गिलोय सत्व के फायदे और नुकसान (Giloy Satva) in Hindi

गिलोय सत्व दवा गिलोय (Giloy) Tinospora cordifolia से बनी दवा है जिसे बिभिन्न रोगों के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक औषधीय जड़ी बूटी है। यह औषधि कड़वी, कसैली, तीखी, और शक्ति में गर्म है। गिलोय कायाकल्प टॉनिक है और इसमें जिगर (लीवर) के फंक्शन में सुधार, त्रिदोष हटाने, प्रतिरक्षा में सुधार करने की क्षमता है। गिलोय एक दिव्य अमृत है जिसकी वजह से इसे अमृता कहा जाता है। गिलोय के सेवन से प्लेटलेट बढ़ते हैं व नए रक्त का निर्माण होता है।

गिलोय से निकाले स्टार्च को गिलोय या गुडूची सत्व कहा जाता है। इसे बनाने के लिए गिलोय के तने को इकठ्ठा करके, छोटे-छोटे टुकड़ों में काटा जाता है। इसे फिर कूटा जाता है और पानी में रात भर के लिए भिगो दिया जाता है। सुबह इसे अच्छे से मसला जाता है जिससे स्टार्च निकल जाए। फिर इसे कपड़े से छान लिया जाता है और पानी को इकठ्ठा कर लिया जाता है। पानी को कुछ घंटे पड़ा रहने देते हैं और नीचे बैठे स्टार्च को अलग कर सुखा लेते हैं। Giloy सत्व या Guduchi सत्व को बुखार, लीवर की कमजोरी-रोग, प्रतिरक्षा और कमजोरी समेत अनेक रोगों में प्रयोग किया जाता है।

गिलोय सत्व को गुडूची सत्व, अमृता सत, गिलो सत आदि कई अन्य नामों से जाना जाता है।

Giloy has anti-spasmodic, anti-pyretic, anti-allergic, anti-inflammatory and anti-leprotic properties. It has aphrodisiac, immunostimulant, hepatoprotective, antioxidant, anticancer and antidiabetic activities. Giloy Satwa or Guduchi Satva, is the starch extracted from the Giloy stem. It improves liver function, immunity, and health condition. It is an tonic and supports better health by strengthening whole body.

  1. उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  2. दवाई का प्रकार: हर्बल आयुर्वेदिक दवाई
  3. मुख्य उपयोग: ज्वर, कम रोगप्रतिरोधक क्षमता, कमजोरी
  4. मुख्य गुण: रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाना, एंटीऑक्सीडेंट, और टॉनिक

गिलोय सत्व की सामग्री Composition of Gilo Satva

इस दवा में एकमात्र घटक गिलोय है।

गिलोय या अमृता का तना Giloy Stem

गिलोय सत्व बनाने की विधि

गिलोय सत बनाने के लिए गिलोय का ताना पानी से साफ़ कर लें और उसके छोटे छोटे टुकडे काट कर इसे खल में कूट लें और साफ़ पानी में खूब मिलाएं. जब पानी में थोडा झाग आने लगे तब तने के टुकड़ों को पानी से छान कर अलग कर लें और बचे पानी को ८-१० घंटे तक पड़ा रहने दें. इसके बाद पानी के नीचे सफ़ेद गिलोय का स्टार्च जैम जाएगा, फिर धीरे धीरे पानी को हिलाए बिना बहा दें और बचे हुए स्टार्च को धुप में सूखा लें. यही गिलोय सत है.

गिलोय (टिनोस्पोरा कोर्डिफोलिया)

गिलोय आयुर्वेद की बहुत ही मानी हुई औषध है। इसे गुडूची, गुर्च, मधु]पर्णी, टिनोस्पोरा, तंत्रिका, गुडिच आदि नामों से जाना जाता है। यह एक बेल है जो सहारे पर कुंडली मार कर आगे बढती जाती है। इसे इसके गुणों के कारण ही अमृता कहा गया है। यह जीवनीय है और शक्ति की वृद्धि करती है। इसे जीवन्तिका भी कहा जाता है।

दवा के रूप में गिलोय के अंगुली भर की मोटाई के तने का प्रयोग किया जाता है। जो गिलोय नीम के पेड़ पर चढ़ कर बढती है उसे और भी अधिक उत्तम माना जाता है। इसे सुखा कर या ताज़ा ही प्रयोग किया जा सकता है। ताज़ा गिलोय को चबा कर लिया जा सकता है, कूंच कर रात भर पानी में भिगो कर सुबह लिया जा सकता है अथवा इसका काढ़ा बना कर ले सकते है। गिलोय को सुखा कर, कूट कर, उबाल कर और फिर जो पदार्थ नीचे बैठ जाए उसे सुखा कर जो प्राप्त होता है उसे घन सत्व कहते हैं और इसे एक-दो ग्राम की मात्रा में ले सकते हैं।

