दिव्य श्वासारि प्रवाही के फायदे, नुकसान, उपयोग विधि और प्राइस

दिव्य श्वासारि प्रवाही  स्वामी रामदेव की पतंजलि दिव्य फार्मेसी में निर्मित आयुर्वेदिक दवा है। यह दवा प्राकृतिक जड़ी बूटियों और खनिजों से बनी है तथा इसका प्रयोग सांस सम्बन्धी respiratory ailment बिमारियों जैसे की सांस लेने में कठिनाई, difficult breathing, खाँसी coughing, श्वास रोग asthma, दमा, गले के विकारों throat disorders आदि में किया जाता है।

यह दवा विशेषतः अस्थमा के उपचार में उपयोगी है। इस दवा के सेवन से श्वसन अंग respiratory organs के सही तरह से कार्य करने मे मदद मिलती है।

दवा के बारे में इस पेज पर जो जानकारी दी गई है वह इसमें प्रयुक्त जड़ी-बूटियों के आधार पर है। हम इस प्रोडक्ट को एंडोर्स नहीं कर रहे। यह दवा का प्रचार नहीं है। हमारा यह भी दावा नहीं है कि यह आपके रोग को एकदम ठीक कर देगी। यह आपके लिए फायदेमंद हो भी सकती हैं और नहीं भी। दवा के फोर्मुलेशन के आधार और यह मानते हुए की इसमें यह सभी द्रव्य उत्तम क्वालिटी के हैं, इसके लाभ बताये गए हैं। मार्किट में इसी तरह के फोर्मुले की अन्य फार्मसियों द्वारा निर्मित दवाएं उपलब्ध हैं। इस पेज पर जो जानकारी दी गई है उसका उद्देश्य इस दवा के बारे में बताना है। कृपया इसका प्रयोग स्वयं उपचार करने के लिए न करें। हमारा उद्देश्य दवा के लेबल के अनुसार आपको जानकारी देना है।

Divya Swasari Pravahi is Ayurvedic Proprietary Medicine from Swami Ramdev’s Divya pharmacy. It is a medicine to treat respiratory ailments.

Here is given more about this medicine, such as indication/therapeutic uses, Key Ingredients and dosage in Hindi language.

  • निर्माता: पतंजलि दिव्य फार्मेसी Patanjali
  • उपलब्धता: यह ऑनलाइन और दुकानों में उपलब्ध है।
  • दवाई का प्रकार: हर्बल आयुर्वेदिक
  • मुख्य उपयोग: श्वास समस्याओं के लिए
  • मुख्य गुण: फेफड़ों के सही काम करने में सहयोग करना, पोषण देना और जमे कफ को कम करना
  • मूल्य MRP: DIVYA SWASARI PRAVAHI 1 Bottle 250 ml @ Rs. 50

दिव्य श्वासारि प्रवाही के घटक | Ingredients of Divya Swasari Pravahi in Hindi

Each 5 ml contains:

  • काली मिर्च Marich (Piper longum) 50 mg
  • मुलेठी Mulethi (Glycyrrhiza glabra) 50 mg
  • बड़ी कटीली Kateli badi (Solanum indicum) 50 mg
  • काला वासा Kala vasa (Justicia gendarussa) 50 mg
  • सफ़ेद वासा Safed vasa (Adhatoda vasica) 50 mg
  • बनफ्शा Banfsa (Viola osorata) 50 mg
  • छोटी पिप्पल Chhoti pipal (Piper longum) 50 mg
  • तुलसी देसी Tulsi Desi (Ocimum sanctum) 50 mg
  • दालचीनी Dalchini (Cinnamomum zeylanicum) 50 mg
  • लवंग Lavang (Syzgium aromaticum) 50 mg
  • सोंठ Sonth (Zingiber officinale) 50 mg
  • तेजपत्ता Tejpatra (Cinnamomum tamala) 50 mg
  • भृंगराज Bhangra (Eclipta alba) 50 mg
  • लसोड़ा Lishoda (Cordia dichotoma) 50 mg
  • अमलतास Amaltas (Cassia fistula) 50 mg
  • ईख Ikha (Saccharum officinarium)  70% w/v

