लशुनादि वटी के फायदे, नुकसान, उपयोग विधि और प्राइस

लशुनादि वटी, एक क्लासिकल आयुर्वेदिक दवाई है जिसे, बहुत सी आयुर्वेदिक फार्मेसी बना रही हैं। इसमें प्रमुख घटक लशुन या लहसुन है। इसके अतिरिक्त इसमें जीरा, सेंधा नमक, गंधक, त्रिकटु, और हींग है। सभी को बराबर मात्रा में लेकर नींबू के रस में घुटाई कर, वटी या टेबलेट बनाई जाती है। यह दवा वैद्यजीवनम के क्षयरोगादि चिकित्सा के ली गई है।

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Lashunadi Vati is classical Ayurvedic medicine refrenced from Vaidyajivanam, Kshayarogadichikitsa. It is used in digestive problems.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: आयुर्वेदिक हर्बल दवाई
  • मुख्य उपयोग: पेट रोग
  • मुख्य गुण: पित्त वर्धक

लशुनादि वटी के घटक | Ingredients of Lashunadi Vati in Hindi

  • लहसुन Lashuna (Bl.) 1 Part (कुछ फार्मूलेशन लहसुन को 2 पार्ट लिया जाता है)
  • जीरा Jiraka (Shveta jiraka) (Fr.) 1 Part
  • सेंधा नमक Saindhava lavana 1 Part
  • गंधक Gandhaka – Shuddha 1 Part
  • सोंठ Shunthi (Rz.) 1 Part
  • काली मिर्च Maricha (Fr.) 1 Part
  • पिप्पली Pippali (Fr.) 1 Part
  • हींग Ramatha (Hingu) (Exd.) 1 Part
  • नींबू रस Nimbu rasa (Nimbu) (Fr.) Q.S. for भावना द्रव्य

लशुन, लहसुन या गार्लिक को मसाले की तरह से इस्तेमाल किया जाता है। इसे रसोना नाम से भी जानते हैं जिसका मतलब है, बिना रस या स्वाद का। लहसुन के सेवन से शरीर में गर्मी आती है। यह रस में कटु और वीर्य में उष्ण है। यह कटु विपाक और गुण में भारी और तीक्ष्ण है।

लहसुन शरीर के सभी टिश्यू पर काम करता है और वात तथा पित्त को कम करता है। यह पित्त वर्धक है। यह पोषक, दीपन, आमनाशक, हृदयरोगहर, ज्वरघ्न, शुल्घं, और कासाघ्न है।

लहसुन कटु रस औषधि है। कटु रस जीभ पर रखने से मन में घबराहट करता है, जीभ में चुभता है, जलन करते हुए आँख मुंह, नाक से स्राव कराता है। यह उष्ण / शीत वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत।

उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है।

  • रस (taste on tongue): मधुर, कटु
  • गुण (Pharmacological Action): गुरु, रुक्ष
  • वीर्य (Potency): उष्ण
  • विपाक (transformed state after digestion): कटु
  • कर्म: दीपन, हृदय, रसायन, अनुलोमना

विपाक का अर्थ है जठराग्नि के संयोग से पाचन के समय उत्पन्न रस। इस प्रकार पदार्थ के पाचन के बाद जो रस बना वह पदार्थ का विपाक है। शरीर के पाचक रस जब पदार्थ से मिलते हैं तो उसमें कई परिवर्तन आते है और पूरी पची अवस्था में जब द्रव्य का सार और मल अलग हो जाते है, और जो रस बनता है, वही रस उसका विपाक है। कटु विपाक, द्रव्य आमतौर पर वातवर्धक, मल-मूत्र को बांधने वाले होते हैं। यह शुक्रनाशक माने जाते हैं। और शरीर में गर्मी या पित्त को बढ़ाते है।

लहसुन को प्रेगनेंसी में दवा की मात्रा में नहीं खाना चाहिए क्योंकि इसकी प्रकृति उष्ण है। इसे पित्त के ज्यादा होने, ब्लीडिंग डिसऑर्डर, अलसर आदि में भी अधिक मात्रा में नहीं लेना चाहिए। वीर्य की समस्या spermatorrhoea और प्रीमेच्योर एजाकुलेशन में इसे नहीं लेना चाहिए।

