आयुर्वेद में मनसिल का प्रयोग प्राचीन समय से चिकित्सीय प्रयोजन के लिए प्रयोग किया जाता है। इसका विवरण और उपयोग वेदों में भी दिया गया है। ऋग्वेद में इसका उपयोग पर्यावरण शुद्धि के लिए और अथर्ववेद में इसके बाह्य और आंतरिक प्रयोग के बारे में उल्लेख किया है। आयुर्वेद में मनशिल को ‘उपरस वर्ग’ में रखा गया है। मनशिल को हिचकी, अस्थमा, खांसी, ब्रोंकाइटिस, चर्दी, मानसिक विकारों, श्वसन, ऑप्थाल्मिक, कुष्ठ और अन्य त्वचा की बीमारियों के उपचार में उल्लेख किया है। इसके अतिरिक्त इसे विष, दुर्बलता, बुखार, भूख न लगना, मिरगी, अनिद्रा और अन्य मानसिक रोगों के उपचार में प्रयोग किया जाता है।
शुद्ध मंसिल भारी, दस्तावर, वर्ण को उत्तम करने वाली, गर्म, लेखन, चरपरी, कड़वी, स्निग्ध, विषविकारक, होती है। यह खांसी, कफ, रक्तविकार, भूतबाधा, मस्तिष्क विकार को नष्ट करने वाली है।
मनःशिला क्या है?
मनःशिला या मनसिल, आर्सेनिक का सल्फाइड है। इसका रासायनिक सूत्र Arsenic disulphide AS2S2 है। यह नारंगी-लाल रंग और नरम क्रिस्टलीय संरचना है।
यह एक अयस्क के रूप में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है। कृत्रिम रूप से इसे आर्सेनिक और सल्फर के संयोजन के द्वारा तैयार किया जा सकता है।
आयुर्वेद में मनसिल का आन्तरिक प्रयोग केवल शोधन के बाद के बाद किया जाता है। शोधित मनसिल को शुद्ध मनसिल कहा जाता है। शोधन के लिए, मैनशिल के चूर्ण को अगस्त के पत्ते के रस या अदरक के रस की भावना 7 बार, 7 दिन के लिए दी जाती है।
Synonyms
Sanskrit: मनःशिला, मनोगुप्ता, नागजिहिविका, नैपाली कुनटी, गोला, शिला, मनसिल, Manahshila, Mainsil।
- Hindi, Gujrati, Marathi, Kannada: Mansil
- Bengali: Man-ganch
- Telugu: Manushila
- Tamil: Kudire-Palpashanam
- Malyalam: Warangan
- English: Realgar, Red orpiment
आयुर्वेदिक दवाएं
- श्वासकुठार रस (for asthma with cough and in remittent fever with cerebral complications)
- स्मृतिसागर रस (for psychotherapy)
- उन्माद गजकेसरी रस (psychological disorders)
- वातकुलान्तक रस (diseases of brain and nervous system)
- बाहरी रूप से, मनसिल का पेस्ट या लेप प्रभावित त्वचा के क्षेत्रों पर लगाया जाता है।
- मनःशिलादि लेप (external)
आंतरिक उपयोग के लिए केवल शुद्ध मनसिल प्रयोग किया जाता है। शुद्ध मनसिल भारी, उष्ण, विरेचक, कड़वा और रक्तशोधक है।
अशुद्ध मनसिल पाचन शक्ति को घटाता है, पेशाब में दर्द, जलन, गुर्दे में पथरी, कब्ज़ आदि दुष्प्रभाव पैदा करता है।