काली मिर्च

काली मिर्च न केवल मसाला अपितु दवा भी है। इसे बहुत से पुराने समय से आयुर्वेद में दवाओं के बनाने और अकेले ही दवा की तरह प्रयोग किया जाता है। आयुर्वेद में इसे मरीच कहा जाता है। इसे गैस, वात व्याधियों, अपच, भूख न लगना, पाचन की कमी, धीमे मेटाबोलिज्म, कफ, अस्थमा, सांस लेने की तकलीफ आदि में प्रयोग किया जाता है। काली मिर्च पित्त वर्धक है। यह तासीर में गर्म है और वात और कफ को दूर करती है। इसके सेवन से शरीर में गर्माहट आती है।

काली मिर्च पित्तवर्धक है। इसलिए पित्त प्रकृति के लोग इसका सेवन सावधानी से करें।  आयुर्वेद में उष्ण चीजों का सेवन गर्भावस्था में निषेध है। काली मिर्च को दवा की तरह  गर्भावस्था में न लें।

मुलेठी

मुलेठी की जड़ या लिकोरिस, को आयुर्वेद में यष्टिमधु कहते हैं।  मुलेठी को इसके मीठे स्वाद और एंटीअल्सर एक्शन के लिए जाना जाता है। लीकोरिस को कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करने, श्वसन तंत्र संबंधी रोगों को ठीक करने और प्रतिरक्षा स्तर को बढ़ाने सहित विभिन्न बीमारियों के लिए प्रयोग किया जाता है। लीकोरिस का मुख्य घटक, ग्लिसरीफिसिन है। लीकोरिस में उपस्थित अन्य घटक ग्लूकोज, सूक्रोज, मैनाइट, स्टार्च, asparagine, कड़वाहट प्रिंसिपल, रेजिन, एक वाष्पशील तेल और रंग का पदार्थ है, जो सामूहिक रूप से औषधीय गुण लीकोरिस को देते हैं। यकृत पर इसकी लाभकारी कार्रवाई के माध्यम से, यह पित्त प्रवाह को बढ़ाता है और कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है।

श्वसन रोग में इसके सेवन से जलन और सूजन कम हो जाती है। इंटरफेरोन के स्तर को बढ़ाकर यह प्रतिरक्षा को बढ़ाता है,  जिससे शरीर में वायरस रोगों से आराम होता है।  एंटी-एलर्जी गुण से यह एलर्जी रिनिटिस, नेत्रश्लेष्मलाशोथ और ब्रोन्कियल अस्थमा में उपयोगी होती है।

लीकोरिस युवा स्वस्थ पुरुषों में टेस्टोस्टेरोन उत्पादन कम कर सकता है।  पोटेशियम की कमी से ग्रस्त व्यक्ति को लिकोरिस का उपयोग नहीं करना चाहिए।

बड़ी कटीली

आयुर्वेद में वृहती को बहुत अधिक प्रयोग किया जाता है। यह दशमूल में प्रयोग की जाने वाली दस जड़ों में से एक है। यह लघु पञ्च मूल में आती है जिसमें अन्य चार जड़ें हैं, शालपर्णी, पृश्नीपर्णी, छोटी कटेरी और गोखरू।  दशमूल शरीर में सूजन और वात-व्याधि के उपचार में प्रयोग की जाने वाली एक बहुत ही उत्तम दवा है। इसमें ज्वर/बुखार और सूजन को कम करने के गुण हैं। दशमूल खांसी, गैस, भूख न लगना, थकावट, ख़राब पाचन, बार-बार होने वाला सिरदर्द, पार्किन्सन, पीठ दर्द, साइटिका, सूखी खांसी, आदि में  भी बहुत ही उपयोगी है।

