लिव डी 38, टेबलेट और सिरप, पतंजलि आयुर्वेद द्वारा निर्मित है। यह दवा लिवर के रोगों के लिए ली जा सकती है। इसे लीवर के बढ़ जाने, पीलिया, फैटी लीवर और अन्य स्थितियों के उपचार के लिया जा सकता है। इसमें केवल औषधीय वनस्पतियाँ हैं।
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Patanjali Liv D 38, is Ayurvedic Proprietary Medicine. It is used in liver diseases such as fatty liver, Hepatitis, Loss of appetite, Anemia and jaundice.
Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.
- अन्य नाम: दिव्य लिव डी 38, पतंजलि लिव डी 38 गोलियाँ – लीवर टॉनिक
- निर्माता: Patanjali Ayurvedic Pvt. Ltd.
- उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
- दवाई का प्रकार: हर्बल आयुर्वेदिक पेटेंटेड दवाई
- मुख्य उपयोग: लीवर की बिमारी
- मुख्य गुण: लीवर टॉनिक
मूल्य MRP:
- LIV D 38 TABLET 40 gm (80 टेबलेट्स) @ Rs 70
- LIV D 38 SYRUP 200 ml @ Rs 75
पतंजलि लिव डी 38 के घटक | Ingredients of Patanjali Liv D 38 in Hindi
Liv D 38 Tablet
Each Tablet Contains
- Bhumi Amla Phyllanthus niruri 100mg
- Bhringraj Eclipta alba 75mg
- Giloy Tinospora cordifolia 50mg
- Kalmegh Andrographis paniculata 50mg
- Makoy Solanum nigrum 50mg
- Punarnava Boerhavvia diffusa 50mg
- Arjun Terminalia arjuna 25mg
- Daru haldi Berberis aristata 25mg
- Kutki Picrorhiza kurroa 25mg
LIV D 38 SYRUP
Each 10 ml contains
- Punarnava ( Boerhavvia diffusa) 20 mg
- Sarpunkha (Tephrosia purpurea) 20 mg
- Amla (Emblica officinalis) 10 mg
- Pippali (Piper nigrum) 10 mg
भूमि आंवला
भूमि आंवला Phyllanthus fraternus Webst. Syn.Phyllanthus niruri Hook. F. non Linn. (Fam. Euphorbiaceae), एक छोटा पौधा है जो बारिश के दिनों में अपने आप ही हर जगह उगता दिख जाता है। इसके पत्ते देखने में आंवले के पेड़ जैसे ही होते हैं। पत्तों की पृष्ठ भाग कर गोल आंवले जैसी ही आकृतियाँ होती हैं। इसलिए इसे भूमि आंवला कहते हैं। भूमि आंवला में phyllanthin और hypophyllanthin कंपाउंड पाए जाते हैं।
दवाई की तरह पूरे पौधे का इस्तेमाल किया जाता है। यह लीवर एंटीहेपाटॉक्सिक antihepatotoxic है और यह लीवर को डैमेज करने से बचाने वाली वनस्पति है। भूमि आंवला लीवर के लिए मुख्य रूप से प्रयोग की जाने वाली दवा है। भूमि आंवला को यकृत विकारों और हेपेटाइटिस बी वायरस में प्रयोग किया जाता है। इसका प्रयोग मूत्रवर्धक, स्रोतों को खोलने वाला, एंटी-इन्फ्लेमाटरी, खून रोकने वाला है।
इसका प्रयोग किया जाता है अपच, पुरानी पेचिश, मूत्र रोग, मधुमेह, त्वचा विस्फोट औ पीलिया में होता है। यह कोलाइटिस, एडिमा, सूजाक, पीरियड्स अधिक ब्लीडिंग, और पेशाब रोगों में भी लाभ करती है।
भूमि आंवला पित्त और कफ को कम करता है लेकिन वात को बढ़ा सकता है। यह मुख्य रूप से पाचन, प्रजनन और पेशाब अंगों पर काम करने वाली दवा है।
भूमि आंवला को गर्भावस्था में नहीं लेना चाहिए।
भृंगराज