गिलोय वात-पित्त और कफ का संतुलन करने वाली दवाई है। यह रक्त से दूषित पदार्थो को नष्ट करती है और  शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। यह एक बहुत ही अच्छी ज्वरघ्न है और वायरस-बैक्टीरिया जनित बुखारों में अत्यंत लाभप्रद है। गिलोय के तने का काढ़ा दिन में तीन बार नियमित रूप से तीन से पांच दिन या आवश्कता हो तो उससे अधिक दिन पर लेने से ज्वर नष्ट होता है। किसी भी प्रकार के बुखार में लीवर पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में गिलोय का सवेन लीवर की रक्षा करता है।

  1. मलेरिया के बुखार में इसके सेवन से बुखार आने का चक्र टूटता है।
  2. यदि रक्त विकार हो, पुराना बुखार हो, यकृत की कमजोरी हो, प्रमेह हो, तो इसका प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
  3. इसके अतिरित गिलोय को टाइफाइड, कालाजार, कफ रोगों, तथा स्वाइन फ्लू में भी इसके प्रयोग से आशातीत लाभ होता है।

गिलोय के अनुपान:

  1. गिलोय को वात रोगों में घी के साथ, पित्त रोगों में शक्कर / चीनी / गुड़ के साथ और कफ रोगों में शहद के साथ लेना चाहिए।
  2. नेत्र रोगों में गिलोय को आंवले के रस के साथ लिया जाता है।
  3. आमवात में इसे सोंठ के साथ लेना चाहिए।
  4. प्लेटलेट की कमी में इसे एलोवरा के जूस के साथ लेते हैं।
  5. स्वाइन फ्लुए में इसे तुलसी के रस के साथ लेना चाहिए।

आयुर्वेदिक गुण और कर्म

गिलोय स्वाद में कटु, तिक्त, कषाय, गुण में लघु और चिकनी है। स्वभाव से यह गर्म है और मधुर विपाक है। यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।

  • रस (taste on tongue): कटु, तिक्त, कषाय
  • गुण (Pharmacological Action): लघु, स्निग्ध
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): मधुर

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। मधुर विपाक, भारी, मल-मूत्र को साफ़ करने वाला होता है। यह कफ या चिकनाई का पोषक है। शरीर में शुक्र धातु, जिसमें पुरुष का वीर्य और स्त्री का आर्तव आता को बढ़ाता है। इसके सेवन से शरीर में निर्माण होते हैं।

गिलोय सत कर्म Principle Action

  1. पाचन: द्रव्य जो आम को पचाता हो लेकिन जठराग्नि को न बढ़ाये।
  2. दीपन: द्रव्य जो जठराग्नि तो बढ़ाये लेकिन आम को न पचाए।
  3. शोधक: द्रव्य जो शरीर की गंदगी को मुख द्वारा या मलद्वार से बाहर निकाल दे।
  4. वाताघ्न: द्रव्य जो वात को कम करे।
  5. बल्य: द्रव्य जो बल दे।
  6. शोथहर: द्रव्य जो शोथ / शरीर में सूजन, को दूर करे।
  7. मेद्य: द्रव्य जो बुद्धि बढ़ाये।

गिलोय सत्व से फायदा और गिलोय सत के लाभ

  1. यह रसायन औषधि है।
  2. यह त्रिदोष को कम करता है लेकिन वात-पित्त को अधिक कम करता है।
  3. इसके सेवन से बढ़ा हुआ पित्त कम होता है जिससे एसिडिटी, पेट के अल्सर, अल्सरेटिव कोलाइटिस आदि में लाभ होता है।
  4. यह शरीर में टोक्सिन को दूर करता है लेकिन शरीर में गर्मी या पित्त को नहीं बढ़ाता।
  5. यह इम्यून सिस्टम को ताकत देने वाली औषध है।
  6. यह बुखार और इन्फेक्शन वाले रोगों में बहुत लाभप्रद है।
  7. यह शरीर से आम दोष को दूर करता है।
  8. यह लीवर को ताकत देता है।
  9. यह लीवर फंक्शन को ठीक करता है।
  10. यह एंटीऑक्सीडेंट है।
  11. यह जोड़ों के दर्द में लाभप्रद है।
  12. यह त्वचा रोगों में भी फायदेमंद है क्योंकि गिलोय आम दोष और रक्तविकारों को दूर करने वाली दवा है।
  13. इसे प्रमेह रोगों में लेना चाहिए।
  14. यह हृदय को ताकत देता है और हृदय की अनियमित धड़कन में लाभप्रद है।
  15. यह बार-बार आने वाले, पुराने, या निश्चित समय पर आने वाले बुखार को नष्ट करने की दवा है।
  16. यह बुखार में लीवर की रक्षा करती है।
  17. यह अपने मूत्रल और सूजन दूर करने के गुणों के कारण शरीर में सूजन को कम करती है।
  18. यह बहुत प्यास लगना और मूत्र रोगों में फायदेमंद है।
  19. यह बढ़े यूरिक लेवल, अपच, गैस, भूख न लगना, शरीर में जलन, पेशाब में जलन, प्रमेह रोग, लीवर रोगों आदि सभी में लाभप्रद है।