शुंठी

अदरक का सूखा रूप सोंठ या शुंठी dry ginger is called Shunthi कहलाता है। एंटी-एलर्जी, वमनरोधी, सूजन दूर करने के, एंटीऑक्सिडेंट, एन्टीप्लेटलेट, ज्वरनाशक, एंटीसेप्टिक, कासरोधक, हृदय, पाचन, और ब्लड शुगर को कम करने गुण हैं। यह खुशबूदार, उत्तेजक, भूख बढ़ाने वाला और टॉनिक है। सोंठ का प्रयोग उलटी, मिचली को दूर करता है।

शुण्ठी पाचन और श्वास अंगों पर विशेष प्रभाव दिखाता है। इसमें दर्द निवारक गुण हैं। यह स्वाद में कटु और विपाक में मधुर है। यह स्वभाव से गर्म है।

दालचीनी

दालचीनी या दारुचिनी एक पेड़ की छाल है। यह वात और कफ को कम करती है, लेकिन पित्त को बढ़ाती है। यह मुख्य रूप से पाचन, श्वसन और मूत्र प्रणाली पर काम करती है। इसमें दर्द-निवारक / एनाल्जेसिक, जीवाणुरोधी, ऐंटिफंगल, एंटीसेप्टिक,  खुशबूदार, कसैले, वातहर, स्वेदजनक, पाचन, मूत्रवर्धक,  उत्तेजक और भूख बढ़ानेवाले गुण है। दालचीनी पाचन को बढ़ावा देती है और सांस की बीमारियों के इलाज में भी प्रभावी है।

तुलसी

तुलसी एक औषधीय वनस्पति है। आजकल किये जाने वाले वैज्ञानिक शोध भी इसके औषधीय गुणों और प्रयोगों को सही सिद्ध करते है।

डेंगू, चिकनगुनिया, फ्लू, आदि सभी वायरल जनित बुखारों में तुलसी बहुत ही सफलता से इलाज़ करती है। अन्य जड़ी बूटियों के साथ मिलाकर इसे लेने से इसका प्रभाव और बढ़ जाता है, जैसे डेंगू के बुखार में इसे गिलोय के साथ काढ़ा बनाकर दिया जाता है। कफ की अधिकता में इसे शहद के साथ देते है।

सामान्य रोगों जैसे की खांसी, जुखाम, बुखार, पेट में दर्द, सिर में दर्द, कास-श्वास, वमन, अजीर्ण, मन्दाग्नि, चरम रोग, कील-मुहांसे, पेट के कीड़े, लू लगना आदि सभी इसके सेवन से दूर होते हैं।

दिव्य श्वासारि प्रवाही के लाभ / फायदे | Benefits of Divya Swasari Pravahi in Hindi

  • इस दवा में कफःनिस्सारक expectorant गुण है इसलिए यह कफ को ढीला कर उसे आसानी से निकालने में मदद करती है।
  • इसके सेवन से फेफड़े में बलगम का उत्पादन कम करने में मदद मिलती है।
  • इसके सेवन से सिर मे भारिपन,‍‌‍‍ साइनसाइटिस, खांसी, जुखाम, सर्दी, अस्थमा, छींकने, आदि मे विशेष लाभ होता है।
  • इसमें  ब्रोन्कोडायलेटर गुण है।
  • इसमें म्यूकोलाईटिक गुण है जिससे यह बलगम को ढीला करने में मदद करता है।
  • इसे इससे फेफड़ों के संक्रमण में ले सकते हैं।
  • इसे ब्रोंकाइटिस के उपचार में किया जा सकता है।
  • यह  छाती में श्लेष्मा cough/phlegm के अत्यधिक संचय को नष्ट करने में सहायक है।
  • यह  फेफड़ों lungs के सही काम करने मे मदद करता है।
  • यह  सांस की कोशिकाओं को पोषण प्रदान करता है।
  • यह  सीने में श्लेष्मा के आगे विकास को रोकने में मदद करता है।
  • यह अस्थमा/दमा का प्राकृतिक उपचार Asthma है।
  • यह गले में दर्द और जलन कम करता है। य
  • यह फेफड़ों lungs मे जमे कफ़ को बाहर निकलता है।
  • यह फेफड़ों में हवा के प्रवाह में सुधार करता है।
  • यह वायुमार्ग में रुकावट दूर कर सांस लेना आसान करता है।
  • यह शरीर के प्रतिरोध immunity में सुधार करता है।
  • यह सांस की नली में सूजन को कम करने में सहायक हो सकता है।
  • यह सांस की सभी बीमारियों के इलाज में मदद करता है।
  • श्वासारि प्रवाही  सेवन फेफड़ों की कोशिकाओं को और अधिक सक्रिय बनाता है, और ब्रांकिओल्स और ब्रांकाई की सूजन को दूर करता है।