हींग, तेल और रालयुक्त गोंद है जिसे इंग्लिश में ओले-गम-रेसिन कहते हैं। हींग के पौधे की जड़ एवं तने पर चीरा लगाकर इस गोंद को प्राप्त करते हैं। हींग स्वाद में कटु गुण में लघु, चिकनी और तेज है। स्वभाव से यह गर्म है और कटु विपाक है। यह उष्ण वीर्य है। वीर्य का अर्थ होता है, वह शक्ति जिससे द्रव्य काम करता है। आचार्यों ने इसे मुख्य रूप से दो ही प्रकार का माना है, उष्ण या शीत। उष्ण वीर्य औषधि वात, और कफ दोषों का शमन करती है। यह शरीर में प्यास, पसीना, जलन, आदि करती हैं। इनके सेवन से भोजन जल्दी पचता (आशुपाकिता) है। यह पित्त वर्धक है और पाचन को तेज करती है।

हींग का अधिक मात्रा में सेवन नुकसान करता है। यह शरीर का ताप तो नहीं बढ़ाता परन्तु धातुओं में उष्मा बढ़ा देता है। जहाँ कम मात्रा में यह पाचन में सहयोगी है, वहीँ इसकी अधिक मात्रा पाचन की दुर्बलता, लहसुन की तरह वाली डकार, शरीर में जलन, पेट में जलन, एसिडिटी, अतिसार, पेशाब में जलन आदि दिक्कतें पैदा करता है।

त्रिकटु सौंठ, काली मिर्च और पिप्पली का संयोजन है। यह आम दोष (चयापचय अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थों), जो सभी रोग का मुख्य कारण है उसको दूर करता है। यह बेहतर पाचन में सहायता करता है और यकृत को उत्तेजित करता है। यह तासीर में गर्म है और कफ दोष के संतुलन में मदद करता है। यह पाचन और कफ रोगों, दोनों में ही लाभकारी है। इसे जुखाम colds, छीकें आना rhinitis, कफ cough, सांस लेने में दिक्कत breathlessness, अस्थमा asthma, पाचन विकृति dyspepsia, obesity और मोटापे में लिया जा सकता है।

अदरक का सूखा रूप सोंठ या शुंठी कहलाता है। सोंठ को भोजन में मसले की तरह और दवा, दोनों की ही तरह प्रयोग किया जाता है। सोंठ का प्रयोग आयुर्वेद में प्राचीन समय से पाचन और सांस के रोगों में किया जाता रहा है। इसमें एंटी-एलर्जी, वमनरोधी, सूजन दूर करने के, एंटीऑक्सिडेंट, एन्टीप्लेटलेट, ज्वरनाशक, एंटीसेप्टिक, कासरोधक, हृदय, पाचन, और ब्लड शुगर को कम करने गुण हैं।

काली मिर्च न केवल मसाला अपितु दवा भी है। इसे बहुत से पुराने समय से आयुर्वेद में दवाओं के बनाने और अकेले ही दवा की तरह प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में इसे मरीच कहा जाता है। इसे गैस, वात व्याधियों, अपच, भूख न लगना, पाचन की कमी, धीमे मेटाबोलिज्म, कफ, अस्थमा, सांस लेने की तकलीफ आदि में प्रयोग किया जाता है। इसका मुख्य प्रभाव पाचक, श्वास और परिसंचरण अंगों पर होता है। यह वातहर, ज्वरनाशक, कृमिहर, और एंटी-पिरियोडिक हैं। यह बुखार आने के क्रम को रोकता है। इसलिए इसे निश्चित अंतराल पर आने वाले बुखार के लिए प्रयोग किया जाता है।

पिप्पली उत्तेजक, वातहर, विरेचक है तथा खांसी, स्वर बैठना, दमा, अपच, में पक्षाघात आदि में उपयोगी है। यह तासीर में गर्म है। पिप्पली पाउडर शहद के साथ खांसी, अस्थमा, स्वर बैठना, हिचकी और अनिद्रा के इलाज के लिए प्रयोग किया जाता है। यह एक टॉनिक है।