भृंगराज को हिंदी में भांगरा, भंगरिया, भंगरा, संस्कृत में केशराज, भृंगराज, भृंगरज, मार्कव, भृंग, अंगारक, केशरंजन आदि कहते है। इंग्लिश में ट्रेलिंग एक्लिप्टा और लैटिन में एक्लिप्टा अल्बा कहते हैं। यह वनस्पति नालियों के किनारे, खेतों के किनारे और पानी वाली जगहों पर पायी जाती है। यह एक खरपतवार है जो की बारिश के मौसम में स्वतः ही उग जाती है।
इसके पत्ते देखने में अनार के पत्ते जैसे पर उससे चौड़े और लम्बे होते हैं। इसके बीज बहुत छोटे और काले होते हैं।
औषधीय प्रयोग के लिए भृंगराज का पूरा पौधा ताज़ा या सूखा प्रयोग किया जाता है। यह केशों, त्वचा, नेत्रों और लीवर के लिए लाभप्रद है।
भृंगराज को लीवर सिरोसिस और हेपेटाइटिस में किया जाता है। यह रंजक पित्त को साफ़ करता है और लीवर की रक्षा करता है। यह बाइल का फ्लो बढ़ाता है और भूख को सही करता है। यह खून बढ़ाता है और लीवर फंक्शन को ठीक करता है। इसके सेवन से एनीमिया दूर होता है।
गिलोय (टिनोस्पोरा कोर्डिफोलिया)
गिलोय आयुर्वेद की बहुत ही मानी हुई औषध है। इसे गुडूची, गुर्च, मधु]पर्णी, टिनोस्पोरा, तंत्रिका, गुडिच आदि नामों से जाना जाता है। यह एक बेल है जो सहारे पर कुंडली मार कर आगे बढती जाती है। इसे इसके गुणों के कारण ही अमृता कहा गया है। यह जीवनीय है और शक्ति की वृद्धि करती है। इसे जीवन्तिका भी कहा जाता है।
दवा के रूप में गिलोय के अंगुली भर की मोटाई के तने का प्रयोग किया जाता है। जो गिलोय नीम के पेड़ पर चढ़ कर बढती है उसे और भी अधिक उत्तम माना जाता है। इसे सुखा कर या ताज़ा ही प्रयोग किया जा सकता है। ताज़ा गिलोय को चबा कर लिया जा सकता है, कूंच कर रात भर पानी में भिगो कर सुबह लिया जा सकता है अथवा इसका काढ़ा बना कर ले सकते है।
गिलोय वात-पित्त और कफ का संतुलन करने वाली दवाई है। यह रक्त से दूषित पदार्थो को नष्ट करती है और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाती है। यह एक बहुत ही अच्छी ज्वरघ्न है और वायरस-बैक्टीरिया जनित बुखारों में अत्यंत लाभप्रद है। गिलोय के तने का काढ़ा दिन में तीन बार नियमित रूप से तीन से पांच दिन या आवश्कता हो तो उससे अधिक दिन पर लेने से ज्वर नष्ट होता है। किसी भी प्रकार के बुखार में लीवर पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में गिलोय का सवेन लीवर की रक्षा करता है। यदि रक्त विकार हो, पुराना बुखार हो, यकृत की कमजोरी हो, प्रमेह हो, तो इसका प्रयोग अवश्य करना चाहिए।
कालमेघ
कालमेघ को भूनिम्ब भी कहते हैं। यह बहुत कड़वी औषधि है। यह इन्फेक्शन, बुखार, और खून रोकने तथा खून साफ़ करने केलिए प्रयोग की जाने वाली दवा है।
कालमेघ का सेवन बाइल को बढ़ाता है। यह लीवर के इन्फेक्शन और सूजन में उपयोगी है। यह रंजक पित्त को कम करता है। कालमेघ लीवर की रक्षा करता है। यह एंटीवायरल है और हेपेटाइटिस में उपयोगी है। लीवर के धीमे काम करने और फैट के कम पाचन को ठीक करने में इसे प्रयोग करते हैं।
काकमाची
काकमाची या मकोय, दर्द निवारक, शोथहर, संकोचक, ज्वरघ्न, यकृत की रक्षा करने वाली, और विरेचक औषधि है। इसे मुख्य रूप से सूजन दूर करने के लिए, शरीर की गर्मी कम करने के लिए, पेट के रोगों, यकृत के रोगों और एक टॉनिक की तरह प्रयोग किया जाता है।
पुनर्नवा
