बहुमूत्रान्तक रस के फायदे, नुकसान, उपयोग विधि और प्राइस

बहुमूत्रान्तक रस, आयुर्वेद की एक क्लासिकल रस औषधि जिसे भैषज्य रत्नावली के बहुमूत्र चिकित्सा से लिया गया है। क्योंकि यह आयुर्वेद की क्लासिकल दवा है इसलिए यह बहुत सी आयुर्वेदिक फार्मेसियों दवा निर्मित की जाती है।

यह एक आयुर्वेदिक रस-औषधि है जिसमें रस, पारा है। पारे को ही आयुर्वेद में रस या पारद कहा जाता है और बहुत सी दवाओं के निर्माण में प्रयोग किया जाता है। रस औषधियां शरीर पर शीघ्र प्रभाव डालती हैं। इन्हें डॉक्टर की देख-रेख में ही लेना सही रहता है।

इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें।

This medicine is indicated in Bahumutra, Prameha, Seminuria, Impotency, Premature Ejaculation, Thin Semen, Low Sperm Count, Soma Rog etc.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: रस औषधि, पारे वाली आयुर्वेदिक दवा
  • मुख्य उपयोग: मूत्र रोगों की चिकित्सा

बहुमूत्रान्तक रस के घटक | Ingredients of Bahumutrantak Ras in Hindi

  1. रस सिन्दूर Ras Sindura 1 Part
  2. लौह भस्म Lauha Bhasma 1 Part
  3. बंग भस्म Bang Bhasma 1 Part
  4. गूलर बीज Gular Bija 1 Part
  5. बिल्व मूल Bilva mool, Chhaal 1 Part
  6. तुलसी Tulsi 1 Part
  7. शुद्ध अफीम Shuddha Ahiphena / Afeem 1 Part (Many pharmacies make Bahumutrantak Ras without Opium; Do check the list of ingredients)
  8. भावना द्रव्य Gular Fruit Juice

रस सिंदूर, केमिकली मरक्यूरिक सल्फाइड है। यह रस अर्थात पारे से बना होता है और रंग में लाल होता है इसलिए रस सिन्दूर कहलाता है। रस सिंदूर को बनाने की कई विधियाँ आयुर्वेद में वर्णित हैं।

इसमें गंधक करीब 14 और मर्करी 86 प्रतिशत पाया जाता है। यह एक कूपीपक्व रसायन है जो की कज्जली को कांच की शीशी में सैंड बाथ या बालुका यंत्र में पका कर बनाया जाता है। तैयार होने पर जब शीशी सैंडबाथ में स्वांग शीतल हो जाती है तो उसे तोड़ कर गलप्रदेश पर चिपके रक्तवर्ण के रस सिन्दूर को एकत्र कर लिया जाता है।

रस सिंदूर को ज्वर, प्रमेह, प्रदर, अर्श, अपस्मार, उन्माद, श्वास, यकृत रोग, पाचन रोग, विस्फोट, स्वप्न दोष, समेत पुराने आमवात, शिरः कम्प, कम्पवात आदि अभी में दिया जाता है।

यह उष्णवीर्य रसायन है जिसकी मात्रा बहुत से कारकों पर निर्भर है। यह उत्तेजक है, रक्त की गति को तेज करता है, कफ नष्ट करता है, स्नायु को बल देता है और फेफड़ों के रोगों को दूर करता है। यह मुख्य रूप से कफ को दूर करता है।

रस सिंदूर क्योंकि एक रस औषधि है इसलिए इसे लम्बे समय तक लेना सुरक्षित नहीं है। इसे एक महीने से ज्यादा की अवधि तक लेने से कई दुष्परिणाम होते है।

लौह भस्म आयरन का ऑक्साइड है और आयुर्वेद बहुत अधिक प्रयोग होता है। यह पांडू रोग या अनीमिया को नष्ट करता है। यह पांडू रोग या अनीमिया को नष्ट करता है। लौह भस्म को पाण्डु (anaemia), प्रमेह (diabetes), यक्ष्मा (tuberculosis), अर्श (piles), कुष्ठ (skin disorders), कृमि रोग (worm infestation), क्षीणतवा (cachexia), स्थूलया (obesity), ग्रहणी (bowel syndrome), प्लीहा रोग (spleenic disorders), मेदोरोगा (hyperlipidemia), अग्निमांद्य (dyspepsia), शूल (spasmodic pain), और विषविकार (poisoning) में प्रयोग किया जाता है।