त्रिकटु या त्रिकुटा के तीनो ही घटक आम पाचक हैं अर्थात यह आम दोष का पाचन कर शरीर में इसकी विषैली मात्रा को कम करते हैं। आमदोष, पाचन की कमजोरी के कारण शरीर में बिना पचे खाने की सडन से बनने वाले विषैले तत्व है। आम दोष अनेकों रोगों का कारण है।

सेंधा नमक, सैन्धव नमक, लाहौरी नमक या हैलाईट (Halite) सोडियम क्लोराइड (NaCl), यानि साधारण नमक, का क्रिस्टल पत्थर-जैसे रूप में मिलने वाला खनिज पदार्थ है। इसे त्रिकुटा के साथ लेने पर गैस नहीं रहती, पाचन ठीक होता है तथा हृदय को बल मिलता है।

लशुनादि वटी के लाभ / फायदे | Benefits of Lashunadi Vati in Hindi

  • यह स्वभाव से गर्म है और शरीर में पित्त को बढ़ाती है।
  • यह कफ और वात को कम करती है।
  • यह अनुलोमन है और अफारे से आराम देती है।
  • यह अपच, बदहजमी, और गैस के दर्द में लाभप्रद है।
  • इसमें जीरा, हींग, लहसुन आदि हैं जो पाचन के सहयोगी हैं।

लशुनादि वटी के चिकित्सीय उपयोग | Uses of Lashunadi Vati in Hindi

लशुनादि वटी पेट रोगों की दवाई है। इसे दस्त, अपच, पाचन की कमजोरी, गैस बनना, आदि में लिया जा सकता है। इसके सेवन से पित्त का स्राव होता है और पाचन ठीक से होता है। यह हींग होने से यह गैसहर है।

  • अजीर्ण Ajirna (Dyspepsia)
  • अतिसार Atisara (Diarrhoea)
  • अनुलोमन Carminative
  • आँतों में कीड़े Parasites
  • कब्ज़ Constipation
  • गैस Distention, gas
  • पेट का फ्लू Gastroenteritis (Stomach Flu)
  • भूख नहीं लगना Loss of appetite
  • विरेचन Laxative
  • विशुचिका Vishucika (Gastro-enteritis with piercing pain)
  • बदहजमी से डकार आना
  • वायु का गोला बनना
  • जी मिचलाना, पेट फूलना, खट्टी डकार, चक्कर आना

लशुनादि वटी की सेवन विधि और मात्रा | Dosage of Lashunadi Vati in Hindi

  • 1-2 गोली, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
  • इसे पानी के साथ लें।
  • इसे भोजन करने के बाद लें।
  • इसे 3-6 महीने तक लिया जा सकता है।
  • या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

सावधनियाँ / साइड-इफेक्ट्स / कब प्रयोग न करें Cautions / Side effects / Contraindications in Hindi

  • यह तासीर में गर्म है।
  • इसके सेवन से शरीर में गर्मी बढ़ती है।
  • शरीर में गर्मी के रोग हो, मासिक में ब्लीडिंग अधिक होती हो, नाक से खून गिरता हो, मासिक जल्दी आता हो तो इसे या तो नहीं लें या कम मात्रा में लें।
  • गर्भावस्था में इस दवा को नहीं लें।
  • इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  • इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
  • दवा की अधिक मात्रा एसिडिटी, पेट में जलन, आदि कर सकती है।
  • इसमें सेंधा नमक है। इसलिए जिन लोगों को कम नमक लेने की सलाह है, जैसे हाई ब्लड प्रेशर, वाटर रिटेंशन, आदि वे दवा का सेवन नहीं करें।

उपलब्धता

  • इस दवा को ऑनलाइन या आयुर्वेदिक स्टोर से ख़रीदा जा सकता है।
  • बैद्यनाथ Baidyanath Lashunadi Bati
  • डाबर Dabur Lasunadi Vati
  • झंडू Zandu Lashunadi Vati
  • तथा अन्य बहुत सी फर्मसियाँ।

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