सेवन अवश्य करें।
- जंक फ़ूड न खाएं।
- तले, भुने, खट्टे, मसालेदार भोजन न खाएं।
- खूब पानी पियें।
- एक्सरसाइज करें।
- तनाव कम करें।
- कब्ज़ न रहने दें। इसके लिए हरीतकी चूर्ण अथवा त्रिफला चूर्ण का रात को सोने समय सेवन करें।
- पाचन सही रखें।
पाचन की कमजोरी है, तो उसे अवश्य ठीक करें। यदि पाचन कमजोर होगा तो पौष्टिक, परन्तु भारी, स्निग्ध और मधुर बलवर्धक उपायों का सही से अवशोषण नहीं हो पायेगा। अपने पाचन की स्थिति के अनुसार ही उपायों की मात्रा तय करें।