गंधक में एंटी-बेक्टेरियल, एंटी-फंगस, तथा अन्य पैरासिटिक जीवों को मारने के गुण मौजूद है। यह त्वचा रोगों में विशेष रूप से उपयोगी है। आजकल लोशन, क्रीम, साबुन आदि बनाने के लिए भी इसका प्रयोग एक घटक की तरह होता है।
गंधक को आयुर्वेद में बहुत अधिक प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद की रस औषधियों का यह एक प्रमुख घटक है। कज्जली, जिसे बहुत सी आयुर्वेदिक दवाएं बनाने के लिए निर्मित किया जाता हैं वह पारद और गंधक के योग से बनती है।
गंधक को इंग्लिश में Sulphur or Sulfur सल्फर कहते हैं। इसकी अपनी अलग तरह की गंध होती है । इसका रासायनिक चिन्ह S तथा एटॉमिक नंबर 16 है। यह घातु नहीं है। साधारण तापमान पर यह क्रिस्टल रूप में पीले रंग का होता है। प्राकृतिक रूप से यह ज्यादातर सल्फाइड या सल्फेट की तरह मिलाता है। इसे बहुत ही प्राचीन समय से एक दवा के रूप में आंतरिक और बाह्य दोनों तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है।
सभी जीवों की कोशिकायों का सल्फर एक महत्वपूर्ण घटक है। यह हमारे शरीर में पाए जाने वाले सभी तत्वों में से वज़न के हिसाब से सातवां या आठवां सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध तत्व है। एक 70 किलो के मानव शरीर में सल्फर करीब 140 ग्राम होता है।
गंधक में एंटी-बेक्टेरियल, एंटी-फंगस, तथा अन्य पैरासिटिक जीवों को मारने के गुण मौजूद है। यह त्वचा रोगों में विशेष रूप से उपयोगी है। आजकल लोशन, क्रीम, साबुन आदि बनाने के लिए भी इसका प्रयोग एक घटक की तरह होता है।
गंधक के नाम | Gandhak Names in Hindi
गंधक उष्ण स्रोतों के पास से अधिक निकलता है। यह भूगर्भ से गोदंती और लाइम-स्टोन के साथ प्राप्त होता है। इसके कुछ नाम इस प्रकार हैं:
- संस्कृत: गंधक, गंधिक, गंधपाषाण, बलि, बलबस
- हिंदी: गंधक
- तेलुगु: गंधकमु
- फारसी: गोगिर्द
गंधक के प्रकार | Types of Gandhak in Hindi
- गंधक के चार प्रकार हैं।
- लाल: यह दुर्लभ है। यह तोते की चोंच के सामान लाल होता है तथा इसका प्रयोग सोना, चांदी, आदि जैसी धातुओं के निर्माण में किया जाता है।
- पीला: यह मध्यम पीला होता है। इसे रस-रसायन बनाने के लिए प्रयोग किया जाता है।
- सफ़ेद: यह सफ़ेद रंग का होता है और बाह्य रूप से लेप करने के काम आता है।
- काला: यह सोना बनाने के लिये उत्तम है।
शुद्ध गंधक क्या है? What is purified gandhak?
आयुर्वेद में गंधक को केवल शुद्ध करके ही प्रयोग किया जाता है। शुद्ध करने का अर्थ है, गंधक में से दूषित पदार्थों को दूर करना और उसे दवा के रूप में प्रयोग करने योग्य बनाना।
केवल शुद्ध गंधक का प्रयोग ही दवा के रूप में होता है। अशुद्ध गंधक या बिना शोधित गंधक आंतरिक प्रयोग के लिए उपयुक्त नहीं है। अशुद्ध गंधक के सेवन से कोढ़, विषम ज्वर, भ्रम, पित्त रोग, रक्त-विकार, सूजन आदि विकार शरीर में उत्पन्न होते हैं। यह शारीरिक बल, ओज, वीर्य तथा स्वास्थ्य का नाश करता है।
गंधक को शुद्ध करने का तरीका
गंधक को शुद्ध करने के लिए गाय का दूध या भृंगराज पौधे का रस और घी का प्रयोग किया जाता है।
सबसे पहले लोहे के बर्तन में घी को पिघलाया जाता है और उसमें पिसा हुआ गंधक डाल दिया जाता है। जब यह पिघल जाता है तो दूध डाल दिया जाता है। कुछ देर उसे आग पर पकाया जाता है फिर उतार कर ठंडा किया जाता है। जब गंधक जम जाता है तो उसे पानी से धो लिया जाता है और अब इसे शुद्ध गंधक कहा जाता है।
गंधक के आयुर्वेदिक गुण और कर्म
- शुद्ध गंधक चरपरा, कड़वा, कसैला, और स्वभाव में गर्म होता है। यह रस में मधुर और पाक में कटु माना गया है।
- रस (जीभ पर स्वाद): काषाय, मधुर, कटु, तिक्त
- गुण (औषधीय कार्रवाई): उष्ण, सार, स्निग्ध
- वीर्य (शक्ति): उष्ण
- विपाक (पाचन के बाद बदल राज्य): कटु
इसमें निम्नलिखित गुण पाए जाते हैं:
- पित्त बढ़ाने वाला
- दस्तावर
- रासायन, दीपन, पाचन
- कफ नाशक
- वात नाशक
- बल्य, मेद्य
- कृमिहर, आमशोथहर
- खाज, कुष्ठ, खुजली दूर करने वाला
- विसर्प, कृमि प्लीहा रोग दूर करने वाला
- वीर्य बढ़ाने वाला
- त्वचा विकार नाशक
- प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला
औषधीय मात्रा:
आंतरिक प्रयोग के लिए शुद्ध गंधक 125 mg – 1 g की मात्रा में शहद या दूध के साथ,दिन में दो बार लिया जाता है।
Important Formulations containing Gandhak in Hindi
- गंधक वटी Gandhak Vati
- महागंधक वटी Mahagandhaka vati
- गंधक रसायन Gandhaka rasayana
- पंचामृत पर्पटी Panchamrita parpati
- चन्द्रकला रस Chandrakala rasa
- रस-औषधियां
शुद्ध गंधक के सेवन के दौरान गर्म पदार्थों, तेल, लाल मिर्च-, लहसुन, मसाले आदि पदाथों का सेवन न करें। भोजन जो की तासीर में गर्म हो उसका भी सेवन न करें।
चावल, घी, दलिया, दूध का सेवन, जौ की रोटी का सेवन करें।
Warning
- बिना शोधित गंधक का प्रयोग शरीर के लिए हानिकारक है.
- शुद्ध गंधक के प्रयोग से पसीने, मूत्र , दूध आदि में गंध आने लगती है।
- इसे केवल निर्धारित मात्रा में लेना चाहिए।
- ज्यादा मात्रा में सेवन दस्त कर सकता है।
गंधक के बाहरी प्रयोग पर कुछ साइड इफेक्ट्स हो सकते हैं, जैसे की चमड़ी का रूखा होना, खुजली, पीलिंग / त्वचा का छिलके की तरह उतर जाना।
गंधक का लेप खुले घाव पर नहीं करना चाहिए।