पुनर्नवा आयुर्वेद में प्रयोग की जाने वाली बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि है। इसे बहुत ही प्राचीन समय से शरीर में सूजन, मूत्र रोगों और पथरी में प्रयोग किया जाता रहा है। पुनर्नवा बहुत ही महत्वपूर्ण औषधि है। यह बढे हुए पित्त और कफ को संतुलित करता है तथा हृदय, यकृत, वृक्क, फेफड़ों और नेत्रों के लिए टॉनिक है। यह वृक्क और मूत्र मार्ग को साफ़ करता है। यकृत से भी यह विषैले पदार्थों को दूर करता है। अपने पसीना लाने, मूत्र बढ़ाने और विरेचक गुण के कारण यह शरीर की गंदगी को दूर कर रोगों को जड़ से दूर करने का काम करता है। यह मुख्य रूप से शरीर की सूजन को दूर करने, यकृत और वृक्क के रोगों में प्रयोग की जाने वाली प्रमुख वनस्पति है। इसमें लीवर की रक्षा करने के गुण हैं। डेंगू के बुखार में गिलोय के साथ पुनर्नवा का काढ़ा बनाकर पिलाने से न केवल लीवर का बचाव होता है, इससे टोक्सिन दूर होते हैं अपितु नए रक्त का निर्माण होता है और शरीर में लीवर के सही काम न करने के कारण हो जाने वाले सर्वांग शोथ में लाभ होता है।
दारुहल्दी
दारुहल्दी बहुत से रोगों में घरेलू उपचार के रूप में पुराने समय से लोग प्रयोग करते रहे हैं। यह रस में मधुर, गुण में लघु, रूक्ष, तथा वीर्य में शीत है। यह कटु विपाक है तथा अरुचि दूर करने वाली है। यह पित्तशामक है और विषतम्भी है। इसे रक्तार्श, आँखों के रोगों, चमड़ी के रोगों, अल्सर, पीलिया, यकृत-तिल्ली की वृद्धि आदि में प्रयोग करने से लाभ होता है।
आंतरिक रूप से सेवन पर है यह शरीर में सूजन कम करती है। लीवर के रोगों में इसे यह लाभप्रद है।
पतंजलि लिव डी 38 के लाभ | Benefits of Patanjali Liv D 38 in Hindi
- यह लीवर रोगों के लिए उपलब्ध अच्छी दवाई हो सकती है।
- यह सभी प्रकार के लीवर रोगों में प्रयोग की जा सकती है।
- यह लीवर फंक्शन को ठीक करने में उपयोगी हो सकती है।
- यह लीवर की रक्षा करने वाली दवाई है।
- यह एक लीवर टॉनिक है।
- पतंजलि लिव डी 38 के चिकित्सीय उपयोग Uses of Patanjali Liv D 38
- फैटी लीवर fatty liver
- हेपेटाइटिस hepatitis
- भूख नहीं लगना loss of appetite
- खून की कमी Anemia
- पीलिया Jaundice
पतंजलि लिव डी 38 की सेवन विधि और मात्रा | Dosage of Patanjali Liv D 38 in Hindi
- 2 गोली, दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
- सात साल से कम उम्र के बच्चों को 1/2 गोली दी जा सकती है।
- अथवा
- 2 चम्मच दिन में दो बार, सुबह और शाम लें।
- सात साल से कम उम्र के बच्चों को 1/2 चम्मच की मात्रा में सिरप दे सकते हैं।
- या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।
सावधनियाँ / साइड-इफेक्ट्स / कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications in Hindi
- इसे गर्भावस्था में प्रयोग नहीं करें।
- कुछ लोगों में इसके सेवन से पाचन में कुछ बदलाव आ सकते हैं।
- इससे वात बढ़ सकता है।
- यह हर्बल है और लम्बे समय तक लेने के लिए सुरक्षित है।
लिवर 90% डैमेज है और पीत मे पथरी भी है क्या लिव डी 38 इस्तेमाल कर सकते है।
या हमे कोई दवा बताएं।
धन्यवाद।
mere livar me sujan or pain hota hai. To konshi aayurvedik dava muze jaruri hai.