कर्म

  • कफहर: कफ दूर करना
  • छेदन: जमे हुए कफ को दूर करना
  • दीपन: भूख बढ़ाना
  • पित्तकर: पित्त बढ़ाना
  • रुचिकारक: स्वाद बढ़ाना
  • वातहर: वात दोष को दूर करना
  • श्लेष्महर: कफ को दूर करना

दिव्य श्वासारि प्रवाही के चिकित्सीय उपयोग | Uses of Divya Swasari Pravahi in Hindi

श्वासारि प्रवाही  को आम सर्दी-खांसी के लक्षणों से लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। यह सांस लेना आसान बनाता है और सूजन को कम करता है। इसकी जड़ी बूटियाँ, आयुर्वेद में मुख्य रूप से कफ और श्वशन रोगों में पुराने समय से इस्तेमाल की जा रही है और बहुत सेफ हैं। इसके सेवन से नाक जाम होना, नाक बहना, साँस लेने में कठिनाई, छींकने, माथे में भारी लगना, कफ बनना और सिरदर्द आदि लक्षणों में लाभ मिला सकता है।

  • अस्थमा / दमा asthma
  • काली खांसी Whooping Cough
  • खांसी Cough
  • गले में खराश sore throat
  • टीबी की खाँसी Cough of TB
  • धूम्रपान करने वालों खांसी Smokers cough
  • फेफड़े के संक्रमण lung infection
  • बलगम वाली खांसी Productive Cough
  • ब्रोंकाइटिस bronchitis
  • सर्दी-खांसी-जुखाम common cold
  • साइनसाइटिस sinusitis
  • सूखी खाँसी Dry Cough

दिव्य श्वासारि प्रवाही की सेवन विधि और मात्रा | Dosage of Divya Swasari Pravahi in Hindi

  • 1 टीस्पून / 5 ml की मात्रा दिन में दो बार या तीन बार लें।
  • इसे शहद और पानी के साथ लें।
  • इसे भोजन करने के पहले लें।
  • या डॉक्टर द्वारा निर्देशित रूप में लें।

सावधनियाँ/ साइड-इफेक्ट्स/ कब प्रयोग न करें Cautions/Side effects/Contraindications in Hindi

  • इसे 4 से 6 सप्ताह से अधिक समय तक इसका इस्तेमाल नहीं करें।
  • कम दिन तक लेने में इसका कोई गंभीर दुष्प्रभाव नहीं देखा जाता।
  • इसे बच्चों की पहुँच से दूर रखें।
  • इसे ज्यादा मात्रा में न लें।
  • गर्भावस्था में इसे नहीं लें।
  • इसमें मधु है इसलिए डायबिटीज में इसे सावधानी से प्रयोग करें। यदि अनियंत्रित शुगर है तो इसका सेवन न करें। यदि शुगर नियंत्रण में है और कुछ मात्रा में मीठे का प्रयोग कर सकते है तो इसे भी लिया जा सकता है।
  • इसके कुछ घटक उष्णवीर्य हैं, इसलिए अधिकता में सेवन पित्त बढ़ा सकता है जिससे पेट में जलन हो सकती है।
  • निर्धारित मात्रा में और निर्धारित समय तक लेने से इसका कोई दुष्प्रभाव नहीं है।

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