कौड़ी कैल्शियम का कार्बोनेट होता है। इसे आयुर्वेद में एक औषधि की तरह प्रयोग किया जाता है। यह तासीर में गर्म होता है और मुख्यतः इसे अम्लपित्त, पेट के रोगों, यकृत रोगों, संग्रहणी तथा अन्य बहुत से रोगों के उपचार में दवा के रूप में दिया जाता है।
कौड़ी समुद्र में पाए जाने वाले जीव की खोल है। यह मुख्य तीन प्रकार की होती हैं लाल, पीली और सफ़ेद। पुराने समय में इन्हें पैसे की तरह भी वस्तुओं को खरीदने में प्रयोग किया जाता था इसलिए इंग्लिश में इसे \’मनी काउरी\’ भी कहा जाता है। इन रंग-बिरंगी कौड़ियों से बहुत से आभूषण और सजावटी चीजें भी बनायीं जाती है। कौड़ी कैल्शियम का कार्बोनेट होता है। इसे आयुर्वेद में एक औषधि की तरह प्रयोग किया जाता है। यह तासीर में गर्म होता है और मुख्यतः इसे अम्लपित्त, पेट के रोगों, यकृत रोगों, संग्रहणी तथा अन्य बहुत से रोगों के उपचार में दवा के रूप में दिया जाता है।
आयुर्वेद मे यह लिखा गया है जो कौड़ी कुछ पीली, पीठ पर गाँठदार, कुछ लम्बी और कुछ गोल आकार वाली हो वह वराटिका कौड़ी है और इसे ही औषधीय प्रयोजन के लिए प्रयोग किया जाना चाहिए। आयुर्वेद में कौड़ी को सीधे ही दवा के रूप में नहीं प्रयोग किया जाता बल्कि पहले उसे आयुर्वेदिक विधि से शोधित किया जाता है और फिर उसे भस्म विधि द्वारा पकाकर, पीसकर उसका बारीक़ चूर्ण किया जाता है। यही कपर्दक भस्म कहलाती है।
कपर्दक भस्म को कौड़ी भस्म तथा वराटिका भस्म के नाम से भी जाना जाता है। आयुर्वेद में इसे दीपन, पाचक, वातहर, और शूलाघ्न कहा गया है। इसके सेवन से पेट के रोग, कान का बहना, अग्निमांद्य, परिणाम शूल, ग्रहणी, क्षय, फोड़े, आदि दूर होते है।
अन्य नाम: वराटिका भस्म, कपर्दिक भस्म, कौड़ी भस्म, कपर्दी भस्म Varatika Bhasma, Kapardik Bhasma, Kapardak Bhasma.
Kapardak Bhasma is Ayurvedic preparation of animal origin. It is prepared from calcined cowries and used for therapeutic purpose since time immemorial. It is used in treatment of gastrointestinal symptoms and many other diseases. It protects against ulcer and gives relief in acidity, indigestion, Digestive impairment), Duodenal ulcer, Malabsorption syndrome, Tuberculosis, Disorders of blood and Oligospermia.
Here is given more about this medicine, such as benefits, indication/therapeutic uses, composition and dosage.
कपर्दक (वराटिका) भस्म के फायदे | Benefits of Kapardak Bhasma in Hindi
- यह पित्तशामक है।
- यह कफनाशक है।
- यह शूलघ्न है।
- यह दीपन, पाचन और ग्राही है।
- इसके सेवन से अम्लपित्त से राहत मिलती है।
कपर्दक (वराटिका) भस्म के चिकित्सीय उपयोग | Uses of Kapardak Bhasma in Hindi
कपर्दक भस्म के सेवन से पेट के रोग जैसे की अम्लपित्त, अफारा, परिणाम शूल, संग्रहणी, पेट में दर्द आदि विकार दूर होते है। यह दवा पित्त की अम्लता को दूर करती है।
- अम्लपित्त
- ग्रहणी (Malabsorption syndrome)
- अजीर्ण, पेट में भारीपन, डकार आना, मतली, उल्टी
- पक्तिशूल (Duodenal ulcer)
- रक्तपित्त
- अग्निमांद्य (Digestive impairment)
- कर्ण स्राव (Otorrhoea)
- नेत्ररोग (Eye disorder)
- क्षय (Pthisis)
- स्फोट (Boil)
- कर्णस्राव में कपर्दक भस्म को कान में डालकर ऊपर से नीबू का रस डाला जाता है।
कपर्दक (वराटिका) भस्म की सेवन विधि और मात्रा | Dosage of Kapardak Bhasma in Hindi
- 250 mg से 500 mg, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
- इसे मक्खन या मलाई के साथ लें। सीधे लेने पर यह जीभ कट सकती है।
- या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
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This medicine is manufactured by Baidyanath (Kapardak Bhasma), Rasashram (Kapardi (Varatika) Bhasma), Patanjali Divya Pharmacy (Divya Kapardak Bhasm), Shri Dhootapapeshwar Limited (Kapardika (Varatika) Bhasma) and many other Ayurvedic pharmacies.
Kapardika bhasam is the best for ulcer