गिलोय सत्व के उपयोग Medicinal Uses of Giloy Satva

  1. क्रोनिक बुखार, वायरल बुखार , मलेरिया बुखार
  2. क्रोनिक डायरिया और पेचिश
  3. स्वप्नदोश
  4. शारीरिक कमजोरी
  5. मूत्र में जलन
  6. मूत्र रुकावट (मूत्र के प्रवाह की रुकावट)
  7. खून की कमी
  8. ब्लीडिंग पाइल्स
  9. प्रमेह
  10. डायबिटीज
  11. गोनोरिया, सिफलिस
  12. पीलिया
  13. हेपेटाइटिस
  14. टॉनिक
  15. रक्त दोष
  16. गठिया, यूरिक एसिड का बढ़ जाना
  17. हाथ-पैर में जलन
  18. बार – बार निश्चित समय पर आने वाला बुखार
  19. मच्छर जनित बुखार (डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया)
  20. स्वाइन फ्लू

गिलोय सत्व की खुराक

  1. गिलोय सत्व को लेने की व्यस्कों के लिए 500 मिग्रा से लेकर 2 ग्राम है।
  2. 5 वर्ष के अधिक उम्र के बच्चों को इसकी आधी मात्रा दी जा सकता है।
  3. कुछ फार्मेसी इसे कैप्सूल के रूप में भी बेचती हैं, जिनके एक कैप्सूल में गिलोय सत्व की मात्रा 250 mg अथवा 500 mg की होता है। इस प्रकार के कैप्सूल को 1-2 कैप्सूल की मात्रा में ले सकते है।
  4. गिलोय सत्व 500 मिग्रा + पिप्पली चूर्ण 250 मिग्रा + मिलाकर मधु के साथ दिन में 3 बार देते रहने से अग्निमांद्य एवं दाहयुक्त जीर्ण-ज्वर दूर हो जाता है।
  5. पुरुषों के प्रमेह, धातु विकार, कमजोरी, किडनी की कमजोरी, आमदोष आदि में ताल मखाना 40 ग्राम + गिलोय सत्व 25 ग्राम + जायफल 25 ग्राम + मिश्री 100 ग्राम को अलग-अलग कूटकर कपड़छन चूर्ण बनाकर रख लें। इस चूर्ण को 1 टीस्पून की मात्रा में सुबह-शाम लें।
  6. वीर्य को गाढ़ा करने के लिए, स्वप्नदोष में, मूत्र में जलन में इस चूर्ण को 125mg वंग भस्म और 125 mg प्रवाल पिष्टी के साथ लें।
  7. बहुत पेशाब आने पर, गिलोय सत्व को 1 टीस्पून घी के साथ लें।
  8. पेशाब में पस जाने पर, गोनोरिया में, गिलोय सत्व को एक गिलास दूध में मिश्री मिलाकर लें। इसे दिन में तीन बार लें।
  9. गिलोय और गेहूं घास का रस मिश्रण प्लेटलेट बढ़ाने में मदद करता है। इसे एलो वेरा के जूस के साथ लेने पर भी प्लेटलेट बढ़ते हैं।
  10. गिलोय सत्व को वात रोगों में घी के साथ; पित्त रोग में मिश्री और कफ रोग में शहद के साथ लेना चाहिए।
  11. इसे खाने के पहले या बाद में, कभी भी ले सकते हैं।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side-effects/Contraindications

  1. गर्भावस्था में कोई दवा बिना डॉक्टर की सलाह के न लें।
  2. इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  3. इसके मूत्रल गुण है।
  4. यह रक्त में शर्करा के स्तर को कम करती है। इसलिए डायबिटीज में लेते समय शर्करा स्तर की अक्सर जांच करवाते रहें।
  5. सर्जरी से दो सप्ताह पहले गिलोय का सेवन न करें।
  6. गर्भावस्था में किसी भी हर्बल दवा का सेवन बिना डॉक्टर के परामर्श के न करें।
  7. यदि आपको ताज़ा गिलोय उपलब्ध हो जाती हो तो उसे काढ़ा बना कर लें।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*