वंग भस्म टिन अर्थात स्टेनम Stannum-Tin से बनती है। वंग भस्म का मुख्य प्रभाव मूत्र अंगों और जननांगों पर होता है। इसे पुरुषों और स्त्रियों के प्रजनन अंगों सम्बंधित रोगों में प्रयोग किया जाता है। यह पुरुष की इन्द्रिय को ताकत देती है, शुक्र धारण में सहयोग करती है, वीर्य को गाढ़ा करती है तथा नामर्दी, शीघ्रपतन, पेशाब के साथ शुक्र जाना, स्वप्न में स्खलन, हस्तमैथुन आदि में रोगों को नष्ट करती है। इसे आयुर्वेद में शुक्रक्षय, स्वप्नमेह, शुक्र स्खलन, नपुंसकता की सर्वोत्तम औषधि माना गया है।

बिल्व को संस्कृत में शांडिल्य, शैलूष, श्रीफल, गंधगर्भ, शलाटु, कंटकी व सदाफल के नाम से जाना जाता है। बिल्व महापञ्च मूल जिन्हें वृहत पञ्चमूल बिल्व, पढ़ल, गंभारी, और श्योनाक) भी कहते हैं, का हिस्सा है।

बिल्व की मूल/जड़ को आयुर्वेद में वात/वायु और कफ दोष को संतुलित करने वाला माना गया है लेकिन यह पित्त को नहीं बढ़ाता। यही छर्दी को नष्ट करता है। यह श्वास रोग और ज्वर में भी प्रयो की जाने वाली औषध है।

बहुमूत्रान्तक रस के फायदे | Benefits of Bahumutrantak Ras in Hindi

  1. यह मूत्र अंगों और प्रजनन अंगों पर काम करने वाली औषधि है।
  2. इसके सेवन से मूत्र सम्बन्धी रोग दूर होते हैं।
  3. यह बहुत अधिक मात्रा में पेशाब आना, प्रमेह, मधुमेह, पेशाब के साथ वीर्य जाना में लाभप्रद है।
  4. यह वीर्य को गाढ़ा करता है।
  5. यह स्तम्भन में सहायक है।
  6. यह नाड़ियों को ताकत देता है।
  7. यह शीघ्रपतन में लाभदायक है।

बहुमूत्रान्तक रस के चिकित्सीय उपयोग | Uses of Bahumutrantak Ras in Hindi

यह दवा मुख्य रूप से मूत्र सम्बन्धी रोगों की है।

  1. बहुमूत्र Polyuria
  2. मधुमेह Diabetes
  3. नामर्दी Impotence
  4. सोम रोग Soma Roga
  5. शीघ्र पतन Premature Ejaculation
  6. वीर्य का पतला होना Watery Semen
  7. वीर्य की कमी आदि

बहुमूत्रान्तक रस की सेवन विधि और मात्रा | Dosage of Bahumutrantak Ras in Hindi

  1. 1 गोली, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
  2. इसे रोगानुसार अनुपान के साथ लें।
  3. बहुमूत्र में इसे, जामुन की गुठली चूर्ण एक ग्राम + गुड़मार चूर्ण एक ग्राम + गूलर का रस + शहद के साथ लें।
  4. डायबिटीज में, इसे जामुन की गुठली के चूर्ण और गुड़मार चूर्ण के साथ लें।
  5. अन्य प्रमेह के रोगों में इसे गिलोय रस के साथ लें।
  6. नपुंसकता-नामर्दी-शीघ्रपतन-वीर्य दोष में इसे मिश्री मिले दूध के साथ लें।
  7. इसे भोजन करने के बाद लें।
  8. या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications in Hindi

  1. इस दवा को डॉक्टर की देख-रेख में ही लें।
  2. इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  3. इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
  4. यह हमेशा ध्यान रखें की जिन दवाओं में पारद, गंधक, खनिज आदि होते हैं, उन दवाओं का सेवन लम्बे समय तक नहीं किया जाता। इसके अतिरिक्त इन्हें डॉक्टर के देख-रेख में बताई गई मात्रा और उपचार की अवधि तक ही लेना चाहिए।
  5. इसे बताई मात्रा से अधिकता में न लें।

उपलब्धता

इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।

  1. Baidyanath Bahumutrantak Ras
  2. Lion Bahumutrantak Rasa
  3. Unjha Bahumutrantak Rasa
  4. Dindayal Bahumutrantaka Rasa
  5. तथा अन्य बहुत सी फर्मसियाँ।

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